Friday 22 January 2016

एक बार फिर बच्चों का पाक में कत्लेआम

वक्त तो बेशक एक साल और आगे बढ़ा पर पाकिस्तान में आतंकियों ने एक बार फिर छात्रों का कत्लेआम किया। दिसम्बर 2014 में आतंकियों ने पेशावर के एक आर्मी स्कूल में अटैक किया था। इस हमले में 140 मासूमों की जान गई थी। उस हमले को अंजाम देने वालों की उम्र भी ज्यादा नहीं थी। आतंकी 18 साल से 25 साल के उम्र के थे। यह अत्यंत दुर्भाग्य की बात है कि हिंसा का सहारा लेने वाले ये आतंकी अपनी सियासत की खातिर मासूम बच्चों को निशाना बनाते हैं। इन मासूमों ने इनका भला क्या बिगाड़ा है? और फिर यह भी उसी इस्लाम को मानते हैं जिसकी रक्षा करने के बहाने आप यह खूनखराबा करते हैं। देखा जाए तो पाकिस्तान में सबसे ज्यादा 850 स्कूल-कॉलेज दहशतगर्दों के हमलों का शिकार हुए हैं। ग्लोबल टेरेरिज्म मेरीलैंड अमेरिका के अध्ययन के मुताबिक 1970 से 2014 के बीच पाकिस्तान में शिक्षण संस्थानों पर हमलों में सबसे भयावह तो 14 दिसम्बर 2014 को आर्मी पब्लिक स्कूल पर हुआ हमला था जिसमें 140 बच्चों की मौत हुई थी। समय एक साल आगे बढ़ा और पाक में आतंकियों ने फिर छात्रों का कत्लेआम किया। इस बार निशाना पेशावर का प्रतिष्ठित बाचा खान विश्वविद्यालय बना। आतंकियों ने बुधवार को अंधाधुंध गोलीबारी कर यहां 25 लोगों को मार डाला। इनमें ज्यादातर छात्र हैं। हमले में करीब 50 लोग घायल हुए हैं। हमले में शामिल चारों आतंकी मारे गए। इस हमले की भी जिम्मेदारी तहरीक--तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने ली है। इसी संगठन ने 31 दिसम्बर 2014 को पेशावर के आर्मी स्कूल में 132 बच्चों की हत्या की थी। आतंकियों ने विश्वविद्यालय में घुसते ही छात्रों और टीचरों पर गोलियां चलानी शुरू कर दी। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार करीब 60-70 बच्चों के सिर में गोली मारी गई। पर इसकी अधिकृत पुष्टि नहीं हुई। घटना के वक्त विश्वविद्यालय में तीन हजार छात्र और 600 मेहमान मौजूद थे। पाक के चारसद्दा स्थित बाचा खान विश्वविद्यालय के इस हमलों में और हाल ही में भारत के पठानकोट एयरबेस हमले में कुछ समानताएं हैं। दोनों ही हमलों के वक्त आतंकवादी सेना की वर्दी पहने हुए थे। दोनों ही हमलों में हमलावरों की उम्र 20-25 वर्ष के बीच थी। दोनों ही हमलों में आतंकी आत्मघाती जैकेट पहने हुए थे। यह अलग बात है कि दोनों ही हमलों में सुरक्षा बलों ने हमलावरों को मार गिराया था और वह खुद को नहीं उड़ा सके। हमले की जिम्मेदारी तहरीक--तालिबान पाकिस्तान के कमांडर उमर मंसूर ने ली है। मंसूर को चाइल्ड किलर भी कहा जाता है। 2007 में 13 संगठनों ने तहरीक--तालिबान बनाया था। इसका एक मकसद पाकिस्तान में शरीया कानून लागू कराना भी है। हमले के समय पेशावर से 50 किलोमीटर चारसद्दा जिले में बाचा खान यूनिवर्सिटी में संस्थापक बाचा खान की बरसी के मौके पर होने वाले मुशायरे में भाग लेने 600 बाहरी लोग भी आए हुए थे। इस हमले ने पाकिस्तानी सेना के अभियान जर्ब--अज्ब की कामयाबी की पोल खोलकर रख दी है। जून 2014 में पाक-अफगान सीमा से लगे इलाकों में शुरू हुए इस अभियान का मकसद तहरीक--तालिबान समेत दूसरे आतंकी संगठनों का खात्मा करना था। इस ताजा हमले से पहले पाकिस्तानी सेना ने अपनी वेबसाइट में दावा किया था कि उसने पाक-अफगान सरहद पर तहरीक--तालिबान समेत तमाम आतंकी संगठनों की कमर तोड़कर रख दी है। साथ ही उनके ढांचे, स्लीपर सेल को भी लगभग ध्वस्त कर दिया है। पेशावर में आर्मी पब्लिक स्कूल पर हुए हमले के एक साल बाद बाचा खान यूनिवर्सिटी पर हुए आतंकी हमले से साफ है कि पाक सेना अपने मिशन में असफल रही है। ऑपरेशन के 18 महीने बाद हुए हमले से साफ है कि आतंकियों की कमर नहीं टूटी है। इससे यह भी पता चलता है कि भारत की सुरक्षा एजेंसियों और पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों में रिस्पांस टाइम में कितना फर्प है। पठानकोट में भी ठीक इसी तरह का हमला हुआ था और हमारे बहादुर जवानों ने न केवल सारे हमलावरों को मार गिराया था बल्कि हमले में मरने वालों की संख्या भी 10 से कम थी। पेशावर के इस हमले में अधिकृत रूप से 25 लोगों की तो मौत हो चुकी है और 50 से ज्यादा लोग घायल हैं। इस हमले से हम भी सकते में हैं। यह सही समय है जब पाकिस्तान को भारत की मदद लेकर इन दहशतगर्दों का खात्मा करना चाहिए। आतंक का न तो कोई धर्म होता है, न रंग और न जाति। यह हमला उन ताकतों (पाक) के लिए भी सीधा संदेश है जो अच्छे और बुरे आतंकवाद में भेद करते हैं। आतंकवाद पाकिस्तान में घर कर चुका है, जो बीज पाकिस्तान की सेना और आईएसआई ने बोया था आज उसी का फल उन्हें देखने को मिल रहा है। यह समय बिल्कुल माकूल है कि पाकिस्तान अपनी सर-जमीन से इन जेहादी संगठनों की जड़ से समाप्ति करे। पाकिस्तान की स्थिति चिन्ताजनक यूं भी है कि अमेरिका की अफगानिस्तान नीति ने दक्षिण एशिया के लिए एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। खासकर पाकिस्तान और भारत के लिए। 13 साल लंबी कोशिशों के बावजूद अमेरिका तालिबान की कमर तोड़ नहीं पाया और अब वहां से पिण्ड छुड़ाकर निकलने के लिए उन्हीं के साथ समझौते करने में जुटा हुआ है। इसका फायदा उठाकर इन आतंकियों ने खुद को नए सिरे से संगठित करके और पाक सेना व आईएसआई की मदद से वहां के सामाजिक जीवन का हिस्सा बन गए हैं। पाक सरकार (नवाज शरीफ) को अमेरिका परस्त बताते हुए उन्हीं के खिलाफ लंबी लड़ाई छेड़ रखी है। जहां हम पाकिस्तान की दुख की इस घड़ी में उनके साथ अफसोस में शरीक हैं वहीं पाक को कम से कम इतना तो समझना होगा कि भारत के साथ मिलकर उन्हें आतंक को समाप्त करने में फायदा है।

-अनिल नरेन्द्र

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