Friday 8 January 2016

शासन व सरकार चलाना भी एक कला है

शासन चलाना व सरकार चलाना खाला जी का खेल नहीं है। इसमें सरकार चलाने में कला और कुशलता की जरूरत होती है। जिस नेता व उसके साथियों ने सिर्प सड़कछाप राजनीति की हो, सिर्प आंदोलन ही किए हों, वह नेता सरकार कैसे चला सकता है? मैं दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी (आप) की बात कर रहा हूं। किसी भी सरकार या प्रशासन को चलाने के लिए यह जरूरी होता है कि आप आईएएस व अन्य प्रशासनिक अधिकारियों को साथ लेकर चलें। अगर आप उन्हें गाली देकर यह उम्मीद करें कि वह आपके कहने अनुसार चलें तो यह मुश्किल है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि नौकरशाहों की गुंडागर्दी नहीं चलेगी। दानिक्स कैडर के दो वरिष्ठ अधिकारियों के निलंबन के मुद्दे पर अफसर और सरकार आमने-सामने आ गए हैं। केजरीवाल कहते हैं कि संविधान में कहीं नहीं लिखा कि सिर्प आईएएस या दानिक्स अधिकारी की ही नियुक्ति होगी। भारत के इतिहास में कभी भी आईएएस अधिकारी हड़ताल पर नहीं गए यहां राजनीतिक कारणों से हड़ताल पर चले गए हैं। मुख्यमंत्री ने एक टीवी चैनल से बातचीत में यहां तक कह दिया कि आज देश में जो हालत है  वह अफसरशाही की वजह से ही है। आईएएस कोई अलग प्रणाली नहीं है कहते हैं दिल्ली के सीएम। हम श्री केजरीवाल को यह बताना चाहते हैं कि आप उस आईएएस को गाली दे रहे हैं, गुंडा कह रहे हैं जिन्हें 20-25 साल का प्रशासनिक अनुभव है। आपको तो आईएएस का मुश्किल से चार-पांच साल का अनुभव है और उसमें भी आप एक भगोड़ा हैं। आप उनको गाली दे रहे हैं? दरअसल हम केजरीवाल को दोष नहीं दे सकते। उन्होंने तमाम उम्र सड़कछाप राजनीति की है, सड़कों पर अथारिटी के खिलाफ आंदोलन किए हैं। वह कभी भी किसी को साथ लेकर नहीं चल सके। पहले प्रधानमंत्री, फिर वित्तमंत्री, फिर उपराज्यपाल और अब नौकरशाही सभी से तो आप की तनातनी चल रही है। गाली-गलौच चल रही है। खुले तौर पर तो नहीं लेकिन बड़े स्तर पर अधिकारी कह रहे हैं कि जिनसे काम करवाना है, उसे सरकार भाजपा की बी टीम, भ्रष्टाचारी और कामचोर कह रही है। ऐसे में तनाव नहीं बढ़ेगा तो और क्या बढ़ेगा? जो बात केजरीवाल समझ नहीं रहे या समझना नहीं चाहते वह है कि जब केंद्र सरकार या उपराज्यपाल किसी फैसले पर आगे बढ़ने की मनाही कर दें तो फिर दिल्ली में तैनात अधिकारी फाइल पर कैसे साइन करेंगे? सरकार के करीब-करीब सभी विभागों में ऐसी तमाम योजनाएं अब रुकेंगी। दिल्ली सरकार ने वेतनमान बढ़ाने का फैसला भी कैबिनेट से किया था, लेकिन केंद्र ने इसे अवैध घोषित कर दिया, फिर सीएनजी वाहन की फिटनेस घोटाले की जांच के लिए आयोग गठित किया जिसे रद्द करके अधिकारियों को इसमें सहायता न करने का फरमान दे दिया। अब विधानसभा में जनलोकपाल, विधायकों के वेतन वृद्धि, शिक्षा अधिनियम, स्कूलों के खातों की जांच का कानून पास कर दिया है, इन्हें भी जंग साहब को भेज दिया गया है। इनका भी हश्र वही होगा। दिल्ली सरकार के अधिकारी कहते हैं कि केजरीवाल सरकार नियमों को तोड़कर ही चलना चाहती है। ऐसे में अपनी नौकरी कौन अधिकारी दांव पर लगाएगा? केजरीवाल साहब अब धमकियों पर उतर आए हैं। कहते हैं कि अगर अफसर काम नहीं करना चाहते तो लिखकर दे दें, केंद्र सरकार में भेज देंगे। दिल्ली में रहना है तो काम करना पड़ेगा। केजरीवाल ने कहा है कि दादागिरी चाहे अफसरों की हो या नेताओं की हो बंद करेंगे। ऐसी स्थिति में हमें तो 2016 में दिल्ली सरकार के प्रभावी ढंग से काम करने में संदेह है। 2015 में भी तनातनी की वजह से दिल्ली में विकास ठप रहा और अब 2016 में भी यही हश्र होने की संभावना है। जैसा मैंने कहा, शासन व सरकार चलाना एक कला है जो अनुभव और विवेक से आती है जिसकी फिलहाल बहुत कमी नजर आती है।

-अनिल नरेन्द्र

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