Saturday, 30 January 2016

कूड़े का पहाड़ बनती जा रही है हमारी दिल्ली

राजधानी दिल्ली में केजरीवाल सरकार और दिल्ली नगर निगम में रस्साकशी के बीच दिल्ली कूड़े का पहाड़ बनती जा रही है। बृहस्पतिवार को करीब डेढ़ लाख सफाई कर्मचारी हड़ताल पर रहे। इससे न तो स्कूलों में पढ़ाई हो पा रही है और न ही सड़कों पर सफाई। अब एमसीडी कर्मियों ने दिल्ली सरकार के मंत्रियों के घरों के सामने कूड़ा डालने की कवायद शुरू कर दी है। इसकी शुरुआत बृहस्पतिवार को दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के कार्यालय के बाहर कूड़ा फेंक कर शुरू की। मनीष सिसोदिया, अरविंद केजरीवाल हाय-हाय के नारे व बच्चे मर गए हाय-हाय के नारे भी लगाए। मोदी-भाजपा हाय-हाय के भी नारे लगे। सफाई कर्मचारी, नर्स व टीचर वेतन न मिलने पर हड़ताल पर हैं। बढ़ती गंदगी को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को बेहद कड़ा रुख अख्तियार करते हुए तीनों नगर निगमों को फटकार लगाकर पूछा कि क्या वे दिल्ली को कूड़े का पहाड़ बनाना चाहते हैं? हाई कोर्ट ने यह सख्त टिप्पणी दिल्ली में कूड़ा निपटाने के लिए लैंडफिल साइटों की अव्यवस्था पर की। कोर्ट ने कहा कि तय मानकों के अनुसार लैंडफिल साइटों की अधिकतम ऊंचाई 70 फुट से अधिक नहीं होनी चाहिए, जबकि मौजूदा समय में जहां कूड़ा एकत्र किया जा रहा है उन जगहों की ऊंचाई 150 से 170 फुट तक पहुंच गई है। वेतन नहीं मिलने से तीनों नगर निगमों के सफाई कर्मचारियों की हड़ताल पर भी हाई कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और दिल्ली सरकार के अलावा तीनों नगर निगम को भी नोटिस जारी किया। सफाई कर्मचारियों की हड़ताल पर कोर्ट ने पूछा कि दिल्ली सरकार इस बात का जवाब दे कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत केंद्र सरकार से मिला पैसा कहां गया? हाई कोर्ट ने कहा कि स्वच्छता के नाम पर जब लोगों से कर वसूला जा रहा है तो दिल्ली को साफ क्यों नहीं रखा जा रहा है। कोर्ट ने निगम के कर्मियों को भी आड़े हाथ लेते हुए कहा कि सफाई नहीं होने पर कोई बहाना नहीं चलेगा। दरअसल दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार व केंद्र सरकार की आपसी लड़ाई का खामियाजा दिल्लीवासी भुगत रहे हैं। सफाई कर्मचारियों की मांग है कि उन्हें वेतन का भुगतान महीने की पहली तारीख को हो। 2003 से एरियर नहीं दिया गया है उसका तुरन्त भुगतान हो। आर्थिक बदहाली को दूर करने के लिए तीनों नगर निगमों को एक किया जाए। दिल्ली सरकार और दिल्ली नगर निगम के टकराव में पिछले चार माह से वेतन के लिए बुरी तरह पिस रहे निगम कर्मियों ने अब प्रशासन से आर-पार की लड़ाई करने का फैसला कर लिया है। उधर दिल्ली सरकार दावा कर रही है कि एमसीडी को पूरी राशि दी जा चुकी है। अपना वित्तीय लेखाजोखा नहीं दे रहे। तीनों निगमों का 1576 करोड़ रुपए डीडीए पर सम्पत्ति-कर के रूप में बकाया है, इसे क्यों नहीं वसूला जा रहा? दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का कहना है कि हाई कोर्ट के निर्देश के बावजूद अरविंद केजरीवाल सरकार निगमों को तीसरे वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार 3000 करोड़ रुपए का भुगतान क्यों नहीं कर रही है? प्रदेश कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा कि दिल्ली सरकार अपने प्रचार-प्रसार और विधायकों के वेतन बढ़ाने पर तो खर्च कर रही है लेकिन निगमों को फंड नहीं दे रही है। इसी तरह से केंद्र सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान तथा योग दिवस पर करोड़ों रुपए खर्च कर दिए परन्तु निगमों को वित्तीय संकट से उबारने में कोई ध्यान नहीं दिया। दिल्ली नगर निगम के आर्थिक संकट से लेकर वेतन संकट का मूल कारण निगम का बंटवारा होना था। सरकार से आवंटन व आमदनी तो ज्यों की त्यों रही पर निगम के बंटवारे के बाद एक एमसीडी के 105 विभाग हो गए। एक निगम में 30 कमेटियों की जगह 90 कमेटियां बन गईं। एमसीडी के तीन कमिश्नर, एक दर्जन से अधिक एडिशनल कमिश्नर, तीन महापौर, तीन उपमहापौर, तीन नेता सदन, तीन स्थायी कमेटी, तीन कमेटी के उपाध्यक्ष के साथ 272 वार्डों व निगम के पार्षद भी बन गए। तीनों ही एमसीडी में 75 विभागों के विभागाध्यक्षों से लेकर अधिकारी व कर्मचारियों के वेतन की बड़ी समस्या हो गई। निगम के बंटवारे के बाद प्रतिमाह 500 करोड़ रुपए खर्च होने लगा। यूनिफाइड एमसीडी का बजट 6699 करोड़ था वहीं तीनों को अपना बढ़ा खर्च चलाने के लिए वर्ष 2016-17 में प्रस्तावित बजट 14347.31 करोड़ रखना पड़ा है। समझ नहीं आता कि इस पूरे मसले को कैसे सुलझाया जाए?

No comments:

Post a Comment