पेरिस
स्थित निगरानी संगठन आरएसएफ ने बताया कि विश्वभर में वर्ष 2019 में 49 पत्रकारों
की हत्या की गई। इनमें से अधिकतर पत्रकार यमन, सीरिया और अफगानिस्तान में संघर्ष
की रिपोर्टिंग के दौरान मारे गए। यह दर्शाता है कि पत्रकारिता एक खतरनाक पेशा बना हुआ
है। संगठन ने कहा कि दो दशक में औसतन हर साल 80 पत्रकारों की
जान गई थी। संस्था के प्रमुख ने कहा कि संघर्षग्रस्त इलाकों में आंकड़ों में बेशक कमी
आई है जो खुशी की बात है लेकिन लोकतांत्रिक देशों में अधिकतर पत्रकारों को उनके काम
के लिए निशाना बनाया जा रहा है, जो कि लोकतंत्र के लिए एक बड़ी
चुनौती है। 2019 में करीब 389 पत्रकारों
को जेल में डाला गया, जो कि पिछले साल की तुलना में
12 प्रतिशत अधिक है। इनमें से आधे चीन, मिस्र और
सऊदी अरब में कैद हैं। भारत में भी पत्रकार अपनी जान जोखिम में डालकर अपना दायित्व
निभा रहे हैं। पत्रकारों के सरकारी उत्पीड़न पर प्रेस परिषद चिंतित है। मिर्जापुर में
बच्चों को मिड-डे-मील में नमक-रोटी खिलाए जाने की खबर देने वाले पत्रकार के सरकारी उत्पीड़न पर भारतीय प्रेस
परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति चंद्रमौली कुमार प्रसाद ने कहा है कि सिर्प सरकार द्वारा
पत्रकार पर मुकदमा वापस लेना ही पर्याप्त नहीं है। उन्होंने कहा कि इस मामले में आगे
क्या हो सकता है, इस पर विचार किया जाना चाहिए। अध्यक्ष चंद्रमौली
कुमार प्रसाद ने प्रयागराज के सर्पिट हाउस सभागार में प्रेस पर कुठाराघात तथा पत्रकारिता
के मानकों के उल्लंघन से संबंधित सुनवाई की। मिर्जापुर नमक-रोटी
कांड में पत्रकार पर मुकदमा दर्ज किए जाने पर परिषद ने पुलिस अधिकारियों पर नाराजगी
जताई। उन्होंने कहा कि यदि वह ऐसे ही संविधान का उल्लंघन करते रहे तो पत्रकार कैसे
अपना दायित्व निभाएगा? अध्यक्ष ने एक जज की टिप्पणी याद दिलाई,
जिसमें जज ने कहा था कि उत्तर प्रदेश में पुलिस बल अपराधियों का एक व्यक्तिगत
गिरोह है। एक संवाददाता ने मिर्जापुर के अहरौरा गांव में प्राइमरी स्कूल में बच्चों
को मिड-डे-मील में रोटी-नमक परोसे जाने की खबर प्रकाशित की थी, जिस पर प्रशासन
ने पत्रकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया था। अध्यक्ष ने बताया कि मिर्जापुर में मिड-डे-मील, आंध्र प्रदेश में पत्रकार
की हत्या जैसे मामलों की परिषद ने स्वत संज्ञान लेकर सुनवाई की। उन्होंने बताया कि
45 में से 40 मामले उत्तर प्रदेश के थे,
इसलिए प्रयागराज में सुनवाई की गई। न्यायमूर्ति ने कहा कि पत्रकार के
खिलाफ सीधा मुकदमा न लिखा जाए। इससे पहले परिषद में मामले की सुनवाई हो। इसके बाद ही
मुकदमा दर्ज किया जाए। देश में राज्य सरकारें व केंद्र सरकार आज किसी भी पत्रकार के
खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लेती हैं जो उसके खिलाफ कोई भी नापसंद रिपोर्टिंग करे,
वह भूल जाते हैं कि लोकतंत्र में रिपोर्टर को ऐसी रिपोर्टें दर्ज करने
का पूरा हक है। इसीलिए तो प्रेस को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ बताया जाता है।
-अनिल नरेन्द्र
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