Wednesday, 22 May 2019

इन एग्जिट पोलों का ट्रेक रिकॉर्ड

सातवें चरण के मतदान का समय पूर्ण होने के साथ ही लोकसभा चुनाव 2019 के एग्जिट पोल रविवार शाम से आने से शुरू हो गए। लोकसभा चुनाव की मतगणना 23 मई को होगी, लेकिन अलग-अलग एजेंसियों की विभिन्न चैनलों पर आते ही राजनीतिक बहस का नया दौर शुरू हो गया। ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जैसे वास्तविक परिणाम भी ऐसा ही होंगे। कोशिश होती है कि नतीजों को लेकर एक तस्वीर सामने आए। लेकिन भारत का अनुभव रहा है कि इससे भ्रम ज्यादा फैलता है। अगर हम अतीत के एग्जिट पोल के देखें तो यह अनुमान कई बार गलत साबित हुए हैं। अकसर सवाल उठता है कि एग्जिट पोल सटीक आंकलन करता है या फिर इसे अनुमान और ट्रेंड के तौर पर तैयार किया जाता है। अगर हम पिछले प्रमुख चुनावों और उनके एग्जिट पोल पर नजर डालें तो पाएंगे कि असल रिजल्ट और एग्जिट पोल में काफी अंतर आ जाता है। 2004 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के सत्ता से बाहर जाने का अनुमान कोई नहीं लगा पाया था। वहीं तीसरे मोर्चे के मजबूत प्रदर्शन का आकलन सभी ने गलत किया जिसका परिणाम एग्जिट पोल गलत साबित होने के रूप में सामने आया। 2004 चुनाव में ज्यादातर एग्जिट पोल यानि चुनाव बाद सर्वेक्षणों में शाइनिंग इंडिया के नारे पर चुनाव लड़ने वाली अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार की जीत का अनुमान लगाया गया था। लेकिन जब नतीजे आए तो पासा पूरी तरह पलटा हुआ था। 2009 आम चुनाव में एक बार फिर भाजपा को ज्यादा आंक कर सर्वे गच्चा खा गए। 10 साल पहले हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए के बारे में अधिकतर एग्जिट पोल गलत साबित हुए। यूपीए ने जितनी सीटें पाईं, उसका अनुमान कोई सर्वे एजेंसी नहीं कर सकी। दूसरी ओर भाजपा के बारे में अधिकांश एग्जिट पोल का आंकलन काफी बढ़ाचढ़ा कर पेश किया गया। 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस को नुकसान और इतना गिरने का आंकलन कोई नहीं कर पाया। 2014 के चुनाव में सभी का अनुमान यह तो था कि भाजपा अच्छा प्रदर्शन करेगी, लेकिन कितना अच्छा प्रदर्शन करेगी यह सिर्प दो एजेंसियां ही भांप सकी। वहीं कांग्रेस को होने जा रहे वास्तविक नुकसान अधिकांश नहीं भांप सके। अब बात करते हैं 2017 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की। इसमें भारतीय जनता पार्टी ने बहुत बड़ी जीत दर्ज की। इतनी बड़ी जीत का कयास किसी सर्वेक्षण में नहीं किया गया। उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में भी एग्जिट पोल में भाजपा को मिली सीटों का अनुमान किसी को नहीं हुआ। भाजपा ने अनुमान के औसत से 116 सीटें अधिक हासिल की। नोटबंदी के बाद उत्तर प्रदेश में हुए 2017 के विधानसभा चुनाव ने तो एग्जिट पोल और राजनीतिक पंडितों को हिलाकर रख दिया। सारे पोल त्रिशंकु विधानसभा के संकेत दे रहे थे, लेकिन परिणाम आए तो 403 विधानसभा सीटों वाले राज्य में भाजपा 312 सीटों के प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी एग्जिट पोल नरेंद्र मोदी के पक्ष में चल रही आंधी को पूरी तरह भांप नहीं पाए लेकिन भाजपा ने अकेले दम पर 282 सीटें हासिल कर इतिहास रचा, जबकि एनडीए का आंकड़ा 336 के पार पहुंच गया। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 में मोदी को प्रचंड बहुमत आने के बाद हुए। एग्जिट पोल का अनुमान था कि आम आदमी पार्टी (आप) को 31 से 50 के बीच सीटें मिलेंगी और भाजपा को 17 से 35 सीटें, कांग्रेस को तीन से सात सीटें मिलेंगी। लेकिन 70 सीटों वाली विधानसभा के नतीजे आए तो आदमी आदमी पार्टी (आप) ने 67 सीटें जीतकर सभी सर्वेक्षणों को धराशायी कर दिया। भाजपा सिर्प तीन सीटों पर अटक गई और कांग्रेस का तो खाता भी नहीं खुल सका। बिहार में 2015 के चुनाव में महागठबंधन और भाजपा के  बीच कांटे की टक्कर का दावा था, लेकिन परिणाम आए तो जदयू, राजद और कांग्रेस के गठबंधन ने 243 सीटों वाली विधानसभा में 178 सीटें जीतीं। अभी कुछ दिन पहले आस्ट्रेलिया के आम चुनाव में प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन के नेतृत्व वाले गठबंधन ने तमाम सर्वेक्षणों को धराशायी करते हुए चमत्कारी वापसी करते हुए चौंका दिया। बता दें कि आस्ट्रेलिया में चुनावों को लेकर जितने भी ओपिनियन पोल हुए, उनमें विपक्षी आस्ट्रेलियन पार्टी की जीत बताई गई थी। विपक्षी पार्टियों ने जश्न भी मनाना शुरू कर दिया था पर जब रिजल्ट आए तो उनकी हार हुई। पिछले 15 सालों के भारत के सर्वेक्षणों के आंकड़े देखें तो पहले भी एग्जिट पोल के अधिकांश आंकलन सटीक नहीं रहे। इसलिए बेहतर है कि आप 23 मई तक धीरज रखें।

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