दुनिया
की फैशन व ग्लैमर की राजधानी पेरिस शाम शुक्रवार (हमारे लिए शनिवार तड़के) आतंकी हमले
से लहूलुहान हो गई। एके-47 और आत्मघाती बेल्ट का सहारा लेकर दुनिया
के सबसे खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) के आठ आतंकियों ने छह जगहों पर हमला बोल कर 129 लोगों
को मार दिया और 300 से अधिक लोगों को घायल कर दिया। बता दें कि
इसे विश्व युद्ध के बाद पेरिस पर सबसे बड़ा हमला बताया जा रहा है। 13 नवम्बर 2015 को हुआ यह हमला मुंबई के 26 नवम्बर 2008 के आतंकी हमले से मिलता-जुलता था। आतंकियों ने रेस्तरां में खाना खा रहे लोगों को, बार में शौक फरमा रहे लोगों को और स्टेडियम के बाहर ताबड़तोड़ हमले किए। घटना
के बाद से फ्रांस में आपातकाल लागू कर दिया गया है। घटना के एक चश्मदीद गवाह ने कहा
कि एक हमलावर सीरिया में इस्लामिक स्टेट के आतंकियों के खिलाफ फ्रांसीसी सेना के हमलों
का जिक्र रहा था। घटनास्थल शार्ली एब्दो पत्रिका के दफ्तर से महज 200 मीटर की दूरी पर स्थित है, जहां इसी साल जनवरी महीने
में जेहादियों ने हमला किया था। बम धमाके के वक्त फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलोंद
भी स्टेडियम में फ्रांस बनाम जर्मनी फुटबाल मैच देख रहे थे। चश्मदीदों ने कहा कि स्टेडियम
के पास हमलावर चिल्ला-चिल्लाकर अल्लाह हो अकबर बोल रहे थे। एक
प्रत्यक्षदर्शी जो बाताक्लां में रॉक कंसर्ट के वक्त मौजूद था, ने बताया कि वे सभी को एक-एक कर मार रहे थे। सीरिया का
बदला लेने की बात बोल रहे थे। सबसे नृशंस हमला बाताक्लां थिएटर में हुआ। एके-47
से लैस चार आतंकी अल्लाह हो अकबर कहते हुए थिएटर में घुसे और अंधाधुंध
गोलियां चलाते रहे और 89 लोगों को मार डाला। फ्रांस में पहली
बार हमला किया गया है। सवाल यह उठता है कि फ्रांस में ही क्यों बार-बार आतंकी हमले कर रहे हैं? दरअसल फ्रांस आतंकियों के
निशाने पर इसलिए है क्योंकि आईएस के खिलाफ जंग में वह गठबंधन सेना के साथ शामिल है।
यह पिछले वर्ष सितम्बर से ही सीरिया और इराक में सक्रिय आतंकी संगठन आईएस के खिलाफ
हवाई हमले कर रहा है। कुछ दिन पहले फ्रांसीसी राष्ट्रपति ओलोंद ने घोषणा की थी कि वह
आईएस से लड़ने के लिए अपने सबसे बड़े जंगी जहाज `शार्ल द गाल'
को भी भेजेगा। फ्रांस ने इस वर्ष सीरिया में भी कई हवाई हमले कर आतंकी
ठिकानों को निशाना बनाया। 2015 में ही आईएस ने फ्रांस में पांच
हमले किए हैं। सात जनवरी 2015 को पेरिस में एक कॉर्टून मैगजीन
`शार्ली एब्दो' के कार्यालय में हुए आतंकी हमले
में 20 लोगों की मौत हो गई थी। कुछ नकाबपोश पत्रिका के दफ्तर
में घुसकर अंधाधुंध गोलियां चलाने लगे थे। हमले में चार मुख्य कार्टूनिस्ट व प्रधान
संपादक की मौत हो गई थी। अभी एक महीना भी नहीं हुआ था कि तीन फरवरी को नीस में एक यहूदी
सामुदायिक केंद्र की रखवाली करने वाले तीन सैनिकों पर हमला हुआ था। लेकिन इस हमले में
किसी की जान नहीं गई। 19 अप्रैल को एक अल्जीरिया यहूदी ने दो
चर्चों पर हमले किए जिसमें
एक महिला की मौत हो गई। 26 जून को पूर्वी फ्रांस की एक गैस फैक्ट्री
में दिनदहाड़े संदिग्ध इस्लामी हमलावरों ने एक व्यक्ति का गला काट दिया जबकि दो अन्य
लोगों को विस्फोटों से घायल कर दिया। 21 अगस्त को भारी हथियारों
से लैस एक आतंकी ने एम्सटर्डम जा रही एक हाई स्पीड ट्रेन में फायरिंग की थी जिसमें
चार लोग घायल हो गए थे। फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलोंद ने चेतावनी देते हुए
अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि आईएस के आतंकियों की आर्मी ने युद्ध की घोषणा की है। हम
अब ऐसा जवाब देंगे जिसमें किसी पर रहम नहीं किया जाएगा। उन्होंने बेरहम तरीके से बदला
लेने का ऐलान कर दिया है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह फ्रांस पर
नहीं, पूरी मानवता पर हमला है। ऐसी ताकतों के खिलाफ सबको एकजुट
हो जाना चाहिए। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इसे कायराना हमला बताया जबकि ब्रिटिश
पीएम कैमरन ने कहा कि इस हमले से साफ हो गया है कि इस्लामिक स्टेट के आतंकवाद से खतरा
बढ़ रहा है। पेरिस में कत्लेआम के खिलाफ मुस्लिम जगत भी फ्रांस के साथ दिखाई दे रहा
है। हालांकि पश्चिमी देशों में मुसलमानों में डर है कि कहीं लोग फिर से उन्हें निशाना
बनाना शुरू न कर दें। जैसे अमेरिका में 9/11 हमलों के बाद हुआ
था। शनिवार का फ्रांस में हमला उतना ही महत्व रखता है जितना न्यूयॉर्प 9/11
हमलों का अमेरिका के लिए महत्व था। कुछ दिन पहले आईएस ने एक रूसी यात्री
विमान को सिनाई में मार गिराया था और अब पेरिस में यह हमला। लड़ाई बढ़ने के पूरे आसार
हैं। इस हमले से अमेरिका को भी अपनी रणनीति बदलनी होगी। अब उसे रूस व असद का साथ देना
चाहिए। आईएस दुनिया का सबसे खूंखार, खतरनाक संगठन बन गया है और
सभी देशों को इसके खिलाफ एकजुट होकर जवाब देना होगा। पेरिस हमलों से भारत के लिए भी
कुछ सबक है। जब भी आतंकी घटना होती है मीडिया का रोल महत्वपूर्ण हो जाता है। फ्रांसीसी
मीडिया ने यह दिखाया है कि मीडिया ऐसे मौकों से किस जिम्मेदारी से काम करता है। अखबारों
में कोई रक्तरंजित फोटो नहीं था और न ही टीवी चैनलों पर ऐसी तस्वीरें दिखाई गईं। सभी
कवरेज का एकमात्र उद्देश्य व फोकस था...एकजुटता दिखाओ,
आतंक को हराओ। अखबार ली पेरिसियन हो या मध्य-वाम
झुकाव वाले ली फिगारी, सभी ने हमले को देश के खिलाफ युद्ध बताया।
कहा कि आईएस के खिलाफ फ्रांस जो भी करे उसमें पूरा देश उसके साथ है। स्टेडियम में भगदड़
मचाने के लिए आतंकियों ने तीन धमाके किए। स्टेडियम में उस समय फ्रांस के राष्ट्रपति
ओलोंद समेत 80 हजार लोग मौजूद थे। सबने पूरा मैच देखा,
फिर स्टेडियम में आकर राष्ट्रगान गाया और नियंत्रण रखते हुए कतार से
बाहर निकले। शहर के रेस्तरां, होटलों को अस्पतालों में बदल कर
घायलों को मदद पहुंचाई। आईएस के खिलाफ मुहिम की शुरुआत करने वाले राष्ट्रपति ओलोंद
को विपक्ष ने पूरा समर्थन दिया। विपक्षी नेता रिगोबर्ट ने कहा कि पूरा देश राष्ट्रपति
के साथ है। यह एकजुटता ऐसे समय में दिखाई गई जब फ्रांस में 50 साल बाद प्रांतीय चुनाव हो रहे हैं। न कोई बयानबाजी हुई, न राष्ट्रपति से इस्तीफा मांगा गया और न ही सरकार की खुफिया चूक या खामियों
का जिक्र तक किया गया। न विरोध में कोई बयान दर्ज किया गया। हम संकट की इस बेला पर
फ्रांस के साथ हैं और मृत परिवारों के दुख में शरीक हैं।
-अनिल नरेन्द्र
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