Thursday 28 January 2016

फाइलों के सार्वजनिक होने पर भी नहीं सुलझा नेताजी का अंत

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 119वीं जयंती पर उनसे जुड़ी 100 गोपनीय फाइलों को शनिवार पधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक कर दिया। यह कदम स्वागत योग्य है। ऐसी और भी फाइलें हैं जिनमें से 25 फाइलें हर महीने राष्ट्रीय अfिभलेखागार डिजिटल रूप में जारी करेगा। इन फाइलों के सार्वजनिक होने के बावजूद नेताजी की मौत के रहस्य से पूरा पर्दा नहीं उठ सका। कहा तो यही जा रहा है कि 18 अगस्त 1945 ताईपे (ताइवान) में जापान की सेना के एक बाम्बर विमान साइगोन (वियतनाम) एयर स्ट्रिप से उड़ान भरने के 20 मिनट बाद ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस उसमें सवार थे। केंद्र सरकार ने उक्त घटना के लगभग 70 वर्षें बाद नेताजी से जुड़ी 100 फाइलें सार्वजनिक की हैं, इन फाइलों के सामने आने से अब ज्यादा शक नहीं रह गया कि आजादी के लगभग 40 वर्षों तक कांग्रेस की विfिभन्न सरकारों ने नेताजी से जुड़े मामले को दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सवाल यह है कि इन फाइलों को सार्वजनिक न करके इतने वर्षें तक रहस्य से पर्दा न उठने देने की जवाबदेही किसकी है? आखिर अपने विराट महानायक के बारे में सच कौन-सा देश नहीं जानना चाहेगा? संभव है इस गोपनीयता और नेताजी के परिवार पर खुफिया नजर रखने से भी नेताजी के बारे में रहस्य को विस्तार देने में मदद मिली है। उनके बारे में ये सच्चाइयां पहले भी बाहर आ सकती थीं पर मोदी सरकार ने इन्हें सार्वजनिक करने का साहसी फैसला किया। पर हम अब भी उम्मीद करते हैं कि नेताजी के रहस्यमय तरीके से लापता होने की गुत्थी सुलझाने में कुछ तो मदद मिलेगी ही। हालांकि सरकार के इस कदम के सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल में मई के आसपास विधानसभा चुनाव होने हैं। बंगाल में नेताजी का दर्जा युग पुरुष जैसा है। पिछले साल सितम्बर में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नेताजी से जुड़ी 64 फाइलों को सार्वजनिक कर मास्टर स्ट्रोक खेला था। तब अक्टूबर में मोदी ने 100 फाइलों को सार्वजनिक करने का फैसला किया था, माना जा रहा है कि शनिवार को मोदी ने फाइलें आम करके एक तरह से ममता को जवाब देने की कोशिश की है। इस मामले को लेकर सरकार ने तीन जांच आयोग बनाए थे। इनमें से दो का मानना था कि प्लेन कैश में ही नेताजी का निधन हुआ था जबकि तीसरे मुखर्जी आयोग का कहना था कि नेताजी विमान हादसे के वक्त भी जीवित थे। इस बारे में नेताजी के परिजनों की राय भी अलग-अलग है।  जर्मनी में रहने वाली नेताजी की बेटी अनीता बोस विमान हादसे को सच मानती थीं जबकि नेताजी के पौत्र चंद्र बोस ने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा था कि एमिली (नेताजी की पत्नी) को कभी इस झूठी कहानी में यकीन नहीं रहा। क्या नेताजी उर्फ गुमनामी बाबा रूस चले गए थे? 18 अगस्त 1945 को ताइपे में हुए विमान हादसे में नेताजी बुरी तरह जख्मी हो गए थे और अस्पताल में उन्होंने दम तोड़ दिया था। एक दूसरी थ्योरी यह है कि देश की आजादी की लड़ाई जारी रखने के लिए नेताजी (पूर्व सोवियत संघ) रूस चले गए थे। जहां वहां बाद में उनकी हत्या कर दी गई। तीसरी थ्योरी नेताजी विदेश से गुपचुप भारत लौट आए और उत्तर पदेश के फैजाबाद में 1985 तक गुमनामी बाबा बनकर रहे। हजारों पन्नों के इन दस्तावेजों की पड़ताल में वक्त लगेगा पर नेताजी की मृत्यु का कfिथत रहस्य सुलझने की जो उम्मीद की जा रही थी वह शायद अब भी पूरी न हो। नेताजी के अंत का रहस्य बरकरार है।

अनिल नरेंद्र

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