Thursday 26 December 2019

हमारी सभी आंदोलनकारियों से विनम्र अपील

नागरिकता कानून व एनआरसी के विरोध का जो स्वरूप देखने को मिल रहा है, वह विरोध तो नहीं है। जिस सार्वजनिक सम्पत्ति को जलाया जा रहा है और नुकसान पहुंचाया जा रहा है, वो आपकी और हमारी गाढ़ी कमाई से ही खरीदी गई है। बेहतर देश बनाने के लिए इस दुश्चक्र से बाहर निकलने, विरोध शांतिपूर्ण बनाए रखने, संयम बरतने और अराजक तत्वों के हिंसा के इरादों को हटाना होगा। लोकतंत्र में मतभेद जताना या सरकार के किसी फैसले का विरोध करना जनता का मूल अधिकार माना जाता है। पर देश के कई हिस्सों में हो रही हिंसा डरावनी तो है ही, देशहित के खिलाफ भी है। लोकतंत्र में यदि हमें असहमति व्यक्त करने का अधिकार मिला है तो उसके साथ दायित्व भी बंधा हुआ है। बगैर दायित्व के अधिकार खतरनाक हो जाता है। आखिर यह कौन से आंदोलन हैं। जिसमें पुलिस चौकियां पूंकी जा रही हैं, पुलिस पर ईंट-पत्थरों से हमले हो रहे हैं, पेट्रोल बम चलाए जा रहे हैं, गाड़ियां जलाई जा रही हैं? इस तरह कानून को अपने हाथ में लेने का दुस्साहस करने वाले कौन हैं? इनके पीछे कौन साजिश रच रहे हैं? इन प्रश्नों का उत्तर मोटा-मोटी सबको पता है। किन्तु इन्हें सामने लाना सरकारों का काम है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन साफ है। सार्वजनिक सम्पत्ति के नुकसान होने की स्थिति में सारी जिम्मेदारी नुकसान करने वाले आरोपी की होगी। आरोपी को खुद को निर्दोष साबित करने तक कोर्ट उसे जिम्मेदार मानेगी। नरीमन समिति ने कहा था कि ऐsसे मामलों में दंगाइयों से सार्वजनिक सम्पत्ति के नुकसान की वसूली होगी। लोकतंत्र में प्रशासन को पूर्व सूचना देकर धरना-प्रदर्शन से किसी को क्या एतराज हो सकता है। हां, इसके औचित्य पर अवश्य सवाल उठेगा। लेकिन आग की लपटें, आकाश की ओर उठते धुएं, सड़कों पर बिखरी ईंट, पत्थर, शीशे, जले टूटे हुए वाहन, कहीं-कहीं आपत्तिजनक नारे... दूसरे ही संकेत दे रहे हैं, अहमदाबाद में जिस तरह भीड़ चार-पांच पुलिस वालों पर अंधाधुंध पत्थरों की बरसात कर रही है, दिल्ली के सीलमपुर में पुलिस वालों को खदेड़ कर पीटा जा रहा हैöवह किसी सभ्य आंदोलन की तस्वीर पेश नहीं करती, साफ है कि कुछ असामाजिक उपद्रवी तत्व इसके पीछे हैं। हिसा की पूरी तैयारियां पहले से ही की गई थीं। हो सकता है कि कुछ देश विरोधी तत्व भी समय का लाभ उठाने की साजिश रच रहे हों। जो लोग आंदोलन के नाम पर आगजनी और हिंसा कर रहे हैं, उनके साथ कानून वैसा ही सलूक करेगा जैसा अपराधियों के साथ किया जाता है। हम सभी आंदोलनकारियों से अपील करते हैं कि आप शांतिपूर्वक प्रदर्शन-धरना दें, हिंसा का सहारा न लें। अपनी बात कहें पर प्रभावी ढंग से ताकि सरकार आपकी बात सुनने पर मजबूर हो।

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