Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi |
Published on 3rd December 2011
अनिल नरेन्द्र
ईरान की राजधानी तेहरान में मंगलवार को ब्रिटिश दूतावास पर हुए प्रदर्शनकारियों के हमले से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ना स्वाभाविक ही था। उल्लेखनीय है कि अमेरिका और सुरक्षा परिषद ने ब्रिटिश दूतावास पर हमले की निन्दा की है। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ईरान सरकार से अनुरोध किया है कि वह इस हमले के लिए जिम्मेदार लोगों को गिरफ्तार करे। उन्होंने कहा यह बताना अहम है कि ईरान में ब्रिटिश दूतावास पर हमले की घटना से हम सभी व्यथित हैं। इस तरह का आचरण मंजूर नहीं है। यह एक बुनियादी अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारी है जिसका सभी देशों को पालन करने की जरूरत है। गौरतलब है कि मंगलवार को तेहरान में जो हुआ उसने 1979 में उस हमले की याद ताजा कर दी जो अमेरिकी दूतावास पर प्रदर्शनकारियों ने किया था। उस हमले के बाद अमेरिकी दूतावास के 50 कर्मचारियों को काफी दिनों तक बंधक बनाए रखा था। दोनों में अन्तर बस इतना है कि ब्रिटेन के छह लोगों को इस बार जल्दी ही छुड़ा लिया गया और पुलिस ने दो घंटे के अन्दर ही दूतावास से छात्रों को खदेड़ दिया। बेशक इस हमले के लिए ईरान सरकार ने ब्रिटेन से माफी मांग ली है पर दोनों देशों के बीच इधर मुश्किल से धुरी पर आए रिश्ते लगभग टूटने की कगार पर आ गए हैं और ब्रिटेन ने तेहरान से सभी राजनयिक वापस बुला लिए हैं और बुधवार को ईरानी दूतावास के कर्मियों और राजनयिकों को लन्दन छोड़ने का फरमान सुना दिया है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने कहा कि दूतावास पर हमले के लिए ईरान को गम्भीर नतीजे भुगतने होंगे। विदेश मंत्री विलियम हेग ने बुधवार को घोषणा की कि तेहरान में ब्रिटिश दूतावास पर हुए हमले के विरोध में ब्रिटेन से ईरान के सभी राजनयिकों को निष्कासित कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि लन्दन स्थित ईरानी दूतावास को तुरन्त बन्द करने के आदेश दे दिए गए हैं। बीबीसी के अनुसार ईरान के राजनयिकों को ब्रिटेन छोड़ने के साथ राजनयिक रिश्तों का स्तर घटाने की घोषणा करते हुए ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला अली खुमैनी ने ब्रिटेन पर सीधा हमला बोलते हुए उसे पश्चिमी साम्राज्यवादी घमंड का प्रतीक बताया था। ईरान-ब्रिटेन रिश्ते इस्लामी क्रांति के बाद कई नाजुक दौरों से गुजरे हैं क्योंकि ईरान अमेरिका को शैतान मानता है और ब्रिटेन को अमेरिका का ऐसा सहयोगी जो बढ़चढ़ कर उसका साथ देता है। हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि ईरान परमाणु बम बनाने के करीब है और उसने यूरेनियम को संवर्द्धित करने की क्षमता अर्जित कर ली है। पश्चिमी देशों को यह डर सता रहा है कि अगर ईरान के पास परमाणु क्षमता आ जाती है तो उसके निशाने पर अमेरिका, ब्रिटेन और इसराइल होंगे। इसके अलावा ईरान की बढ़ती शक्ति सऊदी अरब को भी नहीं भाती। कारण यह है कि सऊदी अरब में मुसलमानों के सबसे बड़े धार्मिक स्थल मक्का और मदीना हैं और यह इस्लाम का मूल केंद्र हैं। ईरान शिया मुसलमानों का गढ़ है और उसकी राज-व्यवस्था सऊदी अरब को चुनौती-सी लगती है। सऊदी अरब को यह भी लगता है कि एक ताकतवर ईरान खाड़ी के शिया बहुल देशों को भी अपने प्रभाव में लेने की फिराक में है। पिछले दिनों मध्य पूर्व के कुछ देशों में जो आंदोलन चले हैं वह शियाओं ने ही चलाए हैं और कई मुल्कों में शिया हावी हो रहे हैं। सुन्नी सऊदी को यह भी खतरा सता रहा है। अमेरिका ईरान से भयभीत है और ईरान को अपनी हद तक रखने के लिए कभी उसके परमाणु कार्यक्रम को रुकवाने के लिए उस पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से प्रतिबंध लगवाता है तो कभी उसे सीधी धमकियां देने पर उतर आता है। जहां हम ईरान की दुश्वारी को समझ सकते हैं वहीं तेहरान में हुए ब्रिटिश दूतावास पर हमले की निन्दा करते हैं। विएना सम्मेलन की प्रतिज्ञाओं और शपथ जो ईरान ने भी ली है, के अनुसार उस पर अपने देश में विदेशी दूतावासों और दूतावास कर्मचारियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है जिसे सुनिश्चित करने में वह विफल रहा है। ऐसे हमलों से ईरान खुद अपने आपको विश्व समुदाय से अलग-थलग कर रहा है।America, Anil Narendra, Daily Pratap, Iran, Security Council, Vir Arjun
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