Wednesday, 25 November 2015

बशर अल असद को लेकर अमेरिका और रूस का टकराव

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास कर सभी देशों को इस्लामिक स्टेट (आईएस) जैसे आतंकी संगठनों को कुचलने के लिए हर संभव कदम उठाने का आह्वान किया है। आईएस से अभूतपूर्व खतरे की आशंका जताते हुए सदस्य देशों से हमले रोकने की कोशिशें डबल करने को कहा है। उधर ब्रसेल्स में आतंकवादी हमले का टॉप अलर्ट जारी करते हुए मेट्रो सर्विस बंद कर दी गई है, क्योंकि पेरिस अटैक का एक हमलावर अभी भी फरार है। माली के होटल में हमले के मामले में तीन संदिग्धों की तलाश जारी है। पेरिस हमलों के बाद रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन का महत्व अचानक बढ़ गया है। पहले यह पश्चिमी देश उन्हें एक खलनायक के रूप में पेश करते रहे थे। सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद को लेकर अमेरिका और रूस आमने-सामने आ गए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने गुरुवार को कहा कि सीरिया का गृहयुद्ध तब तक खत्म नहीं होगा जब तक बशर अल असद सत्ता नहीं छोड़ देते। जब तक असद सत्ता पर काबिज रहते हैं तब तक मुझे सीरिया में गृहयुद्ध के खत्म होने की संभावना नहीं दिखतीöफरमाए ओबामा। सीरिया में शांति के मार्ग में असद एक बड़ा रोड़ा बने हुए हैं और पश्चिम व असद के समर्थक मास्को और तेहरान के बीच विवाद का मसला बने हुए हैं। रूस सीरिया में अपनी पकड़ बनाए रखना चाहता है इसलिए वो असद को सत्ता से बेदखल किए जाने का कड़ा विरोध कर रहा है। वहीं रूस की ओर से कहा गया है कि पश्चिमी देशों को असद को सत्ता से बेदखल करने की जिद छोड़नी होगी। तभी आईएस के खिलाफ एक मजबूत अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन बन सकता है। वहीं सीरिया के राष्ट्रपति असद ने कहा है कि आईएस को सीरिया ने जन्म नहीं दिया है बल्कि इसके लिए पश्चिमी देश जिम्मेदार हैं। पुतिन ने यह सनसनीखेज रहस्योद्घाटन भी किया कि 40 देशों से आईएस को आर्थिक मदद मिल रही है और इनमें ऐसे देश भी हैं जो जी-20 के सदस्य हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि आईएस के तेल के धंधे पर रोक लगाना जरूरी है क्योंकि यह उसकी आय का बड़ा साधन है। पुतिन ने उन 40 देशों के नाम तो नहीं बताए, लेकिन कुछ नामों का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। पहले भी इस तरह की खबरें आई थीं कि सउदी अरब, कुवैत और कतर के कुछ लोग आईएस को पैसा देते हैं। इसके अलावा भी अन्य देशों में कट्टर वहाबी इस्लाम के समर्थक भी हैं जो आईएस के लिए धन व हथियार जुटाते हैं। यह भी किसी से छिपा नहीं कि अमेरिका आईएस को हथियार मुहैया करवाता रहा है। तुर्की की पूरे मामले में भूमिका संदिग्ध है। उसकी और सऊदी अरब की गुप्त अंडरस्टैंडिंग बनी हुई है। वह आईएस से नहीं बल्कि आईएस से लड़ने वाले कुर्दों के खिलाफ ज्यादा सक्रिय है। सुन्नी अरब देश शिया ईरान का प्रभाव इसलिए भी नहीं बढ़ने देना चाहते और फलस्वरूप सुन्नी आईएस के खिलाफ नरम रवैया अपनाते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने फिर दोहराया है कि वह अपनी स्टैटजी पर कायम हैं। इसका मतलब हमारी समझ से तो बाहर है कि अमेरिका का असल उद्देश्य क्या है? आईएस कितना धनी है पेरिस हमले से थोड़ा अंदाजा होता है। पेरिस हमलों के तीन हफ्ते पहले फाइनेंशियल एक्शन टॉस्क फोर्स (एफएटीएफ) ने अपनी रिपोर्ट में संदेहास्पद टेरर फंडिंग पैटर्न की ओर इशारा किया था, जो संभवत फ्रांस में आईएस से जुड़ी थी। फ्रांस के खिलाफ आतंकी हमला करने से पहले आतंकियों को टेरर फंडिंग पैटर्न से टेलीकम्युनिकेशंस कंपनी के जरिये 6,00,000 यूरो (लगभग चार करोड़ 20 लाख रुपए) की रकम ट्रांसफर की गई थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि कैश लगातार आतंकी ऑपरेशंस का महत्वपूर्ण पहलू बना हुआ है। बेशक संयुक्त राष्ट्र महासभा ने आईएस व अन्य ऐसे आतंकी संगठनों पर सख्त कदम उठाने की बात तो कही है पर देखना यह है कि कौन-कौन-सा देश इस पर अमल करता है?

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