Wednesday, 11 February 2015

भाजपा और कांग्रेस पर केजरीवाल का झाड़ू फिर गया

दिल्ली का यह अनोखा विधानसभा चुनाव हमारे लोकतंत्र के इतिहास में अपनी अलग जगह बनाएगा। आम आदमी पार्टी और उसके संयोजक अरविंद केजरीवाल को हम इस अभूतपूर्व जीत पर बधाई देना चाहते हैं। आम आदमी पार्टी ने तो एक्जिट पोल को भी पीछे छोड़ दिया है। अकेले अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों, दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पछाड़ दिया है। वह जायंट किलर बनकर उभरे हैं। आज अगर भारतीय जनता पार्टी की यह दुर्दशा हुई है तो इसके लिए मैं दो व्यक्तियों को जिम्मेदार मानता हूं। पहले प्रधानमंत्री हैं और दूसरे भाजपा के अध्यक्ष और प्रधानमंत्री के सबसे करीबी अमित शाह हैं। एक के बाद एक गलतियां की हैं। जब लोकसभा चुनाव के परिणाम आए तो नरेंद्र मोदी और भाजपा की लोकप्रियता चरम पर थी। क्या यह बेहतर नहीं होता कि लोकसभा चुनाव के तुरन्त बाद दिल्ली का चुनाव करवा लिया जाना चाहिए था पर जोड़तोड़ से सरकार बनाने के चक्कर में एक साल निकाल दिया और मोदी लहर समाप्त होती गई। फिर इन दोनों महानुभावों ने सोचा कि दिल्ली में लोकल नेतृत्व की तो जरूरत ही नहीं। एक-एक करके स्थानीय लीडरों को लाइन हाजिर कर दिया। पहले विजय गोयल को ठिकाने लगाया। डॉ. हर्षवर्धन जिनके नेतृत्व में पार्टी पिछली बार 32 सीटें जीती थी उनको विधायक से हटाकर लोकसभा चुनाव लड़वा दिया। यह स्पष्ट संकेत था कि हर्षवर्धन अब दिल्ली की राजनीति नहीं करेंगे। फिर आया नम्बर सतीश उपाध्याय का। प्रोफेसर जगदीश मुखी को भी मुख्य सीन से हटाया गया। मोदी-शाह अपने ही दिग्गजों को हराने में लगे रहे और उधर अरविंद केजरीवाल जमकर काम करते रहे। वह इस दौरान घर-घर जाकर जनता से 49 दिनों में भागने पर माफी मांगते रहे। जनता ने न केवल उन्हें माफ ही किया बल्कि एक और मौका देने का फैसला कर लिया। पार्टी में विभाजन तो पहले से ही हो गया था। रही-सही कसर किरण बेदी को थोपने से पूरी हो गई। बेशक किरण बेदी खुद एक अच्छी महिला हों पर उनके आने से पार्टी का विभाजन पूरा हो गया। भाजपा को कांग्रेस का साफ होने का भी नुकसान हुआ। जो वोट बैंक कांग्रेस का था वह सब शिफ्ट होकर आप पार्टी को चला गया। खासकर दिल्ली के अल्पसंख्यक मतदाता पूरी तरह से आप पार्टी के साथ थे। वह आप के इतने समर्थक नहीं थे जितना कि उनको नजर आ गया कि भाजपा को हराने के लिए आप का समर्थन करना जरूरी है और उन्होंने पूरी तरह से केजरीवाल की पार्टी का समर्थन किया। आम आदमी पार्टी को सभी वर्गों का समर्थन मिला। गरीब-अमीर, पढ़े-लिखे-अनपढ़ सभी ने खुलकर आप का समर्थन किया। भाजपा नेतृत्व को अपने आपसे पूछना चाहिए कि आपने पिछले 14 महीनों में दिल्लीवासियों की समस्याओं को सुलझाने में क्या कदम उठाए? चाहे मामला बिजली बिल का हो, पानी की उपलब्धि का हो, महिला सुरक्षा का रहा हो, अवैध कॉलोनियों का रहा हो और सबसे  बड़ी समस्या महंगाई की हो इनके सही करने हेतु एक भी ठोस कदम नहीं उठाया। घटना तो दूर रहा बिजली के बिल बढ़ गए। आम आदमी की जगह उद्योगपतियों की ज्यादा सेवा करने का इप्रेशन जनता में गया। मोदी जी बराक-बराक करते रहे और विदेशों में अपनी धूम में मस्त रहे यह नहीं देखा कि घर में क्या हो रहा है। अमित शाह जो अपने आपको चाणक्य कहते हैं इस चुनाव में बुरी तरह एक्सपोज हुए हैं। उनकी बूथ मैनेजमेंट से लेकर सारे दांव उलटे पड़े हैं। चुनाव सिर्प और सिर्प दिल्ली में था लेकिन निगाहें पूरे देश की लगी हुई थीं। देश-दुनिया के जागरूक लोग दिल्ली चुनाव को करीब से देख रहे थे। वे जानना चाहते थे कि क्या वाकई प्रधानमंत्री मोदी के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा...अरविंद केजरीवाल जैसा राजनीति का नया-नवेला खिलाड़ी पकड़ने में कामयाब होगा या फिर यह घोड़ा आगे ही बढ़ता जाएगा। अरविंद केजरीवाल ने न केवल घोड़ा पकड़ लिया बल्कि नरेंद्र मोदी के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की दौड़ पर रोक लगा दी है। अरविंद केजरीवाल से हम उम्मीद करते हैं कि वह अपनी पुरानी गलतियों से सीखे होंगे और उनसे सबक लेकर दिल्ली में एक अच्छी-स्वच्छ सरकार देने में सक्षम होंगे। जनता को उनसे बहुत उम्मीदें हैं। इन पर उन्हें सही उतरना पड़ेगा। उन्हें और उनकी पार्टी को इस शानदार जीत पर बधाई।

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