मैंने इसी कॉलम में कुछ दिन पहले लिखा था कि मई का महीना
आम आदमी पार्टी की सरकार व संगठन के लिए भारी पड़ने वाला है। जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं केजरीवाल सरकार
और खुद मुख्यमंत्री विवादों में घिरते जा रहे हैं। सवाल यह नहीं कि फलाना आरोप सही
है या नहीं, सवाल तो इस सरकार व उसके नेता की विश्वसनीयता का
है। आम आदमी पार्टी अपने विद्रोही तेवरों के चलते बहुत कम समय में आसमान पर पहुंच गई
थी। गठन के मात्र दो साल में दिल्ली की 70 में से 67 सीटें पाकर अप्रत्याशित समर्थन के साथ सत्ता में आई आप ने देश और दुनिया को
चौंका दिया था। मगर उसी हिसाब से आप का पतन होता दिख रहा है। सरकार बनते ही पार्टी
में विरोधाभास आरंभ हो गया। उसने टकराव का रास्ता अपनाना बेहतर समझा। वह चाहे केंद्र
सरकार, उपराज्यपाल या फिर दिल्ली सरकार में कार्य कर रहे अधिकारियों
से रहा हो। हालांकि आप सरकार बार-बार यह दावा करती रही है कि
उन्होंने यदि टकराव किया है जनहित में किया है। उन्होंने अपने लिए टकराव नहीं किया
है। मगर यह टकराव कई सारे सवाल खड़े कर रहा है जिसका आज दिल्ली की जनता जवाब मांग रही
है। पार्टी की स्थिति आज यह हो गई है कि अगर आज विधानसभा चुनाव हो जाएं तो सरकार बनाने
लायक भी विधायक शायद ही जीतें। इसके लिए न तो जनता दोषी है और न ही केंद्र सरकार। इसके
लिए जिम्मेदार वे लोग हैं जिन्होंने गलत लोगों को पार्टी के साथ लगा रखा है। धीरे-धीरे आप से कई वरिष्ठ सहयोगी अलग हुए जिसमें शांति भूषण, प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, आनंद कुमार से लेकर कई अन्य नाम शामिल हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि जमीनी कार्यकर्ता
अलग हुए हैं। दिल्ली में आप सरकार बनने के दो साल के दौरान चार मंत्रियों को हटाया
जा चुका है। इसके अलावा कई विधायकों पर आरोप लगे हैं। इस सूची में सबसे बड़ा नाम जल
संसाधन, पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री कपिल मिश्रा का है। फिर नाम
आता है महिला एवं बाल विकास, समाज कल्याण मंत्री संदीप कुमार
का। हाल ही में पर्यावरण खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री एक स्टिंग ऑपरेशन में फंसने की वजह
से हटे। जितेन्द्र सिंह तोमर फर्जी डिग्री केस में फंसने की वजह से हटे। जहां तक आप
के विधायकों का सवाल है तो शरद चौहान, नरेश यादव, अमानतुल्ला, सोमनाथ भारती, मनोज
कुमार, प्रकाश जारवाल, दिनेश मोहनिया,
जगदीश सिंह, मोहिंदर यादव, अखिलेश त्रिपाठी और सुरेन्द्र सिंह पर केस दर्ज हुए और यह जमानत पर बाहर हैं।
विचारों के टकराव को लेकर आप में उठे तूफान के बीच चक्रवात में फंसे कपिल मिश्रा का
भले ही मंत्री पद चला गया हो मगर यह तूफान अभी थमा नहीं है। सत्येन्द्र जैन के मंत्री
पद पर बने रहने तक शायद ही आप में बवाल खत्म हो। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल तथा
सरकार के एक ताकतवर मंत्री सत्येन्द्र जैन के खिलाफ सरकार के ही एक मंत्री कपिल मिश्रा
द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के बड़े आरोप के बाद आप सरकार की विश्वसनीयता पर गहरा संकट
खड़ा हो गया है। पहले से ही सीबीआई छापों तथा भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी सरकार बेशक
मिश्रा के आरोपों को बेबुनियाद बता रही हो, लेकिन बार-बार नैतिकता का राग अलापने वाले, स्वच्छ और भ्रष्टाचार
मुक्त सरकार के बड़े-बड़े दावे करने वाले केजरीवाल के लिए खुद
को बेदाग साबित करना अब बड़ी चुनौती है। दिल्ली सरकार के मंत्रियों, विधायकों पर तमाम आरोप पहले भी लगते रहे हैं लेकिन यह पहला मौका है जब सीधे
मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल पर अंगुली उठाने वाला कोई और नहीं बल्कि उनका ही विश्वसनीय
कैबिनेट मंत्री कपिल मिश्रा हैं। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बल पर जननायक बनकर उभरे
केजरीवाल के सामने अब इन आरोपों से निकलना खुद को पाक-साफ साबित
करना होगा। उपराज्यपाल नजीब जंग दिल्ली सरकार के जिन सात मामलों की फाइल सीबीआई को
जांच के लिए स्थानांतरित कर गए थे उनमें से पूर्व सचिव डॉ. तरुण
सीम के खिलाफ तीसरी प्राथमिकी दर्ज हुई है। सूत्रों का कहना है कि चार अन्य मामलों
में अब तक प्रारंभिक जांच (पीई) दर्ज की
जा चुकी है। दिल्ली सरकार के पूर्व सचिव डॉ. सीम से पहले दिल्ली
सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन के ओएसडी के तौर पर काम कर रहे वरिष्ठ रेजिडेंट
डाक्टर निकुंज अग्रवाल की नियुक्ति को लेकर सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज की थी। आरोप यह
भी हैं कि अमानतुल्ला खान ने वक्फ बोर्ड के चेयरमैन पद का दुरुपयोग करते हुए 30
लोगों को नियुक्त किया था। बताया गया है कि इन तीन एफआईआर के अलावा टॉक
टू एके, स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन की पुत्री सौम्या जैन
का मोहल्ला क्लीनिक नियुक्ति मामला, फीड बैक यूनिट तथा पीडब्ल्यूडी
ठेका मामले में प्रारंभिक जांच (पीई) के
मामले दर्ज किए जा चुके हैं। ताजा आरोपों के बाद केजरीवाल के सामने अपनी अपने मंत्रियों
और विधायकों की साख बचाए रखना बड़ी चुनौती होगी। खबर तो यह भी है कि आम आदमी पार्टी
की अंतर्कलह अभी थमने वाली नहीं है। आम आदमी पार्टी के कुछ बड़े नेता केजरीवाल को घेरने
की तैयारी में लगे हुए हैं। ऐसे में केजरीवाल के सामने उत्पन्न संकट और आरोपों के बाद
सरकार व पार्टी के सामने उत्पन्न मुश्किलें निकट भविष्य में कम होती दिखाई नहीं दे
रही हैं। जैसा मैंने कहा कि मई का महीना केजरीवाल के लिए चुनौतीपूर्ण रहेगा।
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