Friday 20 December 2019

आईसीयू में भारत की अर्थव्यवस्था

पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविन्द सुब्रह्मण्यम ने बुधवार को टिप्पणी की है कि भारत गहरी आर्थिक सुस्ती में है और बैंकों तथा कंपनियों के लेखाजोखा के जुड़वा संकट की दूसरी लहर के कारण अर्थव्यवस्था सघन चिकित्सा (आईसीयू) में जा रही है। सुब्रह्मण्यम नरेंद्र मोदी सरकार के पहले मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) रहे हैं। उन्होंने पिछले साल अगस्त में इस्तीफा दे दिया था। सुब्रह्मण्यम ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के भारत कार्यालय के पूर्व प्रमुख जोश फेलमैन के साथ लिखे गए नए शोध पत्र में कहा है कि भारत इस समय बैंक, बुनियादी ढांचा, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) और रीयल एस्टेट, इन चारों क्षेत्रों की कंपनियों के लेखाजोखा के संकट का सामना कर रहा है। इसके अलावा भारत की अर्थव्यवस्था ब्याज दर और वृद्धि के प्रतिकूल मंदी में फंस गई है जिसमें जोखिम से बचने की प्रवृत्ति के कारण ब्याज दर बढ़ती जाती है। इसके कारण विकास दर घटती है और इसके कारण जोखिम से बचने की भावना और मजबूत होती जा रही है। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था में यह कोई साधारण सुस्ती नहीं है। यह भारत के लिए बहुत बड़ा स्लोडाउन है। सुब्रह्मण्यम ने कहा कि अर्थव्यवस्था को पहले झटका दोहरे बैलेंसशीट (ट्विन बैलेंसशीट) की समस्या से लगभग इससे बैंक और इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियां शामिल थीं। यह झटका तब लगा जब वर्ष 2000 के बाद के दशक के मध्य में इंवेस्टमेंट बूम के दौरान शुरू की गई इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं डिफॉल्ट करने लगीं। इसके बाद एनबीएफसी के नेतृत्व में अत्याधिक कर्ज दिए जाने से अव्यवहारिक रीयल एस्टेट परियोजनाओं की बाढ़ आ गई। यह गुब्बारा 2019 में फटा। इसके कारण खपत भी घटी, जिससे विकास दर में भारी गिरावट दर्ज की गई। इन सब कारणों से भारत अब चार बैलेंसशीट चुनौतियों का सामना कर रहा है। शुरू में दो तरह की बैलेंसशीट समस्याएं थीं, जिनमें एनबीएफसी और रीयल एस्टेट सेक्टर भी शामिल हो गए। समस्या के निदान पर सुब्रह्मण्यम और फेलमैन ने कहा कि कोई एक सीधा उपाय दिखाई नहीं पड़ता है। 2010 के बाद के वर्षों में विकास के पैटर्न को देखने के बाद अर्थव्यवस्था में लंबी सुस्ती और उसके बाद अचानक गिरावट की कोई एक व्याखया नहीं की जा सकती है। हमारे विश्लेषण में संरचनागत और चक्रीय दोनों कारण दिखाई पड़ते हैं। इन दोनों में फाइनेंस का मुद्दा समान रूप से मौजूद है। मौद्रिक नीति बहुत कारगर नहीं है, क्योंकि बैंकों की ब्याज दरों में इसका पूरा हस्तांतरण नहीं हो पा रहा है। यदि बड़ी वित्तीय राहत दी जाती है तो इसमें पहले से ही ऊंची ब्याज दरों में और बढ़ोतरी होगी, जिसके कारण विकास को तेज करने वाले पहलुओं पर बुरा असर पड़ेगा। अर्थव्यवस्था में टिकाऊ तेजी लाने के लिए बैलेंसशीट समस्या का निदान करना जरूरी है।

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