Friday 3 May 2019

दिल्ली की जंग त्रिकोणीय होने से किसको फायदा?

राजधानी दिल्ली के लोकसभा चुनाव के लिए तस्वीर साफ हो गई है। पिछले तीन महीने से 26 अप्रैल को नाम वापसी का आखिरी दिन गुजरने के बाद कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के गठबंधन खत्म होने से अब दिल्ली में मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। अब 12 मई को दिल्ली की सातों सीटों पर 1.43 करोड़ वोटर अपने मतों का इस्तेमाल करेंगे। पिछले तीन महीने से कांग्रेस और आप के बीच गठबंधन करने को लेकर तमाम चर्चा और फार्मूला ढूंढने की कवायद अंतत असफल रही। आखिर क्यों नहीं हुआ यह एलायंस, क्या थी पर्दे के पीछे की कहानी? इतना साफ है कि गठबंधन को लेकर कांग्रेस का रुख था कि सिर्प दिल्ली के लिए बात हो, जबकि आम आदमी पार्टी चाहती थी कि अगर पंजाब और गोवा नहीं तो हरियाणा और चंडीगढ़ कम से कम इसमें शामिल हों, कांग्रेस बड़ी पिक्चर देख रही थी। उनके निशाने पर लोकसभा के साथ-साथ 2020 में दिल्ली का विधानसभा चुनाव भी है। 4-3 फार्मूले पर भी बात चली पर केजरीवाल के चंडीगढ़ और हरियाणा को गठबंधन में शामिल करने की जिद्द से बात टूट गई। अब दिल्ली में भाजपा-कांग्रेस और आप का त्रिकोणीय मुकाबला होगा। दिल्ली के सातों संसदीय क्षेत्रों में अब 164 उम्मीदवार मैदान में होंगे। दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) के लिए अब इस तरह के हालात बन गए हैं कि उसे दो स्तरों पर जूझना पड़ेगा। एक तरफ तो भाजपा को हराने के लिए पार्टी लड़ेगी और दूसरी ओर मोदी विरोधी वोटों को बंटने से रोकना है। इसके लिए उसे ऐड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ेगा। कांग्रेस की रणनीति साफ है। उसने तगड़े उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। अल्पसंख्यक और दलित वोट हमारा है, ऐसा कहना है कांग्रेस के एक बड़े नेता का। क्योंकि यह चुनाव केंद्र की सरकार का है, उसे पता है कि आप को कुछ सीटें मिल भी गईं तो वह मैटर नहीं करेगा जबकि कांग्रेस बड़ा रोल प्ले कर सकती है। वहीं आप पार्टी को भरोसा है कि पिछले चार-पांच सालों में पार्टी ने मजबूत कैडर बनाया है, उसके कार्यकर्ताओं का जाल पूरी दिल्ली में बिछा है। वह अल्पसंख्यकों और दलितों का भरोसा भी जीतेगी और भाजपा को हराने की पोजीशन में भी वही है। आप के लिए चुनौती है कि यह चुनाव नेशनल मुद्दों पर हो रहा है, लेकिन प्लस प्वाइंट है कि इस चुनाव में अधिकतर राज्यों में रीजनल पार्टियां भाजपा से लोहा लेती दिख रही हैं। दिल्ली में गठबंधन न होने से अब कांग्रेस और आप पार्टी में तीखी जंग छिड़ गई है। दोनों दलों के नेता एक-दूसरे को वोट करवा साबित करने में जुटे हैं और यह भी दावा करने से पीछे नहीं हट रहे कि राजधानी के चुनावों में भाजपा को शिकस्त देने की कुव्वत उनमें ही है। इतना ही नहीं, कांग्रेस ने एक बार फिर से सूबे के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी को भाजपा की `बी' टीम करार दिया है। चांदनी चौक लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार जय प्रकाश अग्रवाल भाजपा के डॉ. हर्षवर्धन को टक्कर देने की स्थिति में हैं। दूसरी ओर दक्षिण दिल्ली में आप के उम्मीदवार गौरव चड्ढा भी अपना मुकाबला भाजपा उम्मीदवार से मान रहे हैं। इस मामले में कांग्रेस के उम्मीदवार भी पीछे नहीं हैं। उनका तो कहना है कि तमाम सर्वे में आप तीसरे नम्बर पर है। पार्टी प्रवक्ता जितेन्द्र कोचर ने कहा कि दिल्ली के लोगों को पता है कि केंद्र में कांग्रेस की सत्ता कायम होनी है। कांग्रेस के दिल्ली प्रभारी पीसी चॉको ने कहा कि दिल्ली में कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से है। पार्टी हर सीट पर भाजपा को टक्कर दे रही है। वहीं भाजपा के दोनों हाथों में लड्डू हैं। उनका अनुमान है कि दिल्ली के इस चुनावी रण में कांग्रेस और आप पार्टी एक-दूसरे के वोट काटेंगी और इसका सीधा फायदा होगा। इस त्रिकोणीय लड़ाई में भाजपा बीच से साफ निकल जाएगी। 2014 के आम चुनाव में तीनों दलों के वोट प्रतिशत का विश्लेषण किया जाए तो सबसे ज्यादा वोट भाजपा को मिले थे (46.6 प्रतिशत), कांग्रेस को (15.2 प्रतिशत) और आप को (33.1 प्रतिशत)। अगर इनमें कांग्रेस और आप के वोट प्रतिशत को जोड़ दें तो यह आंकड़ा 48.3 प्रतिशत हो जाता है, जो भाजपा से करीब दो प्रतिशत अधिक है। कांग्रेस और भाजपा ने अपने ज्यादातर पुराने चेहरों पर दांव लगाया है। भाजपा भी अंतिम वक्त तक दोनों दलों के दावे परखती रही।  दलित सांसद उदित राज का टिकट कटना कहीं भाजपा को भारी न पड़  जाए? कुल मिलाकर कांग्रेस और आप के अलग-अलग लड़ने से भाजपा को लड़ाई थोड़ी आसान भले ही दिख रही हो, मगर कांग्रेस ने जिस तरह से वापसी की है उससे भाजपा की राह मुश्किल जरूर हुई है।
-अनिल नरेन्द्र


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