Tuesday, 7 May 2019

व्यापारी और सरकारी कर्मचारी तय करेंगे नई दिल्ली सीट का परिणाम

देश की सबसे वीवीआईपी सीट नई दिल्ली में अबकी बार चुनावी मुकाबला भी वीवीआईपी होने वाला है। इसी सीट पर वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अजय माकन को पराजय का सामना करना पड़ा था। भाजपा की मीनाक्षी लेखी ने उन्हें हरा दिया था। इस बार फिर दोनों आमने-सामने हैं। इस बार भाजपा ने फिर मीनाक्षी लेखी को, कांग्रेस ने अजय माकन को और आम आदमी पार्टी ने ब्रजेश गोयल को और बसपा ने सुशील वघेरा को मैदान में उतारा है। ऐसा पहली बार है जब चुनावी मैदान में चार धुरंधर उम्मीदवार एक साथ मैदान में उतरे हैं। नई दिल्ली सीट पर सबसे ज्यादा बार भाजपा सांसद चुने गए हैं। इतना ही नहीं, ज्यादातर सांसद लगातार दो बार सांसद रहे हैं। शायद यही वजह है कि पार्टी ने एक बार फिर मीनाक्षी लेखी को चुनावी मैदान में उतारा है। वर्ष 1952 में पहली बार इस सीट पर सुचेता कृपलानी सांसद बनी थीं। वहीं पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी इस सीट से 1977 और 1980 में सांसद रह चुके हैं। वहीं 1989 और 1991 के चुनाव में लाल कृष्ण आडवाणी सांसद बने थे। जबकि 1992 में हुए चुनाव में फिल्म स्टार राजेश खन्ना ने जीत हासिल की थी। नई दिल्ली के ज्यादातर इलाकों में पानी को लेकर काफी समस्या है। खासतौर पर नई दिल्ली के झुग्गी इलाकों में गर्मी के दिनों में पानी की किल्लत हर साल देखने को मिलती है। यहां के लोगों की मुख्य समस्याएं पानी, सीवर, स्कूल इत्यादि हैं। नई दिल्ली सीट की गिनती भले ही दिल्ली की हॉट सीटों में नहीं की जा रही हो, लेकिन इस सीट के नतीजे दूरगामी संदेश देंगे। इस सीट पर वैसे तो पंजाबी समुदाय के वोटरों की बहुलता है। लेकिन जीतेगा कौन, यह काफी हद तक इस क्षेत्र के व्यापारी और सरकारी कर्मचारी तय करेंगे, यही वजह है कि तीनों पार्टियों के उम्मीदवार इनसे काफी आस लगाए बैठे हैं। बतौर सांसद मीनाक्षी लेखी ने बेशक कई काम किए हैं पर उनसे शिकायतें भी मतदाताओं को कम नहीं हैं। पिछले डेढ़ साल के दौरान जिस तरह से नई दिल्ली के व्यापारियों को सीलिंग का दंश झेलना पड़ा, उससे उपजी नाराजगी को दूर करना और व्यापारियों का भरोसा फिर से जीतना लेखी के लिए बड़ा चैलेंज होगा। अजय माकन यहां से अपनी किस्मत पहले भी आजमां चुके हैं। हालांकि वह दो बार यहां से सांसद भी रह चुके हैं। सीलिंग मुद्दे को जोरशोर से उठाकर व्यापारी वर्ग को साधने की कोशिश में वह कितने सफल रहते हैं यह तो गिनती के बाद ही पता चलेगा। कुल मिलाकर टक्कर यहां भी कांटे की है।
-अनिल नरेन्द्र


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