Friday 20 December 2019

बाहुबली के सियासी दबाव व धमकियों के बाद भी नहीं झुकी पीड़िता

उन्नाव की बिटिया को करीब ढाई साल के संघर्ष के बाद आखिरकार इंसाफ मिल गया, हालांकि जिस निर्भया के कारण दुष्कर्म का कानून बदला, न्यायिक सक्रियता बढ़ी, उसकी आत्मा को सात साल से ऊपर होने के बाद भी इंसाफ का इंतजार है, कई मौके ऐसे आए, जब लगा कि सत्तारूढ़ दल का रसूखदार और बाहुबली विधायक न्यायिक प्रक्रिया की आड़ में कानून को धत्ता बता सकता है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के दखल से उसके मंसूबे पूरे नहीं हो पाए। दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने भाजपा के निष्कासित विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को उन्नाव की नाबालिग बिटिया से दुष्कर्म का दोषी करार दिया है। हालांकि सह-आरोपी शशि सिंह को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया। कोर्ट ने कहाöताकतवर व्यक्ति के खिलाफ पीड़िता की गवाही सच्ची और बेदाग साबित हुई। कोर्ट ने सेंगर को भारतीय दंड संहिता और पॉस्को एक्ट के तहत लोकसेवक द्वारा बच्ची के साथ यौन शोषण अपराध का दोषी करार दिया। इन धाराओं के तहत उसे अधिकतम उम्रकैद की सजा हो सकती है। विधायक सेंगर के दुष्कर्म की शिकार हुई पीड़िता को न्याय की लड़ाई में तमाम संघर्षों का सामना करना पड़ा। इस दौरान उसने परिवार के कई सदस्यों को भी हमेशा के लिए खो दिया। पिता और दादी के बाद उसने चाची और मौसी को भी खो दिया। रायबरेली में हुए हादसे में पीड़िता की तो जान बच गई, लेकिन विधायक और उसके गुर्गों की धमकियों के बावजूद न्याय की लड़ाई में साथ देने वाले वकील अभी भी कोमा में हैं। बता दें कि चार जून 2017 को 16 साल की उम्र में किशोरी के साथ दुष्कर्म की घटना हुई थी। किशोरी को अगवा कर अलग-अलग स्थानों पर रखा गया। आठ महीने बाद उसको पुलिस ने खोज लिया। मां ने थाने में दिए प्रार्थना पत्र में विधायक कुलदीप सिंह सेंगर द्वारा पड़ोस की एक महिला शशि सिंह के जरिये बहाने से बुलाकर दुष्कर्म की शिकायत की, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। 11 जून 2017 को पीड़िता ने न्यायालय की शरण ली और 156/3 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया, लेकिन पुलिस ने विवेचना में विधायक और सह-आरोपी महिला का नाम हटा दिया। इसके बावजूद पीड़िता अपनी चाची (रायबरेली हादसे में मृत) के दिए हौंसले के सहारे अपनी लड़ाई लड़ती रही। उन्नाव दुष्कर्म मामले में सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए डिस्ट्रिक्ट जज धनेश शर्मा ने बिटिया की हिम्मत और जज्बे की तारीफ भी की। कोर्ट ने इस दौरान सामाजिक बंदिशों का भी जिक्र किया। कोर्ट ने सीबीआई की भी खिंचाई की। जांच के दौरान उसे बेवजह परेशान किए जाने पर भी सवाल उठाए। पॉस्को एक्ट की धारा 24 के तहत ऐसे मामले में महिला अधिकारी को होना चाहिए था लेकिन इस मामले में इसको भी नजरंदाज किया गया। इस पर कोर्ट ने नाराजगी जताई। अब अदालत इस केस में 20 दिसम्बर को सजा सुना सकती है। कुलदीप सिंह सेंगर ने बचने के लिए पूरी ताकत लगा दी पर उसका सियासी दबदबा भी उन्हें नहीं बचा सका।

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