Sunday, 11 December 2011

महंगाई की बहस में सुषमा व प्रणब दा की नोकझोंक


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 11th December 2011
अनिल नरेन्द्र
संसद चलते ही विपक्ष ने महंगाई के मोर्चे पर मनमोहन सरकार पर करारा हमला बोल दिया। इस मुद्दे पर लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज का भाषण महत्वपूर्ण था। उनके और वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के बीच नोकझोंक भी महत्वपूर्ण रही। यह देखकर अच्छा लगा कि भारत की जनता की सबसे बड़ी समस्या पर दोनों,विपक्ष और सरकार जागरूक हैं और जनता को इससे निजात दिलवाने के लिए कोशिश कर रहे हैं। सुषमा स्वराज व अन्य विपक्षी नेताओं ने महंगाई पर चर्चा में सरकार की नीतियों, नीयत, वादों और इरादों की धज्जियां उड़ा दीं। बहस की शुरुआत माकपा नेता गुरुदास दासगुप्ता ने की,लेकिन सरकार पर करारा हमला सुषमा ने बोला। जब प्रणब मुखर्जी ने महंगाई दर 11.8 फीसदी से घटकर 6.6 फीसदी आने की बात कही तो सुषमा ने कहा रेहड़ी, बेड़ी और छाबड़ी वाले फीसदी की भाषा नहीं समझते, उन्हें बस यह पता होता है कि कितना पैसा आता है और जाता है। तीखा कटाक्ष करते हुए सुषमा ने कहा कि इस सरकार का अमीरी का पैमाना तो पाव भर आटा, दो तोला दाल, एक चम्मच तेल और एक चुटकी नमक है। देश के 121 करोड़ लोगों को तो दो वक्त की रोटी चाहिए। इसके लिए उनके पास 242 करोड़ हाथ हैं, लेकिन ब्याज दर बढ़ाकर महंगाई घटाएंगे तो इन हाथों का काम जरूर छिन जाएगा। उन्होंने कहा कि राजग के शासन में वित्तमंत्री फीसदी में बजट नहीं देते थे। हिन्दुस्तान की अर्थव्यवस्था को हार्वर्ड और आक्सफोर्ड वाले नहीं समझ सकते। उन्होंने कहा कि अमेरिका के सामने छवि सुधारने से सुधार नहीं होता,उसके लिए गरीब आदमी की आमदनी सुधरनी चाहिए। मूल्य वृद्धि के लिए सरकार की गलत नीतियों और भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहराते हुए सुषमा ने कहा कि अगर सरकार जनता को राहत देने की बजाय निराशा एवं हताशा की बात करती है तो उसे सत्ता से हट जाना चाहिए। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के साथ हुई नोकझोंक में सुषमा ने पलटवार करते हुए कहा कि आंकड़ेबाजी से भूखी जनता का पेट नहीं भरता है। शुक्रवार को भी प्रणब और सुषमा के बीच महंगाई पर नोकझोंक जारी रही। गुरुवार को सुषमा ने प्रणब से कहा था कि पेट आंकड़ों से नहीं भरता,दानों से भरता है। इसके लिए आम आदमी को जद्दोजहद करनी पड़ रही है। शुक्रवार को प्रणब ने विपक्ष खासकर भाजपा पर पलटवार करते हुए कहा कि समय अब (इमोशनल) बातों का नहीं, काम करने का है। अगर महंगाई कम करनी है तो विपक्ष को साथ मिलकर काम करना होगा। वह महंगाई घटाने का कोई सुझाव क्यों नहीं देता? आर्थिक मामलों में सहयोग क्यों नहीं करता?प्रणब दा ने कहा कि क्या विपक्षी नेता चाहते हैं कि हम तेल कम्पनियों पर इतना घाटा थोप दें कि वे एक दिन बन्द हो जाएं। सुषमा से बात करने के लहजे में प्रणब ने कहा कि विपक्ष के लोग खुलकर बताएं कि वे चाहते क्या हैं। वे चाहते हैं कि सब्सिडी बढ़ाई जाए या सब्सिडी कुछ सेक्टरों तक ही सीमित रहे। सरकार जो कर रही है वह उन्हें मंजूर नहीं है। अगर मंजूर नहीं है तो वे सरकार को बताएं कि क्या करना है? बेशक यह सही है कि अगर विपक्ष के पास कुछ ठोस सुझाव हों तो वह सरकार को जरूर दे पर हम प्रणब दा को बताना चाहेंगे कि सरकार चलाना, नीतियां तय करना, जनता को राहत पहुंचाना सरकार का काम है, विपक्ष का नहीं। आज वह अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकती। अगर सरकार गम्भीर है तो सबसे पहले अमेरिका परस्त प्रधानमंत्री और उनके सिपहसालार योजना आयोग के अध्यक्ष की नीतियों को ठुकरा दे और उनकी जगह प्रणब दा आप खुद नीतियां बनाएं। आप इन दोनों से कहीं ज्यादा बेहतर अर्थशास्त्रा हैं और राजनेता हैं जो आम आदमी के दुःख-दर्द को बेहतर समझते हैं। अर्थशास्त्रा प्रधानमंत्री ने तो देश का अर्थशास्त्र ही बिगाड़कर रख दिया है।
Anil Narendra, BJP, Congress, Daily Pratap, Pranab Mukherjee, Sushma Swaraj, Vir Arjun

No comments:

Post a Comment