Thursday, 4 May 2017

दिल्ली की जनता ने भरोसा जताया अब भाजपा नेतृत्व की बारी है

बेशक दिल्ली नगर निगम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने शानदार जीत दर्ज की हो पर जमीनी सच्चाई यह भी है कि वहीं उसे यह भी नहीं नजरअंदाज करना चाहिए कि उसका वोट शेयर घटा है। दरअसल पिछले नगर निगम चुनाव से तुलना करें तो इसमें कमी दर्ज की गई है। वर्ष 2012 में हुए निगम चुनाव में भाजपा को 36.74 फीसद वोट मिले थे। इस बार उसे 36.08 प्रतिशत वोट ही मिले, भाजपा के रणनीतिकार भले ही इस पर सार्वजनिक रूप से बोलने से बच रहे हों लेकिन वास्तव में उसकी जीत गैर भाजपा मतों के आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस में विभाजित होने से हो पाई। नतीजें में सबसे बड़ा सदमा आप को लगा जिसे विधानसभा चुनाव में 54.02 प्रतिशत मत मिले थे और इस चुनाव में मात्र 26.33 प्रतिशत मत मिल पाए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और दिल्ली भाजपा प्रमुख मनोज तिवारी की जिम्मेदारी है कि दिल्ली में नगर निगमों की कार्य प्रणाली और छवि दोनें सुधारें। भाजपा नेता भले ही कोई भी दावा करें लेकिन सच यह है कि पिछले 10 साल के दौरान निगमों में सत्तारूढ़ पार्षदों के काम प्रशंसा लायक तो कतई नहीं रहा। एमसीडी को भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा माना जाता है। बिना पैसे के कोई काम करवाना आसान नहीं। अभी तक का अनुभव तो यही बताता है कि निगम के चुनाव में बिल्डरों की  बड़ी भूमिका रही है। दर्जनों बिल्डर पैसे के दम पर पार्षद बन गए और जो दूसरे नेता चुनकर सत्ता में पहुंचे वो भी बिल्डर बन गए। कुल मिलाकर मकसद रहा पैसा कमाना और अपना व अपने परिवार का विकास करना। यही कारण है कि कुछ अरसा पहले तक निगम में आम आदमी पार्टी की स्थिति सबसे मजबूत और भाजपा को तीसरे नंबर पर माना जा रहा था। पर मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के बड़बोलेपन, हिटलरी स्टाइल व उत्तर प्रदेश के नतीजों ने माहौल को बदल दिया। योगी आदित्यनाथ की यूपी के मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी और उनके कामकाज ने दिल्ली में भाजपा की जीत की पूरी पटकथा लिख दी। मतदाताओं ने चुनाव में सब कुछ भूलकर केवल मोदी और योगी को याद रखा। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि दिल्ली की जनता ने जो विश्वास मोदी, शाह और तिवारी पर जताया है उसे कायम रखना होगा। चाहे ऐसा करने के लिए क्यों न पार्टी नेतृत्व को खुद दिल्ली के मामलों में दखल देना पड़े तो दे। उन्हें दिल्ली नगर निगमों में कोई ऐसा नेता देना होगा जो सही मायनों में जनता का हमदर्द हो और जो सही मायनों में कर्मयोगी हो। ऐसा नेता जो दिल्ली को देश की राजधानी के अनुरूप संवार सके और दिल्ली विधानसभा में भाजपा का सत्ता में आने का रास्ता साफ कर सके।

-अनिल नरेन्द्र

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