Wednesday, 7 December 2011

देव साहब के निधन से एक युग का अन्त हो गया है



Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi

Published on 7th December 2011
अनिल नरेन्द्र

सदा बहार अभिनेता देव आनन्द अब हमारे बीच नहीं रहे। 65 साल तक पर्दे पर उजले रोमांस का रचियता चला गया। हर फिक्र को धुएं में उड़ाने वाले देव आनन्द का रविवार को लंदन के एक होटल में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वे 88 साल के थे। वह कहते थे कि मैं इस दुनिया से जब रुखसत होऊं तो काम करते ही जाऊं और वैसा ही उन्होंने किया। वह आखिरी समय तक अपने काम में मसरूफ थे। काम करने की ऊर्जा देव साहब में गजब की थी। उन्होंने 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। उनसे जब किसी ने पूछा कि आपके हर हम जवां रहने का राज क्या है तो वह कहते थे कि मैं नए जमाने की सोच के साथ-साथ चलता हूं। यही वजह थी कि उनकी कई फिल्में समय से आगे की थीं। उदाहरण के तौर पर गाइड, हरे राम-हरे कृष्ण अपने समय से काफी आगे की थीं। जब देव आनन्द भारतीय सिनेमा में आए तो उनकी सुंदरता से,मैनेरिज्म से वह बॉलीवुड में छा गए। वह इतने हैंडसम थे कि जवान लड़कियां उनकी एक झलक पाने के लिए तरस जाती थीं। वह एक जमाना था जब हीरो की खूबसूरती बहुत महत्वपूर्ण होती थी। आज तो शक्ल-सूरत इतना मैटर नहीं करती पर देव आनन्द निसंदेह भारतीय सिनेमा के मोस्ट हैंडसम हीरोज में से एक थे। वह कहते थे कि सपने जरूर देखो पर उन्हें साकार करने का मादा भी होना चाहिए। उन्होंने कभी इस बात की परवाह नहीं की कि उनकी फिल्म हिट हो या फ्लॉप। फिल्म की बॉक्स ऑफिस में नाकामी ने उन्हें नई फिल्म बनाने से कभी नहीं रोका। पाकिस्तान से आए देव साहब ने बहुत मामूली सी नौकरी से अपना जीवन शुरू किया पर फिर ऐसे छाये कि 50 साल से ज्यादा तक राज करते रहे। चार साल पहले जब सदा बहार देव आनन्द की आत्मकथा लोगों के हाथ पहुंची तो शायद ही किसी को इस बात की हैरानी हुई होगी कि उन्होंने उसका नाम `रोमांसिंग विद लाइफ' रखा। यह रोमांस सिर्प एक कामयाब या सदा बहार अभिनेता या देश के पहले स्टाइल आइकन का कैमरे की दुनिया के तिलस्म के प्रति नहीं था बल्कि उसे रोमांस के कैनवस को असफल प्रेमी से लेकर हरदिल अजीज इंसान की सतरंगी शख्सियत मुकम्मल बनाती थी। तभी तो उनके बाद की पीढ़ी के अभिनेता ऋषि कपूर कहते हैं कि वे मेरे पिता की उम्र के थे पर उनके जीने का अन्दाज मेरे बेटे रणबीर कपूर की उम्र का था। यह हमेशा जवान रहने की एक लाजिमी जिद भर नहीं थी। उनकी ही फिल्म के एक मशहूर गाने की तर्ज पर कहें तो हर सूरत में जिन्दगी का साथ निभाने की धैर्यपूर्ण शपथ ली, जिसे उन्होंने कभी तोड़ा नहीं बल्कि आखिरी दम तक निभाया। अमिताभ बच्चन ने उन्हें अपनी श्रद्धांजलि में कहा भी कि उनके बाद उनकी जगह दोबारा नहीं भरी जा सकती क्योंकि यह एक युगांत है। देव साहब कभी भी अपनी पुरानी फिल्मों को नहीं देखते थे। उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि वो हर तबके के व्यक्ति से बात करते थे,उनके बारे में जानने की कोशिश करते थे। आपातकाल के दौरान उन्होंने राजनीति में जाने का मन बनाया था। उस दौरान उनकी लोकप्रियता भी आसमान पर थी। अगर वह चुनाव लड़ते तो जीत भी जरूर जाते पर राजनीति से उनका मन उदास हो गया था। देव साहब जाते-जाते हमें यही सिखा गए हैं कि आपको जो भी पसंद हो, वैसे जीओ, वही करो, जिसमें आपको सबसे ज्यादा मजा आता है। अपने प्यार से समझौता करने की जरूरत नहीं है। अगर वह सच्चा है तो लोग आपका साथ देंगे और आपको वह इज्जत इनायत होगी जिसके आप हकदार हैं। देव आनन्द की अंतिम इच्छा थी कि मेरे मृत शरीर को मेरे देश मत ले जाना, मैं चाहने वालों की आंखों में हमेशा-हमेशा के लिए जिन्दा रहना चाहता हूं। अलविदा सदा बहार देव साहब।
Anil Narendra, Daily Pratap, Dev Anand, Vir Arjun

1 comment:

  1. युग का अंत तो है ही....कुछ लोग होते हैं जिनकी कोई जगह नहीं ले सकता.......

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