कोणार्प का सूर्य मंदिर
भारत के पास ये विश्व की धरोहर है। कवि रवीन्द्र नाथ टैगोर ने लिखाöकोणार्प जहां पत्थरों की भाषा मनुपट से श्रेष्ठ है,
आजकल फिर चर्चा में है। अगर आप मंदिर गए हों तो आपने देखा होगा कि तीन
मंडपों में बंटे इस मंदिर का मुख्य मंडप और नाट्यशाला ध्वस्त हो चुके हैं और अब इसका
ढांचा ही शेष है। बीच का हिस्सा, जिसे जगमोहन मंडप या सूर्य मंदिर
के नाम से जाना जाता है, इसमें 1901 में
चारों तरफ से दीवारें उठवाकर रेत भर दी गई थी। अब इसी रेत और दीवारों को हटाने की कवायद
की जा रही है ताकि इसके भीतर की दीवारों की कलाकृति भी लोग देख सकें। अपनी विशिष्ट
कलाकृति और इंजीनियरिंग के लिए विश्व प्रसिद्ध इस मंदिर को पर्यटकों ने अभी तक अधूरा
ही देखा है। इसके लिए भारतीय पुरातत्व विभाग और सीबीआरआई (सेंट्रल
बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रुड़की) की टीम काम कर रही है। हाल
ही में सीबीआरआई की टीम ने एंडोस्कोपी के जरिये मंदिर के भीतर के कुछ चित्र और वीडियो
लिए हैं, जिनका अध्ययन किया जा रहा है, साथ ही इसकी एक छोटी-सी रिपोर्ट की एक कॉपी एएसआई के
हेडक्वार्टर भेजी जा चुकी है। अब इस पर एएसआई को निर्णय करना है। सब कुछ सही रहा तो
वर्ष 2016 में रेत हटाने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। सबसे
प्रमुख तथ्य धरोहर की रक्षा है। मंदिर दोबारा खोलने की प्रक्रिया का अभी पहला चरण ही
पूरा हुआ है, जिसमें एंडोस्कोपी के जरिये अध्ययन किया जा रहा
है। इसके आधार पर अंदर की दीवारों की मजबूती, इंजीनियरिंग के
मापदंड और मंदिर के फाउंडेशन सिस्टम का अध्ययन किया जा रहा है। सूर्य मंदिर के मुख्य
अधिकारी निर्मल कुमार महापात्र के अनुसार कोणार्प में औसतन रोज तकरीबन 10 हजार लोग आते हैं। सीजन में यह संख्या 25 हजार तक चली
जाती है। इसे बढ़ाने की योजना पर पर्यटन विभाग और इंडियन ऑयल फाउंडेशन विभिन्न उपाय
कर रहे हैं। कोणार्प में लाइट और साउंड शो की तैयारी भी हो रही है। मंदिर का इतिहास
यह है कि कई आक्रमणों और प्राकृतिक आपदाओं के कारण जब मंदिर के बीच का हिस्सा शेष बचा
तो 1901 में उस वक्त के गवर्नर जॉन वुडवन ने जगमोहन मंडप के चारों
दरवाजों पर दीवारें उठवा दीं और इसे पूरी तरह से रेत से भर दिया ताकि यह सलामत रहे
और किसी तरह की आपदा इसे प्रभावित न कर सके। तब से लेकर अब तक यह इसी अवस्था में है।
इसके बाद समय-समय पर पुरातत्वविदों ने इसके अंदर के भाग के अध्ययन
की जरूरत बताई और रेत निकालने के लिए योजना बनाने पर जोर दिया।
-अनिल नरेन्द्र
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