Tuesday, 17 February 2015

सुरेश पटेल की गलती इतनी थी कि वह अंग्रेजी नहीं जानते थे

अपनी ताकत के बूते दुनियाभर में जबरदस्ती बने ठेकेदार अमेरिका को भारत में धार्मिक सहिष्णुता तो घटती दिखाई देती है और इस पर अवांछित टिप्पणी करने में राष्ट्रपति बराक ओबामा तनिक भी विचार या विलंब नहीं करते पर उन्हें यह नजर नहीं आता कि उनकी पुलिस एक भारतीय बुजुर्ग के साथ किस बर्बरता से बर्ताव करती है? 57 साल के सुरेश पटेल अमेरिका के उलबामा में अपने पुत्र के साथ रहने एक दिन पहले ही पहुंचे थे। उन्हें अंग्रेजी नहीं आती है। गुजरात निवासी सुरेश पटेल सुबह की सैर करने निकले तो पड़ोसी को एक अजनबी को देखकर शक हुआ और उन्होंने पुलिस को फोन कर दिया। दो पुलिस वालों ने पटेल के साथ जो सुलूक किया उसके कारण वह अस्पताल पहुंच गए। वीडियो में पटेल फुटपाथ पर चलते दिखाई दे रहे हैं। पुलिस ने बताया कि उन्हें एक फोन कॉल आई थी एक व्यक्ति घरों और गैराज में ताकझांक कर रहा है जिसके बाद पुलिस घटनास्थल पर पहुंची थी। लेकिन वीडियो में दिख रहा है कि पटेल किसी भी घर या गैराज में ताकझांक नहीं कर रहे थे। इस वीडियो में दो पुलिस अधिकारी पटेल के  पास आते दिख रहे हैं। वह पटेल से उनका नाम, पता और पहचान पत्र आदि के बारे में पूछ रहे हैं। पटेल यह कहते सुनाई दे रहे हैं कि `अंग्रेजी नहीं आती' और अपने बेटे के घर की ओर इशारा कर रहे हैं। इसके तुरन्त बाद एक पुलिस अधिकारी पटेल को जमीन पर गिराता है और उन पर बल प्रयोग करते दिख रहा है जिसकी पहचान बाद में पार्पर के रूप में हुई। सुरेश पटेल की इतनी पिटाई की गई कि वह अस्पताल पहुंच गए। यह सिर्प इसलिए हुआ क्योंकि वह अंग्रेजी नहीं जानते थे। सुरेश भाई पटेल को अमेरिकी पुलिस नस्लीय बर्बरता के साथ पीट-पीट कर लहूलुहान कर रही थी तब आजादी और मानवाधिकारों के बड़े पैरोकार मार्टिन लूथर किंग की आत्मा को कैसी और कितनी चोट पहुंची होगी, इसका कोई हिसाब ओबामा के पास है क्या? कई अमेरिकी मानवाधिकार संगठनों ने इसे बिना उकसावे के की गई बर्बर और नस्लीय कार्रवाई करार दिया है। सुरेश पटेल का केवल इतना दोष था कि वह अंग्रेजी नहीं जानते थे और पुलिस वालों के सवालों का सही जवाब नहीं दे सके। अमेरिका में अश्वेत लोगों को रहते हुए सदियां बीत गईं, लेकिन अब भी अमेरिका के बहुत सारे लोगों के लिए अमेरिका गोरे लोगों का ही देश है। भारतीय या अन्य नस्लों के लोग भी वह वहां एक-आध सदी से तो रह रहे हैं लेकिन उनके प्रति दुराग्रह काफी हद तक पाया जाता है। 9/11 के आतंकी हमले के बाद यह दुराग्रह बहुत बढ़ गया है। जो लोग अपने जैसे नहीं दिखते उनसे अक्सर अमेरिकी जनता या सुरक्षा एजेंसियों को खतरा महसूस होता है। हालांकि सुरेश भाई के परिजनों ने दोषी पुलिसकर्मियों पर मुकदमा करने का निर्णय किया है, जो भी हो सुरेश भाई का आंशिक विकलांगता का कलंक सभ्य अमेरिका के माथे का काला टीका तो बना ही रहेगा।

-अनिल नरेन्द्र

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