Wednesday 11 February 2015

राहुल गांधी के नेतृत्व पर एक बार फिर प्रश्नचिन्ह लगा

यह अत्यंत दुख की बात है कि सौ साल से ज्यादा पुरानी कांग्रेस पार्टी संभलने का नाम ही नहीं ले रही। उम्मीद की जाती थी कि लोकसभा और चार विधानसभा चुनाव में हार के  बाद शायद कांग्रेस अपनी गलतियों का विश्लेषण कर सुधार करेगी। इधर दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया है। कांग्रेस के अंदर वरिष्ठ नेता उपाध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी सलाहकार मंडली को पचा नहीं पा रहे। गत दिनों जयंती नटराजन के लेटर बम ने पार्टी को हिलाकर रख दिया। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि संगठन में फेरबदल होने से पहले जयंती नटराजन जैसे कई पुराने वफादार बगावत कर सकते हैं। पदाधिकारियों की मानें तो अगले एक-दो महीने में हाई कमान के खिलाफ और भी चेहरे सामने आएंगे। ये वही लोग हैं जिन्हें हाई कमान लचर प्रदर्शन के चलते दोबारा संगठन में जगह देने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन यह लोग संगठन में पद की लालसा रखते हैं। पार्टी के अंदर ऐसे कई बड़े नेता हैं जो उपाध्यक्ष राहुल गांधी को पचा नहीं पा रहे हैं। पार्टी के कई दिग्गज नेता राहुल को निशाना बनाकर पार्टी छोड़ चुके हैं। पहले चौधरी वीरेन्द्र सिंह, फिर जीके वासन, जगमीत बरार, कृष्णा तीरथ, कार्ली चिदम्बरम, जयंती नटराजन जैसे कई नेता कांग्रेस से किनारा कर चुके हैं। पार्टी के भीतर ऐसे कई नेता हैं जो सही अवसर के इंतजार में बैठे हैं और जल्द ही किनारा कर सकते हैं। इन नेताओं में पूर्व सूचना-प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी, वित्त एवं गृहमंत्री रहे पी. चिदम्बरम, प्रवक्ता रहे राशिद अल्वी, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह सहित दर्जनों  बड़े नेता हैं जो खुद को काफी उपेक्षित महसूस कर रहे हैं और अब दिल्ली विधानसभा चुनाव में दुर्गति के बाद यह नेता खुलकर सामने मैदान में आ सकते हैं। दुखद पहलू यह भी है कि जब से राहुल गांधी को पार्टी के उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली है तभी से पार्टी एक के बाद एक चुनाव हारती जा रही है। पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में राहुल के नेतृत्व में पार्टी को झटका लगा। फिर लोकसभा चुनाव में तो ऐसी दुर्गति हुई कि पार्टी को नेता विपक्ष के लायक समर्थन (10 फीसदी) सांसद तक नहीं मिले। इसके बाद महाराष्ट्र, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, झारखंड और अब दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है। इससे पार्टी तथा जनता व कांग्रेस कार्यकर्ताओं में यह संदेश जा रहा है कि राहुल के नेतृत्व में पार्टी जीत नहीं सकती। कांग्रेस की जहां राहुल कमजोरी हैं वहीं कटु सत्य यह भी है कि कांग्रेस को केवल नेहरू-गांधी परिवार ही नेतृत्व दे सकता है। हमें लगता है कि एक बार फिर प्रियंका गांधी वाड्रा को आगे लाने की मांग उठ सकती है। कांग्रेस एक ऐसे दलदल में फंसती जा रही है जिसमें से निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। यह दुर्भाग्य की बात है। इतनी पुरानी पार्टी का यह हश्र हो चिन्ताजनक और अफसोस का विषय है।

-अनिल नरेन्द्र

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