Friday 6 November 2015

क्या कहते हैं यूपी के पंचायत चुनाव परिणाम?

बदले हुए तेवर के साथ उत्तर पदेश के वोटर नए मूड में दिखते हैं। यूपी के पंचायत चुनाव में जनता ने सभी दलों को आइना दिखा दिया है। जहां समाजवादी पाटी के कई मंत्री अपनों की नैया पार नहीं लगा सके तो वहीं पधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गोद लिए गांव जमापुर में ही भाजपा समर्पित उम्मीदवार को मुंह की खानी पड़ी है। कांग्रेस की तो दुर्गति हो ही गई है। राहुल गांधी के गढ़ अमेठी में ही उसे शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है। सबसे ज्यादा फायदा बहुजन समाज पाटी को हुआ है। बसपा को हाथरस, अलीगढ़ समेत कई जिलों में सफलता मिली है। हैदराबाद से
सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पाटी आल इंडिया मजलिस--इत्तेहादुल
मुसलमीन (एआईएमआईएम) ने यूपी की सियासत में भी दस्तक दे दी है। सपा पमुख मुलायम सिंह, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के गढ़ में भाजपा समर्थित उम्मीदवार को शिकस्त देकर पाटी ने जिला पंचायत की एक सीट झटक ली है। पवई ब्लॉक के मुकसुदिया सीट से कैलाश कुमार गौतम ने भाजपा समर्थित उम्मीदवार फूलचंद्र भारती को 543 वोटों से हरा दिया। कैलाश कुमार गौतम 2660 वोट पाकर अपनी जीत को सीढ़ी मानते हैं और पार्टी आगामी विधानसभा चनाव में ताल ठोंक कर उतरेगी। उत्तर पदेश में सत्ता के सेमीफाइनल (पंचायत चुनाव) में भाजपा की हार ने पाटी के रणनीतिकारों के होश उड़ा दिए हैं। पधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र सहित समूचे काशी क्षेत्र में जिला पंचायत की अधिकतर सीटों पर भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा है। काशी क्षेत्र के तहत 12 जिले आते हैं। इन जिलों में कुल 485 में से 458 सीटों के परिणाम सोमवार को घोषित हो गए। भाजपा के खाते में महज 67 सीटें ही आई। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले जिस मुजफ्फरनगर दंगे से वोटों का ध्रुवीकरण हुआ वहां जिला पंचायत की 42 में से 29 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। भाजपा को 6 और सपा-बसपा को चार-चार सीटों पर संतोष करना पड़ा है। अखिलेश यादव के कैबिनेट मंत्रियों में कइयों को जीत हासिल हुई है। राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह के बगैर लड़ गए इन चुनावों में निर्दलीय पत्याशी दलीय पत्याशियों पर भारी पड़े। इन परिणामों से बहुजन समाज पाटी का दबदबा बढ़ेगा। यह समाजवादी पाटी के लिए शुभ संकेत नहीं है। जहां तक भाजपा का पश्न है ऊपरी स्तर पर तो पाटी के नेता कह रहे हैं कि हम संतुष्ट हैं। हमें 15 जिलों में कमान मिलेगी। हालांकि निचले स्तर के चुनावों में बसपा के उभरने से पाटी को चिंतित होना चाहिए। मिशन 2017 के मद्देनजर भाजपा को इस बात का भय है कि सपा के खिलाफ विपक्ष के रूप में कहीं बसपा उससे आगे निकल जाए।
अनिल नरेंद्र

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