Friday, 9 December 2011

रूस में ब्लादीमिर पुतिन का गिरता लोकप्रियता ग्रॉफ


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 9th December 2011
अनिल नरेन्द्र
मिखाइल गोर्बाच्योव की उदारवादी नीतियों व आर्थिक उदारीकरण के कारण और वर्षों से दबी राजनीतिक विरोध की चिंगारी की वजह से महान सोवियत संघ का विघटन हो गया और महान सोवियत एम्पायर 15 स्वतंत्र उपराज्यों में विखंडित हो गई। इन परिस्थितियों में 31 दिसम्बर 1999 को अचानक राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया जिससे ब्लादीमिर पुतिन देश के कार्यवाहक राष्ट्रपति बन गए। फरवरी 2000 में लम्बी लड़ाई के बाद रूसी सेनाओं ने चेचन विद्रोहियों को परास्त करते हुए राजधानी ग्रोज्नी पर अधिकार कर लिया। पुतिन के इस कदम से उनकी लोकप्रियता में भारी इजाफा हुआ। 26 मार्च 2000 को पुतिन ने राष्ट्रपति चुनाव जीत लिया। इसके पश्चात उन्होंने सत्ता का केंद्रीकरण शुरू किया और प्रांतीय गवर्नरों और व्यावसायिक घरानों की बढ़ती ताकत पर अंकुश लगाया। यद्यपि आर्थिक दृष्टिकोण से रूस ने पुतिन के काल में कोई विशेष तरक्की तो नहीं की परन्तु ब्लादीमिर पुतिन ने सोवियत विखंडन के बाद रूस को पहली बार राजनीतिक स्थिरता का माहौल जरूर प्रदान किया। इसी वजह से पुतिन मार्च 2004 में फिर रूस के राष्ट्रपति बने। गत सप्ताह रूस में संसदीय चुनाव हुए। इसमें प्रधानमंत्री ब्लादीमिर पुतिन की यूनाइटेड रशिया पार्टी को तगड़ा आघात लगा है। संसद के निचले सदन ड्यूमा में नवीनतम आंकड़ों के अनुसार उसे पूरे 50 प्रतिशत वोट भी नहीं मिले हैं। अलबत्ता 450 सदस्यीय सदन में उसे 238 सीटों का साधारण बहुमत तो जरूर प्राप्त हो गया है मगर पहले की तरह उतना बहुमत नहीं जिसके बल पर वे अपनी इच्छा से कोई संविधान में संशोधन कर सकें। चार साल पहले के 64 प्रतिशत वोट और 315 सीटों से अगर तुलना करें तो साफ है कि पुतिन और उनकी पार्टी की लोकप्रियता काफी घटी है। दूसरी ओर कम्युनिस्ट पार्टी का वोट प्रतिशत 11 से बढ़कर 20 के लगभग पहुंच गया है। उस पर भी तुर्रा यह कि विरोधी पार्टियों और यूरोपीय चुनाव पर्यवेक्षकों ने चुनाव में हेराफेरी का आरोप लगाया है। ड्यूमा चुनावों में धांधलियों का आरोप लगाते हुए सोमवार को रूस की राजधानी मास्को में व्यापक स्तर पर धरने-प्रदर्शन हुए। प्रदर्शनकारी देश में पिछले 12 वर्षों से चले आ रहे पुतिन एकछत्रवादी शासन का विरोध कर रहे थे। प्रदर्शनकारियों ने पुतिन बगैर रूस और क्रांति की मांग सरीखे नारों से मास्को की पुरानी प्राचीरों को झकझोर कर रख दिया। ड्यूमा चुनावों में रूस की दूसरी सबसे बड़ी और मुख्य विपक्षी पार्टी बनकर उभरी रूसी कम्युनिस्ट पार्टी (केपीआर) के महासचिव गेन्नादी किगानोव ने सोमवार को संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि उनकी पार्टी चुनाव में बड़े पैमाने पर हुई धांधलियों को लेकर चिंतित है और सभी आंकड़ों की जांच कर रही है। बदकिस्मती से अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने भी चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल उठा दिए हैं, जिसे रूस के सबसे ताकतवर नेता ब्लादीमिर पुतिन शायद ही बर्दाश्त करें। इन चुनाव नतीजों का असर अगले साल मार्च में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों पर पड़ सकता है जिसमें पुतिन खड़ा होना चाहते हैं। पुतिन दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति नहीं रह सकते थे, अत उन्होंने 2008 में दमित्री मेदवेदेव को राष्ट्रपति बनवा दिया और खुद उनके प्रधानमंत्री बन गए। तब भी दुनिया जानती थी कि असली ताकत तो पुतिन के पास ही है। पिछले कुछ समय से पुतिन अमेरिका की लाइन पर नहीं चल रहे। हो सकता है कि इसी वजह से अमेरिका उन्हें पसंद नहीं कर रहा। हालांकि पुतिन का वह करिश्मा तो नहीं रहा जो पहले था पर आज भी वह अकेले नेता नजर आते हैं जो रूस की प्रतिष्ठा को आगे बढ़ा सकते हैं। रूस को अमेरिका को जवाब देने के लिए पुतिन जैसा नेता ही चाहिए। देखना यह है कि इस संसदीय चुनाव के नतीजों से लेकर अगले राष्ट्रपति चुनाव तक ब्लादीमिर पुतिन कैसे अपनी गिरती लोकप्रियता को सम्भालते हैं और पुन राष्ट्रपति बनते हैं? रूस के हित में तो है कि रूस एक मजबूत देश बनकर फिर से दुनिया में अपनी जगह बनाए पर भारत व गैर पश्चिमांचली देशों के लिए भी एक मजबूत रूस फायदेमंद होगा और ऐसा करने के लिए फिलहाल पुतिन से बेहतर कोई और रूसी नेता नहीं दिख रहा। पुतिन को अपनी गलतियों पर आत्मचिन्तन करना चाहिए और उन्हें सुधारने का प्रयास करना होगा।
Anil Narendra, Daily Pratap, Russia, Valadimir Putin, Vir Arjun,

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