Wednesday, 4 December 2019

ममता का एनआरसी को करारा जवाब

पश्चिम बंगाल की तीन विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में आए परिणाम के बाद जहां तृणमूल कांग्रेस मुखिया ममता बनर्जी को बड़ी राहत मिली तो भाजपा के लिए चिन्ता बढ़ा देने वाला परिणाम रहा। जिन तीन सीटों पर उपचुनाव हुए थे उनमें 2016 में भाजपा, टीएमसी और कांग्रेस ने एक-एक सीट पर जीत हासिल की थी। हाल के महीने में जिस तेजी से भाजपा का ग्राफ वहां बढ़ा था ममता बनर्जी के लिए खतरे की घंटी बजने लगी थी। यही कारण है कि लोकसभा चुनाव में अपेक्षाकृत खराब प्रदर्शन के बाद ममता बनर्जी ने एक के बाद एक कई कदम उठाए। उन्होंने राष्ट्रीय हसरत को फिलहाल विराम दिया। चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर को साथ लिया और आम लोगों से अधिक से अधिक संवाद शुरू किया। इसके परिणाम इस उपचुनाव में दिखे हैं, लेकिन उन्हें पता है कि उपचुनाव के परिणाम असली चुनाव से अलग होते हैं, मुद्दे अलग होते हैं, हवा का रुख भी प्रभावित करता है परिणामों को। आने वाले दिनों में भाजपा और ताकत झोंकेगी। वहीं लोकसभा चुनाव में 18 सीटों पर जीत हासिल करने से भाजपा के हौसले बुलंद थे। भाजपा ने तब से ही 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी। भाजपा ने इस उपचुनाव में अपनी जीती हुई सीट खो दी है, खड़कपुर सदर सीट भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष दिलीप घोष के लोकसभा क्षेत्र में आती है। भाजपा इस सीट को भी नहीं बचा सकी। घोष का कहना है कि असल में उपचुनाव में एक आम चलन है कि जिस पार्टी की सरकार होती है वही पार्टी इनमें जीत दर्ज करती है। पश्चिम बंगाल में एनआरसी को लेकर बेचैनी है। टीएमसी ने इसे अपने पक्ष में भुनाया। कालियागंज से भाजपा उम्मीदवार कमल चन्द्र सरकार ने भी माना कि हम इसलिए हारे क्योंकि पश्चिम बंगाल में एनआरसी के क्रियान्वयन को लेकर जनता में भ्रम पैदा हो गया है। हम इस मुद्दे पर जनता तक पहुंचने में असफल रहे। हालांकि घोष ने इसे मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि एनआरसी मुद्दा क्यों होना चाहिए? 2019 में (संसदीय चुनाव में) भी एनआरसी मुद्दा था, लेकिन हम जीते, इसलिए हमारी हार के लिए एनआरसी को दोष देना सही नहीं है। हो सकता है कि उम्मीदवारों के चयन को लेकर नाराजगी हो। भाजपा के सामने इन चुनावों में जहां लोकसभा के प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती थी वहीं तृणमूल कांग्रेस इन तीनों सीटों को जीतकर अपने पैरों तले खिसकती जमीन को बचाने का प्रयास कर रही थी। कांग्रेस और माकपा ने इन उपचुनावों में मिलकर लड़ने का फैसला किया, लेकिन दोनों को तीसरे स्थान से ही संतोष करना पड़ा। एनआरसी को लेकर उत्तर पूर्व राज्यों में बेचैनी बढ़ रही है जो भाजपा पर भारी पड़ सकती है। पश्चिम बंगाल के यह उपचुनाव परिणाम इसका स्पष्ट संकेत है। भाजपा को पश्चिम बंगाल में और जोर लगाना पड़ेगा।

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