राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव पिछले कुछ दिनों से जबसे 2019 लोकसभा चुनाव के परिणाम आए हैं
तनाव में हैं। तनाव के कारण न तो वह सो पा रहे हैं, न ही दोपहर
का खाना खा रहे हैं। रिम्स में लालू प्रसाद का इलाज कर रहे प्रो. डॉ. उमेश प्रसाद ने बताया कि वह सुबह में नाश्ता तो किसी
तरह ले रहे हैं, लेकिन दोपहर का खाना नहीं खा रहे हैं। सुबह का
नाश्ता और रात में ही खाना ले रहे हैं जिसके कारण उन्हें इंसुलिन देने में परेशानी
हो रही है। दरअसल लालू प्रसाद यादव की राजनीति के आधार पर वोट बैंक को खिसकते देखकर
उनकी परेशानी समझ आती है। उनके इस वोट बैंक पर इस बार मोदी का जादू चल गया। चुनाव नतीजों
से यह बात साबित हो रही है कि भाजपा ही नहीं, राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) में भी यदुवंशी राजनेताओं
का जबरदस्त उभार हुआ है। यादव बहुल संसदीय क्षेत्रों से इस बार राजग के पांच सांसद
चुने गए हैं। जातिगत समीकरण वाले पांच क्षेत्रों में भाजपा और जदयू ने यादव उम्मीदवार
दिए थे यानि राजग के सभी यादव उम्मीदवार कामयाब रहे। राजग में जाति विशेष के लिए यह
सौ प्रतिशत स्ट्राइक रेट है। इसका नतीजा यह हुआ कि राजद का खाता भी नहीं खुला।
17वीं लोकसभा के लिए बिहार से भाजपा ने तीन यादव उम्मीदवार दिए थे और
जदयू के दो। 60 के दशक के कद्दावर रामलखन सिंह यादव के राजनीतिक
अवसान के बाद लालू यादवों के राजनेता बन गए। विधानसभा चुनाव में जदयू के साथ गठजोड़
कर राजद ने बेहतर प्रदर्शन किया और 80 विधायक चुने गए थे। इनमें
से एक-चौथाई यादव बिरादरी से हैं, पर लोकसभा
चुनाव में इस बिरादरी ने लालू प्रसाद को बता दिया कि जनता किसी की पुश्तैनी जागीर नहीं
है। 2014 के चुनाव की रणनीति बनाते समय ही भाजपा की नजर
14 प्रतिशत यादव मतदाताओं पर टिक गई थी। रणनीति के तहत ही रामकृपाल यादव
राजद से भाजपा के पाले में आए। उन्हें यादव बहुल पाटलिपुत्र में लाल प्रसाद यादव की
पुत्री मीसा भारती के खिलाफ मैदान में उतारकर भाजपा ने स्पष्ट कर दिया कि वह लोहे से
लोहा काटेगी। विजयी होने के बाद पुरस्कार के रूप में रामकृपाल को केंद्र में मंत्री
का पद मिलना लगभग तय है। भाजपा की रणनीति का दूसरा अध्याय नित्यानंद राय रहे। प्रदेश
के संगठन की कमान उनके हवाले कर पार्टी ने बिरादरी विशेष को संदेश दिया कि इस पाले
में भी नेतृत्व के लिए गुंजाइश है। यहां वंशवाद का दंश भी नहीं व राजद की ऐतिहासिक
और बड़ी हार का एक कारण लालू का जेल में होना और उनके परिवार में कलह होना। भाजपा ने
रणनीति के तहत बिहार में चुनाव लड़ा और शानदार जीत दर्ज की। वर्षों बाद बिहार की राजनीति
में लालू प्रसाद यादव अप्रासंगिक लग रहे हैं। नहीं तो एक समय था जब कहा जाता था कि
समोसे में आलू है, बिहार में लालू है।
-अनिल नरेन्द्र
� कड़ा हो गया है। दोनों भाजपा और कांग्रेस परिणामों से उत्साहित हैं।
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