राजधानी दिल्ली की अनाज मंडी स्थित एक चार मंजिला इमारत में लगी आग में 40 से ज्यादा लोगों की मौत अत्यंत दुखद हादसा तो है ही,
यह हादसा एक बार फिर यह दर्शाता है कि दिल्ली में कई इमारतें ताबूत की
तरह लाक्षागृह बनी हुई हैं। छत का बंद दरवाजा, पीछे का जीना बंद,
पूरी इमारत में प्लास्टिक के सामान का ढेर और संकरी गली के चलते अनाज
मंडी की इमारत लाक्षागृह बन गई। संकरी गलियों में बिजली के तारों के मकड़जाल ने अनाज
मंडी के इस कारखाने को मौत के चैंबर में तब्दील कर दिया। तंग इमारत होने की वजह से
वेंटीलेशन के पर्याप्त और पुख्ता इंतजाम नहीं होने से हालत यह हुई कि आग में फंसे लोगों
को बचाने के लिए दमकल कर्मी पहुंचे तो जरूर, लेकिन उन्हें रास्ता
नहीं मिल पाया। नतीजा यह हुआ कि काफी मशक्कत से पहुंचे दमकल कर्मियों को ग्रिल काटकर
अंदर घुसना पड़ा और तब तक कई लोगों का दम बिल्कुल ही घुट चुका था। फायर एनओसी से लेकर
फैक्ट्री लाइसेंस तक में अनियमितता पाई गई। संकरी गली वाले इस इलाके में पहले अनाज
मंडी थी, लेकिन समय के साथ कारोबार बंद हो गया। 600 वर्ग गज वाले प्लॉट पर बनी इमारत के तीन साझेदार हैं। इमारत की चार मंजिलों
पर 100 से ज्यादा लोग रहते थे। पूरी इमारत में प्लास्टिक का सामान
फैला था। 100 से ज्यादा लोगों के आने-आने
के लिए सिर्प चार फुट चौड़ी एक सीढ़ी थी। इमारत में दूसरे हिस्से में मौजूद सीढ़ी पर
सामान का ढेर लगाकर बंद कर दिया गया था। इसकी वजह से उस सीढ़ी का इस्तेमाल नहीं किया
जाता था। आग लगने पर लोग दूसरी सीढ़ी का इस्तेमाल नहीं कर पाए। वहीं पहली सीढ़ी में
धुआं भरने से लोग इसका भी इस्तेमाल नहीं कर पाए। पता यह चलता है कि रिहायशी इलाके में
चार मंजिला उस इमारत में अवैध तरीके से फैक्ट्रियां चल रही थीं। काम करने वाले मजदूर
रात को उन्हीं काल कोठरियों में सो जाते थे, जहां न तो पर्याप्त
रोशनी थी और न ही हवा के आने-जाने का प्रबंध। ऐसे में अव्यवस्था
और लापरवाही की आग अचानक रविवार तड़के जब फैली तब लोग गहरी नींद में थे। संकरी गली,
लटकती तारों का जाल और आसपास पानी का प्रबंध न होने के कारण आग बुझाने
के लिए आई दमकल टीम का काम बहुत मुश्किल हो गया। उन फायरमैंनों के साहस और अपनी जान
की परवाह न करने पर भी कई लोगों को बचाने का जो काम किया, उसकी
जितनी भी तारीफ की जाए कम है। दुखद पहलू यह है कि सिर्प अनाज मंडी का ही यही हाल नहीं
है, दिल्ली में काफी इलाके हैं जहां कमोबेश यही हाल है। ऐसे हादसों
के कई कारण हैंöएक तो स्मार्टसिटी के नारे और शहरों के कायाकल्प
से संबंधित अमृत जैसी योजनाओं के बावजूद जमीनी स्तर पर बहुत कम काम होना तथा नगर प्रशासन
का अपनी जिम्मेदारियों से आंख मूंद लेना। ऐसे में गैर-कानूनी
काम करने का दुस्साहस बढ़ता है, जिसका शिकार अधिकतर गांव से आए
हुए गरीब और असहाय लोग होते हैं, जो पहले तो इन काल कोठरियों
में घंटों काम करके अपना स्वास्थ्य जोखिम में डालते हैं और कोई त्रासदी हुई तो उसके
शिकार होते हैं। इसके बावजूद राजधानी के आवासीय इलाकों में सुरक्षा मानकों से खिलवाड़
कर एक चार मंजिला इमारत को गैर-कानूनी तरीके से फैक्ट्री में
तब्दील कर दिया जाता है। ऐसी स्थिति इसलिए भी आती है कि अधिकारी, नेता अपनी जिम्मेदारी से आंख मूंद लेते हैं और सरकारें राजनीतिक लाभ-हानि को ध्यान में रखकर फैसले करती हैं। फिर दिल्ली के बाहर सारे इलाके हैं
जो अनाधिकृत कॉलोनी के रूप में बसे थे और सरकार ने उन्हें अधिकृत घोषित कर दिया। इससे
वहां बिजली, पानी, सड़क व सीवर की व्यवस्था
तो हो गई पर उनकी बनावट इस कदर सघन है कि वहां दमकल की गाड़ियां आदि के पहुंचने में
भी कठिनाई होती है और यहां बड़े पैमाने पर ऐसे गैर-कानूनी कारखाने
चल रहे हैं, जिन्हें यह मानकर चलने दिया जाता है कि वे न तो प्रदूषण
फैलाते हैं और न ही आग लगने पर बचाव कर सकते हैं। बताया गया कि रिहायशी इलाके में फैक्ट्री
महज 200 वर्ग क्षेत्रफल में बनी हुई है। इसमें न तो फायर सेफ्टी
क्लियरेंस थी और न ही आग बुझाने के कोई उपकरण थे। आग को लेकर सवाल उठ रहा है कि इस
आग और मौतों का जिम्मेदार कौन है? दिल्ली सरकार या नगर निगम या
प्रशासन? यह अवैध फैक्ट्रियां धड़ल्ले से कैसे चल रही हैं,
इसका जवाब किसी के पास नहीं। हर हादसे के बाद जिम्मेदार डिपार्टमेंट
एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर पल्ला झाड़ने की कोशिश करने लगते
हैं।
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