Tuesday, 31 December 2019

ऐतिहासिक फैसलों का रहा यह साल

ऐतिहासिक फैसलों के लिए याद रहेगा 2019 2019 का साल सुप्रीम कोर्ट के नाम रहा। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा में रहा अयोध्या विवाद। अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का नौ नवम्बर को दिया गया निर्णय बरसों तक याद रहेगा। अयोध्या के अलावा कई मामलों ने समूचे देश का ध्यान सुप्रीम कोर्ट की ओर खींचा। अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच का निर्णय सदी का फैसला कहा जा सकता है। अयोध्या विवाद ने देश के राजनीतिक विमर्श को पूरी तरह बदल दिया। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का मामला लोकसभा चुनाव से पहले सूचीबद्ध करने का प्रयास किया गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सितम्बर-अक्तूबर में प्रतिदिन सुनवाई करके नौ नवम्बर को 2.77 एकड़ जमीन पर राम मंदिर के निर्माण की अनुमति प्रदान की। फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो चुकी है। राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राफेल मामला भी सालभर छाया रहा। सुप्रीम कोर्ट ने साल के शुरू मे ही राफेल सौदे की जांच से इंकार कर दिया था, लेकिन पुनर्विचार याचिका में नवम्बर में फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने जांच की मांग ठुकरा दी। महाराष्ट्र में देवेंद्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के खिलाफ रविवार 24 नवम्बर को विशेष सुनवाई की गई। सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता से फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया गया और अल्पमत सरकार गिर गई। सुप्रीम कोर्ट ने 15 अयोग्य विधायकों को उपचुनाव लड़ने की अनुमति प्रदान की। एक और मामला जो सुर्खियों में रहा, वह था सीबीआई बनाम सीबीआई। सीबीआई के निदेशक अलोक वर्मा और अतिरिक्त निदेशक एम. नागेश्वर राव की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट पहुंची। नागेश्वर राव को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया गया और कोर्ट उठने तक की सजा दी गई। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अलोक वर्मा को निदेशक के पद पर बहाल किया गया, लेकिन चयन समिति के अधिकारों के तहत वह हटा दिए गए। महाराष्ट्र में डांस बार पर लगा प्रतिबंध सुप्रीम कोर्ट ने हटाया। एक अन्य अहम निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति में आरक्षण विषयवार लागू करने का आदेश दिया। एक करोड़ से अधिक वनवासियों को बेदखल करने का आदेश भी सुर्खियों में रहा। देशभर में विरोध होने पर सुप्रीम कोर्ट ने बाद में अपने ही फैसले पर रोक लगा दी। देश में प्रमुख उद्योगपति अनिल अंबानी को अवमानना का दोषी ठहराया गया। सुप्रीम कोर्ट ने अपना आदेश एक माह तक स्थगित रखा और अंबानी से कहा कि वह इस अवधि में 453 करोड़ का भुगतान एरिक्सन कंपनी को नहीं करते तो उन्हें जेल जाना होगा। जेल से बचने के लिए अंबानी को यह रकम चुकानी पड़ी। मैंने कुछ प्रमुख केसों का जिक्र किया है। कुल मिलाकर 2019 का साल सुप्रीम कोर्ट के नाम रहा।

-अनिल नरेन्द्र

डिटेंशन सेंटरों की सच्चाई?

देश में डिटेंशन कैंप, हिरासत केंद्रों को लेकर विवाद छिड़ गया है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली की एक रैली में बयान दिया था कि देश में कोई डिटेंशन कैंप नहीं है। वहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी देश में कोई हिरासत केंद्र न होने की बात कही थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने दो दिन पहले गुवाहाटी में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि उनके नेतृत्व वाली असम सरकार ने गुवाहाटी हाई कोर्ट के आदेश पर डिटेंशन कैंप बनाया था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी अवैध प्रवासियों के लिए डिटेंशन कैंप बनाने का सुझाव दिया था। प्रधानमंत्री मोदी के बयान कि देश में कोई डिटेंशन कैंप नहीं है, का हवाला देते हुए गोगोई ने कहा कि मोदी झूठ बोल रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि मोदी सरकार ने 2018 में असम में गोलपाड़ा में तीन हजार अवैध प्रवासियों के लिए देश का सबसे बड़ा डिटेंशन सेंटर बनाने की खातिर 46 करोड़ रुपए मंजूर किए। अब अचानक वे कह रहे हैं कि देश में कोई डिटेंशन सेंटर नहीं  है। गोगोई ने कहा कि भाजपा के लोग कह रहे हैं कि डिटेंशन कैम्प कांग्रेस के समय बने। हमने हाई कोर्ट के आदेश पर उन लोगों के लिए कैंप बनवाए, जिन्हें फोरेंस ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी घोषित किया जा चुका था। भाजपा सरकार को अवैध प्रवासियों को असम से निकालने के लिए कोई नहीं रोक रहा है। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के तमाम दावों के बावजूद कई डिटेंशन सेंटर होने की बात सामने आई है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार असम में छह डिटेंशन सेंटर हैं। इसके अलावा कई मीडिया रिपोर्टों में कर्नाटक में पहले डिटेंशन सेंटर बनने की बात सामने आई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार असम के डिटेंशन सेंटरों में पिछले तीन सालों में 28 लोगों की मौत भी हुई है। इससे पहले गृहमंत्री अमित शाह ने एक डिटेंशन सेंटर बनाए जाने की बात पर सफाई दी। उन्होंने कहा कि डिटेंशन सेटर बनाया जाना एक सतत् प्रक्रिया है। अगर कोई विदेशी नागरिक पकड़ा जाता है तो उसे इसमें रखा जाता है। हालांकि जब उनसे पूछा गया कि देश में ऐसे कितने सेंटर हैं तो उन्होंने कहाöअभी असम में एक है। इसके अलावा मेरी जानकारी में कोई और नही है। मैं कन्फर्म नहीं हूं। इससे पहले गत रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिटेंशन सेंटर बनाने की बातों को अफवाह बताया था। रॉयटर्स की सितम्बर में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक असम के गोलपाड़ा में अवैध प्रवासियों के लिए पहला डिटेंशन सेंटर बनाया जा रहा है। इसमें करीब 3000 लोगों को रखा जा सकता है, टीवी चैनल आज तक ने भी एक रिपोर्ट में बताया कि गोलपाड़ा के डिटेंशन सेंटर में महिलाओं और पुरुषों को अलग-अलग रखने की व्यवस्था की जा रही है और यहां एक अस्पताल भी बनाया जा रहा है। अगस्त 2016 में सरकार ने लोकसभा में बताया था कि असम में छह डिटेंशन सेंटर हैं। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक असम में छह डिटेंशन सेंटर हैं और इनमें 900 अवैध प्रवासियों को रखा गया है। असम सरकार ने पिछले कुछ दशकों में जेलों के हिस्से को ही हिरासत केंद्र बना दिया है। ऐसे केंद्र गोलपाड़ा, कोकराझार, तेजपुर, जोरहाट, डिब्रूगढ़ और सिल्चर की जेलों में हैं। दिल्ली में सेवा सदन लाभपुर, महिलाओं को महिला सदन, पंजाब में अमृतसर की केंद्रीय जेल, राजस्थान में अलवर जेल, पश्चिम बंगाल में सुधार गृह और भुज में ऐसे हिरासत केंद्र हैं। अगर यह सब सत्य है तो मोदी जी ने किस बिनाह पर कह दिया कि देश में कोई डिटेंशन सेंटर नहीं है?

Saturday, 28 December 2019

अंटार्पटिका से भी ठंडा द्रास, लंदन से भी ठंडी दिल्ली

उत्तर भारत में पहाड़ों से लेकर मैदानों तक हाड़ कंपाती ठंड का कहर जारी है। लद्दाख का द्रास बृहस्पतिवार को दक्षिणी ध्रुव के अंटार्पटिका से भी ज्यादा ठंडा रहा। वहीं दिल्ली की रात लंदन से भी अधिक सर्द थी। द्रास में न्यूनतम तापमान माइनस 30.2 डिग्री दर्ज किया गया जबकि अंटार्पटिका का न्यूनतम तापमान माइनस 26 डिग्री रहा। इसी तरह दिल्ली के पालम में पारा लुढ़क कर 5.4 डिग्री पर पहुंच गया। उधर ब्रिटेन की राजधानी लंदन में तापमान न्यूनतम तापमान छह डिग्री दर्ज किया गया। दिल्ली की सर्दी 118 साल में दूसरे ठंडे दिसम्बर का रिकॉर्ड तोड़ने की कगार पर है। 1901 के बाद 1997 में सबसे सर्द दिसम्बर था जबकि इस महीने का औसतन अधिकतम तापमान 17.3 डिग्री रहा था। इस साल अब तक दिसम्बर का औसत अधिकतम तापमान 19.85 डिग्री रहा है, जो 31 दिसम्बर तक 19.15 डिग्री हो सकता है। ऐसा हुआ तो 1997 के बाद यह दिसम्बर का दूसरा सबसे कम औसत अधिकतम तापमान व दूसरा सबसे सर्द दिसम्बर होगा। सर्दी का सितम झेलने वालों के लिए यह खबर सितम वाली है। साल के अंत से अगले साल की शुरुआत तक हिमालय क्षेत्रों में भारी बर्पबारी की संभावना जताई जा रही है। इसका सीधा असर पहले से लोगों को बेहाल कर चुकी दिल्ली की सर्दी पर भी हो सकता है। आज दिल्ली में सबसे ठंडा दिन रहा। दिल्ली का औसत न्यूनतम तापमान 4.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जबकि आयानगर में सबसे कम 3.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। मौसम विभाग की उत्तर क्षेत्रीय पूर्वानुमान इकाई के प्रमुख डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव ने बताया कि पश्चिमी विक्षोभ की वजह से देश के उत्तरी भागों में पहाड़ों पर स्नोफॉल होगा। इसका असर मैदानी क्षेत्रों में पड़ेगा। पहाड़ों से आने वाली हवाएं दिल्ली-एनसीआर को ठंडा कर देंगी। अभी कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बर्पबारी नहीं हो रही है। इसके बावजूद वहां से आ रही ठंडी हवाओं ने दिल्ली का तापमान रिकॉर्ड स्तर तक गिरा दिया है। नए साल के आगाज पर बर्पबारी का लुत्फ उठाने वाले सैलानी श्रीनगर, शिमला, कुफरी, कुल्लू, मनाली, नैनीताल, मुक्तेश्वर और मसूरी पहुंच सकते हैं। यही सदी का सबसे ठंडा महीना है। शीतलहर बरकरार है। कई इलाकों में कोल्ड डे से सीवियर कोल्ड डे की स्थिति बनी हुई है। सुबह 8.30 बजे सफदरजंग में विजिबिलिटी 600 मीटर और पालम में 700 मीटर रिकॉर्ड की गई। कल ठंडी हवाएं चलने का अनुमान है। 31 दिसम्बर को गरज के साथ हल्की बारिश हो सकती है जबकि नए साल यानी एक जनवरी को तेज बारिश की संभावना जताई गई है। इन दोनों दिन तापमान छह डिग्री और अधिकतम तापमान 16 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है। इतनी ठंड के कारण बहरहाल प्रदूषण कम हो गया है। उत्तर और पूर्वोत्तर में कोहरे के कारण ट्रेनें लेट हो रही हैं।
-अनिल नरेन्द्र


फेल होता भाजपा का डबल इंजन नेतृत्व

एक राज्य और कई सवाल-संकेत-संदेश देकर चला गया 2019 के अंतिम विधानसभा चुनाव का परिणाम। इसमें कई तरह के विरोधाभास भी हैं तो कई तरह के नए ट्रेंड भी हैं जिन पर आने वाले दिनों में सियासी चर्चा जारी रहेगी। झारखंड चुनाव परिणाम का असर राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ना तय है। पिछली बार झारखंड में चुनाव पूर्व गठबंधन ने पहली बार पूर्ण बहुमत वाली सरकार को आते देखा है। अभी तक राज्य के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ था। पिछली बार भाजपा अकेले 37 सीटें जीती और बहुमत से चार सीट दूर रही। बाद में आजसू के साथ मिलकर सरकार बनाई। साथ ही रघुवर दास के रूप में पहली बार कोई सरकार ऐसी रही जिसने अपना टर्म पूरा किया। इससे राज्य में स्थिर राजनीति के दौर के लौटने का संकेत मिला। झारखंड में भाजपा को ट्राइबल वोटरों के गुस्से के अलावा स्थानीय मुद्दों पर बुरी तरह हार मिली। चुनाव को राष्ट्रीय मुद्दों की ओर धकेलने की कोशिश पूरी तरह फेल साबित हुई। राज्य और केंद्र चुनाव में अलग-अलग पैटर्न से वोट देने का चल पड़ा नया ट्रेंड भी इसके साथ स्थापित हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव प्रचार के दौरान कई रैलियां की। केंद्रीय मंत्री भी चुनाव प्रचार करने पहुंचे। भाजपा का डबल इंजन बुरी तरह से फेल हुआ। न तो स्थानीय मुद्दों पर ध्यान दिया गया और न ही लोकल लीडर्स पर। मोदी-शाह की जोड़ी ने चुनाव जिताने का पूरा जिम्मा अपने कंधों पर लिया। सीटों की एडजस्टमेंट पर केंद्रीय नेतृत्व का अड़ियल रुख भारी पड़ा। पिछले पांच साल से सरकार में शामिल आजसू नाता तोड़ने पर मजबूर हो गया जब उससे सीट एडजस्टमेंट नहीं की गई। रघुवर दास इतने अलोकप्रिय थे कि उनके ही मंत्रिमंडल के वरिष्ठ साथी सरयू राय ने उन्हें चुनाव में पछाड़ दिया। महज छह महीने में भाजपा का वोट 20 प्रतिशत से अधिक गिर गया। जाहिर है कि अब हर चुनाव के लिए अलग-अलग रणनीति बनाने का दौर वापस होगा। इससे यह भी साफ हो गया कि अब भाजपा अकेले अपने दम-खम पर राज्यों में चुनाव नहीं जीत सकती। उसे सहयोगियों की जरूरत पड़ेगी। सीट एडजस्टमेंट करना अब भाजपा की मजबूरी बन गई है। 2014 के बाद भाजपा ने एक ही फार्मूले से कामयाबी पाई थी, लेकिन अब इस पर ब्रेक लगता दिख रहा है। इसके लिए भाजपा ने डबल इंजन की स्थानीय कोशिश की थी जिसे झारखंड ने नकार दिया। एक साल में इस डबल इंजन ने महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और अब झारखंड से भाजपा को हार का मुंह देखने पर मजबूर कर दिया। झारखंड के बाद अब दिल्ली, बिहार और पश्चिम बंगाल में चुनाव होने हैं। देखें, भाजपा अपनी रणनीति बदलती है या नहीं?

पत्रकारों पर सरकारी उत्प़ीड़न की बढ़ती घटनाएं

पेरिस स्थित निगरानी संगठन आरएसएफ ने बताया कि विश्वभर में वर्ष 2019 में 49 पत्रकारों की हत्या की गई। इनमें से अधिकतर पत्रकार यमनसीरिया और अफगानिस्तान में संघर्ष की रिपोर्टिंग के दौरान मारे गए। यह दर्शाता है कि पत्रकारिता एक खतरनाक पेशा बना हुआ है। संगठन ने कहा कि दो दशक में औसतन हर साल 80 पत्रकारों की जान गई थी। संस्था के प्रमुख ने कहा कि संघर्षग्रस्त इलाकों में आंकड़ों में बेशक कमी आई है जो खुशी की बात है लेकिन लोकतांत्रिक देशों में अधिकतर पत्रकारों को उनके काम के लिए निशाना बनाया जा रहा है, जो कि लोकतंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती है। 2019 में करीब 389 पत्रकारों को जेल में डाला गया, जो कि पिछले साल की तुलना में 12 प्रतिशत अधिक है। इनमें से आधे चीन, मिस्र और सऊदी अरब में कैद हैं। भारत में भी पत्रकार अपनी जान जोखिम में डालकर अपना दायित्व निभा रहे हैं। पत्रकारों के सरकारी उत्पीड़न पर प्रेस परिषद चिंतित है। मिर्जापुर में बच्चों को मिड-डे-मील में नमक-रोटी खिलाए जाने की खबर देने वाले पत्रकार के सरकारी उत्पीड़न पर भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति चंद्रमौली कुमार प्रसाद ने कहा है कि सिर्प सरकार द्वारा पत्रकार पर मुकदमा वापस लेना ही पर्याप्त नहीं है। उन्होंने कहा कि इस मामले में आगे क्या हो सकता है, इस पर विचार किया जाना चाहिए। अध्यक्ष चंद्रमौली कुमार प्रसाद ने प्रयागराज के सर्पिट हाउस सभागार में प्रेस पर कुठाराघात तथा पत्रकारिता के मानकों के उल्लंघन से संबंधित सुनवाई की। मिर्जापुर नमक-रोटी कांड में पत्रकार पर मुकदमा दर्ज किए जाने पर परिषद ने पुलिस अधिकारियों पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि यदि वह ऐसे ही संविधान का उल्लंघन करते रहे तो पत्रकार कैसे अपना दायित्व निभाएगा? अध्यक्ष ने एक जज की टिप्पणी याद दिलाई, जिसमें जज ने कहा था कि उत्तर प्रदेश में पुलिस बल अपराधियों का एक व्यक्तिगत गिरोह है। एक संवाददाता ने मिर्जापुर के अहरौरा गांव में प्राइमरी स्कूल में बच्चों को मिड-डे-मील में रोटी-नमक परोसे जाने की खबर प्रकाशित की थी, जिस पर प्रशासन ने पत्रकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया था। अध्यक्ष ने बताया कि मिर्जापुर में मिड-डे-मील, आंध्र प्रदेश में पत्रकार की हत्या जैसे मामलों की परिषद ने स्वत संज्ञान लेकर सुनवाई की। उन्होंने बताया कि 45 में से 40 मामले उत्तर प्रदेश के थे, इसलिए प्रयागराज में सुनवाई की गई। न्यायमूर्ति ने कहा कि पत्रकार के खिलाफ सीधा मुकदमा न लिखा जाए। इससे पहले परिषद में मामले की सुनवाई हो। इसके बाद ही मुकदमा दर्ज किया जाए। देश में राज्य सरकारें व केंद्र सरकार आज किसी भी पत्रकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लेती हैं जो उसके खिलाफ कोई भी नापसंद रिपोर्टिंग करे, वह भूल जाते हैं कि लोकतंत्र में रिपोर्टर को ऐसी रिपोर्टें दर्ज करने का पूरा हक है। इसीलिए तो प्रेस को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ बताया जाता है।

-अनिल नरेन्द्र

दुष्कर्मियों के खिलाफ देश में गुस्सा, सदनों में दुष्कर्मी आरोपी

दुष्कर्म की देश में बढ़ती घटनाओं से देशभर में गुस्सा है। लोग सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं, कैंडल मार्च निकाल रहे हैं। ऐसे में चौंकाने वाली एक रिपोर्ट सामने आई है कि 19 सांसद महिला अपराधों में आरोपी हैं। यही नहीं, दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध के आरोप चार सांसदों और छह विधायकों पर हैं। एसोसिएशन फॉर डेपोटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) रिपोर्ट लोकसभा-राज्यसभा के 759 सांसदों व 4063 विधायकों के चुनावी हलफनामों के विश्लेषण के आधार पर की गई है। 2009 2014 में महिला अपराध मामलों में दो आरोपी सांसद थे जो इस बार 19 हैं। बीते पांच वर्ष में सबसे ज्यादा 66 आरोपियों को भाजपा ने टिकट दिए। कांग्रेस ने 46, बसपा ने 40, तृणमूल ने सात ऐसे प्रत्याशी चुने, इन तीनों पार्टी की मुखिया महिला हैं। माकपा 15, शिवसेना 13, सपा 13, वाईएसआर सीपी, माकपा नौबीजद सात, टीआरसी छह आरोपियों को टिकट दे चुकी है। 572 आरोपियों को मिला था टिकट। आरोपी 19 सांसद, 126 विधायक चुनाव जीतकर सदन में पहुंचे। राजनीतिक दलों ने जानबूझ कर 572 आरोपियों को टिकट दिए। लोकसभा टिकट पाने वाले आरोपियों में 2009 से 2019 में 23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। हाल ही में सम्पन्न हुए झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए चुने गए 81 विधायकों में से 44 (54 प्रतिशत) विधायकों ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किए हैं। इनमें 34 (42 प्रतिशत) विधायकों ने अपने ऊपर गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं। इनमें बलात्कार, हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, महिलाओं के ऊपर अत्याचार आदि से संबंधित अपराध शामिल हैं। यह रिपोर्ट झारखंड इलैक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेपोटिक रिफॉर्म्स ने सभी 81 नवनिर्वाचित विधायकों के शपथ पत्रों का विश्लेषण करके मंगलवार को जारी किया है। 2014 में चुने गए 81 में से 55 (68 प्रतिशत) विधायकों ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किए। इस लिहाज से इस बार विधायकों की संख्या में कमी आई है। इस बार दो विधायक ऐसे चुने गए हैं जो किसी न किसी आपराधिक मामले में दोषी सिद्ध किए जा चुके हैं। दो विधायकों के शपथ पत्र के अनुसार उनके खिलाफ हत्या (आईपीसी 302) से संबंधित आरोप हैं। सात विधायकों के शपथ पत्र के अनुसार उनके खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज है। इसी तरह पांच विधायकों ने जानकारी दी है कि उनके खिलाफ महिलाओं पर अत्याचार के आरोप चल रहे हैं। इनमें से दो ने बताया कि उनके खिलाफ बलात्कार का मामला (आईपीसी 376) चल रहा है।  जब हमारे सांसद और विधायक खुद आपराधिक प्रवृत्ति के हों तो इनसे किसी प्रकार की क्या उम्मीद की जा सकती है। कटु सत्य तो यह भी है कि इस मामले में सारी पार्टियां इस हमाम में नंगी हैं।

Friday, 27 December 2019

फार्मूला वन, क्रिकेट स्टेडियम का भूखंड आबंटन रद्द

ग्रेटर नोएडा स्थित जेपी स्पोर्ट्स सिटी का आबंटन रद्द कर दिया गया है। आबंटन रद्द किए जाने का फैसला शनिवार को हुई यमुना प्राधिकरण की 66वीं बोर्ड बैठक में लिया गया। जेपी एसोसिएट्स पर प्राधिकरण समेत बायर्स का 804 करोड़ रुपए बकाया है। जिसके लिए यमुना प्राधिकरण ने बीते दिनों जेपी एसोसिएट्स व उसकी सहयोगी कंपनियों को नोटिस जारी किया था। इस जेपी स्पोर्ट्स सिटी में बुद्ध इंटरनेशनल सर्पिट भी है। जिस पर पूर्व में तीन बार फार्मूला वन रेस का भी आयोजन किया जा चुका है। इसके अलावा यहां इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम व हॉकी स्टेडियम भी प्रस्तावित हैं। प्राधिकरण ने कंपनी को एसईजैड परियोजना के तहत एक हजार पंद्रह हैक्टेयर जमीन आबंटित की थी। जिसमें जेपी अन्य कंपनियों को करीब 500 हैक्टेयर जमीन बेच चुकी है। कंपनी पर करीब 864 करोड़ रुपए बकाया हैं। कई बार नोटिस जारी करने के बाद भी कंपनी पैसा जमा नहीं कर रही थी। 30 जून को यमुना प्राधिकरण की बोर्ड बैठक में एक महीने की मौहलत दी गई थी। वहीं चेताया गया था कि एक माह के अंदर किश्त जमा नहीं किए जाने पर आबंटन रद्द कर दिया जाएगा। चेतावनी के बाद जेपी ग्रुप ने यमुना प्राधिकरण में 100 करोड़ रुपए जमा करा दिए हैं। जिसके बाद आबंटन निरस्त नहीं किया गया था। एसईजैड का बकाया जमा कराने के लिए जेपी स्पोर्ट्स इंटरनेशनल कंपनी को एक महीने का समय दिया गया था। लेकिन कंपनी ने बकाया रकम को समय से जमा नहीं किया। इसके बाद जेपी स्पोर्ट्स सिटी का आबंटन निरस्त कर दिया गया है। यह अत्यंत दुर्भाग्य की बात है कि इतनी शानदार स्पोर्ट्स फैसिलिटी की पैसों के डिफॉल्ट के कारण दुर्दशा हो रही है। पूरे देश में एक ही  फार्मूला वन सर्पिट है और यहां पर तीन बार अंतर्राष्ट्रीय स्तर की रेस फार्मूला वन के आयोजन भी हो चुके हैं। इस बुद्ध सर्पिट को मैंने भी देखा है। उम्मीद की जाती है कि इसके रखरखाव का पूरा प्रबंध प्रोफेशनली हैंडल किया जाएगा। हमें हर हालत में स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स की अच्छे से देखभाल करनी होगी।

-अनिल नरेन्द्र

चुनाव का जिक्र किए बिना दिल्ली को साध गए मोदी

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिल्ली में सीबीएसई की परीक्षा डेट डिक्लेयर होते ही यह भी तय हो जाएगा कि दिल्ली के विधानसभा चुनाव 15 फरवरे से पहले हो सकते हैं। सीबीएसई की परीक्षा 15 फरवरी से शुरू होने जा रही है। राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि चुनाव आयोग परीक्षा के पहले कभी भी चुनाव करवा सकती है। तर्प यह भी है कि बच्चों के 10वीं और 12वीं की महत्वपूर्ण परीक्षा होती है, चुनाव के शोरगुल से बच्चे पढ़ाई में डिस्टर्ब होते हैं। ऐसे में तय है कि चुनाव परीक्षा से पहले होंगे। माना जा रहा है कि चुनाव आयोग जनवरी के पहले हफ्ते में दिल्ली के विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा कर सकता है। भाजपा ने चुनावी प्रचार शुरू भी कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रविवार को  रामलीला मैदान में जो रैली हुई थी वह एक तरह से दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के प्रचार का श्रीगणेष माना जा रहा है। रामलीला मैदान से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी का एजेंडा तय कर दिया है। अनाधिकृत कॉलोनियों के नियमितीकरण का मामला दिल्ली के 40 लाख लोगों से जुड़ा है और पार्टी इनसे समर्थन की उम्मीद लगाए हुए है। इसके साथ ही नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और इसेलेकर विरोधी पार्टियों के रवैये को भी चुनावी मुद्दा बनाने के संकेत हैं। इन दोनों मुद्दों को धार देने के साथ दिल्ली में दूषित पानी की समस्या को भी पार्टी जोरशोर से उठाएगी। प्रधानमंत्री मोदी रविवार को रामलीला मैदान की रैली में दिल्ली विधानसभा चुनाव का जिक्र किए बगैर दिल्ली को साध गए। नागरिकता कानून पर बोलते हुए मोदी ने कई बार दिल्ली के मुद्दों पर बात की। कच्ची कॉलोनियों को मालिकाना हक देने के साथ-साथ दिल्ली में प्रदूषण, पानी, मेट्रो और परिवहन पर अपनी बात की। प्रधानमंत्री ने इशारों-इशारों में दिल्ली सरकार और अरविन्द केजरीवाल पर हमला बिना नाम लिए बोला। उन्होंने दिल्ली के प्रमुख मुद्दों को तो उठाया पर आम आदमी पार्टी की सरकार या मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का एक भी बार नाम नहीं लिया। दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा की आस अपने केंद्रीय नेतृत्व पर टिकी है। 21 साल से भाजपा दिल्ली की सत्ता से बाहर है। लंबा वनवास खत्म करने के लिए भाजपा ने दिल्ली की सियासत में कच्ची कॉलोनियों का दांव चला है। कच्ची कॉलोनियों के नियमितीकरण के मुद्दे पर रविवार को प्रधानमंत्री की धन्यवाद रैली आयोजित की गई तो उन्होंने दिल्ली चुनावों के मुद्दों को तय कर दिया। उन्होंने विधानसभा चुनावों पर कोई बात नहीं की, लेकिन पानी, परिवहन और प्रदूषण जैसे मुद्दों का जिक्र कर आम दिल्लीवासियों की नब्ज पर हाथ रखा। उन्होंने अपने भाषण में दिल्ली पुलिस के जवानों की भी तारीफ की। इसके बाद से खासकर दिल्ली पुलिस के जवानों का मनोबल एकदम बढ़ गया है। कई पुलिसकर्मियों ने भाषण के अंश वाला क्रीन शॉट अपने वॉट्सएप के डीपी में लगा दिया।

Thursday, 26 December 2019

हरियाणा में डेंट, महाराष्ट्र में डैमेज और झारखंड में डिफीट

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदम्बरम ने बेल पर रिहा होने के बाद झारखंड में मीडिया से बातचीत में दावा किया था कि हरियाणा में हमने डेंट दिया, महाराष्ट्र में डैमेज किया और झारखंड में निश्चित तौर पर भाजपा को डिफीट कर देंगे। चुनाव परिणामों ने चिदम्बरम की इस बड़ी भविष्यवाणी को सच साबित कर दिया। हरियाणा में भाजपा ने जोड़-तोड़ कर सरकार जरूर बना ली, लेकिन इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता कि पिछले दो माह में तीन राज्यों में हुए चुनाव परिणामों ने भाजपा को बड़ा झटका दिया है। झारखंड के चुनाव परिणामों का झटका दिल्ली तक महसूस किया गया और अब यह माना जा रहा है कि दिल्ली में अगले वर्ष के शुरू में होने वाले विधानसभा चुनाव परिणाम पर भी इसका सीधा असर देखने को मिल सकता है। झारखंड विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत लगाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नौ और अमित शाह की एक दर्जन जनसभाओं के साथ-साथ तमाम केंद्रीय मंत्रियों ने पिछले एक माह के दौरान झारखंड को अपना पैंप कार्यालय भी बनाया, लेकिन परिणाम आशा के अनुरूप नहीं आए। पांच चरणों में हुए चुनावों में भाजपा ने लगभग हर मंच पर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370, तीन तलाक, अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण का जिक्र करने के साथ-साथ अंतिम दो चरणों में नागरिकता संशोधन कानून का मुद्दा बनाया लेकिन वह काम नहीं आया। इसके उलट यह हुआ कि इन भारी-भरकम मुद्दों ने झारखंड के स्थानीय मुद्दों  को दबा दिया। विकास के एजेंडे से शुरू हुई लड़ाई का विषय परिवर्तन होने का नकारात्मक असर देखा गया। विकास बनाम बदलाव की ल़ड़ाई में जनता ने बदलाव को चुना। 2017 के बाद से झारखंड सातवां ऐसा राज्य है जो भाजपा के हाथों से निकला है। दिसम्बर 2017 में भाजपा व एनडीए की 19 राज्यों में सरकार थी। तब 72 प्रतिशत आबादी और 75 प्रतिशत भू-भाग पर भगवा लहरा रहा था। दिसम्बर 2019 आते-आते 15 राज्यों में ही भाजपा व एनडीए की सरकारें बची हैं। इनमें 42-30 प्रतिशत आबादी और 35 प्रतिशत भू-भाग आता है। हालांकि कर्नाटक, मिजोरम, त्रिपुरा व मेघालय में भाजपा ने सरकार बनाई थी। इनमें कर्नाटक ही बड़ा राज्य है। भाजपा का मिशन 65 फेल होने के कई कारण रहे। प्रमुख हैं-रघुवर दास से गहरी नाराजगी, गैर आदिवासी चेहरा खारिज, सरयू राय जैसे नेताओं की अनदेखी, भीतरघात व दलबदलू नेताओं पर भरोसा और आजसू से 20 साल पुरानी दोस्ती टूटना। और तो और विपक्ष का तोड़ नहीं निकाल पाए। स्थानीय मुद्दे विकास के राष्ट्रीय नारे पर भारी रहे। भू-अधिग्रहण व कामंतकारी कानून पर लचर रवैया। राम मंदिर व नागरिकता कानून का विरोध भाजपा को भारी पड़ा। झामुमो, राजद व कांग्रेस के महागठबंधन ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा। भाजपा अकेली पड़ गई। नरेंद्र मोदी का क]िरश्मा अब काम नहीं आया। अहंकार और ओवर कॉन्फिडेंस भाजपा को ले डूबा।

-अनिल नरेन्द्र

हमारी सभी आंदोलनकारियों से विनम्र अपील

नागरिकता कानून व एनआरसी के विरोध का जो स्वरूप देखने को मिल रहा है, वह विरोध तो नहीं है। जिस सार्वजनिक सम्पत्ति को जलाया जा रहा है और नुकसान पहुंचाया जा रहा है, वो आपकी और हमारी गाढ़ी कमाई से ही खरीदी गई है। बेहतर देश बनाने के लिए इस दुश्चक्र से बाहर निकलने, विरोध शांतिपूर्ण बनाए रखने, संयम बरतने और अराजक तत्वों के हिंसा के इरादों को हटाना होगा। लोकतंत्र में मतभेद जताना या सरकार के किसी फैसले का विरोध करना जनता का मूल अधिकार माना जाता है। पर देश के कई हिस्सों में हो रही हिंसा डरावनी तो है ही, देशहित के खिलाफ भी है। लोकतंत्र में यदि हमें असहमति व्यक्त करने का अधिकार मिला है तो उसके साथ दायित्व भी बंधा हुआ है। बगैर दायित्व के अधिकार खतरनाक हो जाता है। आखिर यह कौन से आंदोलन हैं। जिसमें पुलिस चौकियां पूंकी जा रही हैं, पुलिस पर ईंट-पत्थरों से हमले हो रहे हैं, पेट्रोल बम चलाए जा रहे हैं, गाड़ियां जलाई जा रही हैं? इस तरह कानून को अपने हाथ में लेने का दुस्साहस करने वाले कौन हैं? इनके पीछे कौन साजिश रच रहे हैं? इन प्रश्नों का उत्तर मोटा-मोटी सबको पता है। किन्तु इन्हें सामने लाना सरकारों का काम है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन साफ है। सार्वजनिक सम्पत्ति के नुकसान होने की स्थिति में सारी जिम्मेदारी नुकसान करने वाले आरोपी की होगी। आरोपी को खुद को निर्दोष साबित करने तक कोर्ट उसे जिम्मेदार मानेगी। नरीमन समिति ने कहा था कि ऐsसे मामलों में दंगाइयों से सार्वजनिक सम्पत्ति के नुकसान की वसूली होगी। लोकतंत्र में प्रशासन को पूर्व सूचना देकर धरना-प्रदर्शन से किसी को क्या एतराज हो सकता है। हां, इसके औचित्य पर अवश्य सवाल उठेगा। लेकिन आग की लपटें, आकाश की ओर उठते धुएं, सड़कों पर बिखरी ईंट, पत्थर, शीशे, जले टूटे हुए वाहन, कहीं-कहीं आपत्तिजनक नारे... दूसरे ही संकेत दे रहे हैं, अहमदाबाद में जिस तरह भीड़ चार-पांच पुलिस वालों पर अंधाधुंध पत्थरों की बरसात कर रही है, दिल्ली के सीलमपुर में पुलिस वालों को खदेड़ कर पीटा जा रहा हैöवह किसी सभ्य आंदोलन की तस्वीर पेश नहीं करती, साफ है कि कुछ असामाजिक उपद्रवी तत्व इसके पीछे हैं। हिसा की पूरी तैयारियां पहले से ही की गई थीं। हो सकता है कि कुछ देश विरोधी तत्व भी समय का लाभ उठाने की साजिश रच रहे हों। जो लोग आंदोलन के नाम पर आगजनी और हिंसा कर रहे हैं, उनके साथ कानून वैसा ही सलूक करेगा जैसा अपराधियों के साथ किया जाता है। हम सभी आंदोलनकारियों से अपील करते हैं कि आप शांतिपूर्वक प्रदर्शन-धरना दें, हिंसा का सहारा न लें। अपनी बात कहें पर प्रभावी ढंग से ताकि सरकार आपकी बात सुनने पर मजबूर हो।

Wednesday, 25 December 2019

डोनाल्ड ट्रंप पर चलेगा महाभियोग

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर महाभियोग चलाने की मंजूरी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेन्टेटिव से मिल गई है। अब ऊपरी सदन सीनेट में ट्रंप पर मुकदमा चलाया जाएगा। अमेरिका के इतिहास में ट्रंप ऐसे तीसरे राष्ट्रपति हैं जिनके खिलाफ महाभियोग की मंजूरी दी गई है। डोनाल्ड ट्रंप पर आरोप है कि उन्होंने यूकेन के राष्ट्रपति बोलोदीमीर जेलेंस्की पर 2020 में डेमोकेटिक पार्टी के संभावित उम्मीदवार जो बोइडेन और उनके बेटे के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच के लिए दबाव बनाया है। बोइडेन के बेटे यूकेन की एक ऊर्जा कंपनी में बड़े अधिकारी हैं। अब रिपब्लिकन पार्टी के बहुमत वाली सीनेट में राष्ट्रपति ट्रंप के खिलाफ जांच शुरू होगी। ये जांच नेताओं के छोटे-छोटे समूह यानि समितियां करेंगी। हर एक समिति को इस मामले से जुड़े किसी एक चीज को समझने में महारत हासिल है। जैसे कि विदेशी मामलों की समिति, आर्थिक मामलों की समिति और न्याय की समिति। इस मामले में सार्वजनिक तौर पर गवाहों को बुलाया जाएगा। अमेरिका और यूरोप के लोग क्रिसमस से लिब्रेशन की तैयारियों में जुटे हैं। मॉल्स और दुकानें रोशनियों से जगमगा रहे हैं और इसी बीच दुनिया के सबसे शक्तिशाली अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विरुद्ध निचले सदन में महाभियोग का प्रस्ताव पास हो गया। सदन में विपक्षी डेमोकेटिक पार्टी का बहुमत है, लिहाजा प्रस्ताव पारित होना ही था। हालांकि कांग्रेस के शक्तिशाली उच्च सदन सीनेट में ट्रंप की रिपब्लिक पार्टी का बहुमत है। अमेरिकी संविधान के प्रावधान के मुताबिक उच्च सदन में दो तिहाई मतों के आधार पर ही महाभियोग को अंतिम परिणति तक पहुंचाया जा सकता है। सीनेट में संख्या बल ट्रंप के पक्ष में है इसलिए वह आश्वस्त हैं। इससे पहले एंड्रयू जॉनसन पर 1868 और बिल क्लिंटन पर 1998 में महाभियोग चलाया गया था। सीनेट ने इन दोनों सदनों के प्रस्ताव नामंजूर कर दिए थे। रिचर्ड निक्सन ने 1974 में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू होने से पहले इस्तीफा दे दिया था और बिन क्लिंटन ने अपनी गलती पर माफी मांग ली थी। पर डोनाल्ड ट्रंप नहीं मानते कि उन्होंने कुछ गलत किया है। जब संसद में ट्रंप के महाभियोग पर वोटिंग चल रही थी तब वह मिशिगन के बैटल क्रीक में सभा को संबोधित कर रहे थे। जहां उन्होंने कहा कि हम लोगों के लिए नौकरियां पैदा कर रहे हैं और मिशिगन के लोगों के लिए लड़ रहे हैं वहीं कट्टरपंथी और वामपंथी कांग्रेस मेरे खिलाफ ईर्ष्या, नफरत और गुस्से से भरी है। आप देख रहे हैं कि मेरे साथ क्या हो रहा है? डेमोकेट्स को पता है कि उच्च सदन में प्रस्ताव गिर जाएगा। फिर भी आगामी राष्ट्रपति पद के चुनाव में मनोवैज्ञानिक और नैतिक बढ़त बनाने के लिए ट्रंप के विरुद्ध महाभियोग की कार्रवाई की। वैसे भी दोनों प्रमुख पार्टियों के बीच स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धा प्रतिशोध की राजनीति में बदल गई है।
öअनिल नरेन्द्र

किसको सही मानें पीएम को या गृहमंत्री को?

प्रधानमंत्री ने रामलीला मैदान में रविवार को एक बड़ी रैली को सम्बोधित करते हुए एक साथ साधे कई निशाने। विरोधियों पर लोगों में डर फैलाने और नागरिकता संशोधन कानून पर मुस्लिमों को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए मोदी ने कहा कि उनकी सरकार की योजनाओं में कभी भी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया गया। नागरिकता कानून और एनआरसी का भारतीय मुस्लिमों से कुछ लेना-देना नहीं है। प्रधानमंत्री अपने संबोधन में एक ऐसी बात कह गए जिससे विवाद पैदा हो गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली की इस विशाल जनसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि उनकी सरकार में एनआरसी को लेकर अभी कोई बात नहीं हुई है और एनआरसी का न तो कैबिनेट में जिक्र आया है और न ही उसकी रूपरेखा तैयार हुई है इसलिए भारत के मुसलमानों को इससे डरने की जरूरत नहीं है। प्रधानमंत्री का यह बयान गृहमंत्री अमित शाह के बयानों से बिल्कुल उल्टा है, उनका यह बयान इसलिए अहम है क्योंकि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और  कुछ अन्य वरिष्ठ मंत्री कई मौकों पर पूरे देश में एनआरसी लागू किए जाने की बात कह चुके हैं। यहां तक की राष्ट्रपति के अभिभाषण में भी इसका जिक्र हो चुका है। यानि भारत की संसद में भी यह मुद्दा आ चुका है। सवाल यह है कि किसकी बात मानी जाए प्रधानमंत्री की वह भी एक चुनावी रैली में  या फिर गृहमंत्री की ससंद में दिए बयान को? पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दावा किया है कि रविवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एनआरसी के प्रस्तावित राष्ट्रव्यापी क्रियान्वयन पर सार्वजनिक रूप से गृहमंत्री के रुख के विपरीत बयान दिया है। बनर्जी ने कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम और एनआरसी पर अमित शाह की और मोदी की टिप्पणियां सबके सामने हैं और भारत की जनता तय करे कि कौन सही है और कौन गलत? नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता पंजी. (एनआरसी) के खिलाफ रविवार को दिए मोदी के बयान पर सीताराम येचुरी (मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी) नेता ने एनआरसी से जुड़े प्रधानमंत्री के बयान पर सवाल किया कि जब एनआरसी पर कैबिनेट में कोई चर्चा नहीं हुई तो फिर गृहमंत्री अमित शाह इसे लागू करने का बयान क्यों दे रहे हैं? कांग्रेस ने भी पीएम पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि संसद में गृहमंत्री अमित शाह का बयान भय और अनिश्चितता का माहौल बना रहा है। पार्टी प्रवक्ता आनन्द शर्मा ने कहा कि गृहमंत्री अमित शाह ने खुद संसद के दोनों सदनों में सीएए के बाद पूरे देश में एनआरसी लागू करने का बयान दिया था। इसी तरह भाजपा के कई मुख्यमंत्रियों व केन्द्राrय मंत्रियों ने भी एनआरसी को पूरे देश में लागू करने की बात कही है। शर्मा ने भाजपा को घेरते हुए  यह भी कहा कि पीएम कांग्रेस पर आरोप लगा रहे हैं तो फिर सरकार इसका जवाब क्यों नहीं दे रही है कि असम समेत पूर्वोत्तर के राज्यों में विरोध तीव्र क्यों है वहां तो भाजपा की सरकारें हैं?

Tuesday, 24 December 2019

बेशक विरोध सीएए को लेकर है पर असली डर एनआरसी का है

देश में जो हालात जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटाने, तीन तलाक खत्म करने के कानून से लेकर सुप्रीम कोर्ट के  अयोध्या में राम मंदिर बनने के फैसले से नहीं बने थे वह नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) ने कुछ ही दिनों में बना दिए हैं। विरोध को भले ही मौके की तलाश में विपक्षी दल हवा दे रहे हों लेकिन अल्पसंख्यक इसे अपने वजूद की लड़ाई मानकर लड़ने को उतावले हैं। अल्पसंख्यकों का एक वर्ग ऐसा है जो इस असंतोष को हवा दे रहा है। कटु सत्य तो यह है कि वह मोदी को बर्दाश्त नहीं करता। आज से नहीं 2002 के बाद से। अल्पसंख्यक हर ऐसे मौके की तलाश में रहता है जब वह मोदी सरकार का विरोध कर सके। युवा वर्ग इसलिए सड़कों पर उतरा है क्योंकि उसे अपना भविष्य अंधकार में दिखता है। उसे मौजूदा अर्थव्यवस्था से मायूसी है और वह सारा गुस्सा सरकार के खिलाफ निकालने का मौका ढूंढता रहता है। वहीं बहुसंख्यकों में भी एक वर्ग ऐसा है जो वोट बैंक की राजनीति करता है और बहुसंख्यकों और अल्पसंख्यकों में पोलराइजेशन करने की फिराक में रहता है। खासतौर पर उस समय जब कोई चुनाव करीब हो। असम में संघर्ष का मुद्दा अलग ही है। पूर्वोत्तर राज्यों में असम को छोड़कर मुद्दा अलग है। अल्पसंख्यकों को पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले मुस्लिमों को नागरिकता न देने से ज्यादा परेशानी इसके बाद देशभर में लागू किए जाने वाली राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) से है। मुस्लिम मान रहे हैं कि उन्हें भारत का नागरिक साबित करवाने के लिए यह सरकार परेशान करने वाली है। इसके विरोध से भाजपा का एक वर्ग भले ही प्रसन्न हो रहा हो लेकिन भाजपा की मूल संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के रणनीतिकार भी परेशान हैं। उन्हें विरोध के इतना व्यापक होने का अनुमान न था। विरोध ज्यादातर अल्पसंख्यक बहुल वाले इलाकों में हो रहा है। इस आंदोलन के अगुवा इसे राजनीतिक रंग दिए जाने से परेशान हैं और वो चाहते हैं कि यह उन इलाकों में भी फैल जाए जहां अल्पसंख्यक आबादी नहीं है। दिल्ली के एक नेता ने कहा कि ऐसा नहीं हुआ तो भाजपा की रणनीति कामयाब हो जाएगी। पांच बार तक दिल्ली के सीलमपुर से विधायक रहे चौ. मतीन अहमद ने बताया कि यह अनपढ़ मुसलमानों में ही नहीं, पढ़े-लिखे लोगों में भी चर्चा है कि केन्द्र की पूरी तैयारी एनआरसी के नाम पर अल्पसंख्यकों की नागरिकता खत्म करने या किसी बहाने उन्हें परेशान करने की है। देश के गृहमंत्री अमित शाह संसद में और भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा गुरुवार को एक कार्यक्रम में बोल रहे थे कि एनआरसी को देशभर में लागू किया जाएगा, इसमें किसी भी तरह का संदेह नहीं है। मतीन अहमद कहते हैं कि असम का अनुभव लोगों को परेशान कर रहा है। 50 साल से देश में नागरिक होने का प्रमाण मांगा गया और इसके लिए लाखों की नागरिकता रोकी गई। देश में बड़े पैमाने पर गांव से शहरों की ओर पलायन होते रहते हैं। इसमें बड़ी तादाद में अल्पसंख्यक भी हैं। जो कई दूसरी तरह की परेशानियों से गांव से शहरों में आ गए। लोगों के पास अभी के प्रमाण पत्र तो मिल जाएंगे लेकिन सालों पुराने प्रमाण कितने लोगों के पास सुरक्षित होंगे? इसी तरह की बात मुस्तफाबाद से विधायक रहे ंभारतीय हज समिति के उपाध्यक्ष हसन अहमद बताते हैं ः वह दिल्ली में सीएए के विरोध में हंगामा होने के समय से ही शांति मार्च निकालने से लेकर जगह-जगह सद्भावना बैठकें कर रहे हैं। वह लोगों से कहते हैं कि बड़ा मुद्दा तो सद्भावना बनाए रखने का है। उन्होंने कहा कि जानबूझकर सद्भावना बिगाड़ने का काम किया जा रहा है। इस मुद्दे को लेकर लोगों के मन में तरह-तरह के सवाल हैं। केन्द्र सरकार की जवाबदेही बनती है कि लोगों की शंकाएं दूर करें। यह कैसे संभव है कि जो अपना गांव बरसों पहले छोड़ चुके हैं, वे अपने इस देश के नागरिक होने का प्रमाण दें? बेशक विरोध प्रदर्शन सीएए को लेकर हो रहे हों पर इसके साथ असल विरोध एनआरसी को लेकर है। इसलिए लगता नहीं कि नागरिक संशोधन कानून का विरोध जल्द  थमने वाला है।

                                                       öअनिल  नरेन्द्र

अब अदालतों में जज भी सुरक्षित नहीं

उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था इतनी खराब हो गई है कि अब तो अदालतों में जज तक सुरक्षित नहीं हैं। बिजनौर जजी परिसर की सीजेएम कोर्ट में गोलियां चलीं और जज महोदय को अपने आपको बचाने के लिए मेज के नीचे छिपना पड़ा। नजीबाबाद के हाजी अहसान और शादाब हत्याकांड में आरोपी हिस्ट्रीशीटर शाहनवाज निवासी कनकपुर (नजीबाबाद) और जब्बर निवासी जलालाबाद (बिजनौर) को दिल्ली की तिहाड़ जेल से पेशी पर बिजनौर लाया गया था। सीजेएम कोर्ट में पेशी के दौरान हाजी अहसान के बेटे साहिल निवासी बिजनौर, इकराम निवासी किरतपुर और सुमित निवासी जिलौन (शामली) ने गोलियां बरसाकर शाहनवाज की हत्या कर दी। हिस्ट्रीशीटर शाहनवाज को मारने के लिए शूटरों ने एकदम नजदीक से गोलियां बरसाईं। एक गोली उसके सिर पर मारी गई जबकि 9 गोलियां पेट और सीने पर मारी गईं और एक गोली पैर में मारी गई। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिजनौर सीजेएम कोर्ट में अभियुक्त की हत्या की वारदात को गंभीरता से लेते हुए स्वत संज्ञान लिया है। मुख्य न्यायाधीश के निर्देश पर गठित विशेष पीठ ने बुधवार को सुनवाई करते हुए कहा कि एक दशक से प्रदेश की जिला अदालतों में लगातार ऐसी घटनाएं हो रही हैं। आतंकी हमले भी हुए, इसके बावजूद सरकार ने अभी तक ठोस कदम नहीं उठाए। अदालतों में सबसे नाकारा पुलिस वालों को तैनात किया जाता है। यहां तक कि अदालत में आज जज भी सुरक्षित नहीं हैं। क्योंकि घटनाएं कोर्ट रूम में हो रही हैं। कोर्ट ने जिला जज बिजनौर व सीजेएम की रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को और अपर मुख्य सचिव गृह को तलब किया है। जस्टिस सुधीर अग्रवाल तथा जस्टिस सुनीत कुमार की पीठ ने राज्य सरकार से अदालतों की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी भी मांगी है। कोर्ट ने कहा कि वास्तव में यह गंभीर और चौंकाने वाली घटना है। कुछ वर्षों से ऐसी घटनाएं मुजफ्फरनगर व आगरा जैसे जिलों की अदालतों में हो चुकी हैं। एक दशक से अधिक समय से अदालतों में आपराधिक और 2008 में आतंकी घटनाएं हुई है जिनमें कई लोगों की जान जा चुकी है। ऐसे मामलों में कदम उठाने का यह एकदम उपयुक्त समय है। हम इस मामले को और नहीं टाल सकते। समय आ गया है कि दृढ़ इच्छाशक्ति से ऐसे मामलों को निपटाया जाए। बिजनौर के सीजेएम कोर्ट में हत्या के मामले में पुलिस की लापरवाही उजागर होती है। एसपी बिजनौर ने जजी पुलिस चौकी सहित 18 पुलिसकर्मियों को निलम्बित कर दिया है। पीएसी के जवान और दिल्ली पुलिस के कर्मियों के खिलाफ उच्चाधिकारियों को पत्र भेजा गया है। सुप्रीम कोर्ट कई बार कह चुका है कि उत्तर प्रदेश में जंगलराज है।

Saturday, 21 December 2019

आईपीएल 2020 ः किस टीम में कौन शामिल

आईपीएल-13 की नीलामी में आस्ट्रेलियाई क्रिकेटरों की धूम रही। जहां तेज गेंदबाज पैट कमिंस (15.50) करोड़ सबसे महंगे विदेशी बने वहीं ब्रेक के बाद वापसी करने वाले 31 साल के आलराउंडर ग्लेन मैक्सवेल को भी अच्छी कीमत मिली। हमवतन पेसर नाथ कुल्टर नारल (8 करोड़, मुंबई) भी मिलियन डॉलर बेबी बन गए। हालांकि जैकपॉट वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाज शेल्डन कॉटरेल को लगा जिन्हें बेस प्राइस से 17 गुना ज्यादा पैसा मिला। कभी मुंबई में संघर्ष के दिनों में गोलगप्पे बेचने को विवश 17 साल के युवा क्रिकेटर यशस्वी जायसवाल को राजस्थान रायल्स ने 2.40 करोड़ में खरीदा। अंडर-19 विश्व कप टीम में शामिल यशस्वी का बेस प्राइस 20 लाख था। इसी तरह राजस्थान के अनजान से युवा लेग स्पिनर रवि बिश्नोई पर किंग्स इलेवन पंजाब ने दो करोड़ की सफल बोली लगाई। मूलत उत्तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले यशस्वी ने कहा कि वह बेहद खुश हैं। गुरुवार की नीलामी के बाद 2020 संस्करण के लिए टीमें साफ हो गईं। नीलामी में सभी टीमों ने अपनी जरूरत के अनुसार बोली लगाई और प्लेयर्स को अपनी टीम से जोड़ा। आइए नजर डालें टीमों के प्रमुख खिलाड़ियों परöमुंबई इंडियसöरोहित शर्मा (कप्तान), बिस्टन कॉक, कीरोन पोलार्ड, हार्दिक पांड्या, जयंत यादव, आदित्य तारे, इशान किशन, जसप्रीत बुमराह इत्यादि। चेन्नई सुपर किंग्स-एमएस धोनी (कप्तान), शार्दुल ठाकुर, दीपक चाहर, इमरान ताहिर, करण शर्मा, हरभजन सिंह, रविन्दर जडेजा, केदार जाधव, ड्वेन ब्रावो, मुरली विजय, नगिदी, पीयूश चावला, सैम कुर्रन प्रमुख हैं, किंग्स इलेवन पंजाब-लोकेश राहुल (कप्तान) करुण नायर, मयंक अग्रवाल, मोहम्मद शमी, शेल्डन काटरेल, ग्लेन मैक्सवेल, निकोलस पूरन, मुजीब उर रहमान प्रमुख  हैं। दिल्ली कैपिटल, श्रेयस अय्यर (कप्तान), शिखर धवन, पृथ्वी शाह, ऋषभ पंत, अजिंक्य रहाणे, रविचंदन अश्विन, शिमरोन हेटमायर, मार्पस स्टोइनिस, मोहित शर्मा, एलेक्स कैरी, क्रिस वोक्स, जेसन रॉय, हर्षल पटेल, अमित मिश्रा, ईशांत शर्मा प्रमुख हैं। कोलकाता नाइट राइडर्स-शुभमन गिल, कुलदीप यादव, सुनील नरेन, आंद्रे रसेल, दिनेश कार्तिक (कप्तान) हैरी गनी, नीतीश राणा, लॉकी फर्ग्यूसन, प्रवीण तांबे, पैट कमिंस, इयोन मोर्गन प्रमुख हैं। रायल चैलेंजर्स बेंगलुरु-विराट कोहली (कप्तान), नवदीप सैनी, वाशिंगटन सुपर शिवम दूबे, उमेश यादव, पवन नेगी, मोहम्मद सिराज, पृथ्वी पटेल, एबी डिविलियर्स, युजवेंद्र चहल, मोईन अली, डेल स्टेन, केन रिचर्डसन, क्रिस मॉरिस और आरोन फिंच प्रमुख हैं। सनराइजर्स हैदराबाद-केन विलियमसन (कप्तान), बेयरस्टो, डेविड वार्नर, भुवनेश्वर, मनीष पांडे, रिद्धिमान साहा, खलील अहमद, सिद्धार्थ कौल, शाहबाज नदीम, संदीप शर्मा, राशिद खान, मोहम्मद नबी, मिशेल मार्श प्रमुख हैं। इस तरह आईपीएल 2020 की स्टेज सेट है।

-अनिल नरेन्द्र

आखिर इतने दिन बाद सरकार को विज्ञापन क्यों देना पड़ा?

तारीख 18 दिसम्बर 2019 स्थान रांची। गृहमंत्री अमित शाह कहते हैंöदुनिया में कोई देश ऐसा नहीं है, जहां कोई भी जाकर बस सकता है। देश के नागरिकों का रजिस्टर होगा, यह समय की जरूरत है। हमने अपने चुनावी घोषणा पत्र में देश की जनता से वादा किया है। न केवल असम बल्कि देशभर के अंदर हम एनआरसी को लेकर आएंगे। एनआरसी के अलावा देश में जो भी लोग हैं, उन्हें कानूनी प्रक्रिया के तहत बाहर किया जाएगा। यह पहली दफा नहीं है, जब अमित शाह ने यह बात कही हो। वह इससे पहले भी कई जगहों और मौकों पर पूरे दम-खम से देशभर में एनआरसी लागू करने की अपनी सरकार और पार्टी की प्रतिबद्धता को जताते रहे हैं। वो हमेशा जोर देकर सरकार के इस कार्यकाल में पूरे देश में एनआरसी को लागू करने की बात करते हैं, लेकिन एनआरसी और नागरिकता कानून को लेकर आज देशभर में आग लगी हुई है और धरना-प्रदर्शन, गोली व लाठीचार्ज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट की सख्त फटकार के बाद केंद्र सरकार ने गुरुवार को पहली बार वास्तविक शर्तों को स्पष्ट करने के लिए अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित करवाए और अपनी स्थिति फिर से स्पष्ट की। सरकार को यह काम बहुत पहले करना चाहिए था। आज पूरे देश में इसको लेकर आग लगी हुई है। विज्ञापन में लिखा हैöअधिनियम से जुड़ी कई प्रकार की अफवाहें और गलत सूचनाएं फैलाई जा रही हैं, लेकिन यह किसी भी तरह से सच नहीं हैं। इसके बाद तीन बिन्दुओं में अफवाहों और उनके बारे में सच क्या है, इसका जिक्र किया गया है। पहले दो बिन्दुओं पर सरकार ने स्पष्ट किया है कि सीएए किसी भारतीय नागरिक को, चाहे वो मुसलमान ही क्यों न हो, प्रभावित नहीं करता है। यह तर्प पहले भी सरकार और गृहमंत्री अमित शाह देते आए हैं, लेकिन विज्ञापन का तीसरा बिन्दु लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है। तीसरा बिन्दु कुछ इस तरह हैöअफवाह-ऐसे दस्तावेज जिनसे नागरिकता प्रमाणित होती हो, उन्हें अभी से जुटाने होंगे अन्यथा लोगों को निर्वासित कर दिया जाएगा। सच-गलत किसी राष्ट्रव्यापी एनआरसी की घोषणा नहीं की  गई है। अगर कभी इसकी घोषणा की जाती है तो ऐसी स्थिति में समय और निर्देश ऐसे बनाए जाएंगे ताकि किसी भी भारतीय नागरिक को परेशानी न हो। एनआरसी पर सरकार ने जो विज्ञापन प्रकाशित करवाया है, उसे जानकर सीएए के खिलाफ देशभर में पनपे गुस्से को शांत करने की एक कोशिश भी समझी जा रही है। देशभर में एनआरसी ः एनआरसी को मूल रूप से सुप्रीम कोर्ट की तरफ से असम के लिए लागू किया गया था। इसके तहत अगस्त के महीने में यहां के नागरिकों का एक रजिस्टर जारी किया गया था। प्रकाशित रजिस्टर में करीब 19 लाख लोगों को बाहर रखा गया था। जिनका नाम इस रजिस्टर में नहीं है, उन्हें अपनी नागरिकता साबित करनी होगी। मामले ट्रिब्यूनल में चल रहे हैं। अब सीएए के विरोध प्रदर्शनों में एनआरसी की भी बात की जा रही है और यह कहा जा रहा है कि अब सभी नागरिकों को यह साबित करना होगा कि यहां के नागरिक हैं। सीएए के खिलाफ देशभर में विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। पूर्वोत्तर राज्यों से शुरू हुआ विरोध धीरे-धीरे पूरे देश में और यहां तक कि देश की राजधानी दिल्ली में भी पहुंच गया। कई राज्यों में विश्वविद्यालय के छात्र सड़क पर उतर आए हैं और सरकार से कानून वापस लेने की मांग कर रहे हैं। विभिन्न राजनीतिक पार्टियां, संस्थाएं, बुद्धिजीवी सीएए और देशव्यापी एनआरसी के एक साथ लागू हो जाने की स्थिति में उत्पन्न होने वाले खतरों पर लोगों को आगह कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने एक न्यूज चैनल से बात करते हुए कहाöजो लोग पाकिस्तान से आएंगे उनके दस्तावेज भारत सरकार बनाएगी और जिन अपने लोगों के पास दस्तावेज नहीं होंगे उन्हें सरकार देश से बाहर निकालेगी। इससे पहले कांग्रेस के गौरव वल्लभ ने भी सरकार को इस मुद्दे पर घेरते हुए कहा है कि सरकार लोगों से उनके नागरिक होने के दस्तावेज मांग रही है और प्रधानमंत्री और उनके मंत्री अपनी शैक्षिक योग्यता के दस्तावेज तक नहीं दिखा पा रहे हैं। हालांकि गृहमंत्री अमित शाह ने दावा किया है कि विपक्ष एकजुट होकर सीएए के खिलाफ अफवाहें फैला रहा है और इससे अल्पसंख्यकों को रत्तीभर नुकसान नहीं पहुंचेगा। जिस तरह से देशभर के युवा सड़कों पर उतर आए हैं, उससे लग रहा है कि सरकार अब  दबाव में आ रही है और उसे इस तरह का विज्ञापन देना पड़ रहा है और यह स्पष्ट करना पड़ रहा है कि एनआरसी पूरे देश में लागू नहीं किया गया है। जो सरकार एक दिन पहले तक एनआरसी के मुद्दे पर दृढ़ दिख रही थी, गृहमंत्री इसे लागू करने की बात कर रहे थे, आज उसी सरकार का विज्ञापन अगर ऐसा लिखता है तो यह साफ है कि सरकार का रुख नरम पड़ रहा है। असल में, जिस तरह सरकार ने नोटबंदी और जीएसटी को बिना तैयारी के लागू कर दिया उसी तरह नागरिकता संशोधन कानून को भी जल्दबाजी में बिना किसी तैयारी के लागू किया है।

Friday, 20 December 2019

एलओसी पर किसी भी समय हालात बिगड़ सकते हैं

एलओसी पर स्थिति विस्फोटक बनी हुई है। सेना प्रमुख जनरल रावत ने भी कहा है कि एलओसी पर कुछ भी हो सकता है। पाकिस्तान से सटी 814 किलोमीटर लंबी एलओसी पर दोनों ओर से जबरदस्त घमासान किसी भी समय शुरू हो सकती है। यह आशंकाएं इसलिए हैं क्योंकि भारतीय सेना ने अपने फील्ड कमांडरों को पाक सेना द्वारा संघर्षविराम का मुंहतोड़ जवाब देने की खातिर अपने स्तर पर निर्णय लेने को कहा है। इसमें सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत का वह वक्तव्य भी तड़का लगा रहा है जिसमें वह कहते हैं कि एलओसी पर किसी भी समय हालात बिगड़ सकते हैं। नतीजतन एलओसी के इलाकों में रहने वाले लाखों सीमावासियों में दहशत का माहौल बना हुआ है। संघर्षविराम उल्लंघन और बैट हमले का पाकिस्तान को अब और भी मुस्तैदी से जवाब दिया जा रहा है। भारतीय सेना ने एलओसी पर पाक सेना को संघर्षविराम उल्लंघन का करारा जवाब देते हए पाक सेना के एक ब्रिगेड हेडक्वार्टर को उड़ा दिया है। इसमें पाक सेना के दर्जनों सैनिक भी मारे गए। फिलहाल भारतीय सेना ने इसकी पुष्टि आधिकारिक तौर पर नहीं की है लेकिन मिलने वाले समाचार कहते हैं कि इस नुकसान से पाक सेना तिलमिला उठी है और वह किसी भी समय एलओसी पर अन्य सेक्टरों में मोर्चा खोल सकती है। जिला कुपवाड़ा में नियंत्रण रेखा से सटे तंगधार इलाके में गत रात को पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा की गई बिना किसी उकसावे की गोलाबारी के जवाब में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को भारी नुकसान पहुंचाया है। तंगधार के सामने गुलाम कश्मीर के अथमुकाम क्षेत्र में स्थित पाकिस्तानी सेना के ब्रिगेड हेडक्वार्टर को गोलाबारी में काफी क्षति पहुंची है। पाक सेना द्वारा राजौरी जिले के सुंदरबनी सेक्टर में बैट हमले और नियंत्रण रेखा के साथ सटे इलाकों में लगातार किए जा रहे जंगबंदी के उल्लंघन के मद्देनजर सैन्य प्रशासन ने सभी फील्ड कमांडरों को तत्कालिक परिस्थितियों के आधार पर दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देने का निर्देश दिया है। पाक सेना द्वारा बीते एक माह में जम्मू संभाग के पुंछ व राजौरी में हर तीसरे दिन एलओसी पर पाकिस्तानी सेना की तरफ से गोलाबारी की जा रही है। उत्तरी कश्मीर में बीते तीन माह के दौरान औसतन हर सप्ताह एक बार गोलाबारी हो रही है। सैन्य अधिकारियों ने बताया कि सैन्य प्रशासन और रक्षा मंत्रालय लगातार एलओसी की स्थिति की निगरानी कर रहे हैं। पाकिस्तानी सेना द्वारा बैट हमले और जंगबंदी का उल्लंघन लगातार करने के इनपुट हैं। उन्होंने बताया कि पाकिस्तानी सेना का इस समय पूरा ध्यान एलओसी पर किसी तरह की जंग की स्थिति को पैदा करते हुए स्वचालित हथियारों से लैस आतंकियों को जम्मू-कश्मीर में धकेलने पर है। उन्होंने बताया कि इन दिनों सीमावर्ती इलाकों में लगातार धुंध पड़ने से स्थिति और खराब हो रही है।

-अनिल नरेन्द्र

आईसीयू में भारत की अर्थव्यवस्था

पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविन्द सुब्रह्मण्यम ने बुधवार को टिप्पणी की है कि भारत गहरी आर्थिक सुस्ती में है और बैंकों तथा कंपनियों के लेखाजोखा के जुड़वा संकट की दूसरी लहर के कारण अर्थव्यवस्था सघन चिकित्सा (आईसीयू) में जा रही है। सुब्रह्मण्यम नरेंद्र मोदी सरकार के पहले मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) रहे हैं। उन्होंने पिछले साल अगस्त में इस्तीफा दे दिया था। सुब्रह्मण्यम ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के भारत कार्यालय के पूर्व प्रमुख जोश फेलमैन के साथ लिखे गए नए शोध पत्र में कहा है कि भारत इस समय बैंक, बुनियादी ढांचा, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) और रीयल एस्टेट, इन चारों क्षेत्रों की कंपनियों के लेखाजोखा के संकट का सामना कर रहा है। इसके अलावा भारत की अर्थव्यवस्था ब्याज दर और वृद्धि के प्रतिकूल मंदी में फंस गई है जिसमें जोखिम से बचने की प्रवृत्ति के कारण ब्याज दर बढ़ती जाती है। इसके कारण विकास दर घटती है और इसके कारण जोखिम से बचने की भावना और मजबूत होती जा रही है। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था में यह कोई साधारण सुस्ती नहीं है। यह भारत के लिए बहुत बड़ा स्लोडाउन है। सुब्रह्मण्यम ने कहा कि अर्थव्यवस्था को पहले झटका दोहरे बैलेंसशीट (ट्विन बैलेंसशीट) की समस्या से लगभग इससे बैंक और इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियां शामिल थीं। यह झटका तब लगा जब वर्ष 2000 के बाद के दशक के मध्य में इंवेस्टमेंट बूम के दौरान शुरू की गई इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं डिफॉल्ट करने लगीं। इसके बाद एनबीएफसी के नेतृत्व में अत्याधिक कर्ज दिए जाने से अव्यवहारिक रीयल एस्टेट परियोजनाओं की बाढ़ आ गई। यह गुब्बारा 2019 में फटा। इसके कारण खपत भी घटी, जिससे विकास दर में भारी गिरावट दर्ज की गई। इन सब कारणों से भारत अब चार बैलेंसशीट चुनौतियों का सामना कर रहा है। शुरू में दो तरह की बैलेंसशीट समस्याएं थीं, जिनमें एनबीएफसी और रीयल एस्टेट सेक्टर भी शामिल हो गए। समस्या के निदान पर सुब्रह्मण्यम और फेलमैन ने कहा कि कोई एक सीधा उपाय दिखाई नहीं पड़ता है। 2010 के बाद के वर्षों में विकास के पैटर्न को देखने के बाद अर्थव्यवस्था में लंबी सुस्ती और उसके बाद अचानक गिरावट की कोई एक व्याखया नहीं की जा सकती है। हमारे विश्लेषण में संरचनागत और चक्रीय दोनों कारण दिखाई पड़ते हैं। इन दोनों में फाइनेंस का मुद्दा समान रूप से मौजूद है। मौद्रिक नीति बहुत कारगर नहीं है, क्योंकि बैंकों की ब्याज दरों में इसका पूरा हस्तांतरण नहीं हो पा रहा है। यदि बड़ी वित्तीय राहत दी जाती है तो इसमें पहले से ही ऊंची ब्याज दरों में और बढ़ोतरी होगी, जिसके कारण विकास को तेज करने वाले पहलुओं पर बुरा असर पड़ेगा। अर्थव्यवस्था में टिकाऊ तेजी लाने के लिए बैलेंसशीट समस्या का निदान करना जरूरी है।

एक तानाशाह को सजा-ए-मौत

पाकिस्तान के इतिहास में ऐसा पहली बार किसी पूर्व सेनाध्यक्ष और फौजी तानाशाह को फांसी की सजा दी गई है। हालांकि सजा की घोषणा के दौरान मुशर्रफ वहां मौजूद नहीं थे। पूर्व फौजी तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ को देश का संविधान रद्द करने का अपनी डिक्री को संविधान घोषित कर सुप्रीम कोर्ट के जजों को बर्खास्त करने और जनता की आवाज दबाने के लिए आपातकाल लगाने की सजा आखिरकार अदालत ने दे दी। लंबे समय से देशद्रोह के मुकदमे का सामना कर रहे परवेज मुशर्रफ को मौत की सजा सुनाकर विशेष अदालत ने यह संदेश दिया है कि पाकिस्तान में न्याय अभी जिन्दा है और कानून से ऊपर कोई नहीं है। अदालत का यह फैसला दर्शाता है कि तमाम दबावों और संकटों के बावजूद पाकिस्तान की न्यायपालिका स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से काम करती है। दरअसल यह फैसला यह भी दिखाता है कि कैसे यह पड़ोसी मुल्क अपने अंतर्विरोधों से जूझ रहा है। 1999 में नवाज शरीफ का रक्तहीन तख्ता पलट कर पाकिस्तान की कमान अपने हाथ में लेने वाले मुशर्रफ ने 2001 से 2008 के दौरान राष्ट्रपति का पद संभाला था। विशेष अदालत ने उन्हें 2007 में संविधान को निलंबित करने और गैर-वैधानिक तरीके से देश पर इमरजैंसी थोपने का दोषी पाया। उस दौरान मुशर्रफ के निर्देश पर सुप्रीम कोर्ट सहित विभिन्न  अदालतों के अनेक जजों को नजरबंद कर दिया गया था या गिरफ्तार कर लिया गया था। पाकिस्तान के संविधान के मुताबिक यह राजद्रोह है, जिसमें सजा--मौत या उम्रकैद का प्रावधान है। फांसी की सजा तो दूर, मुशर्रफ को सजा मिलेगी भी या नहीं, इसे लेकर ही पाकिस्तान में संशय बना हुआ था। मुशर्रफ सिर्प देश के राष्ट्रपति नहीं रहे, वह पाकिस्तान के सैन्य शासक, देश के सेना प्रमुख, कारगिल युद्ध के नायक जैसे रूपों में मील का पत्थर गाढ़ते रहे। इसलिए मुशर्रफ की मौत की सजा की खबर चौंकाने वाली जरूर है। पाकिस्तान के इतिहास में वह पहले ऐसे सैन्य शासक और राष्ट्रपति हैं, जिन्हें मौत की सजा सुनाई गई हो। जिस मुल्क में राजनीति से लेकर हर जगह सेना का दबदबा रहता हो और बिना सेना की मर्जी के पत्ता भी नहीं हिल सकता हो, वहां एक पूर्व सैन्य  शासक और राष्ट्रपति को फांसी की सजा दिया जाना स्पष्ट रूप से इस बात का संदेश है कि सेना भी न्यायपालिका से ऊपर नहीं है। यह उन पूर्व और मौजूदा सैन्य अधिकारियों और राजनीतिज्ञों के लिए भी कड़ा संदेश है कि जो अपने को कानून से ऊपर मानकर चलते हैं। मुशर्रफ को सजा दिलाने में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस आसिफ सईद खान खोसा की अहम भूमिका रही। उनके हाल के फैसलों को सेना के लिए चुनौती माना जा रहा है। हाल ही में खोसा ने आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा के सेवा विस्तार को तीन साल से घटाकर छह महीने का कर दिया था। सेना ने इस पर नाराजगी भी जताई। हाई कोर्टों में याचिकाएं देकर मुशर्रफ के खिलाफ केस रोकने की कई कोशिशें की गईं। इस पर अप्रैल में खोसा की तीन सदस्यीय बेंच ने आदेश जारी किया था कि अगर आरोपी पेश नहीं होता तो उसकी गैर-मौजूदगी में रोज सुनवाई करके फैसला किया जाए। विशेष अदालत ने आठ महीने में फैसला सुना दिया। खोसा पीएम इमरान खान को भी हद में रहने के लिए हिदायत देते हुए कह चुके हैं कि आप न्यायपालिका पर तंज न कसें। यह 2009 के पहले की न्यायपालिका नहीं है। मुशर्रफ के खिलाफ फैसला देकर न्यायपालिका ने जता दिया कि उससे ताकतवर फौज भी नहीं है। पाक हाई कोर्ट व विशेष अदालत ने मुशर्रफ को कई बार तलब किया। वह हर बार बीमारी का बहाना बनाकर देश लौटने से इंकार करते रहे। हाल में उन्होंने अस्पताल से एक वीडियो भी जारी किया, जिसमें बिस्तर पर लेटे-लेटे कहाöदेशद्रोह का केस बेबुनियाद है। अब ऐसे में मुशर्रफ को पाकिस्तान लाना ही मौजूदा सरकार के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। इसके अलावा पाकिस्तान की दुबई से कोई प्रत्यार्पण संधि भी नहीं है। फिर देखना यह भी होगा कि पाकिस्तान सेना का इस फैसले पर क्या रुख होता है?

-अनिल नरेन्द्र

बाहुबली के सियासी दबाव व धमकियों के बाद भी नहीं झुकी पीड़िता

उन्नाव की बिटिया को करीब ढाई साल के संघर्ष के बाद आखिरकार इंसाफ मिल गया, हालांकि जिस निर्भया के कारण दुष्कर्म का कानून बदला, न्यायिक सक्रियता बढ़ी, उसकी आत्मा को सात साल से ऊपर होने के बाद भी इंसाफ का इंतजार है, कई मौके ऐसे आए, जब लगा कि सत्तारूढ़ दल का रसूखदार और बाहुबली विधायक न्यायिक प्रक्रिया की आड़ में कानून को धत्ता बता सकता है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के दखल से उसके मंसूबे पूरे नहीं हो पाए। दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने भाजपा के निष्कासित विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को उन्नाव की नाबालिग बिटिया से दुष्कर्म का दोषी करार दिया है। हालांकि सह-आरोपी शशि सिंह को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया। कोर्ट ने कहाöताकतवर व्यक्ति के खिलाफ पीड़िता की गवाही सच्ची और बेदाग साबित हुई। कोर्ट ने सेंगर को भारतीय दंड संहिता और पॉस्को एक्ट के तहत लोकसेवक द्वारा बच्ची के साथ यौन शोषण अपराध का दोषी करार दिया। इन धाराओं के तहत उसे अधिकतम उम्रकैद की सजा हो सकती है। विधायक सेंगर के दुष्कर्म की शिकार हुई पीड़िता को न्याय की लड़ाई में तमाम संघर्षों का सामना करना पड़ा। इस दौरान उसने परिवार के कई सदस्यों को भी हमेशा के लिए खो दिया। पिता और दादी के बाद उसने चाची और मौसी को भी खो दिया। रायबरेली में हुए हादसे में पीड़िता की तो जान बच गई, लेकिन विधायक और उसके गुर्गों की धमकियों के बावजूद न्याय की लड़ाई में साथ देने वाले वकील अभी भी कोमा में हैं। बता दें कि चार जून 2017 को 16 साल की उम्र में किशोरी के साथ दुष्कर्म की घटना हुई थी। किशोरी को अगवा कर अलग-अलग स्थानों पर रखा गया। आठ महीने बाद उसको पुलिस ने खोज लिया। मां ने थाने में दिए प्रार्थना पत्र में विधायक कुलदीप सिंह सेंगर द्वारा पड़ोस की एक महिला शशि सिंह के जरिये बहाने से बुलाकर दुष्कर्म की शिकायत की, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। 11 जून 2017 को पीड़िता ने न्यायालय की शरण ली और 156/3 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया, लेकिन पुलिस ने विवेचना में विधायक और सह-आरोपी महिला का नाम हटा दिया। इसके बावजूद पीड़िता अपनी चाची (रायबरेली हादसे में मृत) के दिए हौंसले के सहारे अपनी लड़ाई लड़ती रही। उन्नाव दुष्कर्म मामले में सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए डिस्ट्रिक्ट जज धनेश शर्मा ने बिटिया की हिम्मत और जज्बे की तारीफ भी की। कोर्ट ने इस दौरान सामाजिक बंदिशों का भी जिक्र किया। कोर्ट ने सीबीआई की भी खिंचाई की। जांच के दौरान उसे बेवजह परेशान किए जाने पर भी सवाल उठाए। पॉस्को एक्ट की धारा 24 के तहत ऐसे मामले में महिला अधिकारी को होना चाहिए था लेकिन इस मामले में इसको भी नजरंदाज किया गया। इस पर कोर्ट ने नाराजगी जताई। अब अदालत इस केस में 20 दिसम्बर को सजा सुना सकती है। कुलदीप सिंह सेंगर ने बचने के लिए पूरी ताकत लगा दी पर उसका सियासी दबदबा भी उन्हें नहीं बचा सका।

Thursday, 19 December 2019

अमित शाह ने नरेंद्र मोदी से अलग गढ़ ली अपनी छवि

आज अमित शाह एक चमकते सितारे हैं, लेकिन उन्होंने बुरा वक्त भी देखा है। वह जेल में रहे और उनके गुजरात जाने पर भी अदालत ने रोक लगा दी थी, लेकिन अब वह कांग्रेस के राज में लगे आरोपों से बरी हो चुके हैं। कांग्रेस राज में भाजपा के अंदर भी ऐसे लोगों की कमी नहीं थी जो शाह से दूर रहना चाहते थे। संसदीय बोर्ड की बैठक में एक स्वर्गीय नेता ने तो यहां तक कह दिया था कि आखिर कब तक हम अमित शाह को ढोएंगे? बैठक में नरेंद्र मोदी के धैर्य ने भी जबाव दे दिया। उन्होंने कहाöक्या बात करते हैं जी। पार्टी के लिए अमित के योगदान को कैसे भुला सकते हैं। अरुण जेटली की ओर देखते हुए कहाöअरुण जी आप जेल जाइए और अमित शाह से मिलिए। उन्हें लगना चाहिए कि पार्टी उनके साथ है। उसके बाद इस मुद्दे पर बैठक में कोई नहीं बोला। अरुण जेटली जेल गए और अमित शाह से मिले। जेल से छूटने के बाद जब अदालत  ने उनके गुजरात जाने पर रोक लगा दी थी तो वह दिल्ली आ गए। दिल्ली में अमित शाह ज्यादा लोगों को जानते नहीं थे। राजनीति के अलावा उनकी और कोई रुचि भी नहीं है। अरुण जेटली ने पार्टी के सात-आठ युवा नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी कि रोज कम से कम दो लोग दिनभर अमित शाह के साथ रहेंगे। शाह जितने दिन दिल्ली में रहे दोपहर का भोजन अरुण जेटली के यहां तय था। उस समय राजनाथ सिंह की जगह नितिन गडकरी पार्टी अध्यक्ष बन पाए थे। अमित शाह उनसे मिलने जाते थे तो दो-दो, तीन-तीन घंटे बाहर इंतजार करना पड़ता था। पर अमित शाह ने कभी किसी से शिकायत नहीं की। दिल्ली में रहने के बावजूद अमित शाह दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में अनजान ही थे। साल 2013 आते-आते राजनाथ सिंह एक बार फिर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। मोदी के कहने पर राजनाथ सिंह ने उन्हें राष्ट्रीय महामंत्री बना दिया। जब उन्हें उत्तर प्रदेश का प्रभार दिया गया तो दिल्ली में पार्टी में सवाल उठे कि वह उत्तर प्रदेश  के बारे में जानते क्या हैं? पर उत्तर प्रदेश के भाजपा नेताओं को पहली ही बैठक में समझ आ गया कि अमित शाह क्या चीज हैं। उत्तर प्रदेश में कामयाबी मिलने से पूरा नजरिया ही बदल गया। बैठक शुरू होते ही नेताओं ने बताना शुरू किया कि कौन-कौन सीट (लोकसभा) जीत सकते हैं। अमित शाह ने कहा कि आप लोगों को कोई सीट जिताने की जरूरत नहीं है। यह बताइए कि कौन कितने बूथ जिता सकते हैं? मुझे बूथ जिताने वाले चाहिए, सीट जिताने वाले नहीं। उसके बाद लोकसभा चुनाव के नतीजों ने अमित शाह को राष्ट्रीय फलक पर स्थापित कर दिया। इस कामयाबी ने उनके पार्टी अध्यक्ष बनने का रास्ता साफ कर दिया। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उन्होंने भाजपा की पूरी संस्कृति ही बदल दी। पार्टी के पदाधिकारियों से ज्यादा अहमियत बूथ कार्यकर्ता की हो गई। राज्यों के प्रभारी राष्ट्रीय महामंत्री अमूमन राज्य की राजधानी या कुछ प्रमुख शहरों तक ही जाते थे। अचानक सबने देखा कि पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं से न केवल मिलने लगा बल्कि उनके घर भोजन पर जाने लगा। शाह जिस भी राज्य की बैठक में जाते हैं राज्य के पदाधिकारियों के पसीने छूट जाते हैं। वजह यह है कि उन्हें हर चुनाव क्षेत्र, उसके प्रमुख कार्यकर्ताओं और मुद्दों की उनसे ज्यादा जानकारी होती है। इसके लिए उन्हें लैपटॉप या नोटबुक देखने की जरूरत नहीं पड़ती। चुनाव के दौरान वह पार्टी के तंत्र से इतर अपना एक अलग तंत्र खड़ा करते हैं। इसमें बूथ का कार्यकर्ता और कॉल सेंटर तक सब होता है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का जब गठबंधन हो गया तो सबने मान लिया कि राज्य में भाजपा का सफाया तय है। लेकिन शाह का कहना था कि लड़ाई और प्रयास का स्तर बढ़ा दो, ज्यादा नुकसान नहीं होगा। सीट के बारे में सोचना छोड़ दो, 50 प्रतिशत वोट का लक्ष्य रखो। उन्होंने सारे राजनीतिक पंडितों को गलत साबित कर दिया। लोकसभा चुनाव की कामयाबी ने उन्हें गृह मंत्रालय में स्थापित कर दिया। आमतौर पर केंद्रीय गृहमंत्री सरकार में नम्बर दो माना जाता है। सवाल था कि क्या राजनाथ सिंह को इस भूमिका से हटा दिया जाए? मोदी और शाह दोनों ने तय किया कि नहीं, इसकी जरूरत नहीं है। पांच अगस्त को जब राज्यसभा में जम्मू-कशमीर की धारा 370 को खत्म करने और दो केंद्र शासित राज्य बनाने का विधेयक पेश हुआ, तो प्रधानमंत्री ने पूरे देश को बता दिया कि उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी कौन है? यह विधेयक लोकसभा चुनाव से पहले ही लाने की तैयारी हो चुकी थी। विधेयक के मसौदे से लेकर पीडीपी से रिश्ता कब और कैसे तोड़ना है, इसकी सारी राजनीतिक व्यूह रचना अरुण जेटली, अमित शाह और मोदी ने तैयार की। जेटली ने राजनाथ सिंह को तीन बार बुलाकर पूरे विधेयक का मसौदा समझाया और यह भी कि उन्हें सदन में क्या बोलना है, पर उसी दौरान पुलवामा का हमला हुआ और सरकार ने बालाकोट एयर स्ट्राइक का फैसला किया इसलिए विधेयक टाल दिया गया। प्रधानमंत्री ने संविधान संशोधन विधेयक की कमान अमित शाह को सौंप दी और खुद नेपथ्य में रहे। नागरिकता संशोधन विधेयक संसद में पेश हुआ और पास हुआ तो प्रधानमंत्री संसद में ही नहीं आए। अमित शाह परोक्ष रूप से सदन में पार्टी के नेता की भूमिका में थे। दोनों अवसरों पर अमित शाह ने पार्टी और देश के लोगों को अपने संसदीय कौशल से चौंकाया, सदन के दोनों सदनों में उनके प्रदर्शन से देश को पहली बार परिचय हुआ। जिस ढंग से आज अमित शाह फैसले कर रहे हैं उससे साफ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना उत्तराधिकारी चुन लिया है। जिस तरह से शाह राष्ट्रीय पटल पर उभर कर आए हैं, उसे देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि मोदी की छाया से इतर उन्होंने अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व का परिचय दिया है।

-अनिल नरेन्द्र

Sunday, 15 December 2019

पानीपत पर संग्राम ः धुर विरोधी साथ आए

फिल्म पानीपत--ग्रेट बिट्रेयल में भरतपुर के महाराजा सूरज मल के गलत चित्रण पर पूरे राजस्थान में बवाल मचा हुआ है। राजनीति में धुर विरोधी माने जाने वाले बड़े नेता एक सुर में फिल्म का विरोध कर रहे हैं। सीएम अशोक गहलोत, पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया, नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल, महाराजा सूरज मल के वंशज व पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह सहित कई नेताओं ने फिल्म का विरोध किया है। प्रदेश में यह पहला मौका है जब चारों विरोधी नेता एकमत नजर आए हैं। इस बीच भरतपुर के कई कस्बे-बाजार बंद रहे। वहीं जयपुर के सिनेमाघरों के बाहर प्रदर्शन किए गए। जयपुर के 18 सिनेमाघरों में शुक्रवार से फिल्म प्रदर्शित हुई है। विरोध के बाद देर शाम तक 16 सिनेमाघरों ने इसका प्रसारण रोक दिया है। ऑनलाइन बुकिंग भी कैंसिल कर दी गई। सिनेमाघरों में सुबह का शो दिखाया गया, इसके बाद बंद हो गए। फिल्म पर भरतपुर, रूपवास, कुम्हेर, डीग और नगर में भी बाजार बंद रहे। कई जगहों पर लोगों ने जमकर प्रदर्शन किया। पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह ने कहा कि टीआरपी के लिए फिल्म में गलत तथ्य दिखाए जा रहे हैं। इसको लेकर कोर्ट में भी रिट लगाई जा रही है। सीएम अशोक  गहलोत ने कहा कि फिल्म में महाराजा के चित्रण पर जो प्रतिक्रिया आ रही है ऐसी स्थिति पैदा नहीं होनी चाहिए थी। सेंसर बोर्ड हस्तक्षेप करे, डिस्ट्रीब्यूटर्स को जाट समाज के लोगों से अविलंब संवाद करना चाहिए। फिल्म बनाने से पहले किसी के व्यक्तित्व को सही परिप्रेक्ष्य में दिखाना सुनिश्चित करना चाहिए। फिल्म देखने के बाद राजस्थान जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम भील, श्री राजपूत करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष महिपाल सिंह मकराना व राजस्थान युवा जाट महासभा के कुलदीप चौधरी ने विरोध जारी रखने की बात कही है। पानीपत का विरोध दिल्ली तक भी पहुंच गया है। नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल ने मंगलवार सुबह लोकसभा परिसर में फिल्म का पोस्टर फाड़ा और फिल्म को बैन करने की मांग की। बेनीवाल ने लोकसभा में भी कहा कि पूर्व में लोगों की भावना और आस्था को प्रभावित करने वाली 15 फिल्में बैन की गई थीं। ऐसे में पानीपत को भी बैन किया जाना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

आखिर हाफिज सईद पर कसा शिकंजा

पाकिस्तान में बुधवार को आखिरकार मुंबई हमले के मास्टर माइंड और जमात-उद-दावा (जेयूडी) प्रमुख हाफिज सईद पर शिकंजा कसना शुरू हो गया है। वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (एफएटीएफ) के दबाव के बाद लाहौर की आतंकरोधी अदालत (एटीसी) ने आतंकी संगठन लश्कर--तैयबा के संस्थापक सईद पर आतंकवाद के खिलाफ वित्तपोषण मामले में आरोप तय किया है। कोर्ट ने सईद के अलावा उसके  तीन साथियों के खिलाफ भी आरोप तय किए। शनिवार को इस मामले में सह-आरोपी के अदालत में पेश नहीं होने की वजह से सईद के खिलाफ आरोप तय नहीं हो सके। पंजाब पुलिस के आतंकवाद रोधी विभाग ने 17 जुलाई को सईद और उसके सहयोगियों के खिलाफ विभिन्न शहरों में आतंकवाद के वित्तपोषण को लेकर 23 एफआईआर दर्ज किए थे। इसके बाद सईद को गिरफ्तार किया गया था और तब से वह लाहौर की कोट लखपत जेल में बंद है। यह मामले लाहौर, गुजरांवाला और मुल्तान में अल-अंफाल ट्रस्ट, दावातुल इरशाद ट्रस्ट और मुआज बिन जबाल ट्रस्ट सहित ट्रस्ट या गैर-लाभ संगठनों (एनपीओ) के नाम पर बनाई गईं सम्पत्तियों के माध्यम से आतंकवाद को वित्तपोषण के लिए धन एकत्रित करने के लिए दर्ज किए गए हैं। अब पाकिस्तान की आतंकवाद विरोधी अदालत में जब सईद के खिलाफ आरोप तय हुए हैं तब भी संभावना यही है कि इसके पीछे वहां की सरकार की इच्छाशक्ति कम और अंतर्राष्ट्रीय दबाव ज्यादा रहा है। पंजाब आतंकवाद विरोधी विभाग ने इससे संबंधित ठोस सबूत भी पेश किए हैं। हालांकि बीते शनिवार को इसी अदालत में जिस तरह के हालात पैदा हुए थे, उससे यह आशंका खड़ी हो गई थी कि शायद एक बार फिर हाफिज को बख्श देने की भूमिका बनाई जा रही है, क्योंकि संबंधित अधिकारी इस हाई-प्रोफाइल मामले की सुनवाई में भी एक सह-आरोपी को पेश करने में नाकाम रहे थे। हाफिज सईद और आतंकवाद के संबंध में शायद ही कोई तथ्य छिपा रहा है। खासतौर पर मुंबई पर आतंकी हमले के मामले में आरोप लंबे समय से तथ्यगत रूप से सामने थे कि उस घटना सहित दूसरी आतंकी गतिविधियों में लिप्त लोगों को हाफिज सईद के संगठनों ने धन मुहैया कराया था और मुख्य साजिशकर्ता भी वही था। लेकिन हैरानी की बात यह है कि जिन हमलों में 166 लोग मारे गए थे। उसके जिम्मेदार आरोपियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने के प्रति पाकिस्तान ने कभी ईमानदारी से कोई ठोस पहलकदमी नहीं की। जबकि भारत की ओर से जुटाए गए सबूत इस बात की साफ गवाही देते थे कि हमला पाकिस्तान  स्थित ठिकानों से संचालित किए गए थे। लेकिन पाकिस्तान ने हमेशा इस बात से इंकार किया कि उसकी सीमा में आतंकी गतिविधियों को पनाह दी जाती है। लेकिन बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय दबाव में इस मुद्दे पर पाकिस्तान को रक्षात्मक होना पड़ा। देखें कि अब भी ईमानदारी से पाक आगे बढ़ता है या नहीं?

निर्भया के दोषियों की फांसी में लगेंगे छह घंटे

निर्भया मामले के दोषियों को फांसी देने की तारीख एक बार फिर टल गई है। दो पुनर्याचिकाओं के कारण अब इन दरिंदों को फांसी 18 दिसम्बर के बाद ही संभव होगी। 17 और 18 दिसम्बर को दो याचिकाओं ने फांसी को लटका दिया है। उम्मीद है कि यह दोनों याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट खारिज कर देगा। बेशक अभी फांसी की तारीख तय नहीं हुई पर तिहाड़ जेल प्रशासन ने इसकी पूरी तैयारी कर ली है। फांसी के चार तख्ते तैयार किए गए हैं। इनका ट्रायल भी किया गया है। निर्भया मामले के चारों दोषियोंöविनय, मुकेश, पवन और अक्षय तिहाड़ लाए जा चुके हैं। डीजी संदीप गोयल का कहना है कि फांसी के लिए तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं। ट्रायल के लिए तिहाड़ में मौजूद संसाधनों का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। दोषियों की फांसी के लिए बक्सर जेल से बुधवार को देर रात फंदे तिहाड़ जेल पहुंच गए हैं। जल्लाद का नाम भी तय किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि हमने दो जल्लादों की व्यवस्था की है, लेकिन फांसी संभवत एक ही जल्लाद देगा। चारों दोषियों की हर 24 घंटे में स्वास्थ्य जांच की जा रही है। छह सीसीटीवी कैमरों से 24 घंटे उनकी निगरानी रखी जा रही है कि उनकी किससे और क्या बात हो रही है। तिहाड़ से फोन आते ही पांच घंटे के भीतर दो जल्लाद तिहाड़ पहुंचा दिए जाएंगे। उत्तर प्रदेश कारागार सेवाओं के महानिदेशक आनंद कुमार ने कहा कि तिहाड़ प्रशासन ने दो जल्लाद मांगे हैं। जेल सूत्रों के अनुसार दोषियों के लिए यदि डैथ वारंट जारी होता है तो फांसी की प्रक्रिया पूरी होने में करीब छह घंटे लगेंगे। यह पहला मौका होगा जब तिहाड़ जेल संख्या तीन में बना फांसीघर इतनी देर के लिए खुला रहेगा। इस दौरान जेल संख्या तीन बंद रहेगी। दोषी को जिस दिन फांसी दी जाती है, उसे सुबह पांच बजे उठा दिया जाता है। नहाने के बाद दोषी को फांसीघर के सामने खुले अहाते में लाया जाता है। यहां जेल अधीक्षक, उपाधीक्षक, मेडिकल ऑफिसर, सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट व सुरक्षा कर्मचारी मौजूद रहते हैं। जेल सूत्रों का कहना है कि मजिस्ट्रेट दोषी से उनकी आखिरी इच्छा के बारे में पूछते हैं। इस दौरान आमतौर पर सम्पत्ति किसी के नाम करने या किसी के नाम अंतिम पत्र लिखने की बात सामने आती रही है। करीब 15 मिनट का वक्त दोषी के पास रहता है। इसके बाद जल्लाद दोषी को काले कपड़े पहनाता है। उसके हाथ को पीछे कर रस्सी या हथकड़ी से बांध दिया जाता है। यहां से करीब सौ कदम की दूरी पर बने फांसीघर पर कैदी को ले जाने की प्रक्रिया शुरू होती है। वहां जल्लाद उसके मुंह पर काले रंग का कपड़ा बांधकर गले में फंदा डालता है। इसके बाद दोषी के पैरों को रस्सी से बांध दिया जाता है। जब जल्लाद अपने इंतजाम से संतुष्ट हो जाता है तब वह जेल अधीक्षक को आवाज देकर बताता है कि उसके इंतजाम पूरे हो चुके हैं। आगे के लिए आदेश दें। जब जेल अधीक्षक हाथ हिलाकर इशारा करते हैं, जल्लाद लीवर खींच लेता है। इसके दो घंटे बाद मेडिकल ऑफिसर फांसीघर के अंदर जाकर यह सुनिश्चित करते हैं कि फंदे पर झूल रहे शख्स की मौत हो चुकी है या नहीं। जब मेडिकल ऑफिसर डैथ सर्टीफिकेट जारी करते हैं तब फांसी की प्रक्रिया पूर्ण मानी जाती है। इस पूरी प्रक्रिया में करीब तीन घंटे का वक्त लग जाता है। तिहाड़ जेल संख्या तीन में जो फांसीघर बना है, उसमें एक बार में अभी तक अधिकतम दो दोषियों को फंदे पर लटकाने का प्रावधान है। सूत्रों ने बताया कि निर्भया के दोषियों के लिए खासतौर पर लंबा फंदा बनाया गया है जिसमें चारों को एक साथ फांसी दी जा सके। इस तरह से चार दोषियों को फांसी देने की पूरी प्रक्रिया में करीब छह घंटे लग जाएंगे।

Friday, 13 December 2019

यह हैं दुनिया की सबसे कम उम्र की प्रधानमंत्री

फिनलैंड की सोशल डेमोकेटिक पार्टी की नेता सबसे कम उम्र की प्रधानमंत्री बनने जा रही हैं। 34 वर्षीय परिवहन मंत्री सना मरीन रविवार को हेलसिंकी में देश की प्रधानमंत्री चुनी गईं। इसके साथ ही वह देश की ही नहीं, दुनिया में भी सबसे युवा प्रधानमंत्री बन गईं। मरीन के बाद यूकेन के प्रधानमंत्री ओलेक्सी होन्चेरुक अभी 35 वर्ष के हैं। अपनी उम्र से संबंधी सवालों पर मरीन ने कहा कि मैंने कभी अपनी उम्र या महिला होने के बारे में नहीं सोचा। मैं कुछ वजहों से राजनीति में आई और इन चीजों के लिए हमने मतदाताओं का विश्वास जीता। सना मरीन का जन्म 16 नवम्बर 1985 को फिनलैंड में हुआ था। मरीन समान लिंग वाले पार्टनर की संतान हैं। वर्ष 2012 में वह प्रशासनिक विज्ञान में टैम्पियर विश्वविद्यालय से परस्नातक की डिग्री हासिल की। 27 वर्ष की उम्र में टैम्पियर की नगर परिषद की प्रमुख चुनी गई थीं। जून 2019 में सरकार में वह परिवहन व संचार मंत्री रहीं। परिवहन मंत्री रहीं सना को प्रधानमंत्री एंटीरिने के इस्तीफे के बाद सोशल डेमोकेटिक पार्टी ने प्रधानमंत्री पद के लिए चुना है। वह पांच पार्टियों के मध्य-वामपंथी गठबंधन का नेतृत्व कर रही हैं। इन सभी पार्टियों की इत्तेफाक से अध्यक्ष महिलाएं ही हैं। देश में डाक हड़ताल से निपटने के मामले में एंटीरिने ने गठबंधन का विश्वास खो दिया था और उन्हें पद छोड़ना पड़ा था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सना मरीन का पालन पोषण इनेवो फैमिली (एक प्रकार का हिप्पी समूह) में हुआ। वह किराये के एक अपार्टमेंट में अपनी मां और उनकी महिला पार्टनर के साथ रहती थीं। उन्होंने फिनिश भाषा में (मेनाएसेत भाषा) में 2015 में कहा था कि बचपन में वह खुद को अदृश्य महसूस करती थीं क्योंकि वे अपने परिवार के बारे में खुलेतौर पर बोलने से कतराती थीं। लेकिन उन्होंने कहा था कि उनकी मां हमेशा उनका समर्थन करती रहीं और उन्होंने भरोसा दिलाया कि वो जो चाहे कर सकती हैं। अपने परिवार की वह पहली शख्स थीं जो विश्वविद्यालय तक गई थीं। ऐसी कम ही संभावना है कि सना मरीन नीतियों में कोई बड़ा बदलाव करेंगी क्योंकि उनके दफ्तर संभालने के दौरान गठबंधन एक कार्यक्रम पर सहमत हुआ है। स्कैडिवेनाई देशों में सना मरीन तीसरी महिला प्रधानमंत्री हैं। यूरोपीय संघ का अध्यक्ष पद इस समय फिनलैंड के पास है और ऐसी उम्मीद है कि ब्रुसेल्स में 12 दिसम्बर को यूरोपीय संघ सम्मेलन से पहले सांसद उन्हें अध्यक्ष पद के लिए चुन लें।

-अनिल नरेन्द्र

रूस पर चार साल का प्रतिबंध, ओलंपिक से बाहर

वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) ने डोपिंग संबंधित अनियमितताओं के चलते सोमवार को रूस के खिलाफ कड़ा फैसला लेते हुए उस पर चार साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया। इतने सख्त फैसले पर खेल जगत चकित है। डोपिंग की समस्या हर जगह गंभीर है। इस तथ्य से कोई देश, खेल संस्था और खिलाड़ी इंकार नहीं कर सकता कि डोपिंग से बिल्कुल अलहदा है। जब से खेल में पैसा और रसूख बढ़ा है, शक्तिवर्धक दवाओं या प्रतिबंधित दवाओं के इस्तेमाल करने का चलन भी उतनी ही तेजी से परवान चढ़ा है। वाडा के प्रतिबंध का मतलब है कि अगले साल टोक्यो और चार साल बाद बीजिंग में होने वाले ओलंपिक तथा 2022 में कतर में होने वाले फीफा विश्व कप फुटबॉल जैसी महत्वपूर्ण खेल स्पर्धाओं में वह हिस्सा नहीं ले सकेगा। अलबत्ता डोपिंग की आंच से दूर रहे उसके व्यक्तिगत तौर पर ओलंपिक के तटस्थ खिलाड़ी के रूप में हिस्सा ले सकते हैं,  लेकिन वहां न तो रूस का ध्वज फहराया जाएगा और न ही रूसी राष्ट्रगान होगा। कह सकते हैं कि डोपिंग खेलों में सफलता का दूसरा नाम बन चुका है। रूस की बात करें तो यहां के खिलाड़ी डोपिंग से ज्यादा प्रभावित रहे हैं। खुद वाडा ने नवम्बर 2015 में माना था कि रूस में डोप का जबरदस्त कल्चर है। यहां तक कि रूस की डोपिंग एजेंसी का इस मामले में नाम बेहद खराब है। अब जबकि विश्व की खेल शक्ति के तौर पर पहचान रखने वाले रूस को चार साल के लिए खेल की दुनिया से प्रतिबंधित कर दिया गया है तो यह सवाल ज्यादा संजीदगी से बहस के दायरे में है कि आखिर टोक्यो ओलंपिक खेल (2020) का स्वरूप कैसा होगा? बिना रूस के खेल के सबसे बड़े आयोजन का रोमांच कैसा होगा? मगर रोमांच से ज्यादा रूस के अंदर कोलाहल इस बात को लेकर मचा है कि आखिर इसमें गलती किसकी है? खिलाड़ियों की या अधिकारियों की? वैसे तो रूस की इस संदिग्ध गतिविधि पर लंबे समय से नजर थी, जिसकी वजह से उसके खिलाफ अतीत में भी कार्रवाई की गई थी लेकिन इस बार इस स्तर पर कठोर कार्रवाई पहली बार की गई है। रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने पहली बार इस प्रतिबंध पर बयान दिया है। पुतिन ने कहाöवाडा का फैसला ओलंपिक चार्टर का उल्लंघन है। रूस के पास इसके खिलाफ अदालत में जाने के सभी कारण मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि सबसे पहले हमें वाडा के फैसले का विश्लेषण करने की जरूरत है, प्रतिबंध लगाने का आधार क्या है? वाडा को रूस ओलंपिक राष्ट्रीय समिति के खिलाफ कोई शिकायत नहीं है। ऐसे में रूस को अपने झंडे के तले तो उतरने देना ही चाहिए, यह ओलंपिक चार्टर है और वाडा अपने निर्णय से ओलंपिक चार्टर का उल्लंघन करता है। सजा व्यक्तिगत होनी चाहिए, सामूहिक नहीं। वाडा के फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए रूस के पास 21 दिन का वक्त है। रूसी प्रधानमंत्री दमित्री मेदवेदेव ने इस प्रतिबंध को राजनीति से प्रेरित बताया है, लेकिन हकीकत यह है कि रूस ने वाडा के निर्देशों को कभी गंभीरता से नहीं लिया, बल्कि रूस की डोपिंग संस्था रूसादा की खुद की भूमिका संदिग्ध रही है। वास्तव में रूसादा के पूर्व निदेशक और व्हिसलब्लोअर ग्रिगोरी राज्यनकोव ने रूस से भागकर अमेरिकी मीडिया के समक्ष इसका खुलासा कर खेल के इस सबसे बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया। वैसे तो भारत सहित दुनिया के अन्य देशों में भी यदा-कदा खिलाड़ियों के डोप टेस्ट में नाकाम रहने के मामले सामने आए हैं, लेकिन संगठित रूप से धोखाधड़ी कर अपने खिलाड़ियों के भविष्य को दांव पर लगाने का यह पहला मौका है। वैसे रूस ही नहीं, दुनिया का हर देश डोपिंग के डंक से बहाल है। इस लिहाज से इससे पार पाना निश्चित तौर पर खिलाड़ियों और सरकारों के लिए बड़ी चुनौती है।

वैश्विक मीडिया में छाया रहा एनकाउंटर

हैदराबाद एनकाउंटर को वैश्विक मीडिया ने भी खासी तवज्जों दी है। अमेरिका से लेकर ब्रिटेन तक अधिकतर जगह मीडिया ने इस कार्रवाई को मिले भारी जन समर्थन को हाई लाइट करने पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही गैर-न्यायिक मृत्युदंड की बढ़ती घटनाओं पर भी ध्यान खींचने का प्रयास किया है। वाशिंगटन पोस्ट ने एक विस्तृत रिपोर्ट में कहा है कि चारों आरोपियों की मौत ने लड़कियों व महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराधों की श्रृंखला में फंसे देश के कुछ हिस्सों में प्रशंसा की लहर दौड़ा दी है, लेकिन कार्यकर्ताओं और वकीलों ने कहा है कि इन मुठभेड़ों ने न्यायेत्तर हत्याओं के निशान को और गहरा कर दिया है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि संदिग्ध अपराधियों की पुलिस द्वारा हत्या इतनी व्यापक है कि उनकी अपनी परिभाषा है। कुछ घटनाओं को एनकाउंटर के नाम से जाना जाता है और उसमें शामिल अधिकारी आमतौर पर इसे सेल्फ डिफेंस में उठाया कदम होना जाहिर करते हैं। लेकिन कार्यकर्ताओं का कहना है कि अमूमन पुलिस अधिकारियों को आम माफी का लाभ मिलता है और इन अधिकारियों को आम माफी का लाभ मिलता है और इन हत्याओं में पूरी जांच प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता। सीएनएन ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि महिला के जले हुए अवशेष 27 नवम्बर को राजमार्ग के एक अंडरपास के करीब बरामद हुए थे, इससे देशव्यापी गुस्से की लहर फैल गई और बेंगलुरु-दिल्ली समेत बहुत सारे बड़े शहरों में जमकर प्रदर्शन किए गए। अधिकतर प्रदर्शनकारी संदिग्ध अपराधियों को मृत्युदंड देने की मांग वाले पोस्टर लेकर नारे लगा रहे थे। न्यूयार्प टाइम्स ने हैदराबाद कांड को हालिया महीनों में भारत का सबसे ज्यादा परेशान करने वाला दुष्कर्म का मामला करार दिया है, उसने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कंपकंपा देने वाली इस घटना का शुक्रवार को अचानक और हैरतअंगेज समापन हुआ। पुलिस अधिकारियों का नायक की भांति सम्मान किया गया और जनता ने उनके ऊपर गुलाब की पंखुड़ियों की बौछार की। यह सब उस काम के लिए किया गया, जिसे नागरिकों ने एक जघन्य अपराध के त्वरित प्रतिशोध के तौर पर देखा। जश्न मनाने के लिए इतने सारे लोग सड़क पर उतर आए कि यातायात भी एक जगह ठहर गया। ब्रिटिश अखबार द टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि हजारों लोगों ने पूरे देश में सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन करते हुए न्याय की मांग की। भीड़ द्वारा पुलिस स्टेशन घेर लेने के कारण आरोपी अदालत में पेश नहीं किए जा सके। भीड़ लगातार आरोपियों को मृत्युदंड देने के लिए अपने हवाले करने की मांग कर रही थी। द टेलीग्राफ के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ हिंसा के हाई-प्रोफाइल मामले ने भारत में तीव्र क्रोध फैलाया। हजारों लोग सोमवार को पूरे देश में सड़कों पर उतरे और हैदराबाद में जघन्य हमले का विरोध जताया। रिपोर्ट में आगे कहा गया कि कार्यकर्ताओं ने दुष्कर्म मामलों को अदालतों के जरिये तेजी से निस्तारित करने और उन्हें कड़ी सजा दिलाने की अपील की।

-अनिल नरेन्द्र

नागरिकता संशोधन विधेयक का चौतरफा विरोध

लोकसभा में पहले ही पास होने के बाद बुधवार को नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 राज्यसभा में भी 125-105 वोटों से पारित हो गया है। बेशक दोनों सदनों से यह पास हो गया है पर इसका संसद में और संसद के बाहर जमकर विरोध हो रहा है। संख्या बल से आसानी से पारित हुए इस विधेयक के जमीनी हकीकत बनने से पहले लगता है कि मोदी सरकार को आगे लंबा सफर तय करना होगा। लोकसभा, राज्यसभा में पारित होने और राष्ट्रपति द्वारा मंजूर किए जाने से पहले ही इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी हो चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिका के संघीय आयोग (यूएससीआरएफ) ने कहा है कि नागरिकता संशोधन विधेयक गलत दिशा में बढ़ाया गया एक खतरनाक कदम है और यदि यह भारत की संसद में पारित होता है तो केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और कुछ अन्य भारतीय नेताओं के खिलाफ प्रतिबंध लगाया जा सकता है। उधर पाकिस्तान ने भी नागरिकता विधेयक को प्रतिगामी व पक्षपातपूर्ण बताया और इसे नई दिल्ली का पड़ोसी देशों के मामलों में दखल का दुर्भाग्यपूर्ण इरादा बताया। जबकि भारत ने इन आरोपों को खारिज कर दिया। पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक का सबसे ज्यादा और संगठित विरोध हो रहा है। पूर्वोत्तर की मूल जनता नहीं चाहती कि वहां बाहर से आए किसी भी व्यक्ति को नागरिकता दी जाए। जबकि नागरिकता संशोधन विधेयक बाहर से आए सिर्प मुस्लिमों को ही नागरिकता देने की खिलाफत करता है। पूर्वोत्तर में चिन्ता यह है कि वहां बाहर से आकर बसे हिन्दुओं व अन्य पांच अल्पसंख्यक वर्गों को स्थायी नागरिकता मिल जाएगी। हालांकि लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में गृहमंत्री अमित शाह ने प्रभावी ढंग से सबको आश्वस्त करने का प्रयास किया, पर ऐसा लगता है कि पूर्वोत्तर भारत तक उनकी बात का ज्यादा असर नहीं हुआ है। पूर्वोत्तर जल रहा है। ऐसा विरोध पहले कभी नहीं देखा गया। संसद के दोनों सदनों में विपक्ष ने विरोध में कई दलीलें दीं पर मोदी सरकार ने संख्या बल पर इस विधेयक को पास करवा लिया। पूर्वोत्तर राज्यों में असंतोष इस कदर बढ़ गया है कि सरकार को जम्मू-कश्मीर से सेना की टुकड़ी को निकालकर इन राज्यों में शांति बनाने के लिए भेजना पड़ा है। केंद्र सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती यह है कि पूर्वोत्तर राज्यों में अमन-चैन बहाल करे। इस कानूनी संशोधन का विदेशों में जो विरोध हो रहा है, उसका मतलब साफ है, यह एक बार फिर स्पष्ट हुआ है कि दुनिया भारत को एक सेक्यूलर और उदार राष्ट्र के रूप में देखना चाहती है। मैंने अमेरिका और पाकिस्तान में इसका रिएक्शन ऊपर बताया है पर यूरोपीय यूनियन ने भी कहा है कि आशा है, भारत अपने उच्च मानकों को बरकरार रखेगा। देश के अंदर अब तो वैज्ञानिकों, विद्वानों और कलाकारों ने भी इस विधेयक का विरोध करना शुरू कर दिया है। विधेयक के वर्तमान स्वरूप को वापस लेने की मांग को लेकर बड़ी संख्या में वैज्ञानिकों और विद्वानों ने एक याचिका पर हस्ताक्षर किए हैं। याचिका में कहा गया है कि चिन्ताशील नागरिकों के नाते हम अपने स्तर पर वक्तव्य जारी कर रहे हैं कि नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 को सदन के पटल पर रखे जाने की खबरों के प्रति अपनी निराशा जाहिर कर सकें। कई कलाकारों, लेखकों, शिक्षाविदों, पूर्व न्यायाधीशों और पूर्व नौकरशाहों ने भी सरकार से विधेयक वापस लेने की अपील करते हुए इस भेदभावपूर्ण, विभाजनकारी और संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ बताया है। इनमें इतिहासकार रोमिला थापर, लेखक अमिताभ घोष, अभिनेत्री नंदिता दास, फिल्मकार अपर्णा सेन और आनंद पटवर्धन, सामाजिक कार्यकर्ताओं में योगेन्द्र यादव, तीस्ता सीतलवाड़, हर्ष भंवर, अरुण राय और वेजवाडा विल्सन, दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एपी शाह और देश के पहले सीआईसी वजाहत हबीबुल्ला आदि शामिल हैं। बेशक संख्या बल पर सरकार ने विधेयक तो पास करवा लिया है पर इसे जमीन पर उतारना इतना आसान शायद न हो।