उत्तर पदेश विधानसभा चुनाव तिथियों की घोषणा से यूपी की तमाम विपक्षी पार्टियों में उत्साह आ गया है। सब अपनी-अपनी हांकने में लग गए हैं। सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी को तो उन्होंने मान लिया है कि वह आगामी चुनाव में मुंह की खाएगी। पर हमें नहीं लगता कि मायावती को एक समाप्त फोर्स मानकर चलना समझदारी होगी। अनुमान भले ही मायावती सरकार के बारे में व्यवस्था विरोधी माहौल के लगाए जा रहे हों पर धरातल पर बसपा उतनी कमजोर नहीं है, जितनी उसे कांग्रेस, सपा और भाजपा मानकर चल रही हैं। मायावती ने अपनी चुनावी तैयारियां एक साल पहले से ही शुरू कर दी थीं। सूबे के सभी 403 सीटों पर बसपा ने अपने उम्मीदवार डेढ़ साल पहले ही तय कर दिए थे। यह अलग बात है कि बहन जी ने इनमें से कुछ को बाद में बदला है। पर कांग्रेस, सपा और भाजपा को तो अपने उम्मीदवार फाइनल करने में भी भारी दिक्कतें आ रही हैं और इनमें विद्रोह की स्थिति बनी हुई है। यह सही है कि बहन जी इस बार मतदाताओं के सामने अपनी किसी विफलता का कोई बहाना नहीं बना पाएंगी। चमत्कार करते हुए मतदाताओं ने 2007 के चुनाव में बसपा को 206 सीटें देकर स्पष्ट बहुमत दिया था। इसी के दम पर मायावती सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया। जबकि उनसे पहले की तीन सरकारें न केवल अपना कार्यकाल ही पूरा कर पाईं बल्कि वे भाजपा के समर्थन पर टिकी थीं। इस बार मायावती को पूरे पांच साल तक काम करने की खुली इजाजत मिली हुई थी। इसलिए वे मतदाताओं से अपने काम के आधार पर ही एक और मौका पाने की अपील करेंगी। जहां तक कांग्रेस का सवाल है बेशक राहुल गांधी अपना मिशन 2012 के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं, यूपी सियासत को समझने वालों का कहना है कि कांग्रेस की ज्यादा स्थिति हवाई है। 2009 के लोकसभा चुनाव में 21 सीटों पर जीत मिल जाने से कांग्रेस यह खुशफहमी पाल बैठी है कि यूपी के मतदाता उसे 1989 से पहले की मजबूत जनाधार वाली स्थिति में पहुंचा देंगे। पर कांग्रेस इस तथ्य को नजरअन्दाज कैसे कर सकती है कि 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद जितनी भी विधानसभा बाई इलेक्शन हुई हैं कांग्रेस एक सीट भी नहीं जीत सकी। कहीं दूसरे नंबर पर रही तो कहीं तीसरे नंबर पर। शायद यह जानते हुए कि पार्टी ने अजीत सिंह के आगे घुटने टेकते हुए उनसे चुनावी तालमेल किया है। यह जानते हुए भी इस गठबंधन से अजीत सिंह की पार्टी को ज्यादा फायदा होगा। कांग्रेस की स्थिति तो वहीं की वहीं रहने की संभावना है। मायावती सुनियोजित रणनीति के तहत लगातार कांग्रेस पर ही वार कर रही हैं। दरअसल वह चाहती हैं कि मतदाता को लगे कि मुकाबला बस बसपा और कांग्रेस के बीच ही है। भाजपा और सपा दोनों की जानबूझकर मायावती अनदेखी कर रही हैं। यह जानते हुए कि असल टक्कर बसपा और सपा के बीच होगी। पिछले चुनाव में बसपा को 206, सपा को 91, भाजपा को 51, कांग्रेस को 22 और रालोद को दस सीटें मिली थीं। मुलायम को कमजोर करने के लिए मायावती इस रणनीति पर चल रही हैं कि मुसलमान वोट एकमुश्त किसी को न मिले। सपा से टूटकर यह या तो उनके साथ आए या फिर कांग्रेस के साथ चला जाए। वैसे इस बार पीस पार्टी भी पूरे जोरों के साथ मैदान में उतर रही है और निश्चित रूप से वह मुसलमान वोट काटेगी। इसलिए यह कहा जा सकता है कि इस बार मुस्लिम वोट एकमुश्त किसी को शायद ही मिले। जहां तक बसपा के पुख्ता वोट बैंक का सवाल है हमें नहीं लगता कि यह कहीं और जाने वाला है। सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय का बहन जी का नारा भले ही अगड़ो के छिटकने की आशंका से इस बार उतनी कामयाब न हो पर दलित और अति पिछड़ी जातियां आज भी उनके साथ हैं। चूंकि मुकाबला बहुकोणीय होगा इसलिए जिसको भी एकमुश्त वोट मिलेगा वही जीत पाएगा पर एक-दो क्षेत्र हैं जहां जरूर बसपा कमजोर पड़ रही है। पहला तो उनकी पार्टी में भारी भ्रष्टाचार है, जिसके चलते मायावती को बहुत से मंत्रियों, सिटिंग विधायकों की टिकटें व कुर्सी काटनी पड़ी है। इससे उन्हें नुकसान हो सकता है। बसपा अपनी सरकार के भ्रष्टाचार को मामूली बताकर मुद्दे को हलका करने की कोशिश में है पर अन्ना के आंदोलन का इतना असर जरूर हुआ है कि आज पूरे देश में एक भ्रष्टाचारी विरोध माहौल बन गया है। बाबा रामदेव भी इस बार यूपी में दबकर पचार करेंगे। इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है। कुल मिलाकर बहुजन समाज पार्टी बेशक आज की स्थिति को देखते हुए सरकार अपने बूते पर न बना सके पर इसमें हमें तो कोई संदेह नहीं कि बसपा यूपी विधानसभा चुनाव 2012 में सबसे बड़ा दल बनकर उभरेगी।
Ajit Singh, Anil Narendra, Baba Ram Dev, Bahujan Samaj Party, BJP, Congress, Daily Pratap, Mayawati, RLD, Samajwadi Party, Vir Arjun
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