Tuesday 10 December 2019

सीएबी बिल ः क्यों छिड़ा है विवाद

केंद्रीय कैबिनेट की ओर से नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) को मंजूरी मिलने के साथ ही उस पर बहस तेज होनी स्वाभाविक है, क्योंकि कई विपक्षी दलों ने पहले से ही इसका विरोध करना शुरू कर दिया। मोदी सरकार ने बुधवार को कैबिनेट की बैठक में इस विधेयक को पास किया। यह विधेयक लोकसभा में तो पास हो गया है और आज राज्यसभा में भी पास होने की पूरी उम्मीद है। लोकसभा में तो राजग का प्रचंड बहुमत था, इसलिए वहां इसे मंजूरी मिलने में कोई दिक्कत नहीं आई। राजग से अलग कुछ दलों की इस पर चुप्पी को देखते हुए राज्यसभा में भी कोई बड़ी अड़चन नजर नहीं आती। राष्ट्रीयता कानून विधेयक का मकसद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से शरणार्थी के रूप में भारत आए गैर-मुस्लिम लोगों को नागरिकता प्रदान करना है। हालांकि इस विधेयक के सभी पहलुओं को अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है पर इसे लेकर विपक्षी दल सरकार पर इसलिए हमलावर हैं कि वह इसके जरिये अल्पसंख्यक मुस्लिमों पर शिकंजा कसने का प्रयास कर रही है। इसी विरोध के कारण मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में इस विधेयक को संसद की मजूरी नहीं मिल पाई थी। नागरिकता संशोधन विधेयक यह कहता है कि पड़ोसी देशों और खासकर पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यक यानि हिन्दु, सिख, जैन, बुद्ध, ईसाई व पारसी ही कुछ शर्तों के साथ भारत की नागरिकता पाने के अधिकारी होंगे। विपक्षी दलों के विरोध का आधार यह है कि आखिर पड़ोसी देशों के मुसलमानों को यह रियायत क्यों नहीं दी जा रही है? इस पर सरकार का तर्प है कि यह तीनों मुस्लिम बहुल देश हैं और यहां मुसलमान नहीं अन्य पंथ के लोग प्रताड़ित होते हैं। इस तथ्य से कोई इंकार नहीं कर सकता, लेकिन इसी के साथ यह सवाल भी खड़ा होता है कि क्या बाहरी देशों के लोग नागरिकता देने के प्रस्तावित नियम भारत की वसुधैव कुटुंबकम और सर्वधर्म समभाव वाली धारणा के अनुकूल होंगे? यह सवाल उठाने वाले यह भी रेखांकित करते हैं कि भारत वह देश है जहां दुनियाभर, जिसने दुनियाभर के लोगों को अपनाया है। यह बिल्कुल सही है, लेकिन क्या इसकी अनदेखी कर दी जाए कि असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में बांग्लादेश से आए लाखों लोगों ने जिस तरह वहां के सामाजिक और राजनीतिक माहौल को बदल दिया है? सरकार ने एनआरसी लागू करने का कदम इसलिए उठाया था कि इन तीन पड़ोसी देशों से शरणार्थी की तरह घुसपैठ करने वालों में कई आतंकवादी भी पहुंच जाते थे। यहां बांग्लादेशी शरणार्थियों की गतिविधियां अनेक मौकों पर संदिग्ध पाई गई हैं। वहीं दूसरी ओर नागरिकता देने के सवाल पर धर्म का आधार सही नहीं है। परिस्थितियों का भी ध्यान रखना होगा और इसको संयुक्त राष्ट्र संघ भी मानता है, पर इसमें एक शर्त है कि मानवीय आधार पर भारत में शरण पाने हेतु यह नहीं हो सकता कि आप यहीं बस जाएं और यहां की नागरिकता ले लें।

-अनिल नरेन्द्र

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