Tuesday, 10 November 2015

बहुविवाह के लिए कुरान की गलत व्याख्या न करें ः सुप्रीम कोर्ट

एक बार फिर मुस्लिम लॉ बोर्ड के नियमों को लेकर चर्चा हो रही है। चाहे सुप्रीम कोर्ट हो या गुजरात हाई कोर्ट हो मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव की सुनवाई के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने प्रधान न्यायाधीश से सक्षम पीठ बनाने को कहा है। यह पीठ तलाक के मामलों या पति के दूसरी शादी करने के कारण महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव की सुनवाई करेगा। न्यायमूर्ति अनिल आर. दवे और एके गोपाल की पीठ ने मुस्लिम महिलाओं से संबंधित मुद्दों के हल के लिए एक जनहित याचिका सूचीबद्ध करने और मामले को नई पीठ के समक्ष पेश करने का आदेश दिया है। पीठ ने रेखांकित किया कि यह सिर्प नीतिगत मामला ही नहीं है बल्कि संविधान के तहत मिल रहे महिलाओं को मूलभूत अधिकारों से संबंधित है। यह मुद्दा हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान उठा। पीठ ने कहा कि लैंगिक भेदभाव एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। हालांकि यह इस अपील से सीधे जुड़ा हुआ नहीं है लेकिन वकीलों ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के मसले को उठाया है। पीठ ने कहा कि संविधान में प्रदत्त अधिकारों के बावजूद मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव हो रहा है। पीठ ने कहा कि मनमाने तलाक और पतियों के पहली शादी के अस्तित्व में रहने के दौरान ही दूसरी शादी कर लेने के खिलाफ कोई सुरक्षा उपाय नहीं होने के चलते मुस्लिम महिलाओं को सुरक्षा और गरिमा नहीं मिल पाती है। इस उद्देश्य के लिए पीआईएल अलग से दाखिल की जाए व मुख्य न्यायाधीश द्वारा गठित उचित पीठ के सामने मामले को पेश किया जाए। साथ ही पीठ ने इस मसले पर केंद्र से अपने सुझाव भी देने को कहा। 1985 के चर्चित शाहबानो केस में मुस्लिम महिला के कानूनी तलाक के भत्ते को लेकर राजनीतिक विवाद उठा था। मध्य प्रदेश की इंदौर निवासी पांच बच्चों की मां 62 वर्षीय मुस्लिम महिला शाहबानो को उसके पति मोहम्मद खान ने 1978 में तलाक दिया था। शाहबानो ने गुजारा भत्ता पाने के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट में आपराधिक मामला दर्ज किया था। उसने पति के खिलाफ केस जीत भी लिया, लेकिन फैसले पर राजनीति शुरू हो गई। फैसले को मुस्लिम समाज ने नकार दिया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा तलाक और पतियों की कई शादियों जैसे मामलों में मुस्लिम महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव की समीक्षा को देवबंदी उलेमा ने मुस्लिम लॉ में हस्तक्षेप करार दिया है। दारुल उलूम का कहना है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को इस ओर ध्यान देना चाहिए। दारुल उलूम के मोहतमिम मौलाना अबुल कासिम नोमानी बनारसी ने कहा कि इस मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का ध्यान आकर्षित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि तलाक को इस्लाम ने भी नापसंद किया है। अगर औरत शौहर से परेशान है तो इस्लाम ने शरई काजियों के जरिये निकाह खत्म कराने का हक दिया गया है।

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