बिहार विधानसभा चुनावों में करारी हार के कारणों पर भारतीय जनता पार्टी को गंभीरता से आत्मचिन्तन करना ही होगा और लीपापोती की जगह कहीं अधिक गहराई के साथ करना होगा, क्योंकि इन परिणामों से राष्ट्रीय राजनीति पर दूरगामी प्रभाव होंगे। यह इसलिए भी भाजपा को बिहार की जनता ने एक तरह से पूरे तौर पर नकार दिया है। कांग्रेस की तरह हार के कारणों पर लीपापोती जैसी श्री अरुण जेटली ने करने का प्रयास किया है वह न तो प्रधानमंत्री के लिए सही होगी और न ही पार्टी के हित में होगी। हार की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए और अगर आगे का लंबा रास्ता ठीक से तय नहीं किया गया तो आने वाले विधानसभा चुनावों में भी पार्टी का यही हाल होगा। हम श्री लाल कृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी और दो अन्य वरिष्ठ नेताओं द्वारा उठाए गए प्रश्नों को सही मानते हैं और पार्टी हित में यही होगा कि वह इन पर विचार करे और संतोषजनक हल ढूंढे। वरिष्ठ नेताओं ने कहा है कि सबसे हालिया हार का मुख्य कारण पिछले एक साल में पार्टी का कमजोर होना है। हार के कारणों की पूरी तरह समीक्षा की जानी चाहिए और इस बात का भी अध्ययन होना चाहिए कि पार्टी कुछ मुट्ठीभर लोगों के अनुसार चलने पर मजबूर क्यों हो रही है और उसका आम सहमति वाला चरित्र नष्ट कैसे हो गया? हमारी बात तो छोड़िए भाजपा के खुद के नेताओं का मानना है कि दिल्ली के बाद यह लगातार दूसरा मौका है जब पार्टी ने हार की जिम्मेदारी से बचने का प्रयास किया है। भाजपा रणनीतिकार कई स्तरों पर बिहार में फेल हुए। बेशक यह कुछ हद तक सही है कि विपक्ष की एकजुटता की वजह से पार्टी हारी पर इसके अलावा भी कई कारण थे। उदाहरण के तौर पर सर संघ चालक मोहन भागवत का आरक्षण संबंधी बेमौका, विवादास्पद बयान। पार्टी सांसद हुकुम देव नारायण यादव ने मोहन भागवत को यह कहते हुए जिम्मेदार ठहराया कि उनके आरक्षण वाले बयान ने भाजपा की लुटिया डुबाई है। पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने सरकार और पार्टी नेतृत्व को हार के लिए कठघरे में खड़ा करने वाले बिहार के वरिष्ठ सांसद शत्रुघ्न सिन्हा की तुलना कुत्ते से करके शत्रु के प्रश्नों को टालने का प्रयास किया। विजयवर्गीय ने कहाöगाड़ी चलती है तो कुत्ता नीचे चलता है और कुत्ते को लगता है कि गाड़ी उसके भरोसे चल रही है। पार्टी एक व्यक्ति के भरोसे नहीं चलती, पूरा संगठन होता है। चुनाव में हार के लिए परोक्ष तौर पर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की टीम को जिम्मेदार ठहराने वाले शत्रुघ्न सिन्हा ने एक सवाल पर कहा कि वह उस समय से भाजपा में हैं जब इस दल के मात्र दो सांसद थे और संभवत यह मेरी आखिरी पार्टी होगी। उनके खिलाफ पार्टी द्वारा कार्रवाई के बारे में पूछे जाने पर शत्रु ने कहा कि मैंने कुछ गलत नहीं बोला है और मेरे खिलाफ कार्रवाई का मुझे कोई कारण नहीं दिखता। हार से भाजपा में भूचाल आना कुछ हद तक स्वाभाविक ही है। अटल जी की कैबिनेट में मंत्री रहे अरुण शौरी ने भाजपा के बड़े नेताओं पर सीधा हमला बोलते हुए इस करारी हार के लिए सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अरुण जेटली और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को जिम्मेदार ठहराया है। शौरी का कहना है कि पीएम मोदी, अरुण जेटली और अमित शाह के खिलाफ पार्टी के भीतर असहयोग आंदोलन चल रहा है जो अब गहराएगा। शौरी का कहना है कि बिहार में पीएम मोदी को केंद्रित करके प्रचार किया गया लेकिन पहले से वादों पर खरी नहीं उतर रही पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने बिहार के स्थानीय नेताओं को जानबूझ कर नजरंदाज किया। भाजपा ने बिहार में भी बाहरी नेताओं के बूते चुनावी जंग जीतने की कोशिश की, उसे फिर वैसी ही करारी हार मिली जैसी दिल्ली में मिली थी। टिकट बंटवारे से लेकर चुनावी रणनीति बनाने तक में स्थानीय नेताओं को किनारे रखा गया। यहां तक कि प्रत्याशी चुनते समय संबंधित क्षेत्र के सांसदों की राय लेना भी मुनासिब नहीं समझा गया। मुझे एक वरिष्ठ नेता ने बातचीत में बताया कि दिल्ली की तरह बिहार में भी स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं ने पूरे मन से मैदान में उतरने से परहेज किया। यहां तक कि अनदेखी से परेशान ये नेता पार्टी उम्मीदवार को हराने की कोशिश से बाज नहीं आए। स्थानीय नेताओं की बेरुखी को दूर करने की बजाय उनकी कमी को दूर करने के लिए दूसरे राज्यों के नेताओं की भीड़ जमा कर दी गई। बिहार में 20 से अधिक मंत्री पूरे चुनाव के दौरान डेरा डाले रहे थे। नेताओं की भीड़ तो खड़ी कर दी गई, लेकिन टीम भाजपा कहीं नहीं दिखी। अलग-अलग गुटों में बंटने और स्थानीय नेताओं व कार्यकर्ताओं की बेरुखी ने भाजपा को रसातल में पहुंचा दिया। दिल्ली के बाद यह लगातार दूसरा मौका है जबकि पार्टी ने हार की जिम्मेदारी से बचने के लिए कोशिश की है। इससे पहले दिल्ली में अब तक के इतिहास की सबसे करारी हार हुई लेकिन एक नेता तक की जिम्मेदारी तय नहीं हुई। कार्रवाई न करने की एक वजह संभवत यह है कि दिल्ली और बिहार दोनों ही चुनाव में सभी फैसले पार्टी नेतृत्व ही लेता रहा है और यही सारे दांव उलटे पड़े। अगर बिहार से पहले महाराष्ट्र, हरियाणा इत्यादि अन्य राज्यों में भाजपा की जीत का श्रेय नरेंद्र मोदी-अरुण जेटली व अमित शाह की तिकड़ी को जाता है तो बिहार का परिणाम भी इनकी कारगुजारी पर मेनडेट है। अरुण जेटली जी कहते हैं कि महागठबंधन की जीत के लिए उनके सामाजिक समीकरण जिम्मेदार हैं। जिस तरह जीत का श्रेय सामूहिक होता है उसी तरह हार की जिम्मेदारी भी सामूहिक होती है। जेटली ने पीएम, मोहन भागवत और अमित शाह को क्लीन चिट दे दी।
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