Sunday 14 May 2017

नक्सली समस्या आतंकवाद से बड़ी है और देश के लिए चुनौती है

केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ हाल ही में सम्पन्न हुई नक्सल प्रभावित 10 राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर वार्ता हुई। कुछ बुनियादी सवाल भी उठे। बुर्कापाल नक्सली हमले के बाद केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हंसराज अहीर सुकमा जिले के पोलमपल्ली पहुंचे। दो घंटे तक जवानों और अफसरों के बीच रहने के बाद उन्होंने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि जिले में हजारों की संख्या में तैनात फोर्स है। इसके बावजूद यहां नक्सल गतिविधियां बढ़ रही हैं, यह चिन्ताजनक है। उन्होंने स्वीकार किया कि नक्सलियों ने सुकमा जिले के एक बड़े इलाके में अपना कब्जा जमाया हुआ है और आदिवासियों को बंधक बनाकर जिन्दगी जीने पर मजबूर कर रहे हैं। पिछले कुछ समय से यकायक नक्सली गतिविधियों में तेजी आई है। खबर मिली है कि नक्सली संगठनों को जर्मनी, फ्रांस, इटली, बेल्जियम, फिलीपींस, हॉलैंड और तुर्की जैसे देशों के माओवादी संगठनों से भी सहयोग मिलता है। भारत इन देशों से अपने अच्छे संबंधों का इस्तेमाल करे और ऐसे तत्वों पर नकेल कसने को कहे। नक्सलियों की जड़ पर प्रहार करने के लिए भारत सरकार को इन देशों से सम्पर्क करना चाहिए जो नक्सलियों को वैचारिक खुराक और नैतिक समर्थन देते हैं। नक्सलियों को हथियार सप्लाई करने वाले व्यक्ति को तो हाल में ही गिरफ्तार किया गया है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सर्वदलीय बैठक में केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि नक्सली समस्या के सन्दर्भ में केंद्र की भूमिका सिर्फ पुनर्समीक्षा करने तक सीमित रह गई है। नक्सलवाद से लड़ने के लिए यदि राज्य सरकारों को ही समूची रणनीति बनानी है और इसके लिए अपने संसाधनों का इस्तेमाल करना है तो फिर केंद्र की क्या भूमिका रह जाती है? यह सच है कि नक्सल प्रभावित राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर फैसले लेती हैं और इस हिंसक चुनौती से लड़ती हैं। दरअसल इसके पीछे सच यह है कि नक्सलवाद की समस्या को कानून व्यवस्था के साथ जोड़कर देखा जाता है और विधि व्यवस्था संविधान की सूची में है। लिहाजा राज्यों की ही जिम्मेदारी बनती है कि नक्सल समस्या पर प्रभावी नियंत्रण लगाएं। अलबत्ता इस व्यवस्था के रहते केंद्र सरकार कोई महती भूमिका का निर्वाह नहीं कर सकती। इसलिए इस बात पर संदेह की ज्यादा गुंजाइश है कि एकीकृत कमान का गठन और साझा रणनीति बनाने के सुझाव पर शायद ही परवान चढ़ सके। हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि केंद्र सरकार देश की एकता और सप्रभुता के लिए नक्सलवाद को आतंकवाद से ज्यादा बड़ा खतरा मानती है तो इस मामले को राज्य सरकारों के पाले में डालने की बजाय सीधे तौर पर अपने हाथों में लेना चाहिए। एकीकृत कमान, साझा रणनीति और केंद्रीय सुरक्षा बलों और राज्य पुलिस के बीच बेहतर समन्वय बनाने की सख्त जरूरत है और इसे केवल कानून व्यवस्था न माना जाए।

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