Tuesday, 30 May 2017

ब्रह्मपुत्र नदी पर बने पुल का महत्व उसकी लंबाई से कहीं ज्यादा है

सरकार के तीन साल का जश्न मनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वोत्तर को चुना। इस मौके को यादगार बनाने के लिए मोदी ने असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच ब्रह्मपुत्र नदी पर देश के सबसे बड़े पुल का उद्घाटन किया। इस अति पिछड़े पूर्वोत्तर को उन्होंने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का भी तोहफा दिया। शुक्रवार को असम के सुदूर धेमाजी के गोगा मुख कस्बे में अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर आयोजित जनसभा में लोगों के हुजूम की मौजूदगी दर्शाता है कि यह पुल उनके लिए कितना महत्वपूर्ण है। बेशक यह देश का सबसे लंबा पुल है। पटना के महात्मा गांधी सेतु और समुद्र की उफनती लहरों पर बने मुंबई-वर्ली सी लिंक से भी लंबा है, लेकिन प्रधानमंत्री ने असम में ढोला को सदिया से जोड़ने वाले जिस 9.15 किलोमीटर लंबे पुल का उद्घाटन किया उसका असली महत्व उसकी लंबाई से कहीं ज्यादा है। सिर्फ स्थानीय स्तर पर देखें तो यह ब्रह्मपुत्र नदी के उस पार बसे सदिया कस्बे के लिए काफी महत्वपूर्ण है, जो सीधा सम्पर्क न होने के कारण बाकी असम से अलग-थलग हो जाता था। अब सदिया के लोगों के लिए असम ही नहीं, पूरे देश तक पहुंचना बहुत आसान हो जाएगा। सदिया को सिर्फ भौगोलिक फायदा ही नहीं होगा, इससे उसका पूरा अर्थ-तंत्र भी बदल जाएगा। महासेतु के जरिये सीमा पर देश की रक्षा जरूरतों को भी पूरा किया जा सकता है। इस महासेतु का डिजाइन इस तरह से बनाया गया है कि यह सैन्य टैंकों का भी भार सहन कर सके। यह पुल 60 टन वजनी युद्धक टैंक का वजन उठाने में सक्षम है। चीनी सीमा से हवाई दूरी 100 किलोमीटर से कम है। मोदी ने पूर्वोत्तर के राज्यों को अष्टलक्ष्मी के नाम से नवाजा। उन्होंने कहा कि अष्टलक्ष्मी प्रदेश पंच से जुड़ेगी। ये पंच रथ 21वीं सदी के इंफ्रास्ट्रक्चर होंगे, जिनमें हाइवेज, रेलवेज, वॉटरवेज, एयरवेज और इंफार्मेशनवेज प्रमुख हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों की महत्ता का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इसके विकास से देश का भाग्य बदलेगा। दिल्ली की सरकार इनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलेगी। एक और अच्छी बात यह हुई है कि प्रधानमंत्री ने इस पुल का नामकरण प्रसिद्ध असमी गायक भूपेन हजारिका के नाम पर करके इसे क्षेत्रीय पहचान से जोड़ दिया। भूपेन हजारिका का जन्म 91 साल पहले सदिया में ही हुआ था, यहां से निकलकर वह पूरे देश के संगीत जगत में एक सशक्त आवाज बने। उनकी आवाज में ब्रह्मपुत्र की प्रबल लहरों की खनक सदा मौजूद रही। इस सेतु की मजबूती ही महत्वपूर्ण नहीं है। इसके 118 विशालकाय खंभे भूकंप के बड़े झटकों को भी आसानी से झेल सकते हैं। साथ ही ब्रह्मपुत्र में अकसर आने वाली बाढ़ को भी बर्दाश्त करने की क्षमता रखता है।

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