महाराष्ट्र और हरियाणा के बाद एक तरफ जहां झारखंड विधानसभा
चुनाव पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं और सियासी हलकों में सवाल पूछा जा रहा है कि झारखंड
में भी भाजपा का वही हाल तो नहीं होगा जैसा महाराष्ट्र में हुआ है? पर झारखंड में इस बार किंग बनने से
ज्यादा किंग मेकर की लड़ाई है। मैदान में सिर्प दो योद्ध हैं। भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री
रघुवर दास और विपक्षी गठबंधन की ओर से झामुमो (झारखंड मुक्ति
मोर्चा) के हेमंत सोरेन। 81 विधानसभा सीटों
वाले राज्य में पांच चरणों में चुनाव हो रहा है। पहले चरण का मतदान हो चुका है। झारखंड
के चुनावी समर में उम्मीदवारों की भरमार है। सबसे ज्यादा चर्चा रघुवर दास और आजसू की
है, जो अब तक भाजपा के साथ ही चुनाव लड़ते रहे और सरकार चलाते
रहे। लेकिन इस बार दोनों आमने-सामने आ गए हैं। आजसू के अध्यक्ष
सुदेश महतो हालांकि अपने निर्णय के पीछे महाराष्ट्र को कारण नहीं मानते हैं और भाजपा
सरकार से सैद्धांतिक मतभेद के कारण बताते हैं, लेकिन कोई भी राजनीतिक
विश्लेषक यह मानने को तैयार नहीं है। दरअसल आजसू को लगता है कि ज्यादा सीटों पर लड़कर
आधा दर्जन सीटों पर भी जीतने में अगर वह कामयाब रही तो सरकार किसी की भी बने,
दबदबा और किंग मेकर की भूमिका उसकी होगी। भाजपा ने महाराष्ट्र में हार
के बाद झारखंड में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पहले चरण
की वोटिंग से कुछ घंटे पहले गुरुवार को झारखंड के चतरा और गढ़वा में चुनाव प्रचार सभाएं
कीं। उन्होंने दोनों जगह जनसभा में कम भीड़ देखकर नाराजगी जताई। पहले चतरा में कहा
कि 10-15 हजार लोगों से भाजपा का प्रत्याशी कैसे जीतेगा?
आप मुझे बेवकूफ मत बनाइए, मैं भी बनियां हूं। गणित
मुझे भी आता है। मैं आपको जीत का रास्ता बताता हूं। आप सभी को मुख्यमंत्री रघुवर दास
ने मोबाइल फोन दिया है। घर जाओ और 25-25 लोगों को फोन करो। लोगों
को कहो कि वह भाजपा को वोट दें। शाह ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि झारखंड में
कांग्रेस-झामुमो साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। क्या झामुमो ने
कांग्रेस से कभी पूछा है कि उसने झारखंड के गठन के लिए क्या किया? शाह ने घुसपैठ के मुद्दे पर कहा कि अब मौनी बाबा का जमाना नहीं है,
मोदी जी की सरकार है। पहले मौनी बाबा की चुप्पी से आलिया, मालिया, जयालिया भारत में रोज घुस आते थे। जम्मू-कश्मीर में हमने अनुच्छेद 370 हटाकर अपनी मंशा बता दी
है। विधानसभा चुनाव के लिए शाह आठ दिनों में दूसरी बार झारखंड पहुंचे। इसी से पता चलता
है कि झारखंड महाराष्ट्र के बाद भाजपा के लिए कितना महत्वपूर्ण हो गया है। झारखंड के
20 साल के इतिहास में पहली बार 2014 में स्थायी
सरकार बनी थी। इसका श्रेय मोदी जी को ज्यादा जाता है। यह स्थायी सरकार आजसू के समर्थन
से ही बनी थी। उससे पहले 14 साल के इतिहास में सात मुख्यमंत्री
बने। एक बार तो निर्दलीय मुख्यमंत्री भी बना है। उम्मीद तो यह है कि इस बार भी किसी
को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिलेगा। अगर फ्रेंकयर्ड मैनडेट आया तो छोटे-छोटे दलों की भी महत्वपूर्ण भूमिका बन जाएगी।
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