Friday, 15 January 2016

क्या भाजपा के लिए मालदा संजीवनी बन सकता है?

उत्तर प्रदेश से उठा एक अनचाहा मुद्दा क्या भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से संजीवनी साबित हो सकता है? यूपी के सीतापुर के हिन्दू महासभा के कथित नेता कमलेश तिवारी ने मुसलमानों के श्रद्धा के केंद्र मुहम्मद साहब पर आपत्तिजनक टिप्पणी क्या कर दी, यूपी समेत कई राज्यों में सियासत गर्म हो गई। बिहार (पूर्णिया) और पश्चिम बंगाल (मालदा) में व्यापक हिंसा हुई। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो मालदा वारदात को सांप्रदायिक हिंसा मानने से इंकार कर दिया और इसे बीएसएफ और स्थानीय लोगों का झगड़ा तक बता दिया। पश्चिम बंगाल में तीन महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। टीवी स्टार रहीं भाजपा नेता रूपा गांगुली की मानें तो राज्य में इस तरह के तत्वों को ममता सरकार का पहले से ही संरक्षण मिलता रहा है। मालदा की हिंसा कट्टरपंथी ताकतों के प्रति नरमी के कारण हुई। शासन और स्थानीय प्रशासन का परोक्ष प्रश्रय उनके हौसले को बढ़ाता है। भाजपा इसके खिलाफ सड़कों पर उतर रही है। मालदा स्थित कालियाचक इलाके में गत तीन जनवरी को मुस्लिमों द्वारा किए गए हिंसक प्रदर्शन व आगजनी की घटना का जायजा लेने वहां पहुंची भाजपा की केंद्रीय टीम को बैरंग लौटना पड़ा। दार्जीलिंग से भाजपा सांसद एसएस आहलूवालिया के नेतृत्व में तीन सदस्यीय टीम जब सोमवार सुबह मालदा स्टेशन पहुंची तो नेताओं को स्टेशन से बाहर नहीं निकलने दिया। इसके बाद आहलूवालिया, सांसद बीडी राय और भूपेंद्र यादव को कोलकाता लौटना पड़ा। इस पर हैरत नहीं कि मालदा में हुई हिंसा की जांच-पड़ताल के लिए पश्चिम बंगाल सरकार ने भाजपा व अन्य विरोधी दलों के नेताओं को मौके पर नहीं जाने दिया। ममता बनर्जी के प्रशासन की ओर से ऐसी ही किसी अड़ंगेबाजी का अंदेशा था। यह आशंका तभी ब़ढ़ गई थी जब ममता बनर्जी ने कहा था कि कालियाचक की हिंसा सांप्रदायिक नहीं थी और विरोधी दल बेवजह उसे तूल दे रहे हैं। अगर यह हिंसा सांप्रदायिक नहीं थी तो हिंसा पर आमादा मुस्लिम संगठनों की भीड़ ने थाने पर धावा बोलने के दौरान हिन्दुओं की दुकानें क्यों जलाईं? क्या कारण है कि हिंसा के शिकार हिन्दू कालियाचक छोड़कर अपने रिश्तेदारों के यहां शरण लेने पर मजबूर हुए और फिलहाल लौटने के लिए भी तैयार नहीं हैं? सवाल यह भी है कि क्या यह सहज-सामान्य है कि एक लाख से ज्यादा की भीड़ थाने पर हमला बोल दे और इस दौरान बीएसएफ के एक वाहन समेत दो दर्जन गाड़ियों को आग के हवाले कर दे। स्पष्ट है कि राज्य सरकार और उसका प्रशासन लीपापोती करने की कोशिश कर रहा है। उसके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं कि एक लाख से अधिक की भीड़ बिना इजाजत कैसे एकत्रित हो गई? राज्य सरकार इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं कर सकती कि जब मीडिया के एक हिस्से के दबाव में आगजनी और तोड़फोड़ करने वाले कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया तो पुलिस को निशाना क्यों बनाया गया? बताते चलें कि लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में भाजपा को हालांकि दो सीटें ही मिली थीं लेकिन उसका वोट प्रतिशत 17 फीसदी तक हो गया था। लेकिन हालिया नगर निकाय से लेकर जितने स्थानीय चुनाव हुए, भाजपा को बुरी तरह पिटना पड़ा। अब वह मालदा के सहारे पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में लीड लेने की फिराक में है। सूत्रों का कहना है कि राज्य भाजपा की मांग पर ही अध्यक्ष अमित शाह ने दार्जीलिंग के भाजपा सांसद एसएस आहलूवालिया के नेतृत्व में मालदा एक प्रतिनिधिमंडल भेजा जिसे बैरंग वापस कर दिया गया। माना जा रहा है कि भाजपा विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे को शान से भुनाएगी। देखना यह है कि क्या यह मुद्दा पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए संजीवनी का काम कर सकता है?

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