एक साल
पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छोड़ी सीट पर उपचुनाव में झटका खाकर लोकसभा चुनाव
के लिए योगी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
गोरखपुर में उपचुनाव की हार का बदला लेने के लिए मौजूदा सांसद प्रवीण निषाद को पार्टी में शामिल कराने से
लेकर निषाद पार्टी का समर्थन लेने जैसी सभी संभव रणनीतिक दांव चल चुके हैं। इसके बावजूद
वह किसी तरह का खतरा नहीं उठाना चाहते, इसलिए गोरखपुर में डेरा
डाल दिया है। पूरी रणनीति की खुद ही तैयारी की है। सभी विधानसभा क्षेत्रों में बूथ
सम्मेलन कर चुके हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का रोड शो 16 मई की शाम को होना है। उपचुनाव में भाजपा इस संसदीय सीट से जुड़ी पांच में
से तीन विधानसभा सीटें कैपियरगंज, गोरखपुर ग्रामीण और सहजनवां
हार गई थी। भाजपा और गठबंधन की लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने के लिए कांग्रेस संघर्ष करती
नजर आ रही है। लड़ाई
भाजपा व गठबंधन के बीच है। भाजपा ने फिल्म स्टार रवि किशन को अपना उम्मीदवार बनाया
है। पिछला चुनाव कांग्रेस की टिकट पर जौनपुर से रवि किशन लड़े, लेकिन हार गए थे। भाजपा ने उपचुनाव की तरह फिर ब्राह्मण प्रत्याशी पर दांव
लगाया है। गठबंधन ने राम भुआल निषाद को खड़ा किया है। मौजूदा सांसद प्रवीण के भाजपा
में जाने के बाद सपा ने निषाद को मौका दिया है। पिछला चुनाव वह बसपा से लड़े थे और
1.76 लाख वोट पाए थे। वह पूर्व विधायक और मंत्री रहे हैं। कांग्रेस ने
सिविल बार एसोसिएशन गोरखपुर के पूर्व अध्यक्ष और यूपी बार काउंसिल के सदस्य मधु सूदन
तिवारी को अपना प्रत्याशी बनाया है। पहली बार कांग्रेस से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे
हैं। जहां तक जातीय गणित का सवाल है गोरखपुर सीट पर निषाद 2.75 लाख, यादव 2.25 लाख, मुस्लिम 2 लाख, एससी 2 लाख, ब्राह्मण 2 लाख, वैश्य 1.30 लाख, सैंथवार
1.40 लाख, अन्य पिछड़े वर्ग 1.50 लाख, कायस्थ 75 हजार और क्षेत्रीय
50 हजार हैं। बता दें कि गोरखपुर लोकसभा सीट पर 10 बार रह चुके हैं गोरक्षपीठ के तीन पीठाधीश्वर। महंत दिग्विजय सिंह
1967 में, महंत अवैद्यनाथ 1970, 1989,
1991, 1996 और योगी आदित्यनाथ 1998 से
2014 तक लगातार 5 बार। इसलिए योगी के लिए अब यह
प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गई है। खासकर उपचुनाव के बाद।
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