Thursday, 22 December 2011

सोनिया गांधी का ड्रीम पोजेक्ट खाद्य सुरक्षा विधेयक

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 22nd December 2011
अनिल नरेन्द्र
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का एक ड्रीम पोजेक्ट हकीकत होने जा रहा है। सोनिया गांधी के वीटो से खाद्य सुरक्षा विधेयक को केन्द्राrय मंत्रिमंडल ने मंजूर कर लिया है। पधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई केन्द्राrय मंत्रिमंडल की बैठक में इस विधेयक पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई। इस विधेयक को लेकर पूरी सरकार पर इतना ज्यादा दबाव था कि बैठक में इस पर तुरत-फुरत सहमति की मुहर लग गई। खाद्य मंत्री शरद पवार एवं दूसरे सहयोगी दलों की चिंताओं को भी संपग अध्यक्ष का `ड्रीम' बताते हुए इसे अब न रोकने के लिए मनमोहन सिंह ने सभी सहयोगियों को मना लिया। हम सोनिया जी की भावना की कद्र करते हैं। देश में लगभग 47 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और हर साल हजारों लोगों की मौत कुपोषण और भुखमरी की वजह से होती है। पिछले दिनों आई संयुक्त राष्ट्र की मानवविकास रिपोर्ट बताती है कि भारत में पति व्यक्ति आय तो बढ़ी है मगर इसी के साथ भूखे लोगों की तादाद भी बढ़ी है। इस गम्भीर समस्या के मद्देनजर अगर सरकार ने देश के लगभग 63.5 फीसदी आबादी यानि गांव और शहर के लगभग 80 करोड़ गरीब लोगों को भोजन का बुनियादी अधिकार दिलाने वाला कानून बनाने की दिशा में पहल करते हुए बहुपतिष्ठित खाद्य सुरक्षा विधेयक को मंजूरी दी है तो इसका एक लोक कल्याणकारी कदम माना जाएगा और इसका इस हद तक स्वागत किया जाना चाहिए। परन्तु नेक इरादे रखना और उन्हें हकीकत में बदलना आसान नहीं होता। पहली बात तो यह है कि इतना रुपया आएगा कहां से? इस कानून को लागू करने में सरकार पर पहले साल 95,000 करोड़ रुपए की सब्सिडी का बोझ आएगा। यह तीसरे साल तक 1.50 लाख करोड़ हो जाएगा। वर्तमान में सरकार 31,000 करोड़ रुपए खाद्य सब्सिडी पर खर्च कर रही है। इसके अतिरिक्त तीसरे साल देश के कृषि उत्पादों के भंडारण के लिए गोदाम बनाने के लिए 50,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त राशि की आवश्यकता होगी। हमारी मौजूदा व्यवस्था में हमारे पास इतने गोदाम नहीं कि गेंहू और सब्जियों के भंडारों को सुरक्षित रखा जाए। किसान अपनी फसलें नष्ट करने के लिए मजबूर हैं। वैसे भी ग्रामीण आंचल में हर व्यक्ति को दो वक्त की रोटी तो मिल ही जाती है। एक हकीकत हमारे देश की यह भी है कि सरकार द्वारा चलाई जा रही कोई भी योजना का लाभ उस उपभोक्ता को नहीं पहुंचता जिसके लिए यह लागू की गई है। ध्वस्त राशन पणाली पर खाद्य सुरक्षा विधेयक का बोझ डालने का कहीं यह मतलब न निकले कि खाद्य सब्सिडी में लूट दोगुनी हो जाए? सरकार इसी बीमार राशन पणाली व पब्लिक डिस्ट्रीव्यूशन के भरोसे देश की तीन चौथाई जनता को रियायती मूल्य पर अनाज बांटने की योजना इतनी आसान नहीं होगी। अनाज की यह लूट भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गोदामों से लेकर राशन के दुकानदारों तक होती है। राशन पणाली में फिलहाल 35 करोड़ लोगों को सस्ता खाद्यान्न वितरित किया जाता है (?) पस्तावित विधेयक में जब 80 करोड़ लोगों को राशन देने का पावधान है। जाहिर है कि मौजूदा राशन पणाली के लिए यह बड़ा बोझ होगा। इसके बावजूद सरकार ने राशन पणाली में मामूली सुधार करने का बहुत जोर कभी नहीं दिया गया। जब तक सार्वजनिक वितरण पणाली को चुस्त-दुरुस्त नहीं किया जाता हमें नहीं लगता कि सोनिया जी अपने मकसद में कामयाब हो सकेंगी। यह कम आश्चर्य की बात नहीं कि जब सरकार, विपक्ष और टीम अन्ना के बीच लोकपाल विधेयक को लेकर होने वाली खींचतान के शोर शराबे में देश डूबा था तब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने `खाद्य सुरक्षा विधेयक' को लेकर सबसे ज्यादा गम्भीर थीं। क्या यह इसलिए लाया गया ताकि लोकपाल से बड़ी लकीर खींची जा सके या फिर इसलिए लाया गया कि उत्तर पदेश के सियासी दंगल में राहुल को खाद्य सुरक्षा विधेयक का अस्त्र मुहैया कराया जाए ताकि आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को इसका सियासी लाभ मिल सके?
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