Saturday, 24 June 2017

रिटायरमेंट के 8 दिन बाद, 42 दिन से फरार जस्टिस कर्णन गिरफ्तार

42 दिन से फरार कोलकाता हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस सीएन कर्णन को अंतत पश्चिम बंगाल सीआईडी ने मंगलवार को गिरफ्तार कर ही लिया। उन्हें कोयम्बटूर (तमिलनाडु) से छह किलोमीटर दूर स्थित एक रिसोर्ट में पकड़ा गया। वह कुछ दिन पहले ही यहां आए थे। गिरफ्तारी के दौरान उन्होंने पुलिस टीम का विरोध भी किया। अवमानना केस में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें छह माह जेल की सजा सुनाई थी। इसके बाद से ही 62 वर्षीय जस्टिस कर्णन फरार थे। बता दें कि जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के करीब 20 जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। सीबीआई ने इसकी जांच के आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने इसे कोर्ट की अवमानना ठहराते हुए सात जजों की पीठ का गठन किया। शीर्ष अदालत ने दो बार जस्टिस कर्णन को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया लेकिन वह हाजिर नहीं हुए। 10 मार्च को उनकी गिरफ्तारी के आदेश दिए गए। रिटायरमेंट के करीब एक सप्ताह बाद सीआईडी उन्हें पकड़ने में सफल हो सकी। गिरफ्तार कर्णन को चेन्नई से बुधवार को कोलकाता लाया गया और कोलकाता हवाई अड्डे से सीधे प्रेजीडेंसी जेल भेज दिया गया। पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि राज्य सीआईडी के अधिकारियों की एक टीम उन्हें एयर इंडिया की उड़ान से यहां लेकर आई। अधिकारी ने कहा कि उनका चिकित्सकीय परीक्षण हवाई अड्डे पर ही पूरा किया गया और उन्हें सीधे जेल ले जाया गया। प्रेजीडेंसी जेल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कर्णन को जैसे ही जेल के भीतर ले जाया गया उन्होंने सीने में दर्द की शिकायत की और जेल अस्पताल से चिकित्सकों की एक टीम ने उनकी जांच की। उन्होंने कहा कि वे वृद्ध हैं, अस्वस्थ लग रहे हैं और हम कोई भी खतरा मोल नहीं लेना चाहते। उनकी एक ईसीजी भी की गई। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उनकी अंतरिम जमानत और अवमानना के अपराध में छह महीने की सजा का फैसला निलंबित करने की उनकी याचिका पर विचार करने से इंकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस मामले में सात न्यायाधीशों के आदेश से बंधी हुई है और इसके इतर नहीं जा सकती। न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति सजय किशन कौल की अवकाशकालीन पीठ ने कहाöइस मामले की सुनवाई सात न्यायाधीशों की पीठ ने की थी और आदेश पारित किया था। यह आदेश हमारे लिए बाध्यकारी है। हम अवकाश के दौरान इसमें दखल नहीं दे सकते। इस मामले में हम कुछ नहीं कर सकते। जस्टिस कर्णन का यह अभूतपूर्व मामला शायद पहली बार हुआ है जब सुप्रीम कोर्ट ने एक हाई कोर्ट के जज को जेल में डाला है। जस्टिस कर्णन हाई कोर्ट के पहले ऐसे जज हैं जो एक वांछित के तौर पर सेवानिवृत हुए हैं।

-अनिल नरेन्द्र

टीम इंडिया में सिर फुट्टौवल

चैंपियंस ट्राफी का फाइनल जीतने के बाद जहां पाकिस्तानी क्रिकेट टीम का उनके देश में जबरदस्त स्वागत हुआ वहीं भारत की टीम में जबरदस्त फुट्टौवल हो गया है। पहली बार चैंपियंस ट्राफी में खेलने वाले युवा पाक क्रिकेटरों को देश ने सिर पर उठा लिया और रातोंरात करोड़पति बन गए हैं। खिलाड़ियों के लिए कई तरह के इनामों की घोषणा की गई है। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने हर खिलाड़ी को एक-एक करोड़ रुपए देने की घोषणा की। अनुबंधित खिलाड़ियों के लिए दो करोड़ 90 लाख रुपए के बोनस की घोषणा हुई है। पाक बोर्ड भी 10-10 लाख रुपए का बोनस देगा। टीम को ट्राफी जीतने पर 20 करोड़ का पुरस्कार मिला। एक बिल्डर ने हरेक खिलाड़ी को 10-10 लाख रुपए और फ्लैट देने की घोषणा की। वहां तो इनाम बंट रहे हैं यहां टीम इंडिया में घमासान मचा हुआ है। पाकिस्तान के हाथों हार का पहला फालआउट यह हुआ कि मुख्य कोच अनिल पुंबले की विदाई हो गई। अनिल पुंबले ने अपने इस्तीफे का कारण विराट कोहली से मतभेद बताया। वैसे तो कोच और कप्तान के बीच पिछले कई महीनों से मन-मुट्टोवल चल रहा था पर सोच का फर्प उस वक्त सामने ज्यादा आया जब फाइनल मैच में पुंबले चाहते थे कि कप्तान टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करें। लेकिन विराट कोहली ने पहले गेंदबाजी चुनी और पाक ने बड़ा स्कोर खड़ा कर भारत को मुकाबले से बाहर कर दिया। यह सुनते ही कि कोहली ने बॉल करने का फैसला किया है हैरान हो गए। विराट जब ड्रेसिंग रूम में लौटे तो पुंबले ने इस बारे में पूछा, इस पर कप्तान ने बेरुखी से जवाब दिया। इससे भारतीय खेमे में माहौल खराब हो गया और पाकिस्तान से करारी हार टीम के हिस्से आई। कप्तान विराट कोहली और कोच अनिल पुंबले के बीच अनबन की खबरें आ रही थीं। कोई इसके लिए किसी खास खिलाड़ी को लेकर दोनों की राय में अंतर को जिम्मेदार ठहरा रहा है, कोई पुंबले की अनुशासनप्रियता को। बीसीसीआई की तरफ से जिस टीम को दोनों के बीच सुलह कराने भेजा गया था, उसके एक सदस्य का ऑफ द रिकॉर्ड कहना है कि कप्तान किसी भी सूरत में कोच के साथ काम करने को राजी नहीं है और कप्तान को हम हटा नहीं सकते, ऐसे में कोच के पास हट जाने के सिवाय कोई चारा नहीं था। भारतीय क्रिकेट और विवादों का नाता कोई नया नहीं है। यह पहला मौका नहीं है जब यह नजर आया कि टीम इंडिया में कप्तान असली किंग है। 1999 में जब कपिल देव टीम के कोच थे तब भी ऐसा विवाद हुआ था। उस दौरान नवम्बर 1999 से जनवरी 2000 के बीच भारतीय टीम आस्ट्रेलिया के दौरे पर थी। सचिन तेंदुलकर को दूसरी बार टीम की कमान सौंपी गई थी, लेकिन उस आस्ट्रेलिया दौरे के बाद चीजें इतनी तेजी से बदलीं कि कपिल को इस्तीफा देना पड़ा। कोई भी टीम कप्तान, खिलाड़ियों और कोच के आपसी तालमेल से ही आगे बढ़ती है, तालमेल न हो तो समस्याएं आती हैं, टीम का खेल प्रभावित होता है और कई अप्रिय स्थितियां भी बनती हैं। बड़ा सवाल यहां यह है कि क्या कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति एक ऐसी टीम का कोच बनने के लिए तैयार होगा, जिसमें कोच की नियुक्ति से लेकर खिलाड़ियों के चयन और रणनीति बनाने तक सारे फैसले सिर्प कप्तान की मर्जी से लिए जाते हों? भारतीय टीम के बारे में वैसे भी कहा जाता रहा है कि इसमें कोच जब तक ट्रेनर की भूमिका में रहे, तभी तक सब ठीक रहता है। लेकिन क्रिकेट तेजी से बदल रहा है और इसमें कोच का रोल अब कमोबेश हॉकी और फुटबॉल जैसा होने लगा है। कप्तान कोहली को इस घटना के बाद ज्यादा सजग रहना होगा।

Friday, 23 June 2017

आयकर विभाग ने मुश्किल में डाला लालू परिवार को

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख और चारा घोटाले के दोषी लालू प्रसाद यादव के परिवार की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। आयकर विभाग ने बेनामी सम्पत्ति कानून के तहत सख्त कदम उठाते हुए एक हजार करोड़ रुपए की कर चोरी और जमीन सौदों के मामले में लालू की पत्नी, बेटे, बेटियों और दामाद की करोड़ों की बेनामी सम्पत्ति अटैच करने का नोटिस जारी किया है। बेनामी सम्पत्ति कानून के तहत दोषी पाए जाने पर सात साल की कारावास और भारी जुर्माना लगाया जा सकता है। इन्हें यह नोटिस बेनामी लेन-देन (निषेध) कानून की धारा 24(3) के तहत जारी किया है। इस नोटिस के जरिये दिल्ली और पटना स्थित जो बेनामी सम्पत्तियां अटैच की जा रही हैं उनकी कीमत 9.32 करोड़ रुपए है जबकि बाजार मूल्य 170 से 180 करोड़ रुपए है। कागजों में तो ये सम्पत्तियां किसी और के नाम दर्ज हैं जबकि इनके असली मालिक लालू के परिवार के सदस्य बताए जाते हैं। बता दें कि लालू यादव की बेटी मीसा पर एक हजार करोड़ रुपए की बेनामी सौदे के मामले में मीसा की जमीन के लेन-देन व चोरी का आरोप है। प्रवर्तन निदेशालय ने 22 मई को मीसा के सीए राजेश अग्रवाल को गिरफ्तार किया था। आयकर विभाग ने कई बार मीसा को नोटिस जारी कर पेश होने को कहा था पर वह एक बार भी पेश नहीं हुईं। क्या है बेनामी सम्पत्ति? इस सम्पत्ति का असली मालिक कोई और होता है जबकि कागजों में सम्पत्ति किसी दूसरे व्यक्ति के नाम होती है। यह कानून 1988 में बना था, लेकिन इसे पिछले साल नवम्बर से लागू किया गया। बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने लालू परिवार की सम्पत्तियों को लेकर नया रहस्योद्घाटन करते हुए कहा है कि पटना में 18,652 वर्ग फीट में बने काम्प्लैक्स में लालू की पत्नी राबड़ी देवी के 18 फ्लैट हैं जिनकी कीमत 20 करोड़ रुपए से अधिक है। यह काम्प्लैक्स जिस जमीन पर बना है उसे राबड़ी देवी ने लालू के रेलमंत्री रहते लिखाया था। काम्प्लैक्स लालू की मां के नाम पर है। सुशील मोदी ने कहा कि उन्हें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा बेनामी सम्पत्ति को लेकर लालू परिवार पर कार्रवाई का भरोसा नहीं रहा, इसलिए आयकर विभाग समेत सभी जांच एजेंसियों को वे 15 जुलाई तक अब तक के खुलासे से जुड़े प्रमाण सौंपेंगे। उधर बिहार के उपमुख्यमंत्री और लालू के पुत्र तेजस्वी यादव ने कहा कि राजनीतिक बदले के आधार पर ये गलत बातें चलाई जा रही हैं। हमने कुछ भी नहीं छिपाया है। बुलाने पर हम जवाब देने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि राजनीतिक षड्यंत्र के तहत मीडिया में गलत खबरें चलाई जा रही हैं।

-अनिल नरेन्द्र

पाक हमारे हथियारों से हमें ही मार रहा है ः अमेरिका

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का दबाव बढ़ रहा है। अमेरिका के दो शीर्ष सांसदों ने पाकिस्तान पर आतंकवाद को समर्थन करने का आरोप लगाते हुए ट्रंप प्रशासन से उसे मिलने वाली सैन्य मदद में कटौती के साथ उसे हथियारों की बिक्री बंद करने की मांग की है। अमेरिका के दो शीर्ष सांसदों डाना रोहराबाचेर और टेड पो ने शुक्रवार को अमेरिकी संसद में कहा कि हम (अमेरिका) पाकिस्तान को हथियार मुहैया करवा रहे हैं और वह हमारे हथियारों से अमेरिकी नागरिकों की हत्याएं कर रहा है। उधर मुहाजिरों के एक समूह ने ट्रंप प्रशासन और अमेरिकी कांग्रेस से अपील की है कि पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन दिए जाने के मद्देनजर उसे दी जाने वाली सैन्य सहायता एवं बिक्री बंद की जाए। हाल में गठित विश्व मुहाजिर कांग्रेस ने ट्रंप प्रशासन एवं अमेरिकी कांग्रेस को  दिए एक ज्ञापन में कहा कि पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान के कदम स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि वे आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिका के विश्वासपात्र सहयोगी नहीं हैं। ज्ञापन में कहा गया है कि अमेरिकी प्रशासन को धोखा देना और हक्कानी नेटवर्क, तालिबान द्रेटा शुरा एवं अलकायदा जैसे सैन्य संगठनों को खुश करने की आईएसआई की नीति है। ज्ञापन में कहा गया है कि आज पाक आतंकवाद का गढ़ बन चुका है। ऐसे में अमेरिका के पास आतंकियों को मारने के लिए पाकिस्तानी क्षेत्र के भीतर घुसकर एकतरफा सैन्य कार्रवाई करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। इसमें कहा गया कि आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका के नेतृत्व में चल रही लड़ाई को तब तक जीता नहीं जा सकता जब तक क्षेत्र में आतंकवाद को प्रायोजित करने वाली पाकिस्तानी सेना से जुड़े मुख्य मामलों से निपटा न जाए। सांसद रोहराबाचेर ने दो टूक कहा कि हमें स्पष्ट कर देना चाहिए कि हम पाकिस्तान जैसे देशों को हथियार मुहैया नहीं कराने जा रहे हैं क्योंकि इससे हमारे ही लोगों को मारेंगे और हमें पता है कि वे आतंकवाद में शामिल है। हमें बाखूबी मालूम है कि आतंकवाद के मुद्दे पर उन्होंने क्या किया है। पाकिस्तान ने ओसामा बिन लादेन का ठिकाना बताने वाले डाक्टर अफरीदी को जेल में डाल दिया। वहीं सांसद टेड पो ने आशंका जताई कि पाकिस्तान सहायता पाने को लेकर अमेरिका के साथ दोहरा खेल खेल रहा है। पाक को संरक्षण के कारण पूरी दुनिया में आतंक फैल रहा है। खबर है कि ट्रंप प्रशासन पाक पर शिकंजा कसने के लिए कई कदमों पर विचार कर रहा है, इनमें ड्रोन हमलों से लेकर आर्थिक, सैन्य मदद को रोकना शामिल है। अमेरिका को समझना होगा कि पाक उनसे दोहरा खेल खेल रहा है और इसे रोकना उसके हित में ही है।

Thursday, 22 June 2017

अब मधुमेह सिर्फ अमीरों की बीमारी नहीं रही

माना जाता रहा है कि मधुमेह यानि डायबिटीज अमीरों की बीमारी है। लेकिन जानी-मानी मेडिकल जर्नल लैंसेंट में प्रकाशित डायबिटीज एंड्रो क्राइनोलॉजी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में यह रोग अब तेजी से गरीबों में भी फैल रहा है। इस अध्ययन में दावा किया गया है कि गरीब लोगों के तेजी से मधुमेह की चपेट में आना चेताने वाला है क्योकिं ये लोग उस वर्ग से आते हैं, जो गुणवत्तापूर्ण इलाज नहीं करवा पाते और अनाज के लिए जन वितरण प्रणाली के तहत चलने वाली राशन की दुकानों पर निर्भर रहते हैं। अधिकतर राशन की दुकानें चावल और गेहूं का वितरण कर रही हैं। उच्च कार्बोहाइड्रेट वाले ये अनाज देशभर में मधुमेह की एक नई और बेहद चिन्ताजनक लहर पैदा कर रहे हैं। हरित क्रांति और अस्वास्थ्यकर आहार के बीच के संबंध की अभी शुरुआत-भर है। भारत को विश्व में मधुमेह की राजधानी माना  व कहा जाता है। इस बीमारी से लगभग सात करोड़ लोग प्रभावित हैं। लेकिन इससे भी ज्यादा चिन्ता की बात यह है कि अभी तक मधुमेह को अमीरों की बीमारी माना जाता था लेकिन नए शोध-पत्र का कहना है कि भारत में मधुमेह की महामारी स्थानांतरित हो रही है और यह आर्थिक रूप से कमजोर समूहों को प्रभावित कर सकती है। शोधकर्ता का कहना है कि इन नतीजों से भारत जैसे देश में चिन्ता पैदा होनी चाहिए, क्योंकि इलाज का खर्च मरीजों की जेब से जाता था। शोधकर्ता इस बीमारी से बचने के लिए रोकथाम के प्रभावी उपायों की तत्काल जरूरत को रेखांकित करते हैं। मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन की उपाध्यक्ष और इस अध्ययन की प्रमुख लेखिका आरएम अंजना का कहना है कि यह चलन गहरी चिन्ता का विषय है वह कहती हैं कि क्योंकि मधुमेह की महामारी उन लोगों तक फैल रही है, जो इसके प्रबंधन के लिए धन खर्च करने का बहुत कम सामर्थ्य रखते हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च-इंडिया डायबिटीज का अध्ययन भारत में मधुमेह के अध्ययन का राष्ट्रीय तौर पर सबसे बड़ा प्रतिनिधि अध्ययन है। इसमें देश के 15 राज्यों में से 57 हजार लोगों का डेटा है। अध्ययन में शामिल आधे लोग ऐसे थे, जिन्हें परीक्षण से पहले तक यह पता नहीं था कि उन्हें मधुमेह है। भारतीयों की बदलती जीवनशैली उन्हें पारंपरिक स्वास्थ्यप्रद भोजन से दूर लेकर जा रही है। जंक फूड की आसान उपलब्धतता, उनका किफायती होना भारत की सबसे बड़ी समस्या है। सरकार को इस बढ़ती समस्या पर विशेष ध्यान देना होगा। अब तो छोटे-छोटे बच्चे भी इसके शिकार हो रहे हैं। जंक फूड से परहेज, जनता में मधुमेह की जागृति करना, मधुमेह की दवाएं सस्ती करना यह कुछ कदम उठाने की जरूरत है।

-अनिल नरेन्द्र

2019 जीतने के लिए मोदी को बिहार में मिले यूपी के रामनाथ

लाल कृष्ण आडवाणी, डाक्टर मुरली मनोहर जोशी, सुमित्रा महाजन, सुषमा स्वराज, द्रोपदी मुर्मू, . श्रीधरन... और ऐसे कई नाम राष्ट्रपति बनने के लिए चर्चा में थे। शत्रुघ्न सिन्हा ने तो खुलकर आडवाणी का नाम लेकर अगले राष्ट्रपति की उम्मीद भी जता दी थी। फिर अटकलें इस बात पर भी लगाई जा रही थीं कि शायद गुरुदक्षिणा के नाम पर मोदी जी आडवाणी जी को देश का प्रथम नागरिक बना देंगे। लेकिन जो नाम चर्चा में रहे, मोदी उस पर कभी मुहर नहीं लगाते। नवाज शरीफ को शपथ पर बुलाकर, स्मृति ईरानी का विभाग बदलकर, गुजरात में आनंदीबेन और फिर रूपाणी को मुख्यमंत्री बनाकर भी वे ऐसे ही चौंका चुके हैं। हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के सीएम के नाम का ऐलान भी सारे कयासों को झुठलाते हुए ही किए थे और अब रामनाथ कोविंद। लेकिन कोविंद ही क्यों? क्या मायने हैं इसके? मोदी-शाह की सोच क्या है? भारतीय जनता पार्टी ने बिहार के मौजूदा राज्यपाल रामनाथ कोविंद को एनडीए का राष्ट्रपति घोषित कर आखिर सारी अटकलों पर न सिर्फ विराम ही लगा दिया, बल्कि विपक्ष को शायद अपनी रणनीति फिर से बनाने के लिए बाध्य कर दिया है। सच तो यही है कि जिस नाम की अब तक चर्चा तक न थी, उस नाम को सामने लाकर भाजपा नेतृत्व ने अपने-परायों सभी को चारों खाने चित्त कर दिया है। पहली बार प्रधानमंत्री के साथ-साथ राष्ट्रपति भी उत्तर प्रदेश से होगा। रामनाथ कोविंद 15 साल बाद दूसरे दलित राष्ट्रपति होंगे। रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने के कई सियासी मायने भी हैं। भाजपा ने मिशन 2019 के लिए बड़ा कार्ड खेला है। कोविंद जीते तो यह पहला मौका होगा जब दोनों पीएम और राष्ट्रपति एक ही राज्य से होंगे। कोविंद के चुने जाने पर वे देश के दूसरे और उत्तर भारत से आने वाले पहले दलित राष्ट्रपति होंगे। कोविंद को राष्ट्रपति बनाकर भाजपा उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राजनीतिक-सामाजिक समीकरणों वाले राज्यों के दलितों में अपनी पैठ मजबूत करने की कोशिश करेगी। भाजपा का कभी कोई राष्ट्रपति नहीं रहा। कलाम को अटल जी ने राष्ट्रपति बनाया था, लेकिन उनका नाम मुलायम सिंह यादव ने बढ़ाया था, भाजपा ने सिर्फ समर्थन दिया था। फिर कलाम गैर-राजनीतिक थे। अब पहली बार भाजपा को यह मौका मिला है और वो इसे चूकना नहीं चाहती। कोविंद संघ और भाजपा के हैं। बावजूद उनकी छवि कट्टरपंथी की नहीं है, यही उनके पक्ष में भी गया। जिस तरह से दलितों के मुद्दे पर विपक्ष एकजुट हो रहा था, मोदी ने उसका तोड़ निकाल लिया है। हां अब बैकफुट पर आया विपक्ष भी किसी दलित को अपना उम्मीदवार बनाने की सोच रहा है। पर यह देश की विडंबना ही कही जाएगी कि अब देश के सर्वोच्च पद पर जाति के आधार पर फैसले होंगे। राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक होता है। उसकी अंतर्राष्ट्रीय विजन, छवि, पहचान जरूरी है। पता नहीं कि श्री कोविंद इन मापदंडों पर कितने खरे उतरते हैं? रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा के साथ विपक्षी गुणा-गणित भले ही नए सिरे से शुरू करें लेकिन कटु सत्य तो यह है कि इस अप्रत्याशित चेहरे को सामने लाकर भाजपा ने विपक्ष के समीकरण बिगाड़ दिए हैं। भाजपा के वोट और समर्थन के समीकरण की मौजूदा गणित में बड़ा हेरफेर न हुआ तो तय है कि इसके बाद विपक्ष की लड़ाई शायद औपचारिक रह जाएगी। कोविंद दलितों में कोली समुदाय से आते हैं जो यूपी में जाटव और पासी के बाद सबसे बड़ा दलित समुदाय है। बीते लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में मायावती के दलित वोट में सेंध लगाकर बड़ी सफलता हासिल की है और अब इसमें और बढ़ोत्तरी करने की कोशिश करेगी। भाजपा की रणनीति में दलित राष्ट्रपति की योजना पहले से ही थी, इसलिए मध्यप्रदेश से आने वाले थावरचन्द गहलोत के नाम की चर्चा थी। राजनीतिक संदेश के लिए मध्यप्रदेश से ज्यादा बेहतर उत्तर प्रदेश और बिहार होता है इसलिए भी कोविंद का पलड़ा भारी पड़ा। वैसे भी भाजपा में ज्यादा बोलने वाले से ज्यादा सुनने वाले को पसंद किया जाता है। यह भी रामनाथ कोविंद के पक्ष में रहा है।

Wednesday, 21 June 2017

पनामा पेपर्स का फालआउट भारत और पाक दोनों में नजर आया

पनामा पेपर्स लीक मामले में दोनों देशोंöभारत और पाकिस्तान में कार्रवाई शुरू हो चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारों के खोजी संघ ने अप्रैल 2016 में कर चोरी में मददगार पनामा की कंपनी फोसेंका के सवा करोड़ दस्तावेज लीक किए थे। इसमें कथित तौर पर कर चोरी में लिप्त एक लाख 20 हजार से ज्यादा विदेशी कंपनियों का खुलासा किया गया था। भारत में इन लीक दस्तावेजों पर प्रवर्तन निदेशालय ने कार्रवाई आरंभ करते हुए गुरुवार को दिल्ली के मशहूर ज्वेलर्स मेहरा संस के विभिन्न खातों में जमा सात करोड़ रुपए जब्त कर लिए। विदेश में कंपनियां खोलकर काला धन छिपाने में मदद करने वाली पानामाई कंपनी मोसैंक फोसेंका के करोड़ों दस्तावेज लीक मामले में यह कार्रवाई हुई। संभवत विदेश में गैर-कानूनी तरीके से सम्पत्ति बनाने से जुड़े फेमा कानून की धारा 37ए के तहत ईडी ने यह पहली कार्रवाई की है। ईडी का कहना है कि आरोपियों का करीब 10.54 करोड़ रुपए अभी भी देश के बाहर जमा हैं। अश्विनी कुमार मेहरा, दीपक मेहरा, शालिनी मेहरा और नवीन मेहरा के विभिन्न बैंक खातों की यह रकम जब्त की गई है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 1999 से मेहरा परिवार ने बहामास और ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स में सात कंपनियां पंजीकृत कराईं। ये जगह टैक्स चोरी कर काला धन छिपाने के लिए बदनाम है। पनामा पेपर्स लीक की शुरुआती जांच में नाम सामने आने के बाद मेहरा परिवार ने अपनी प्रतिक्रिया दी थी। अश्विनी मेहरा के बेटे दीपक मेहरा ने माना था कि उनके परिवारी स्टोन बे और मैक्सहिल नाम से विदेश में दो कंपनियां हैं। उधर पनामा पेपर लीक्स मामले में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ लंदन में अवैध सम्पत्ति के मामले में गुरुवार को संयुक्त जांच दल (जेआईटी) के सामने पेश हुए। दो घंटे की पूछताछ के बाद नवाज शरीफ आक्रामक तेवर में बाहर आए और कहा कि विरोधियों को भी जवाब देना होगा। शरीफ ने विपक्षी नेताओं को चेतावनी दी कि अगले साल बड़ी जेआईटी बनेगी और भ्रष्ट नेता जांच के शिकंजे में होंगे। पाक पीएम ने कहा कि उन्होंने परिवार की सम्पत्ति से जुड़े सारे दस्तावेज जांच दल को सौंप दिए हैं और वह हर तरह की जांच-पड़ताल और सुनवाई के लिए तैयार हैं। शरीफ ने कहाöमेरे विरोधियों ने मेरे खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। लेकिन पहले और न अब इनमें से एक भी आरोप साबित किया जा सका है। कुछ दिनों में जेआईटी की रिपोर्ट सामने आएगी और कोर्ट अपना फैसला सुनाएगी। शरीफ ने सफाई दी कि उन पर लगे आरोपों का उनके प्रधानमंत्री के मौजूद कार्यालय से कोई लेना-देना नहीं है और यह भ्रष्टाचार का मामला नहीं है। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाई एवं पंजाब के मुख्यमंत्री शाहबाज शरीफ भी जेआईटी के समक्ष पेश हुए। इस जेआईटी को पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्त किया है। नवाज पदभार संभालने के दौरान ऐसे पैनल के समक्ष पेश होने वाले पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री हैं। पनामा पेपर्स में कई और भारतीय दिग्गजों का नाम भी है। पनामा पेपर्स में 500 भारतीय हस्तियों के नामों का खुलासा हुआ, जिन्होंने टैक्स चोरी, काला धन सफेद करने को टैक्स हैवन माने वाले देशों में धन का निवेश किया। इस सूची में कई उद्योगपतियों, फिल्मी सितारों और खिलाड़ियों का भी नाम आया। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, लखनऊ, पंचकुला, देहरादून, वडोदरा, मंदसौर के व्यापारियों के नाम भी दस्तावेजों में हैं। पनामा पेपर्स में भारतीयों से जुड़े करीब 36 हजार दस्तावेजों को खंगालने के क्रम में आठ माह तक की गई पड़ताल में 234 भारतीयों के पासपोर्ट की जांच की गई। 300 लोगों के पतों की भी तहकीकात की गई। पनामा पेपर्स लीक का फालआउट अब दोनों हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में दिखने को मिलने लगा है। देखें आगे किस-किसका पर्दाफाश होता है।

-अनिल नरेन्द्र

हमें पाक से शर्मनाक हार से उभरना होगा, दूसरे खेलों पर ध्यान दें

गत रविवार को अंतर्राष्ट्रीय खेलों में तीन इवेंट हुए। पर क्रिकेट का भारत में इतना जुनून है कि लंदन में चैंपियंस ट्राफी के फाइनल में भारत-पाक से क्या हारा कि सारे देश में मातम छा गया। लोगों को टीम इंडिया की इस शर्मनाक हार का इतना दुख था कि वह अन्य खेलों में भारतीय खिलाड़ियों की सफलता को भूल गए। रविवार को लंदन में हॉकी और क्रिकेट मैच हुए। जितनी बड़ी जीत हमें हॉकी में मिली, उतनी ही बड़ी हार क्रिकेट में। चैंपियंस ट्राफी में पाकिस्तान से हार इसलिए भी ज्यादा बुरी लगी क्योंकि हम बहुत खराब खेले और इस एकतरफा मुकाबले में पाकिस्तान ने भारत को खेल के हर क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर रौंद डाला। चैंपियंस ट्राफी के फाइनल में पाक के सामने हमें 39 साल की सबसे बड़ी हार मिली, 180 रन से। दोनों देश 1978 से आपस में वन डे खेल रहे हैं। पाक ने भारत के सामने 339 रन का लक्ष्य रखा था। पर पूरी टीम 50 ओवर भी नहीं खेल सकी और 30 ओवर में 158 रन बनाकर आउट हो गई। उधर हॉकी वर्ल्ड लीग में भारत ने पाक को 7-1 से रौंद दिया। यह 61 साल की सबसे बड़ी जीत है। पाक के खिलाफ इस मुकाबले में कप्तान मनप्रीत सिंह की अगुवाई में भारतीय हॉकी टीम और सपोर्ट स्टाफ ने बांहों पर काली पट्टी बांधकर हाल में भारतीय सेना पर हुए हमलों का भी विरोध जताया। इसके साथ ही खिलाड़ियों ने शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। हॉकी टीम हमेशा ही भारतीय सैनिकों के समर्थन में खड़ी रही है। उधर इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में भारतीय शटलर किदाम्बी श्रीकांत ने इतिहास रचते हुए इंडोनेशिया ओपन सुपर सीरीज का खिताब जीत लिया। यह टाइटल जीतने वाले वह पहले भारतीय पुरुष बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। वह महज 37 मिनट में वर्ल्ड चैंपियन बन गए। अगर हम रविवार को पाक-भारत क्रिकेट की बात करें तो पाकिस्तान के कप्तान ने सही कहा कि उनके पास कुछ खोने को नहीं था। जीत के बाद पाक कप्तान सरफराज अहमद ने अपने गेंदबाजों को जीत का श्रेय देते हुए कहा कि उनकी टीम के पास खोने को कुछ नहीं था, लिहाजा वे खुलकर खेले। सरफराज ने कहाöभारत से पहला मैच हारने के बाद मैंने टीम से कहा कि टूर्नामेंट अभी खत्म नहीं हुआ है। हम उस हार से उबर कर अच्छा खेले और खिताब जीता। भारतीय कप्तान विराट कोहली ने पाकिस्तान टीम के जुनून और जज्बे को सलाम किया, लेकिन उन्होंने टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी के फैसले का बचाव किया और कहा कि यह एकदम सही था। हार पर उन्हें इसके लिए कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी। कोहली ने माना कि उनकी टीम ने फाइनल में छोटी-छोटी गलतियां कीं जो कि आखिर में उन्हें भारी पड़ी। अगर हम बात करें इस मैच में भारतीय बल्लेबाजी की तो इससे खराब प्रदर्शन पहले कभी नहीं देखा था। बड़े लक्ष्य के सामने भारतीय बल्लेबाजों ने रिकवर खेलने के बजाय शुरुआत में ही पाक के सबसे खतरनाक गेंदबाज मोहम्मद आमिर के सामने अपने बल्ले खोल दिए। तीसरी ही गेंद पर रोहित शर्मा जो पिछले मैच में शतक बनाकर ही मैच में उतरे थे बिना रन बनाए एलबीडब्ल्यू हो गए। तीसरे ओवर की तीसरी गेंद पर स्लिप में अजहर अली ने विराट कोहली का कैच छोड़ा पर यह तब भी संभले नहीं। बड़े ही गैर-जिम्मेदाराना तरीके से अगली ही गेंद पर फ्लिक करने के चक्कर में प्वाइंट पर कैच दे बैठे। कम से कम कप्तान जिन पर रन चेस का सारा दारोमदार था, को थोड़ी तो जिम्मेदारी से खेलना चाहिए था और इस तरीके से अपना विकेट थ्रो नहीं करना चाहिए था। इसके बाद आमिर की खुशी का ठिकाना नहीं था। भारत ने पांच रन के कुल योग पर ही अपने दो बेहतरीन बल्लेबाज गंवा दिए। मोहम्मद आमिर, हसन की बेहतरीन गेंदबाजी ने भारत की बल्लेबाजी की कमर तोड़ दी। अब बात करते हैं भारत की गेंदबाजी की। तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह की नो बॉल फेंकने की आदत एक बार फिर टीम इंडिया पर भारी पड़ी। पाकिस्तान की पारी के दौरान चौथे ओवर की पहली ही गेंद में बुमराह ने सलामी बल्लेबाज फखर जमां को विकेट के पीछे धोनी के हाथों कैच आउट करा दिया। फखर बाउंड्री लाइन के पास भी पहुंच गए, लेकिन अम्पायर ने रीप्ले देखा तो उसमें बुमराह का पैर क्रीज के बाहर था। इतने महत्वपूर्ण मैच में बुमराह ने नो बॉल करके केवल फखर को वापसी का मौका नहीं दिया बल्कि मैच गंवा दिया। फखर ने इसका फायदा उठाते हुए कैरियर का पहला वन डे शतक जड़ा। कुल मिलाकर भारतीय गेंदबाजों का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। अश्विन ने अपने 10 ओवरों में 70 रन दिए जबकि रविन्द्र जडेजा ने आठ ओवरों में 67 रन दिए। क्या रविन्द्र अश्विन का चयन गलत था? स्पिनरों का रिकार्ड पाक के खिलाफ अच्छा नहीं रहा। ऐसे में अश्विन को अंतिम एकादश में जगह देने का फैसला बेहद गलत साबित हुआ। उनके स्थान पर तेज गेंदबाज उमेश यादव या शमी को मौका दिया जाता तो शायद बेहतर रहता। खेल में हार-जीत तो चलती रहती है। हमें यह संतोष करना होगा कि पाकिस्तान हर क्षेत्र में बेहतर खेला। आप हर समय अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकते। पैसे और शोहरत का गरूर भी टूटना जरूरी था। भारत के खेलप्रेमियों को भारत के अन्य खेलोंöहॉकी, कबड्डी, फुटबॉल, तीरंदाजी, बॉक्सिंग इत्यादि पर ज्यादा ध्यान देना होगा। बैडमिंटन में हम बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। क्रिकेट को छोड़िए हार-जीत तो एक सिलसिला है। पाकिस्तान को इस शानदार जीत पर बधाई।

Tuesday, 20 June 2017

15 मिनट में ही 24 मंजिला बिल्डिंग जलकर भस्म हो गई

आग जंगल में लगे या मैदान में, झोपड़ी में लगे या राजमहल में, उसका काम है भस्म करना। उसके सामने इंसान, जानवर, लकड़ी, पत्थर सब बराबर है। दुनिया के विकसित देशों में शुमार ग्रेट ब्रिटेन की राजधानी लंदन में मंगलवार की रात आग ने वही किया जिसके लिए वह जानी जाती है। देखते ही देखते 24 मंजिला ग्रेन फेल टॉवर धू-धू कर जलने लगा जिसमें कइयों की मौत हो गई और चार दर्जन से ज्यादा लोग अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं। लंदन के समय के हिसाब से आग रात डेढ़ बजे तब लगी जब लोग सो रहे थे। बुरी तरह जल चुकी यह इमारत कभी भी धराशायी हो सकती है। घटनास्थल के बाहर प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि आग लगने की वजह एक फ्लैट में फ्रिज में होने वाला धमाका था, लेकिन अग्निशमन विभाग ने कहाöअभी ऐसा कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है। लंदन फायर ब्रिगेड के आयुक्त डेन कॉटन ने कहाö29 साल के कार्यकाल में इतने बड़े पैमाने पर मैंने ऐसा कुछ भी होते नहीं देखा है। दीवारों को बारिश और नमी से बचाने के लिए इस 24 मंजिला इमारत की बाहरी दीवारों पर एक रेन क्रीन शीट लगाई गई थी। माना जा रहा है कि प्लास्टिक और लकड़ी की बनी इस शीट के कारण ही आग तेजी से फैलती गई और चन्द मिनटों में ही पूरी इमारत आग की लपटों में घिर गई। ग्रेन फेल बिल्डिंग में अधिकांश लोग मुस्लिम समुदाय के हैं और रमजान के कारण कई लोग सहरी के लिए सुबह जल्दी उठ गए थे। नौवीं मंजिल में रहने वाले यदीद अब्बास को गैस की गंध आई और पूरा परिवार वहां से निकल गया। समीरा इमरानी नामक महिला ने बतायाöमैंने नौवीं मंजिल की बालकनी पर एक महिला को देखा। उसके हाथ में एक बच्ची थी। वो मदद की गुहार लगा रही थी। जब आग से बचने की कोई उम्मीद नहीं बची तो उसने कम्बल में लपेटकर बच्ची को नीचे फेंक दिया। वह चिल्ला रही थी कि मेरी बच्ची को बचा लो। वहां मौजूद दमकल कर्मी ने तेजी से दौड़कर बच्ची को बचा लिया। लोग खिड़कियों से टार्च लाइट फेंककर अपनी पोजीशन बता रहे थे। चारों ओर इमारत के टुकड़े गिर रहे थे। इमारत में बहुत सारे लोग थे पर कम ही बाहर निकल पाए। यह सवाल जरूर एक बार फिर उछलकर सामने आता है कि आखिर अभी इमारतें कितनी सुरक्षित हैं? अगर इतने विकसित देश और शहर में सुरक्षा मानकों में ऐसी चूक रह सकती है तो अपेक्षा अविकसित और पिछड़े मुल्कों की हालत क्या होगी? कई साल से आग से सुरक्षा उपायों की कमी की शिकायतें इस 47 साल पुराने ग्रेन फेल टावर की हो रही थी। लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। आग की जानकारी भी लोगों के चिल्लाने के कारण मिली। ग्रेन फेल टावर की आग सिर्फ किसी चूक का नतीजा है या विकास के सिद्धांत को अपनाने में ही कहीं कुछ गड़बड़ी हुई है?

-अनिल नरेन्द्र

चैन तो तब मिलेगा जब दाऊद इब्राहिम व साथियों को सजा मिलेगी?

24 साल गुजर गए पर उस बुरे दिन को याद करके आज भी लोग सिहर उठते हैं जब 12 मार्च 1993 को देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में एक के बाद एक 12 बम विस्फोट अलग-अलग जगहों पर हुए थे। इस आतंकी हमले में न सिर्फ 257 लोगों की जानें गई थीं, बल्कि 713 लोग घायल भी हुए थे। शुक्रवार को मुंबई की टाडा अदालत ने अबू सलेम और मोहम्मद दोसा सहित छह आरोपियों को दोषी करार दिया। यह आरोपियों का दूसरा बैच है, जिस पर इस मामले में फैसला सुनाया गया है। इससे पहले 123 आरोपियों का मुख्य मुकदमा 2006 में पूरा हो चुका है जिसमें 100 आरोपियों को दोषी करार दिया गया था। अब इस मामले में कोई आरोपी हिरासत में नहीं है, इसलिए तात्कालिक तौर पर माना जा सकता है कि यह फैसला इस मामले में अंतिम फैसला है। लेकिन दाऊद इब्राहिम, अनीस इब्राहिम, मोहम्मद दोसा और टाइगर मेमन सहित 33 आरोपी आज भी फरार हैं। 24 साल बाद मुंबई में हुए बम धमाकों में आया यह फैसला उन लोगों को रास नहीं आ रहा है जो इसमें अपना सब कुछ गंवा बैठे। उनका मानना है कि जब तक अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम को सजा नहीं मिल जाती ऐसे फैसले पर खुशी मनाना गलत है। जब तक ये कानून के फंदे से बाहर हैं तब तक यह नहीं माना जा सकता कि यह मामला अपनी तार्किक परिणति तक पहुंच गया है। जैसा कि विशेष टाडा जज ने कहा है कि इस हमले के दोषी अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस का बदला लेना चाहते थे। मगर हैरानी की बात यह है कि खुफिया तंत्र तीन महीने से चल रही साजिश और हमले की तैयारी का पता तक नहीं लगा सका था। इस फैसले से पता चलता है कि जिन छह लोगों को दोषी ठहराया गया है। हथियारों और बारूदों की खेप मुंबई तक लाने से लेकर विभिन्न जगहों पर पहुंचाने की उनकी जिम्मेदारी किस तरह से तय थी। सच तो यह है कि हमले के दो-तीन दिन बाद जब पुलिस अधिकारी शक के आधार पर टाइगर मेमन के घर पहुंचे तो पता चला कि उसका सारा परिवार पहले ही देश छोड़ चुका था। हालत यह है कि इतने वर्ष बाद भी मुख्य अभियुक्त दाऊद इब्राहिम, अनीस इब्राहिम, टाइगर मेमन और मोहम्मद दोसा सहित 27 आरोपी अब भी फरार हैं। अबू सलेम को पुर्तगाल से और मुस्तफा दोसा को संयुक्त अरब अमीरात से प्रत्यर्पित किया गया था, उसी तरह से फांसी पर लटकाए जा चुके याकूब मेमन को नेपाल के रास्ते भारत लाया गया था। मुंबई में 1993 हुए ये सीरियल बम विस्फोट किसी आतंकवादी समूह या किसी आतंकवादी संगठन की करतूत नहीं थी। जिस जगह में विस्फोट किए गए वहां इतनी जल्दी इतनी बड़ी वारदात के लिए आतंकी नेटवर्क तैयार करना उस समय पाकिस्तान के लिए भी आसान नहीं था इसलिए उसने तस्करी, फिरौती और तमाम तरह के अपराध करने वाले मुंबई के अंडरवर्ल्ड के नेटवर्क का सहारा लिया। हालांकि यह पहला मौका नहीं जब पाकिस्तान ने अपराधियों का इस्तेमाल किया हो लेकिन इन सीरियल विस्फोटों और उसके बाद की सक्रियता ने पाक का सच पूरी दुनिया के सामने खोलकर रख दिया था। करीब आठ साल बाद 2001 में अमेरिका में हुए 9/11 हमले की तुलना 1993 के मुंबई हमले से की जा सकती है। अमेरिका उस हमले से कुछ वैसे ही विचलित हुआ जैसा तब भारत हुआ था। मगर दोनों देशों की प्रतिक्रिया में अंतर साफ देखा जा सकता है। अमेरिका ने तब तक दम नहीं लिया जब तक उसने हमले के मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन को एबटाबाद जाकर मार नहीं गिराया। इसलिए मुंबई के सीरियल बम कांड का पूरा न्याय तभी हो सकेगा, जब हम न सिर्फ दाऊद इब्राहिम, टाइगर मेमन व उनके फरार साथियों को उनके कसूर की सजा नहीं देते बल्कि आईएसआई में बैठे इस वारदात के असली षड्यंत्रकारियों को सजा नहीं दे लेते। तब तक यह नहीं होगा आतंकवाद का खतरा भारत पर हमेशा मंडराता रहेगा। सरकारों के दावे आते रहे पर इन 24 सालों में उस नेटवर्क को भी नेस्तनाबूद नहीं किया जा सका जो आज भी दुबई और कराची से सक्रिय है। हमारे राष्ट्रीय चरित्र पर इससे दुखद टिप्पणी और क्या हो सकती है?

Sunday, 18 June 2017

दिल्ली में बढ़ता प्रदूषण ः वाहनों की संख्या एक करोड़ के पार

दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या गहराती ही जा रही है। हर स्तर पर लापरवाही बरती जा रही है। अब जबकि पानी सिर से ऊपर जा चुका है तो हर स्तर पर हायतौबा वाली स्थिति बनी हुई है। राजधानी के विभिन्न इलाकों में वाहनों से निकलने वाले प्रदूषित धुएं की जांच के लिए बनाए गए केंद्रों में से 178 केंद्र ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। सोमवार को दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने राजधानी की आबोहवा को प्रदूषण-मुक्त बनाने के लिए परिवहन विभाग द्वारा इन 178 केंद्रों को नोटिस जारी करना, 14 का लाइसेंस निलंबित करना और पांच की मान्यता रद्द करना सराहनीय है। जब तक सख्त रवैया अपनाया नहीं जाएगा, सुधार मुश्किल है। इसमें संदेह नहीं कि प्रदूषण जांच केंद्र धांधली का अड्डा बन चुके हैं। ढंग से जांच किए बगैर प्रमाण पत्र जारी कर दिए जाते हैं। जांच केंद्रों की लापरवाही का ही नतीजा है कि प्रदूषण जांच प्रमाण पत्र होने के बावजूद दिल्ली में जहां-तहां वाहन धुआं छोड़ते दिखाई देते हैं। चौंकाने वाला तथ्य यह भी है कि तमाम तरह से प्रदूषण रोकने के प्रयासों पर नए वाहनों की सड़कों पर प्रतिदिन बढ़ने वाली वाहनों की संख्या ने सब प्रयास चौपट कर दिए गए हैं। तमाम दावों और सरकार की कई कोशिशों के बावजूद राजधानी में निजी वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है। अब यह संख्या एक करोड़ के पार पहुंच गई है यानि राजधानी में अकेले एक करोड़ से ज्यादा निजी वाहन हो गए हैं। इसके चलते प्रदूषण तो है ही पर सड़कों पर भयंकर जाम भी लग रहे हैं। परिवहन विभाग के आंकड़ों को मानें तो दिल्ली में वर्तमान में 1.05 करोड़ से ज्यादा वाहन रजिस्टर्ड हैं। राजधानी में 31.72 लाख कारें और 66.48 लाख दोपहिये वाहन रजिस्ट्रर्ड हैं, जो प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण माने जाते हैं। पर्यावरण से संबंधित तमाम आईं रिपोर्टों में भी बढ़ते वाहनों पर चिन्ता जताई जा चुकी है। एक ओर सार्वजनिक प्रणाली की बेहतरी की बात की जा रही है तो दूसरी ओर औद्योगिक क्षेत्रों और ईकाइयों पर निगरानी करने की, थर्मल पॉवर प्लांट बंद करने की योजना बन रही है। ई-वाहनों को बढ़ावा देने की भी बात हो रही है। निस्संदेह यह सभी प्रयास स्वागतयोग्य हैं। लेकिन समझना यह भी होगा कि प्रदूषण की रोकथाम के लिए जब तक सामूहिक भागीदारी नहीं होगी तब तक तमाम उपाय कागजी ही साबित होते रहेंगे। यह भागीदारी भी एकदम धरातल से लेकर उच्च स्तर तक होना अनिवार्य है। सभी विभागों को आपस में तालमेल बैठाकर चलना होगा। केंद्र और राज्य सरकार को कम से कम इस ज्वलंत समस्या पर मिल-बैठकर दूरगामी नीति तय करनी होगी। इन वाहनों की बढ़ती संख्या को कैसे कंट्रोल किया जाए इस पर गंभीरता से विचार होना चाहिए। एक-दूसरे पर आरोप लगाने से समस्या हल नहीं होगी।

-अनिल नरेन्द्र

विराट बनाम सरफराज बनाम धोनी ः एडवांटेज इंडिया

वही हुआ जिसका पाकिस्तान को डर था। चैंपियन ट्राफी के पहले मैच में भारत से बुरी तरह पिटने के बाद पाकिस्तान को फाइनल में अब भारत से भिड़ना होगा। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ वर्षा की मेहरबानी और श्रीलंका द्वारा कैच टपकाए जाने की बदौलत जीत दर्ज करने वाला पाकिस्तान फाइनल में तो पहुंच गया लेकिन अब चैंपियन ट्राफी में पहली बार ऐसा होगा जब भारत और पाकिस्तान लीग मैच के अलावा फाइनल में भिड़ेंगे। भारत ने सातवीं बार आईसीसी टूर्नामेंट के फाइनल में  चुनौती रखी है। दोनों टीमें हर हालत में फाइनल जीतना चाहेंगी। रविवार को हर शॉट, हर गेंद के साथ दर्शकों की धड़कने बढ़ेंगी। ऐसा सिर्फ भारत-पाकिस्तान के मैच में ही हो सकता है। पाकिस्तान को इतिहास रचने का मौका है। चैंपियन ट्राफी में यूं तो पाकिस्तान अपने दमखम के साथ कई बार सेमीफाइनल तक पहुंचा है। लेकिन यहां से आगे इसे कभी मौका नहीं मिला। पहली बार पाकिस्तान 2017 के इस टूर्नामेंट में फाइनल में पहुंचा है। इसलिए अबकी बार पाकिस्तान के पास भी इतिहास रचने का मौका है। आंकड़ों की बात करें तो भारत का पलड़ा भारी दिख रहा है। इतिहास गवाह है कि आईसीसी के बड़े टूर्नामेंटों में भारत और पाकिस्तान के बीच मुकाबलों में भारत का ही पलड़ा भारी रहा है। दोनों के बीच मुकाबले को लेकर रोचकता बनी हुई है और माना जा रहा है कि दबाव झेल जाने वाली टीम मैच पर कब्जा करने में सफल रहेगी यानि पिछले रिकार्ड को भूलकर उत्साह, संयम, धैर्य, दूरदर्शिता के साथ जो टीम मैदान में उतरेगी, उसे जीत का सेहरा पहनने से कोई नहीं रोक सकता। बांग्लादेश पर एजबोस्टन में खेले गए दूसरे सेमीफाइनल मैच में नौ विकेट की दूसरी बड़ी जीत दर्ज कर विराट के रणबांकुरों ने पाक टीम को चेता दिया है कि खिताब पर कब्जा हमारा ही रहेगा। फाइनल द ओवल, लंदन में खेला जाएगा। विराट की ब्रिगेड जहां तीसरे और लगातार दूसरे खिताब के लिए जान लड़ा देगी वहीं पाकिस्तान की टीम को तलाश है पहले खिताब की। कभी दोस्त रहे भारत-पाक अब क्रिकेट के मैदान में दुश्मन हो गए हैं। हालत यह है कि उसके प्रशंसक और मीडिया भारत को दुश्मन की तरह मानने लगे हैं। पाक टीम के कप्तान सरफराज का मुकाबला न केवल विराट कोहली से होगा बल्कि महेंद्र सिंह धोनी से भी होगा। याद रहे कि भारत और बांग्लादेश के सेमीफाइनल मैच में 25 ओवर में दो विकेट गंवाकर 150 के करीब पहुंच चुका बांग्लादेश इस मुकाबले में मजबूत स्थिति में जाता दिख रहा था। तमीम इकबाल और मुशफिकुर रहीम की जोड़ी ने क्रीज पर मजबूती से अपने पांव जमा लिए थे और भारत के रेग्यूलर बॉलर अब उनके सामने फीके दिखने लगे थे। इसके बाद टीम इंडिया ने केदार यादव के हाथ में बॉल देकर यहां मास्टर स्ट्रोक खेला। कप्तान विराट कोहली और जाधव इसका श्रेय पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को दे रहे हैं। मैच के बाद विराट कोहली ने टीम इंडिया की इस चाल के बारे में बताया तो उन्होंने सारा श्रेय धोनी को दिया। कोहली ने कहाöजब हमने केदार को बॉल दी थी तो हम विकेट की नहीं सोच रहे थे, हमारा मकसद मजबूत हो चुकी इस जोड़ी को थोड़ा परेशान करने का था। लेकिन जाधव ने इन दोनों बल्लेबाजों (तमीम और मुशफिकुर) के विकेट चटका कर पूरा खेल ही बदल दिया। इसका सारा श्रेय धोनी को जाता है क्योंकि इससे पहले मैंने एमएस धोनी से पूछा था। तब हमने सोचा था कि खेल के इस क्षण में यह अच्छा विकल्प हो सकता है। बाकी तो इतिहास है। पाकिस्तान को अपने पेस अटैक पर पूरा भरोसा है। पाक के तेज बॉलर बाल भी संतुलित कर रहे हैं। वहीं भारत की टीम वेल बैंलस्ड है। हमारे बल्लेबाज फार्म में हैं। टॉस इस लिहाज से महत्वपूर्ण होगा कि जो टीम जीतेगी वह पहले बॉलिंग करना चाहेगी। हालांकि लंदन में बारिश उतनी नहीं होती पर फिर भी इसका खतरा तो रहता है। वैस्ट ऑफ लक टीम इंडिया आप ही जीतेंगे।

Saturday, 17 June 2017

मरे हुए सुशील चंद्र गुप्ता के खाते से 45 लाख रुपए उड़ाए

बैंकों में कर्मचारियों की मिलीभगत से घोटाले आम हो गए हैं। नोटबंदी के बाद तो कुछ बैंक कर्मचारियों ने एक तय परसेंट लेकर करोड़ों के नोट बदले और मालामाल हो गए। कई फंसे भी और कई जेल भी गए पर यह धंधा रुका नहीं। जहां भी इन भ्रष्ट बैंककर्मियों को मौका मिलता है यह चूकते नहीं। ताजा उदाहरण स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) का है। पुलिस आयुक्त एमएस रंधावा के अनुसार दरियागंज स्थित एसबीआई की मैनेजर ने बीती 30 मई को पुलिस थाने में एक शिकायत दर्ज की थी। उन्होंने बताया कि उनके बैंक में सुशील चंद्र गुप्ता नाम के व्यक्ति का खाता है। बीती 30 मई को खाताधारक सुशील चन्द्र गुप्ता का एक रिश्तेदार बैंक आया तो पता चला कि उनके खाते में से किसी ने छह माह के भीतर 45.20 लाख रुपए निकाल लिए हैं। इस जानकारी से बैंक में हड़कंप मच गया। बैंक मैनेजर ने मिहिर कुमार मिश्रा नामक क्लर्क पर शक जताया। इस बाबत मामला दर्ज करके थानाध्यक्ष सतेन्द्र मोहन की देखरेख में एसआई महिपाल ने छानबीन शुरू की। निष्क्रिय बैंक खातों (बंद पड़े) में सेंध लगाकर 51 लाख रुपए उड़ाने के आरोप में पुलिस ने एसबीआई के एक असिस्टेंट मैनेजर और क्लर्क को एक जून को गिरफ्तार किया है। आरोपियों ने आठ वर्ष से बंद पड़े एक खाते से 45 लाख और दूसरे खाते से छह लाख रुपए निकाल लिए थे। पुलिस ने इस रकम को दूसरे बैंक खातों में पहुंचाने और वहां  से नगदी निकालने के लिए इस्तेमाल की गई बायोमेट्रिक मशीन से छानबीन शुरू की। इससे साफ हो गया कि रकम की हेराफेरी मिहिर ने की है। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया है। पूछताछ में उसने बताया कि फर्जीवाड़े में गोल मार्किट स्थित एसबीआई शाखा का असिस्टेंट मैनेजर सैयद जीशान मोहम्मद भी शामिल है। आरोपियों ने महज एक माह के भीतर 45 लाख रुपए खाते से निकाल लिए। उसने सबसे पहले 2 सितंबर 2016 को खाते से 100 रुपए निकाले। तीन दिन तक जब इसे लेकर कोई शिकायत नहीं हुई तो वह लगातार खाते से रकम निकालने लगा। इसके अलावा उसने लगभग 22 लाख रुपए दूसरे खातों में भेजकर वहां से निकाल लिए। आरोपी बैंक क्लर्क मिहिर की गिरफ्तारी के बाद दो अन्य लोगों की शिकायत भी बैंक को मिली। इन दोनों शिकायतों को दरियागंज पुलिस को सौंपा गया है। शिकायत में बताया गया है कि दो लोगों ने नोटबंदी के दौरान 48000 और 49000 रुपए बैंक खाते में जमा करवाए थे। मिहिर ने उन्हें रसीद तो दे दी लेकिन उनके खाते में रकम जमा कराने की जगह खर्च कर दी। मिहिर को पता था कि सुशील चंद्र गुप्ता, जिनका खाता 8 वर्ष से निष्क्रिय था उनका देहांत हो चुका है। इसी वजह से मिहिर ने सुशील के खाते से 45 लाख निकाले।  

-अनिल नरेन्द्र

गर्दिश में चल रहे नवाज शरीफ के सितारे



पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के सितारे इन दिनों गर्दिश में चल रहे हैं। दोनों जगह घर में और विदेशों में उनकी तौहीन हो रही है। घर में तो वह पनामागेट विवाद पर पेशियां कर रहे हैं और  देश के बाहर उन्हें बेइज्जती का सामना करना पड़ रहा है। बलूचिस्तान में वो चीनी शिक्षकों की हत्या के बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नवाज शरीफ को झिड़की तक दे डाली। अस्ताना में एक एससीओ सम्मेलन के दौरान नवाज शरीफ ने इतर रूस, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और अफगानिस्तान के राष्ट्रपतियों से तो मुलाकात की पर जिनपिंग के साथ उनकी मुलाकात नहीं हो सकी। चीनी मीडिया ने भी कजाकिस्तान के राष्ट्रपति नूरसुल्तान नजरवायेव, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से जिनपिंग की मुलाकात का खास उल्लेख किया। सम्मेलन से जुड़ी फुटेज में भी दिखाया गया कि जिनपिंग ने कैसे नवाज शरीफ की मौजूदगी को नजरअंदाज  किया। चीन ने 50 अरब डालर के आर्थिक गलियारे समेत पाक में भारी निवेश कर रखा है। पाक ने चीनी कंपनियों के कर्मियों की सुरक्षा के लिए 30 हजार से ज्यादा सुरक्षाकर्मी तैनात किए हैं। लेकिन बलूचिस्तान और कबायली इलाकों में आतंकी अक्सर विदेशी नागरिकों की हत्या के मामले सामने आते हैं। चीनी राष्ट्रपति की यह अप्रत्याशित झिड़की पाकिस्तानी प्रांत बलूचिस्तान में दो चीनी नागरिकों के अपहरण और उनकी हत्या को लेकर देश की जनता में दुख और गहरी निराशा के बाद सामने आई है। उधर सउदी अरब के किंग कई साल से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को शरण देने से लेकर मदद तक देते रहे हैं। लेकिन इस बार उन्होंने (सउदी किंग) नवाज शरीफ से दो टूक पूछा है कि वे सउदी अरब के साथ हैं या कतर के साथ? ज्ञात है कि ईरान और आतंकियों को मदद देने के आरोप में सउदी अरब सहित कई मुस्लिम देशों ने कतर से संबंध तोड़ fिलए हैं। किंग सलमान ने नवाज शरीफ से कहा कतर से रिश्ते तोड़ना आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के लिए जरूरी है। यह सभी मुस्लिम देशों के हित में है। यह भी तथ्य है कि पाकिस्तान खुद भारत व अफगानिस्तान के खिलाफ आतंकियों को मदद दे रहा है। जब किंग सलमान ने दो टूक नवाज शरीफ से पूछा कि आप कतर के साथ हैं या हमारे तो शरीफ कुछ देर तक कोई जवाब नहीं दे पाए। सउदी शासक ने जेद्दा में बैठक के दौरान पूछा। हालांकि पाकिस्तान ने सउदी अरब से यह जरूर कहा कि वह मध्य पूर्व में जारी राजनयिक संकट के बीच किसी एक पक्ष में शामिल नहीं होगा। इधर घर में पनामा पेपर लीक मामले में नवाज व उनके परिवार के खिलाफ चल रहे मनीलांड्रिंग की जांच में शरीफ पूरी तरह फंस गए हैं। शरीफ के परिवार पर लगे आरोपों की जांच करते हुए संयुक्त जांच दल (जेआरटी) ने जांच में बाधा डालने और टीम को धमकी देने के गंभीर आरोप भी लगाए हैं। अखबार डॉन के पास मौजूदा दस्तावेजों के मुताबिक जेआरटी ने सुप्रीम कोर्ट को उन चुनौतियों के बारे में बताया है जो दो माह की समय सीमा के भीतर जांच खत्म करने के दौरान सामने आई थीं। शीर्ष अदालत को जेआरटी ने इस संबंध में जानकारी दी है। कुल मिलाकर नवाज शरीफ के सितारे गर्दिश में चल रहे हैं। घर और बाहर उनकी इज्जत का पलीता हो रहा है।

Friday, 16 June 2017

कैसीनो में 5 पत्नियां और 22 अरब रुपए हारे सऊदी राजकुमार

महाभारत में युद्धिष्ठिर पांचों भाई की पत्नी द्रौपदी को जुए में कौरवों से हारने की तो हमने सुनी थी पर ऐसी ही लगभग घटना आज के जमाने में संभव हो सकती है इसका अनुमान नहीं लगाया था पर ऐसा हुआ है। सऊदी अरब के राजकुमार माजिद बिन अब्दुल्लाह बिन अब्दुल अजीज जुए में अपनी पांच पत्नियां हार गए हैं। उनकी कुल नौ पत्नियां हैं। माजिद बिन अब्दुल्लाह ड्रग्स, जुए और शानो-शौकत को लेकर पूरी दुनिया में मशहूर हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कुछ दिन पहले माजिद मिस्र के सिनेई ग्रैंड कैसीनो में पोकर खेलने पहुंचे थे। राजकुमार ने गेम खेलना शुरू किया तो एक के बाद एक गेम खेलते चले गए और हारते चले गए। इसके चलते माजिद पहले अपने पास मौजूद सारी रकम हार गए। इसके बाद भी उनका जुनून कम नहीं हुआ और उन्होंने अपनी पांच पत्नियों को 160 करोड़ रुपए की रकम के बदले गिरवी रख दिया। इसके बाद भी वो सभी गेम हार गए और बदले में उन्हें अपनी पांच पत्नियों को वहीं कैसीनो में छोड़कर जाना पड़ा। इस कैसीनो में राजकुमार माजिद हफ्तेभर रुके थे। वह अनलिमिटेड स्टेक्स वाली पाकेट टेबल पर खेल रहे थे। कैसीनो के डायरेक्टर अली शमून ने बताया कि जब राजकुमार अपनी सारी रकम हार गए तो उन्होंने साथ में मौजूद पांच पत्नियों को भी दांव पर लगा दिया। लेकिन वो उन्हें भी हार गए। इसके बाद वो बिना पत्नियों को लिए वहां से चले गए। यह पहला मौका नहीं है, कैसीनो में लोग पैसे खेलते रहते हैं। पैसे के अलावा यहां लोग ऊंट और घोड़े दांव पर लगाते हैं और बाद में उन्हें छुड़ा भी लेते हैं। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी ने पत्नी को ही दांव पर लगा दिया हो। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राजकुमार की इस हरकत से सऊदी सरकार शर्मिंदगी महसूस कर रही है। अभी तक यह पता नहीं चल सका कि क्या राजकुमार की पत्नियों को सऊदी अरब लौटाया जाएगा। यह भी संभावना है कि सऊदी रॉयल फैमिली पैसा चुकाकर मामला खत्म कर दे। वहीं मिस्र के विदेश मंत्री सामोह शोकुरी का कहना है कि उनकी सरकार सऊदी महिलाओं को उनके देश वापस भेजने के सभी संभव प्रयास करेगी। जल्द से जल्द उनके पति द्वारा हारी गई रकम को चुकाकर उन महिलाओं को छुड़ा लिया जाएगा। राजकुमार माजिद बिन अब्दुल्लाह इससे पहले भी कई मामलों में विवाद में रह चुके हैं। 2015 में उन पर अपने पुरुष सहयोगी के साथ यौन संबंध बनाने का आरोप लगा था। जैसा मैंने कहा कि हमने महाभारत काल में ऐसी घटना को तो सुना, पढ़ा था पर ऐसी घटना की पुनरावृत्ति की उम्मीद कम थी। राजकुमार माजिद ने अपने खानदान और देश का नाम खूब रोशन किया है।
-अनिल नरेन्द्र


पावन रमजान में जेहादियों ने दुनियाभर में मचाई दहशतगर्दी

पवित्र रमजान के महीने में अंतर्राष्ट्रीय खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट वैसे तो इस्लाम की सुरक्षा के नाम पर अपनी खूनी खेल जारी रखे हुए है वहीं इस्लाम की कितनी कदर है इससे पता चलता है कि तमाम दुनियाभर में रमजान में निर्दोषों की हत्या कर रहा है। रमजान में आईएस के आतंकियों ने न सिर्फ इस्लामी मुल्कों में हमले किए हैं बल्कि पश्चिमी यूरोपीय देशों में कहर बरपाकर बहुत से बेकसूरों की जान ली है। इसके अलावा हमारे अपने जम्मू-कश्मीर में दहशतगर्दों ने तबाही मचाई हुई है। 26 मई से रमजान के शुरू हुए माह के साथ इस आतंकी संगठनों ने पश्चिम में ताबड़तोड़ हमले किए। इनमें आईएस ने फिलीपींस और शिया शक्ति के गढ़ ईरान को भी निशाना बनाया। यह ऐसा दुस्साहस था जिसे कभी अलकायदा ने भी नहीं किया। एक वेबसाइट ब्रिटवर्ट के मुताबिक अभी रमजान का पखवाड़ा भर हुआ है और इस दौरान दुनियाभर में जेहादी गुटों ने 70 हमले किए। इनमें 21 मुस्लिम बहुल देशों में किए गए हैं। इन हमलों में 1003 लोगों की मौत हो गई जबकि 1036 लोग जख्मी हो गए। वेबसाइट का कहना है कि 2016 में इसी अवधि में रमजान में 421 लोगों को मौत के घाट उतारा गया था। जबकि 729 लोग घायल हुए। आठ जून को संयुक्त राष्ट्र ने बताया कि आईएस ने 26 मई से तीन जून के बीच मौसुल से भागने की कोशिश कर रहे लोगों में 231 को मार डाला। यह जगह इस आतंकी गुट का मजबूत किला मानी जाती थी। अब यहां स्थानीय फौज ने अमेरिका की मदद से घेराबंदी कर रखी है। जानकारों का कहना है कि आईएस के हमलों की संख्या बढ़ने को भले ही उसकी इराक और सीरिया में हार को बताया हो लेकिन आईएस ने एक बयान में कहा है कि ब्रिटेन और यूरोप में हमलों का मध्य-पूर्व में इलाके गंवाने से कोई संबंध नहीं है। आईएस का कहना है कि वह भविष्य में अपनी गंवाई हर इंच जमीन को वापस जीत लेगी। आईएस ने बड़े आतंकी हमलों के लिए अब महिला आतंकियों का इस्तेमाल भी शुरू कर दिया है। इस माह ईरान और इराक में दो बड़े हमलों को महिला आतंकियों की मदद से अंजाम दिया गया था। वह महिला आतंकियों के सहारे से दुनिया में दहशत फैलाने की कोशिश कर रहा है। एक कारण यह भी है कि महिलाओं का भीड़ में घुसना आसान होता है। आईएस की सोच है कि किसी भी देश में सुरक्षा बलों को चकमा देने के लिए महिलाएं ज्यादा कारगर हथियार साबित हो सकती हैं। बगदाद के दक्षिण में स्थित शियाओं के पवित्र शहर कर्बला में गत शुक्रवार को महिला आतंकी ने आत्मघाती धमाका किया। हमले में 30 लोग मारे गए और 35 घायल हुए। एक अधिकारी ने बताया कि महिला आतंकी की पहचान नहीं हुई है। भीड़ में पहुंचने के बाद शरीर में बेल्ट के सहारे बंधे विस्फोटक से धमाका किया। आतंकवाद की दुनिया में व्हाइट विंडो के नाम से चर्चित ब्रिटेन की रहने वाली समाथांल्यूथवेट ने नाम बदलकर शेराफियाह ल्यूथवेट रख लिया है। ब्रिटेन में पति की मौत के बाद वह सीरिया आईएस में शामिल हो गई। उस पर करीब 400 लोगों की हत्या करने का आरोप है। ईरानी संसद और इमाम खोमैनी के मकबरे पर हमले में भी महिला आतंकी शामिल थी। लंदन में इस माह की शुरुआत में ब्रिज पर हुए हमले में भी चार महिला संदिग्ध आतंकियों को गिरफ्तार किया गया। गत अप्रैल माह में लंदन के वेस्टमिनिस्ट में चाकू से हमला करने के मामले में भी तीन महिलाओं को गिरफ्तार किया है। खूंखार आतंकी संगठन आईएस ने रमजान के पावन महीने में अमेरिका, यूरोप, रूस, आस्ट्रेलिया, इराक, ईरान, सीरिया और फिलीपींस में हमले की चेतावनी दी है। एक ऑडियो संदेश के जरिये अपने संदेश में कहा है कि इन जगहों पर रमजान के मौके पर हमलों को अंजाम दिया जाए।

Thursday, 15 June 2017

कितना सुरक्षित है आपका धन बैंक लॉकरों में?

आदमी अपनी जीवनभर की कमाई को सुरक्षित रखने के लिए बैंकों में लॉकर लेकर चैन की नींद सोता है। इसी उम्मीद से कि घर पर रखना सेफ नहीं है, कम से कम बैंक में तो सुरक्षित रहेगा और जरूरत के अनुसार वह उसे निकाल सकता है। पर जब बैंकों के लॉकर ही टूटने लगें तो जनता कहां जाए? पंजाब नेशनल बैंक की मोदीनगर कपड़ा मिल शाखा में रविवार रात चार चोरों ने दीवार तोड़कर 30 लॉकरों से करोड़ों के जेवरात और जरूरी दस्तावेज उड़ा लिए। सोमवार सुबह जब  बैंक खुला तो इस सेंधमारी का पता चला। लॉकर टूटने की सूचना पर बैंक अधिकारियों और पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया। चोरी की सूचना मिलने पर बैंक शाखा पर उपभोक्ताओं की भीड़ इकट्ठी हो गई। हर कोई यह जानना चाहता था कि उसका लॉकर सुरक्षित है या नहीं। एक बुजुर्ग महिला ने रोते हुए बताया कि उसकी जीवनभर की पूंजी और लगभग तीन किलो सोने के जेवरात के अलावा बेटी की शादी के लिए बनवाए गहने भी चोरी हो गए। कुछ उपभोक्ताओं का कहना था कि नोटबंदी ने पहले ही उनकी कमर तोड़ रखी थी, रही-सही कसर लॉकरों में रखे पुश्तैनी जेवरत चोरी होने के बाद पूरी हो गई। पीड़ित ग्राहकों से पूछताछ के बाद चोरी हुए जेवरात और नकदी की कीमत पांच करोड़ से अधिक आंकी गई है। शाखा प्रबंधक अशोक श्रीवास्तव ने बताया कि जिन ग्राहकों के लॉकर हैं, उन्हें अपने सामान की सूची बैंक को देनी होगी। इसके बाद एक पैनल ग्राहकों से पूछताछ कर यह तय करेगा कि उसका बताया गया सामान लॉकर में था या नहीं? इसके लिए ग्राहक जेवरात व अन्य सामान के सबूत दिखा सकते हैं। अब पीड़ितों के सामने समस्या है कि वह पुश्तैनी जेवरात के बारे में क्या सबूत देंगे। यह सेंधमारी बैंक की लापरवाही के कारण हुई है। पुलिस के अनुसार बैंक में लगे सुरक्षा अलार्म सेंसर जांच में खराब पाए गए हैं। इस वजह से चोर जब बैंक में घुसे तो अलार्म नहीं बजा। जिस दीवार को तोड़कर चोर घुसे वह मात्र चार इंच चौड़ी थी जो मानकों के हिसाब से कम है। जांच करने पहुंची पुलिस को बैंक में लगे आठ में से पांच कैमरे खराब मिले। इसी कारण वारदात सीसीटीवी में कैद नहीं हो सकी। वहीं बैंक मैनेजर अशोक श्रीवास्तव की सफाई है कि चोरों ने सीसीटीवी को भी कपड़े से ढंक दिया था। खास बात यह रही कि चोरों ने रात के मूवमेंट से जुड़े सेंसर अलार्म से बचने के लिए शाम सात बजे ही घटना को अंजाम दे दिया। मैनेजर श्रीवास्तव ने बताया कि मूवमेंट सेंसर रात आठ बजे नाइट मोड पर एक्टिव होता है। चोरों ने सात बजे ही चोरी को अंजाम दे डाला होगा, जिससे अलार्म नहीं बजा और आसानी से चोरी कर ली। सवाल है कि जिन उपभोक्ताओं की जीवनभर की कमाई चली गई उनकी भरपाई कैसे होगी?
-अनिल नरेन्द्र

क्या नीट जैसी परीक्षा से जजों की भर्ती संभव है?

जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार और जूडिशरी में पिछले दो साल से काफी रस्साकसी देखने को मिली है। इस दौरान अगर जजों की वेकैंसी पर नजर डालें तो लोअर कोर्ट से हाई कोर्ट तक जजों की संख्या काफी खाली है। पूरे देश के हाई कोर्ट और लोअर कोर्ट में जजों के सेंक्शन पदों में भारी वेकैंसी है। एक जून 2017 के आंकड़ों के मुताबिक कुल 24 हाई कोर्ट में स्वीकृत पद 1079 हैं। इनमें से 419 पद खाली हैं। कोलकाता हाई कोर्ट में कुल स्वीकृत 72 पदों में 37 पद खाली हैं। मद्रास हाई कोर्ट में 75 पदों का स्ट्रैंथ है। जहां 26 पद खाली हैं। पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट की बात की जाए तो यहां कुल स्वीकृत पद 85 हैं, जिनमें से 39 जजों की कुर्सी खाली है। वहीं सुप्रीम कोर्ट में कुल 31 स्वीकृत पदों में चार खाली पड़े हुए हैं। जहां तक लोअर कोर्ट का सवाल है तो यहां भी अभी 4166 पद खाली पड़े हैं। इसका परिणाम यह है कि देशभर में केसों की पेंडेंसी करोड़ों में है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक पिछले कुछ महीनों में पेंडेंसी में कमी आई है। एक मार्च 2017 को जहां सुप्रीम कोर्ट में कुल पेन्डिंग केसों की संख्या 62,161 थी, वहीं एक मई के आंकड़ों के मुताबिक यह आंकड़ा 60751 रह गया है। सुप्रीम कोर्ट में 10 साल या उससे पुराने 1132 सिविल केस पेन्डिंग हैं, वहीं 34 क्रिमिनल केस ऐसे हैं, जो 10 साल से ज्यादा समय से पेन्डिंग पड़े हैं। वहीं देशभर के 24 हाई कोर्ट पर नजर डाली जाए तो वर्ष 2014 तक के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 41 लाख 53 हजार 957 मामले पेन्डिंग हैं। इनमें से 31 लाख केस सिविल मैटर हैं, जिनमें से 10 साल या उससे ज्यादा समय से पांच लाख 89 हजार सिविल केस पेन्डिंग हैं जबकि एक लाख 87 हजार क्रिमिनल केस 10 साल या उससे ज्यादा समय से पेन्डिंग हैं। निचली अदालतों में जजों की भर्ती के लिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष नीट (राष्ट्रीय पात्रता सह-प्रवेश परीक्षा) जैसी परीक्षा कराने का प्रस्ताव किया है। कानून मंत्रालय के सचिव (न्याय) की ओर से सुप्रीम कोर्ट के महासचिव को लिखे एक पत्र के मुताबिक स्नातक और स्नातकोत्तर के चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए सीबीएसई द्वारा अपनाए गए नीट मॉडल पर विचार किया जा सकता है। नीट की प्रक्रिया के मुताबिक प्रवेश परीक्षा कराने, परिणाम की घोषणा और अखिल भारतीय रैंकिंग तैयार करने की जिम्मेदारी सीबीएसई की है। दरअसल आठ अप्रैल को त्वरित न्याय पर सरकार और न्यायपालिका के प्रतिनिधियों के बीच हुए विचार-विमर्श के बाद मंत्रालय ने यह पत्र लिखा है। वर्तमान में न्यायिक अधिकारियों की भर्ती के लिए विभिन्न हाई कोर्ट और राज्य सेवा आयोग परीक्षा का आयोजन करते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि रिक्त पदों पर जजों की नियुक्ति जल्द होगी और पेन्डिंग केसों में गिरावट आएगी।

Wednesday, 14 June 2017

रूस से रिश्तों पर ट्रंप के खिलाफ कोमी की गवाही

चुनाव प्रचार के दौरान रूस के अधिकारियों के सम्पर्क में होने के मामले में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने हाल ही में देश की स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी के प्रमुख जेम्स कोमी को उनके पद से हटा दिया था। पद से हटाए जाने पर सख्त नाराज जेम्स कोमी ने ट्रंप के खिलाफ कई सनसनीखेज खुलासे कर देश की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। गत गुरुवार को उन्होंने अमेरिकी सीनेट की इंटेलीजेंस कमेटी के सामने ट्रंप के साथ अपने रिश्तों का खुलासा किया। उन्होंने आरोप लगाया कि इसमें कोई शक नहीं है कि पिछले साल हुए राष्ट्रपति चुनावों में रूस ने हस्तक्षेप किया था। डोनाल्ड ट्रंप पर निशाना साधते हुए कोमी ने कहा कि इसी मामले की जांच को रोकने के लिए उन्हें पद से हटाया गया जबकि उनके कार्यकाल के छह साल बाकी थे। लिखित गवाही में उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल फ्लिन के खिलाफ जांच बंद करने के लिए कहा था। अपने प्रति वफादार रहने की मांग की थी। सात पन्नों की अपनी लिखित गवाही में कोमी ने ट्रंप के साथ हुई बातचीत का ब्यौरा दिया है। कोमी ने समिति के सामने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप के पास उनको बर्खास्त करने का अधिकार था, लेकिन वो अपनी बर्खास्तगी के कारणों से असमंजस में थे। कोमी ने समिति के सामने यह भी कहा कि उन्हें हटाने के लिए ट्रंप प्रशासन ने झूठ बोला। उन्होंने कहा कि ट्रंप प्रशासन ने यह झूठ बोला कि एफबीआई अव्यवस्थित थी और बुरे नेतृत्व में काम कर रही थी। उन्होंने व्हाइट हाउस पर उन्हें बदनाम करने का भी आरोप लगाया। सीनेट ने कोमी और ट्रंप की बातचीत का रिकार्ड व्हाइट हाउस से मांगा है। राष्ट्रपति कार्यालय व्हाइट हाउस से कहा गया है कि इस बारे में जो भी ब्यौरा या ऑडियो रिकार्डिंग मौजूद है, उन्हें समिति के सुपुर्द किया जाए। दूसरी ओर ट्रंप ने एफबीआई की जांच के दखल देने के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। उन्होंने शुक्रवार को कहा कि वह सीनेट समिति के समक्ष शपथ लेकर गवाही देने को तैयार हैं। ट्रंप ने आरोप लगाया कि कोमी ने शपथ लेकर झूठ बोला। जबकि उन्होंने पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल फ्लिन और अन्य सहयोगियों के रूस से रिश्तों की जांच को लेकर उनसे कुछ भी नहीं कहा था। अमेरिकी संसद के प्रावधानों के मुताबिक अगर ट्रंप पर  लगे आरोप सही साबित हो जाते हैं तो उन्हें पद से हटाने के लिए महाभियोग की कार्रवाई शुरू की जा सकती है। हालांकि सीनेट और प्रतिनिधिसभा में ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत है। डोनाल्ड ट्रंप शपथ लेते ही विवादों में घिरे रहे हैं। अब तमाम नाराज तत्व इस नई चर्चा का पूरा फायदा उठाने में जुट गए हैं।

-अनिल नरेन्द्र

तारिक फतेह की हत्या की साजिश

विश्वविख्यात इस्लामिक स्कॉलर तारिक फतेह की हत्या की साजिश का दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने पर्दाफाश किया है। तारिक फतेह अपने खुले विचारों के लिए दुनियाभर में मशहूर हैं। वह अपनी बात कहने से कतराते नहीं चाहे किसी को वह कितनी बुरी ही क्यों न लगे। आतंकवाद, पाकिस्तान के खिलाफ तो वह खुलकर बोलते हैं। इस्लाम के बारे में वह खुलेआम कहते हैं कि एक इस्लाम वह है जो पैगम्बर का इस्लाम है और एक इस्लाम वह है जो मौलवियों का इस्लाम है। इन मौलवियों ने अपने निजी स्वार्थों के लिए इस्लाम का दुरुपयोग किया है और कर रहे हैं। अपने विचारों के लिए वह कट्टरपंथी तत्वों के निशाने पर रहे हैं। हमें आश्चर्य नहीं हुआ जब खबर आई कि दिल्ली पुलिस ने छोटा शकील के एक गुर्गे को फतेह की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया। अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा शकील ने तारिक फतेह और तिहाड़ जेल में बंद अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन की हत्या की सुपारी दी। इसके लिए उसने अपने गुर्गे जुनैद चौधरी को हवाला और ऑनलाइन माध्यम से रकम भी मुहैया कराई थी। यह खुलासा स्पेशल सेल के हत्थे चढ़े जुनैद ने किया। जुनैद को स्पेशल सेल ने बुधवार रात नंद नगरी के गगन सिनेमा के पास से गिरफ्तार किया। तारिक से अंडरवर्ल्ड डॉन भारत में आकर इस्लाम पर दिए गए बयान को लेकर खफा था, जबकि छोटा राजन को वर्षों से चली आ रही रंजिश के कारण वह ठिकाने लगवाना चाहता था। इस मामले की जांच से जुड़े स्पेशल सेल के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक जुनैद को छोटा शकील ने भारत प्रवास के दौरान तारिक फतेह के ठिकाने का पता लगाने और तिहाड़ में बंद अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन की गतिविधि पर नजर रखने का निर्देश दिया था। चूंकि छोटा राजन बीमार चल रहा है, इस वजह से उसे अकसर जेल से बाहर इलाज के लिए अस्पताल ले जाया जाता है। छोटा राजन का इलाज करने वाले डाक्टर और वार्ड ब्वॉय से लेकर अन्य लोगों के बारे में जानकारी जुटाने का निर्देश छोटा शकील ने अपने कथित गुर्गे को दिया था। डीसीपी प्रमोद कुशवाहा के मुताबिक जुनैद से शनिवार को स्पेशल सेल के लोधी कॉलोनी स्थित कार्यालय में अन्य सुरक्षा एजेंसियों ने भी पूछताछ की। टीम यह पता कर रही है कि छोटा शकील ने जुनैद को कितने रुपए की सुपारी दी थी। जिन अन्य शूटरों को सुपारी दी गई, उनके बारे में भी जुनैद से पूछताछ में जानकारी मिल गई है। शूटरों को किस हवाला ऑपरेटर के जरिये पैसा मिला और उन्होंने बुलंदशहर में किससे हथियार खरीदे इसके बारे में भी पता लगाया जा रहा है। हवाला के जरिये छोटा शकील ने शूटरों के पास एडवांस में डेढ़ लाख रुपए भिजवाए थे जिस रकम से शूटरों ने बुलंदशहर से तीन पिस्टल खरीदी थी। दिल्ली पुलिस को इस साजिश का पर्दाफाश करने के लिए बधाई।

Tuesday, 13 June 2017

Hung Parliament in UK: Theresa bet was upside down

At times politicians mistake in the estimation for which they have to pay. British Prime Minister Theresa May too has committed such a mistake. Conservative leader Theresa May had all of a sudden decided to go for mid-term polls three years before the expiry of her term in anticipation of a thumping win which will enable her to break the tough agreement on the terms of the European Union and opt out of the Union. But the election results on Friday proved her bet wrong. So far leading the government with full majority Theresa has won the foremost seats but in the absence of sufficient majority she would have to depend on alliance. Her Conservative Party got 318 seats i.e. short of 8 seats in the parliament to form the government. Poll surveys expressed her win so the results are seen as unexpected in nature. Not only this, it's shocking too for many since after a long time it happened that no party got the clear majority in the polls to the British Parliament. The hung parliament has emerged at such a time when the new government has to talk with the European Union on the process, terms and rules of Brexit and there are just 10 days to start the proposed talks. Now the question is will the proposed dialogues start at the scheduled time or can it be delayed? When David Cameron had gone referendum for brexit perhaps he had no estimation that his step may be reason for his farewell, but with the changing events thereafter, in which the fresh elections may be seen, the commotion in British politics may be felt. Nation's security is also the main reason for reduction in the conservative party seats, which was challenged through the terrorist attacks during the elections. In fact Conservatives are believed to be more reliable rather than the Labour in case of national security, but the way terrorist attacks were carried out in Manchester and thereafter in London, in which 30 people died, degraded the goodwill of her government and personally the prestige of Theresa as a leader. Being the largest party and Labours being at second and far away from the majority, Theresa May will not face any problem in forming the government, but her way ahead is not easy. By the way these elections have brought good results for British people of Indian origin. The toll of 10 people of Indian origin reaching the parliament has risen to 12 now. Sikhs like Tamanjit Singh Chhedi and Preet Kaur Gill have also been elected for the first time. Tamanjit is the first turbaned Sikh to be elected as British MP while Preet Kaur Gill is the first woman Sikh MP. The election of the people of Indian origin is much important. The people demanding for brexit had poisoned their talks. Those people said that Britain is just for them. They talked of the Britain of pre-1950 (white-dominated). Undoubtedly the government has tried to represent Britain as such a nation with a place for people of various cultures of the entire world. But for last few years emigration

has been the burning issue in Britain. Emigrants across the world reach Britain. People from India and neighbouring countries also come here in large numbers.

Notably many Indians and Pakistanis residing in Britain are of second and third generations. The young generation here is born here. Their parents had come here from India, Pakistan and Bangladesh. However, after the new elections the issue before Britain is not only who would rule, but also that how would he combat the challenges after the Brexit.

- Anil Narendra

नगर निगम दिल्ली को ओपन अर्बन स्लम बना रही है

राजधानी दिल्ली में आज भी कूड़े को डंप किया जा रहा है। कूड़े को लेकर अब तक की तमाम योजनाएं अभी तक सिरे नहीं चढ़ रही हैं। एमसीडी ने कूड़े के प्रबंधन को लेकर करीब 15 साल पहले योजना बनाई थी। शुरुआती दौर में कॉलोनियों में सूखे और गीले कूड़े के लिए नीले और हरे रंग के डस्टबिन रखवाए गए थे। बाद में कूड़े के प्रबंधन को लेकर निजी कंपनियों से करार किया गया। लेकिन अब यह सिर्फ नॉर्थ एमसीडी के पांच जोन और साउथ की एकाध कॉलोनियों तक ही सीमित है। दिल्ली में रोजाना करीब नौ हजार मीट्रिक टन कूड़ा पैदा हो रहा है। इस कूड़े को उन लैंडफिल में खपाया जा रहा है जो सालों पहले भर चुकी हैं। भलस्वा, गाजीपुर और ओखला लैंडफिल में 100-100 फुट ऊंचे कूड़े के पहाड़ बन चुके हैं। उसके बावजूद वहां आज भी कूड़ा फेंका जा रहा है। अदालत के आदेश के बावजूद दिल्ली की सड़कों से कूड़ा नहीं हटाए जाने पर दिल्ली हाई कोर्ट ने ईस्ट, नॉर्थ और साउथ एमसीडी को नोटिस जारी किया है। दिल्ली हाई कोर्ट की एक्टिंग चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस हरिशंकर की बैंच ने तीनों कमिश्नरों को 21 जून को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि कूड़ा हटाए जाने को लेकर कोई प्रयास नहीं किया गया। मानसून आने से पहले ही डेंगू और चिकनगुनिया दस्तक दे चुके हैं। अदालत ने एमसीडी से कहा कि कूड़ा हटाना आपकी बेसिक ड्यूटी है और उसके लिए भी आपको कोर्ट का आदेश चाहिए। किसी को तो जिम्मेदार बनना होगा। बता दें कि तीनों एमसीडी में करीब 70 हजार सफाई कर्मचारी काम करते हैं। इनमें से लगभग 20 हजार एवजी या कॉन्ट्रेक्ट पर हैं। एकीकृत एमसीडी की निर्माण समिति के अध्यक्ष जगदीश ममगई के अनुसार अमूमन इन कर्मियों का काम सुबह सात बजे शुरू होकर दोपहर तीन बजे खत्म हो जाना चाहिए। लेकिन कहीं भी यह नियम नहीं चल रहा है। असल समस्या यह है कि इन कर्मियों के यार्ड स्टिक (सफाई का स्थान) सालों से नहीं बदले गए हैं। बढ़ती आबादी और बढ़ते कूड़े को देखते हुए यार्ड स्टिक को बढ़ाया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। सफाई विभाग में भ्रष्टाचार पर भी रोक नहीं लग पा रही है। दूसरी ओर सफाई कर्मचारियों का कहना है कि हमारा शोषण हो रहा है। उन्हें समय से वेतन नहीं मिल पा रहा है। लगातार हड़ताल चलती रहती है। इसके चलते राजधानी में जहां-तहां कूड़े के ढेर दिखाई देते हैं। करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद आज राजधानी ओपन डंप बना हुआ है। अब जब नई नगर निगमें बनी हैं सत्तारूढ़ पार्टी का यह फर्ज बनता है कि शहर में कूड़ा डिस्पोजल की ठोस योजना बनाई जाए और देश की राजधानी को ओपन स्लम बनने से बचाया जाए।
-अनिल नरेन्द्र

ब्रिटेन में त्रिशंकु संसद : टेरीजा का दांव उल्टा पड़ा

कभी-कभी राजनेता आंकलन में ऐसी गलती कर बैठते हैं जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ता है। ऐसी ही एक गलती ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीजा मे ने भी की। कंजरवेटिव नेता टेरीजा मे ने अपना कार्यकाल पूरा होने से तीन साल पहले अचानक ब्रिटेन में मध्यावधि चुनाव का फैसला इस उम्मीद में लिया था कि वे भारी जीत हासिल करेंगी, जो उन्हें यूरोपीय संघ की शर्तों पर वहां के नेताओं के साथ कठिन समझौते को तोड़ने व संघ से बाहर होने का रास्ता देगा। लेकिन शुक्रवार को आए चुनाव परिणामों में टेरीजा का दांव उल्टा साबित हुआ। अब तक पूर्ण बहुमत वाली सरकार का नेतृत्व करने वाली टेरीजा ने इस चुनाव में सर्वाधिक सीटें जीती हैं लेकिन पर्याप्त बहुमत न मिलने के कारण उन्हें गठबंधन पर निर्भर रहना होगा। उनकी कंजरवेटिव पार्टी को 318 सीटें हासिल हुईं जबकि टेरीजा को सरकार बनाने के लिए संसद में कम से कम 326 सीटों की जरूरत के साथ आठ सीटें कम मिली हैं। चुनावी सर्वेक्षणों में उनकी जीत के आसार जताए जा रहे थे, इसलिए जो नतीजे आए उसे किसी हद तक स्वाभाविक ही अप्रत्याशित कहा जा रहा है। यही नहीं, बहुतों के लिए यह हतप्रभ करने वाला भी है, क्योंकि लंबे अरसे के बाद ऐसा हुआ है कि जब ब्रिटेन के संसदीय चुनाव में किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। त्रिशंकु संसद की तस्वीर ऐसे समय उभरी है जब नई सरकार को ब्रेग्जिट की प्रक्रिया, शर्तों और कायदों पर यूरोपीय संघ से वार्ता करनी है और प्रस्तावित बातचीत शुरू होने में बस 10 दिन रह गए हैं। अब सवाल यह है कि क्या इस अस्थिरता की स्थिति में प्रस्तावित वार्ता निर्धारित समय पर शुरू हो सकेगी या इसमें विलंब हो सकता है? डेविड कैमरन ने जब ब्रेग्जिट के लिए रायशुमारी कराई थी तब शायद उन्हें भी अंदाजा नहीं था कि उनका यह कदम उनकी विदाई का कारण बन जाएगा, मगर उसके बाद के घटनाक्रम जिस तरह बदले हैं, जिसमें ताजा चुनाव को देखा जा सकता है, उससे ब्रिटेन की राजनीति में मची हलचल को महसूस किया जा सकता है। कंजरवेटिव पार्टी की सीटें कम होने के पीछे देश की सुरक्षा भी एक बड़ा कारण है, जिसे चुनाव के दौरान आतंकी हमलों के जरिये चुनौती दी गई। दरअसल राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में पारंपरिक रूप से कंजरवेटिव पार्टी को लेबर पार्टी की तुलना में अधिक विश्वसनीय माना जाता है, मगर जिस तरह से मैनचेस्टर और फिर उसके बाद लंदन में आतंकी हमलों को अंजाम दिया गया, जिसमें 30 लोगों की मौत हो गई उससे उनकी सरकार की साख और व्यक्तिगत तौर पर नेता के रूप में टेरीजा मे की प्रतिष्ठा पर आंच आई। सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण और दूसरे नंबर पर रही लेबर पार्टी के बहुमत से काफी दूर होने के कारण टेरीजा मे को सरकार बनाने में दिक्कत तो नहीं आएगी, मगर उनकी आगे की राह आसान नहीं है। वैसे ब्रिटेन के यह चुनाव भारतीय मूल के ब्रिटिश लोगों के लिए अच्छे परिणाम लेकर आए हैं। 2015 में जहां भारतीय मूल के 10 लोग संसद में पहुंचे थे इस बार यह संख्या 12 हो गई है। इस बार तमनजीत सिंह छेदी और प्रीत कौर गिल जैसे सिख भी पहली बार चुने गए। तमनजीत ब्रिटेन में सांसद चुने गए पहले पगड़ीधारी सिख हैं जबकि प्रीत कौर पहली सिख सांसद हैं। भारतीय मूल के लोगों का चुना जाना बेहद महत्वपूर्ण है। जो लोग ब्रेग्जिट की मांग करते थे उनकी बातों में जहर घुला था। वो लोग कहते थे कि इंग्लैंड सिर्फ हमारे लिए है। वे लोग 1950 से पहले के (गोरों के प्रभुत्व वाले) ब्रिटेन की बात करते थे। बेशक सरकार की कोशिश यही रही है कि ब्रिटेन को ऐसे देश की तरह पेश किया जाए जहां दुनियाभर की विभिन्न संस्कृतियों के लोगों के लिए जगह हो। लेकिन पिछले कुछ सालों से अप्रवासन ब्रिटेन में ज्वलंत मुद्दा रहा है। दुनियाभर से अप्रवासी ब्रिटेन पहुंचते हैं। भारत और आसपास के देशों से भी लोग बड़ी संख्या में यहां आते हैं। याद रहे कि ब्रिटेन में रहने वाले कई भारतीय और पाकिस्तानी लोग दूसरी, तीसरी पीढ़ी के हैं। यहां की युवा पीढ़ी यहीं पैदा हुई है। उनके माता-पिता भारत और पाकिस्तान, बांग्लादेश से आए थे। बहरहाल नए चुनाव के बाद ब्रिटेन के सामने प्रश्न सिर्फ यह नहीं है कि शासन कौन चलाएगा, बल्कि यह भी है कि ब्रेग्जिट के बाद की चुनौतियों से वह कैसे निपटेगा।

Sunday, 11 June 2017

Fundamentalist Sunni Terrorist group IS attacks Shiaite Iran

Iran had a big terrorist attack on Wednesday for the first time after 38 years of 1979 revolution. The world’s most dreaded fundamentalist Sunni terrorist group Islamic State marked its presence in Iran also by simultaneously attacking the Irani Parliament and the mosque of Ayatullah Khomeini. Four firing assailants entered the Parliament. Security forces killed all the four after a clash of about an hour. While the Parliament was being attacked, other three terrorists attacked the Khomeini mosque. A woman terrorist blasted herself by the explosive attached to her back. At Khomeini Metro too a blast occurred. 12 people were killed and 42 were hurt in this attack. Two terrorists were caught live but one of them gave his life consuming the cyanide. For the first time themosqe of AyatullahKohmeini has been targetted. Shiaite preacher Ayatullah Khomeini had leaded the Irani Revolution of 1979 when royal rule in Iran was abolished and Shah Raza Pahalvi had to leave the country. Since then there is Shia government in Iran. Undoubtedly these attacks have occurred just after attacks on Manchester and London Bridge, these will also be linked to the rising worldwide activity of Islamic State, but the terrorist attack in Iran means something else for Islamic State. It is true that many nations including the western nations are claiming to combat Islamic State, but Iran is the most active against it. At one side it is directly supporting the Asad government in Syria in fight against IS, on the other hand it is said to have formed a Shia Militia. This terrorist group has only motto to provide security to Shia people in Iran and fighting with IS. The prevailing politics nowadays in West Asia for Qatar may not have a direct link with the terrorist attack on Tehran on Wednesday, but these two things together state that the problem of gulf nations is continuingly being puzzled and complicated. Bashing Iran in recent Saudi visit of the US President is also linked with it. Is it a strange coincidence that Trump targets Iran and Islamic State strikes terrorist attack on Iran?Recently with the ending of boycott of Iran by the Western nations hopes were raised that equations may change due to ending of old prejudices but the recent stand of Trump seems to have ruled it out. Saudi Arabia already treats Iran a real enemy for its monarchy and with the dual policy of the US, it is unable to fix whether its first priority is to demolish the Islamic State or dethrone the Asad government from Syria. It’s a bitter truth that Islamic State has now become a threat for the entire world. It’ll be useless to think that Iran should deal with it alone. Who is supporting the IS? These Arab nations are its biggest funding sources. Sadly to say that many Islamic nations are more against each other due to their selfish personal interests rather than fighting against the IS. If there are Iran and US on one hand, and on the other hand Russia and the US are against each other, it’ll benefit only the IS and it’s happening. Shia-Sunni clash is thousand years old, the terrorist attack on Tehran is an extension to it. It’s the need of the hour that all the nations must fight together with the IS. Unless and until it happens, neither London nor France, Germany and Middle-East Asia is safe. With this attack Iran boasting on its strict security has also been exposed.

-          Anil Narendra

40 करोड़ की ड्रग्स तस्करी में अबू आजमी का भतीजा गिरफ्तार

भारत में ड्रग्स तस्करी के आए दिन मामले पकड़े जा रहे हैं। पता नहीं कि देश में कितनी मात्रा में यह नशीले पदार्थों का सेवन आरंभ हो गया है। हाल ही में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने ड्रग्स तस्करी करने वाले एक अंतर्राष्ट्रीय गिरोह का पर्दाफाश किया है और नशे के चार सौदागरों को गिरफ्तार किया। खास बात यह है कि आरोपियों में समाजवादी पार्टी विधायक अबू आजमी का भतीजा असलम भी शामिल है। आरोपियों के कब्जे से पांच किलो पार्टी ड्रग्स आईस पकड़ी गई। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 40 करोड़ रुपए बताई जा रही है। नशे की दुनिया में आईस ड्रग्स के चारों आरोपी एक अंतर्राष्ट्रीय गिरोह से जुड़े थे। स्पेशल सेल के डीसीपी संजीव यादव ने बताया कि गिरफ्तार आरोपियों की पहचान मुंबई निवासी अबू असलम काजिम आजमी उर्फ असलम, चंडीगढ़ का लॉजिस्टिक कारोबारी अमित अग्रवाल, दिल्ली निवासी अवधेश कुमार व मदन राय के रूप में हुई है। अबू असलम काजिम आजमी समाजवादी पार्टी के मुंबई से विधायक अबू आजमी का भतीजा है। वहीं गिरोह का सरगना कैलाश राजपूत यूएई में रहता है और वहीं से पूरे नेटवर्क का संचालन करता है। आरोपी अबू उसका दाहिना हाथ माना जाता है। पुलिस पूछताछ में आरोपी अमित ने अबू आजमी के नाम का खुलासा किया। इसके बाद पुलिस ने मंगलवार को मुंबई से अबू असलम को गिरफ्तार कर लिया। अबू ने पुलिस को बताया कि वह दुबई में एक कार्गो कंपनी में काम करता है। बाद में वह मुंबई आ गया। फिर उसने गोवा में एक रेस्तरां खोला और वहां वह गिरोह के सरगना कैलाश राजपूत के सम्पर्क में आया। इसके बाद उसने उसके साथ मिलकर इस धंधे को आगे बढ़ाया और देखते ही देखते कैलाश के भारतीय नेटवर्क का सबसे बड़ा खिलाड़ी बन गया। नशीले पदार्थों खासतौर पर प्रतिबंधित ड्रग्स के बढ़ते इस्तेमाल व तस्करों के तेजी से फैलते नेटवर्क ने दिल्ली-एनसीआर को एक बड़ा ट्रांजिट प्वाइंट बना दिया है। तस्कर यहां से अपने राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क तक नशीले पदार्थों की धड़ल्ले से सप्लाई कर रहे हैं। खासतौर पर डायजेपाम, मंड्रेक्स, मॉर्फिन, केटमाइन, म्याऊं-म्याऊं और कोकिन जैसे प्रतिबंधित ड्रग्स का चलन बढ़ता जा रहा है। म्याऊं-म्याऊं नाम के मशहूर मेफोड्रोन ड्रग इस वक्त सबसे ज्यादा डिमांड में है। वर्ष 2010 में भारत में इसकी एंट्री मुंबई के रास्ते हुई थी। यही वजह है कि मुंबई के रिहैबिलिटेशन सेंटर्स में ज्यादातर नए ड्रग एडिक्ट म्याऊं-म्याऊं के शिकार बताए जाते हैं। ड्रग्स की समस्या दिन-प्रतिदिन पूरे विश्व में ही बढ़ती जा रही है। भारत के लिए वह इसलिए भी चिन्ता का विषय है क्योंकि अफगानिस्तान के रास्ते पाकिस्तान इसकी तस्करी करने में दिलचस्पी रखता है। ड्रग्स मनी से ही उसकी आतंकी गतिविधियां चलती हैं।

-अनिल नरेन्द्र

जनरल विपिन रावत एक साथ ढाई मोर्चे पर निपटने को तैयार हैं

भारतीय सेना के तेवर में लगातार बदलाव दिख रहा है और बिना शक आर्मी चीफ विपिन रावत इसके केंद्र में हैं। उनके कुछ फैसलों से विवाद भी खड़ा हुआ है, लेकिन तेवर न तो आलोचना से थमे न पत्थरबाजों से। सेना के रुख में पूरे बदलाव को समझने के ]िलए हाल की कुछ घटनाओं पर नजर डालनी होगी। आर्मी चीफ के जिस फैसले पर सबसे ज्यादा सवाल उठे, वह था मेजर लितुल गोगोई को सम्मान देना। मेजर ने कश्मीर में पत्थरबाजों से बचने के लिए वहीं के एक पत्थरबाज को सेना की जीप से बांध दिया। कुछ तथाकथित सेक्यूलरिस्टों ने इसे मानवाधिकार हनन बताया। इसके बावजूद आर्मी चीफ ने मेजर गोगोई का खुलेआम साथ दिया। जनरल रावत ने शुरू में ही साफ कर दिया था कि जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ चलाए गए अभियानों के दौरान बाधा पैदा करने वाले और पाक या आईएस का झंडा दिखाने वाले को राष्ट्र विरोधी माना जाएगा और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। आर्मी चीफ का एक और बड़ा फैसला यह सामने आ रहा है कि कश्मीर के अशांत इलाकों में घेराबंदी और तलाशी अभियान चलाना। घाटी में करीब 15 साल बाद सेना ने विध्वंसक गतिविधियों पर काबू पाने के लिए यह उपाय अपनाया है। नियंत्रण रेखा और आसपास से जुड़े इलाकों में आए दिन घुसपैठियों और पाक सैनिकों को मारा जा रहा है। जनरल रावत यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा कि भारतीय सेना ढाई मोर्चों पर युद्ध लड़ने के लिए हमेशा तैयार है। उन्होंने जिस तरह से ढाई मोर्चे शब्द का इस्तेमाल किया, वह अपने आप में काफी दिलचस्प और दूरगामी है। उनका कहना है कि भारतीय फौज एक साथ चीन और पाकिस्तान से तो टक्कर ले सकती है, साथ ही वह देश के अंदर होने वाली किसी भी उथल-पुथल से भी आसानी से निपट सकती है। इसमें चीन और पाकिस्तान दो मोर्चे हैं और आंतरिक उथल-पुथल बाकी का आधा मोर्चा। निश्चित तौर पर पाकिस्तान और चीन के खिलाफ जो दो मोर्चे हैं। वे बहुत बड़े हैं। ये दोनों पड़ोसी देश हैं। जिनसे हमारा पुराना सीमा विवाद है। दोनों ही परमाणु शक्ति सम्पन्न देश हैं। यह बात अलग है कि पाकिस्तान एक नाकाम देश माना जाता है, जबकि चीन एक विकसित देश ही नहीं, दुनिया की एक आर्थिक व सैनिक महाशक्ति के रूप में गिना जाता है। इतने विरोधाभास होने के बावजूद भारत के खिलाफ दोनों में एक तरह का सैनिक गठजोड़ भी है, जो इन दिनों भारत के लिए बड़ी चिन्ता का विषय भी है। इस खबर ने यह चिन्ता और बढ़ा दी है कि चीन पाकिस्तान में अपना सैनिक अड्डा बनाने जा रहा है। अगर हमारी सेना यह मानती है कि वह इन सारी चुनौतियों का एक साथ सामना करने को तैयार है तो यह हमारे लिए सुरक्षा का एक बड़ा आश्वासन भी है। जनरल विपिन रावत की हिम्मत और स्पष्टवादी होने पर हम उन्हें बधाई देते हैं।

Saturday, 10 June 2017

आतंक का पनाहगार पाक दोस्त कम, खतरा ज्यादा

अमेरिका के एक थिंक टैंक ने तल्ख टिप्पणी की है कि पाकिस्तान अब भी तालिबान और हक्कानी नेटवर्क की पनाहगाह बना हुआ है, वह अमेरिका के लिए दोस्त कम और खतरा अधिक बना हुआ है। अमेरिकी थिंक टैंक सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक इंटरनेशनल स्टडीज का कहना एकदम सही है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार को पाकिस्तान को सहयोगी के बजाय खतरे के तौर पर देखना चाहिए। पाकिस्तान लंबे समय से आतंकियों की शरणगाह है। वहां ट्रेनिंग पाने वाले आतंकियों ने भारत सहित कई पश्चिमी देशों में भीषण हमले किए हैं। ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं हाल में ब्रिटेन पर आतंकी हमला करने वाला फिदायीन पाकिस्तान मूल का था। पाकिस्तान ने तो भारत के खिलाफ आतंकवाद को सरकारी नीति का अंग बना रखा है। अफगानिस्तान में खूनी खेल खेलने वाले तालिबान और उसके सहयोगी हक्कानी नेटवर्क की पीठ पर पाकिस्तान का हाथ है। फिर भी अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने पाकिस्तान के प्रति वांछित सख्ती नहीं दिखाई है। इस थिंक टैंक ने ट्रंप प्रशासन से कहा है कि उसे इस्लामाबाद को यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि यदि पाकिस्तान ने आतंकी गुटों को इसी तरह समर्थन देना जारी रखा तो उसे अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। थिंक टैंक ने यह भी कहा है कि चीन को भी स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान संबंधी समस्या से निपटने में चीनी सहयोग और अमेरिका और चीन, दोनों के हित में है। विडंबना देखिए कि अमेरिका ने पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अपना सहयोगी बना रखा है। यह जानते हुए भी कि जो हथियार व आर्थिक मदद वह पाकिस्तान को दे रहा है उसका इस्तेमाल या तो अफगानिस्तान या भारत के खिलाफ होगा। फिर भी यह मदद जारी है। दुनिया के सामने आतंकवाद एक बड़ी चुनौती के तौर पर उभरा है। लंदन में अभी हाल ही में हुए दो हमले आतंकवाद के खतरे को एक बार फिर सामने रखते हैं। भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी सहित सभी लोकतांत्रिक देशों की स्थिति की गंभीरता समझने की जरूरत है। अब तक अछूता रहा ईरान भी आईएस की चपेट में आ गया है। आतंकवाद को समर्थन देने वाले सभी देशों जिनमें पाकिस्तान सबसे अव्वल है, के विरुद्ध हर स्तर पर तगड़ी मोर्चाबंदी करने की सख्त आवश्यकता है। यदि अमेरिका पाकिस्तान को फौजी और आर्थिक मदद बंद करता है तो सहयोगी पश्चिमी देश भी उसका अनुसरण कर सकते हैं। इस समय पाकिस्तान का सबसे बड़ा मददगार चीन है। चीन पर नियंत्रण लगाना भी उतना ही आवश्यक है। पाकिस्तान चीन के बलबूते पर उछलता है। अमेरिका को सख्त कदम उठाने होंगे।

-अनिल नरेन्द्र

कट्टरवादी सुन्नी आतंकी संगठन आईएस का शिया ईरान पर हमला

ईरान में 38 साल पहले हुई 1979 की क्रांति के बाद बुधवार को पहली बार बड़ा आतंकी हमला हुआ। दुनिया के सबसे खूंखार माने जाने वाले कट्टर सुन्नी आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ने बुधवार को एक साथ ईरान की संसद और अयातुल्लाह खोमैनी के मकबरे पर हमला बोलकर ईरान में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी। चार हमलावर फायरिंग करते हुए संसद में घुस गए। सुरक्षा बलों ने करीब एक घंटे के संघर्ष के बाद चारों को मार गिराया। जब संसद पर हमला हो रहा था तभी खोमैनी मकबरे में तीन अन्य आतंकियों ने हमला किया। एक महिला आतंकी ने कमर में बंधे विस्फोटक से खुद को उड़ा लिया। खोमैनी मेट्रो पर भी बड़ा धमाका हुआ। इन हमलों में 12 लोग मारे गए, 42 जख्मी हुए। दो आतंकियों को जिन्दा पकड़ लिया गया पर उनमें से एक ने सायनाइड खाकर जान दे दी। पहली बार अयातुल्ला खोमैनी के मकबरे को निशाना बनाया गया है। शिया धर्मगुरु आयतुल्ला खोमैनी ने ही 1979 की ईरान क्रांति का नेतृत्व किया था जिसमें ईरान से राजवंश खत्म हुआ था और शाह रजा पहलवी को देश छोड़ना पड़ा था। उसके बाद से ईरान में शिया सरकार है। बेशक ये हमले मैनचेस्टर और फिर लंदन ब्रिज पर हुए हमले के ठीक बाद हुए हैं, इसलिए इन्हें इस्लामिक स्टेट की बढ़ती विश्वव्यापी सक्रियता से भी जोड़कर देखा जाएगा, लेकिन ईरान में आतंकी हमले का इस्लामिक स्टेट के लिए एक अलग ही अर्थ है। यह ठीक है कि पश्चिमी देशों समेत दुनिया की कई ताकतें इस्लामिक स्टेट से लोहा लेने का दावा कर रही हैं लेकिन उसके खिलाफ सबसे ज्यादा सक्रिय ईरान ही है। एक तरफ वह सीरिया में असद की शिया सरकार को आईएस के खिलाफ लड़ाई में सीधा समर्थन दे रहा है तो दूसरी तरफ कहा जाता है कि उसने एक शिया मिलिशिया खड़ा कर दिया है। इस उग्रवादी संगठन का एक ही मकसद है इराक में शिया आबादी को सुरक्षा देना और आईएस के दांत खट्टे करते रहना। कतर को लेकर इन दिनों पश्चिमी एशिया में जो राजनीति चल रही है उसका तेहरान में बुधवार को हुए आतंकी हमले का भले ही कोई सीधा संबंध न हो, लेकिन ये दोनों चीजें मिलकर एक बात तो बताती हैं कि खाड़ी के देशों की समस्या लगातार उलझती और जटिल होती जा रही है। अमेरिका के राष्ट्रपति की हाल की सऊदी यात्रा में ईरान को कोसना भी इसी कड़ी से जुड़ता है। यह अजब इत्तेफाक है कि इधर ट्रंप ईरान को निशाना बनाते हैं और उधर इस्लामिक स्टेट ईरान पर आतंकी हमला कर देता है? कुछ समय पहले जब पश्चिमी देशों ने ईरान का बहिष्कार खत्म किया था तो एक उम्मीद बनी थी कि पुराने दुराग्रह खत्म होने से कई समीकरण बदलेंगे परन्तु ट्रंप के ताजा स्टैंड ने इन पर पानी फेर दिया। सऊदी अरब तो पहले से ही ईरान को अपनी राजशाही के लिए अव्वल दुश्मन मानता है और रही बात अमेरिका की दोहरी नीति की तो अमेरिका यह तय नहीं कर पा रहा उसकी पहली प्राथमिकता इस्लामिक स्टेट को खत्म करने की है या सीरिया की असद सरकार को सत्ता से बेदखल करने की। आज कटु सत्य यह है कि इस्लामिक स्टेट इस समय पूरी दुनिया के लिए खतरा बन चुका है। यह सोचना गलत है कि ईरान खुद इससे निपटे। आईएस को मदद कौन कर रहा है? यही अरब देश उसकी फंडिंग के सबसे बड़े स्रोत हैं। दुख इस बात का भी है कि कई इस्लामिक देश आईएस के खिलाफ खड़े होने की बजाय अपने-अपने चन्द निजी स्वार्थों के लिए एक-दूसरे के खिलाफ खड़े ज्यादा दिखाई दे रहे हैं। अगर पश्चिमी एशिया में एक तरफ ईरान और अमेरिका, दूसरी तरफ रूस और अमेरिका एक-दूसरे के खिलाफ खड़े दिखाई देते रहे, तो इससे सिर्फ इस्लामिक स्टेट को फायदा होगा और हो रहा है। शिया-सुन्नी लड़ाई तो हजारों साल पुरानी है, तेहरान में आतंकी हमला इसी का एक एक्सटेंशन है। वक्त का तकाजा है कि सभी देश मिलकर साझा रणनीति के साथ आईएस से टक्कर लें। और  जब तक यह नहीं होगा, न लंदन सुरक्षित है और न ही फ्रांस, जर्मनी व मध्य-पूर्व एशिया। इस हमले से ईरान जो अपनी कड़ी सुरक्षा पर गर्व करता था उसकी भी पोल खुल गई है।