Tuesday 3 November 2015

हाई कोर्ट के फैसले से असल झटका तो दिल्लीवासियों को लगा है

दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली की तीनों निजी बिजली कंपनियों (डिस्कॉम) के खातों की जांच नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) से करवाने के मामले में दिल्ली सरकार को तगड़ा झटका दिया है। अदालत ने दिल्ली सरकार के इन कंपनियों के खातों की जांच करने संबंधी फैसले से असल झटका तो दिल्ली की जनता को दिया है। यह फैसला कानूनी कमियों से उस फैसले के भी विरुद्ध है जो माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इसी विषय पर दिया था। पिछले साल 17 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस राधाकृष्णा और जस्टिस विक्रमजीत सेन की बैंच ने दो टेलीकॉम कंपनियों की याचिका खारिज कर दी थी जिसमें इन दो कंपनियों ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी कि सरकार को हमारे खातों की जांच (सीएजी) से करवाने का आदेश दिया है, वह गलत है। आज माननीय हाई कोर्ट कहता है कि निजी बिजली कंपनियों की ऑडिट सीएजी नहीं कर सकती। इसका एक दुष्परिणाम यह हुआ कि दिल्ली की जनता ने जो सस्ती बिजली की उम्मीद लगाई थी वह शायद अब पूरी न हो पाए। इस फैसले में आप सरकार ने नासमझी या सोची-समझी चाल के साथ फैसले में मदद की? भाजपा के दिल्ली प्रदेशाध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने आरोप लगाया है कि बिजली कंपनियों के ऑडिट के मामले में दिल्ली सरकार झूठ बोल रही है। उपाध्याय ने कहा कि केजरीवाल 2012 से दावा कर रहे हैं कि बिजली कंपनियों का सीएजी ऑडिट हो सकता है, 2013, 2014 और 2015 में भी वह यही दोहराते रहे। उन्होंने आरोप लगाया कि अब की बार सरकार बनने के बाद सरकारी वकीलों और डिस्कॉम बोर्ड में सरकारी प्रतिनिधियों ने निजी बिजली कंपनियों से साठगांठ कर ली। हाई कोर्ट के संज्ञान में यह विषय लाया ही नहीं गया कि पॉवर डिस्कॉम दिल्ली सरकार और निजी बिजली कंपनियों की संयुक्त भागीदारी है। यही वजह है कि अदालत ने फैसला डिस्कॉम के हक में कर दिया। पिछले दिनों सीएजी की अंतरिम रिपोर्ट लीक हुई थी जिसमें सामने आया था कि डिस्कॉम ने अपना घाटा करीब 8000 करोड़ रुपए बढ़ाकर दिखाया है। इस अंतरिम रिपोर्ट के बाद दिल्ली सरकार ने अपने तेवर बिजली कंपनियों के प्रति और सख्त करने का नाटक किया और कहा था कि सीएजी ऑडिट रिपोर्ट आने के बाद यह रकम डिस्कॉम से वापस ले ली जाएगी और दिल्ली की जनता को सस्ती बिजली उपलब्ध कराई जाएगी। हाई कोर्ट में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली सरकार ने डिस्कॉम के खातों की कथित गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए सीएजी ऑडिट कराने का तर्प रखा था। मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी व न्यायमूर्ति आरएस एंडलो की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि डीईआरसी ही डिस्कॉम के खातों की जांच का अधिकार रखती है और राज्य सरकार ने गलत तरीके से इनके खातों की जांच के आदेश दिए हैं। अदालत ने कहा कि सरकार ने जिसकी सलाह पर कैग को खातों की जांच के आदेश दिए थे उसने सरकार को गुमराह किया। अदालत ने सरकार के उस तर्प को भी खारिज कर दिया कि डिस्कॉम में काफी भ्रष्टाचार हुआ है और इसी कारण उसके खातों की जांच जरूरी है। अदालत ने अपने 139 पृष्ठों के फैसले में कहा कि डीईआरसी यदि एक बार डिस्कॉम द्वारा पेश व्यय को मंजूरी दे देती है तो किस प्रकार कैग को अलग निष्कर्ष पर पहुंचने की इजाजत दी जा सकती है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि वह दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। उन्होंने कहा कि जनता के हित में इसे अंजाम तक पहुंचाकर ही दम लेंगे। हाई कोर्ट का यह फैसला दिल्ली वालों के हित में नहीं है। उम्मीद की जाए कि माननीय सुप्रीम कोर्ट तकनीकी औपचारिकताओं से ऊपर उठकर जनहित में दिल्ली की जनता के हित में फैसला करेगी। जनहित ही लोकतंत्र में सर्वोपरि होता है।

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