Tuesday 3 December 2019

हैवानियत की हदें पार करते ये दरिंदे

सात साल पहले 16 दिसम्बर 2012 को जब दिल्ली के वसंत विहार में निर्भया के साथ वह खौफनाक दरिंदगी हुई थी तो पूरा देश उठ खड़ा हुआ था। देशवासी इस जघन्य अपराध के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे, जगह-जगह कैंडल मार्च हुए थे। सरकार, समाज व सभी राजनीतिक दलों ने यह संकल्प लिया था कि बस अब और नहीं। अब कोई निर्भया दोबारा नहीं होगी। हमने उम्मीद की थी कि शायद अब कुछ बदले। पर कुछ भी नहीं बदला। उल्टा रेप की घटनाओं में वृद्धि हो गई है। आए दिन बलात्कार, मृत्यु की घटनाओं की बाढ़-सी आ गई है। सात साल गुजरने के बाद भी निर्भया के हत्यारों को अभी तक फांसी पर नहीं लटकाया जा सका। हत्यारे कोई न कोई कानूनी दांव-पेंच चलकर बचते जा रहे हैं। शुक्रवार को पटियाला हाउस में इस केस की तारीख थी और उम्मीद थी कि अंतत डेथ वारंट जारी हो जाएगा। पर शुक्रवार को जेल अधिकारी ने अदालत को सूचित किया कि एक दोषी ने अपनी फांसी की सजा के खिलाफ राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल की है। इस पर पटियाला हाउस के विशेष न्यायाधीश सतीश अरोड़ा ने अन्य दोषियों से पूछा कि वह अपने बचाव को लेकर कौन-सी प्रक्रिया का उपयोग करेंगे। जज ने अगली तारीख 13 दिसम्बर की तय की है। उम्मीद है कि तब तक राष्ट्रपति मर्सी अपील को खारिज कर देंगे और चारों दोषियों का फांसी का रास्ता खुल जाएगा। पिछले चार दिनों के भीतर रांची और हैदराबाद में हुए जघन्य सामूहिक बलात्कार कांड बता रहे हैं कि जमीनी स्थिति वही है, देश में लड़कियां अभी भी सुरक्षित नहीं हैं। ये घटनाएं किसी दूरदराज के इलाके की नहीं है, ये दो बड़े प्रदेशों की राजधानी की हैं। रांची में एक छात्रा का अपहरण करके उसे ले जाया गया और उसके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ, जबकि हैदराबाद में पशु चिकित्सक की स्कूटी का टायर पंचर जानबूझ कर इसलिए किया कि उसका गैंगरेप किया जा सके। गैंगरेप करने के बाद उसका गला दबाकर मार दिया गया और उसको जिन्दा जला दिया गया। ऐसे दरिंदों का न तो कोई धर्म होता है और न ही जाति। इसे सांप्रदायिक रंग देना उतना ही बड़ा अपराध है। दोनों ही घटनाएं सीधे तौर पर बताती हैं कि निर्भया कांड के बाद जो भी कदम उठाए गए वे ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए नाकाफी साबित हुए हैं। सवाल यह है कि महिलाओं की सुरक्षा पर सरकार कब तक चुप रहेगी? कब तक सुरक्षा के लिए उठी आंदोलन की चीखों को दिखावटी पैबदों से ढकने की कोशिश होगी? कब तक सड़कों पर अकेले निकलने में महिलाएं डरती रहेंगी? और कब तक दानव से ये अपराधी यूं ही खुले घूमते रहेंगे? इसमें पब्लिक का भी दोष कम नहीं है। हैदराबाद देश के बड़े शहरों में शुमार है। जहां हादसा हुआ वह एयरपोर्ट का इलाका है। क्या पुलिस और सुरक्षा जैसी कोई मौजूदगी वहां नहीं थी? यदि मान भी लें कि जो अपराधी थे उनकी मति और इंसानियत दोनों मारी गई थीं तो भी उन्हें रोकने के लिए एक भी जिन्दा इंसान नहीं था वहां क्या? समाज शास्त्र मानता है कि अपराधी के बच निकलने के रास्ते बंद करना व कड़ा दंड जरूरी है और यह सही तरीके से अभी तक नहीं किया गया।

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