Tuesday, 16 May 2017

...और अब दुनिया का सबसे बड़ा साइबर अटैक

शुक्रवार को शुरू हुए सबसे बड़े साइबर हमले ने दुनिया में हाहाकार मचा दिया। इसमें रेनसमवेयर नामक सॉफ्टवेयर और वानाक्राई वायरस का इस्तेमाल किया गया। हैकर्स इसके जरिये ऑनलाइन फिरौती लेकर कम्प्यूटर को अपने शिकंजे से छोड़ते हैं। 100 से अधिक देश जिनमें भारत भी शामिल है इससे प्रभावित हुए हैं। दुनिया के इस सबसे बड़े हमले में सवा लाख से ज्यादा कम्प्यूटर प्रभावित हुए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह हमला अमेरिका की नेशनल सिक्यूरिटी एजेंसी (एनएसए) से चुराए हुए साइबर हथियार `इंटर्नल ब्लू' से किया गया है। इसे वानाक्राई रेनसमवेयर वायरस के नाम से भी जाना जाता है। इस साइबर हमले के बारे में सबसे पहले स्वीडन, ब्रिटेन और फ्रांस में पता चला। इसके बाद इसका दायरा और बढ़ता गया। रेनसमवेयर सॉफ्टवेयर से हैकर्स कम्प्यूटर पर हमला करते हैं। इसे ईमेल से Eिलक के जरिये भेजा जाता है। लिंक पर क्लिक करने पर कम्प्यूटर लॉक हो जाता है। क्रीन पर एक डॉयलाग बॉक्स खुलता है। लॉक को खोलने के लिए ऑनलाइन फिरौती मांगी जाती है। न देने पर कम्प्यूटर डाटा उड़ा दिया जाता है। यह रेनसमवेयर का खास वायरस है। शुक्रवार को साइबर हमले के लिए इसी का इस्तेमाल किया गया। यह खासकर विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम को निशाना बनाता है। माना जा रहा है कि यह साइबर हमला शैडोब्रोकर्स नामक ग्रुप ने अंजाम दिया है। ग्रुप ने 14 अप्रैल को ही इस मालवेयर की जानकारी ऑनलाइन कर दी थी। यह वही ग्रुप है जिसने पिछले साल दावा किया था कि उसने एनएसए का साइबर हथियार इंटर्नल ब्लू चुरा लिया है। दरअसल इंटर्नल ब्लू को अमेरिकी सुरक्षा एजेंसी एनएसए ने आतंकियों और दुश्मनों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कम्प्यूटरों में सेंध लगाने के लिए विकसित किया था। अमेरिका ने कभी स्वीकार नहीं किया है कि शैडोब्रोकर्स डाटा लीक किया गया, मालवेयर एनएसए या अन्य किसी अमेरिका खुफिया एजेंसी से संबंधित है। माइक्रोसॉफ्ट की प्रवक्ता ने बताया कि कंपनी स्थिति से निपटने के उपायों पर काम कर रही है। मालवेयर से बचाने को ऑटोमैटिक विंडो अपडेट्स पुश कर रही है। सूत्रों का कहना है कि इस हमले के पीछे किसी खास देश की बजाय अपराधियों का गिरोह है। रूस, चीन, यूक्रेन और ताइवान में हैकरों के गिरोह पर शक है। यूरोपीय संघ ने इनकी तलाश में एक टास्क फोर्स बनाई है। आरोप है कि रूसी हैकर्स की सेवाएं अमेरिकी चुनावों को प्रभावित करने के लिए ली जा चुकी हैं। नजर में उत्तर कोरिया के हैकर्स भी हैं जिन्होंने हाल में दावा किया था कि देश के परमाणु कार्यक्रम की फंडिंग के लिए उनकी नजर 18 देशों के बैंकों पर है।

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