Thursday, 31 October 2013

चौबे गए छब्बे बनने बनके आए दुबे

पाकिस्तान एक बार फिर बुरी तरह से बेनकाब हुआ। अमेरिकी दौरे के पहले पाकिस्तानी पधानमंत्री मियां नवाज शरीफ पता नहीं क्या-क्या इरादों से अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मिलने गए थे? दौरे से पहले नवाज शरीफ की ओर से कश्मीर का मसला उठाने और वहां नियंत्रण रेखा पर तनाव भड़काकर परमाणु युद्ध का डर पैदा करने की रणनीति कामयाब नहीं हो पाई। उल्टा ओबामा ने नवाज शरीफ और पाकिस्तान को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। कश्मीर में अमेरिकी दखल की उम्मीद लेकर जब नवाज शरीफ बराक ओबामा से मिले तो कश्मीर पर अमेरिका ने दखल देने से दो टूक मना कर दिया उल्टा ओबामा ने नवाज शरीफ को आतंकवाद को लेकर कठघरे में खड़ा कर दिया। ओबामा ने अपना वादा पूरा किया। उल्लेखनीय है कि गत 27 सितम्बर को वाशिंगटन में जब ओबामा ने मनमोहन सिंह से मुलाकात की थी तो ओबामा ने भरोसा दिलाया था कि वह नवाज शरीफ से पूछेंगे कि आतंकवादी संगठनों के खिलाफ पाकिस्तान कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा है? तब ही नवाज शरीफ ने मनमोहन सिंह पर देहाती औरतों की तरह शिकायत करने का आरोप लगाया था। ओबामा ने नवाज से सीधा पूछा कि मुंबई पर 26/11 के आतंकवादी हमले के मुकदमे का निर्णय अब तक क्यों नहीं हुआ? ओबामा ने लश्कर चीफ हाफिज सईद की गतिविधियों और सीमा पार आतंकवाद पर भी सवाल किए? मई में पाकिस्तान के पीएम बनने के बाद नवाज शरीफ की ओबामा से पहली मुलाकात थी। जम्मू -कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर अचानक गोलाबारी तेज करने और बार-बार संघर्ष विराम तोड़ने का जो ताजा सिलसिला पाकिस्तानी सेना ने शुरू किया वह शरीफ के अमेरिकी दौरे से जुड़ा था। नियंत्रण रेखा पर तनाव भड़काकर पाकिस्तान भारत को उकसाने की कोशिश कर रहा है ताकि भारतीय सेना उसका करारा जवाब दे। इसके जवाब में पाक सेना भी और जोरदार हमले करती और हालात हाथ से बाहर जाने लगते तो शरीफ अपने वाशिंगटन दौरे के मौके पर यह मसला जोर-शोर से उठाकर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को डराने की कोशिश करते कि भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध भी छिड़ सकता है। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को जल्द से जल्द जम्मू-कश्मीर का मसला सुलझाने के लिए भारत-पाक में बीच-बचाव करना जरूरी है। उल्टे पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की सुरक्षा को लेकर राष्ट्रपति ओबामा ने ही कई सवाल पूछे जिसका जिक भी दोनों की बातचीत के बाद साझा बयान में किया गया है। व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में ओबामा के साथ दो घंटे  की मुलाकात के तत्काल बाद  नवाज शरीफ ने संवाददाताओं को कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने जमात-उद-दावा (जेयूडी) सीमा पार से आतंकवाद और अल-कायदा पमुख ओसामा बिन लादेन का पता लगाने में मदद करने वाले पाक डॉक्टर शकील अफरीदी का मुद्दा भी उठाया। डॉक्टर अफरीदी इन दिनों जेल में हैं। पाक अकसर अमेरिका द्वारा ड्रोन हमलों पर हाय-तोबा मचाता रहता है। इस मामले में भी पाकिस्तान बेनकाब हो गया है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सीआईए के ड्रोन हमलों के लिए पाकिस्तान की सेना, सरकार एवं खुफिया सेना के शीर्ष लोगों द्वारा सहमति एवं अनुमति दिए जाने के ठोस सबूत मौजूद हैं। पाकिस्तान की वैश्विक छवि इतनी खराब हो चुकी है कि भारत को किसी बात का सबूत या जवाबी दलील देने की जरूरत नहीं पड़ती। जैसा मैंने कहा कि मियां जी चौबे गए छब्बे बनने बनके आए  दुबे।

    अनिल नरेन्द्र

राजगीर जद-यू चिंतन शिविर के दो संदेश मोदी से बेचैनी और पार्टी में बगावत

जैसöजैसे चुनाव करीब आ रहे हैं सियासी गर्मी भी बढ़ती जा रही है और इन सबके बीच में हैं गुजरात के मुख्यमंत्री व भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी। गैर भाजपा सभी सियासी दलों के निशाने पर हैं नरेन्द्र मोदी। मुझे शोले पिक्चर याद आ रही है जब फिल्म में सारे हीरो विलेन के पीछे पड़े हुए थे। जब फिल्म रिलीज हुई तो फिल्म का विलेन अमजद खान तो हीरो बन गया और सारे हीरो उसके सामने हल्के पड़ गए। ऐसा ही आज-कल नरेन्द्र मोदी के साथ हो रहा है। चौतरफा हमले से उल्टा मोदी सेंटर आफ एटरेक्शन बनते जा रहे हैं। मंगलवार को हाल में भाजपा की हुंकार रैली में मोदी द्वारा किए गए सियासी हमलों का बिहार के मुख्यमंत्री ने करारा जवाब देकर हिसाब-किताब बराबर करने का पयास किया है। जनता दल (यूनाइटेड) के चिंतन शिविर के समापन सत्र में नरेन्द्र मोदी की हिटलर से तुलना करते हुए नीतीश ने यहां तक कह डाला कि हुंकार से अहंकार की बू आती है। यह भी कहा कि उनका (मोदी) लाल किला पर राष्ट्रध्वज फहराने का सपना पूरा नहीं होगा। उन्होंने मोदी के इतिहास की जानकारी पर सवाल उठाए और हुंकार रैली के भाषण को झूठ पर आधारित करार दिया। नीतीश ने हुंकार रैली के दौरान मोदी के संबोधन की ओर इशारा करते हुए कहा कि उन्हें पानी पी-पीकर कोसा गया। क्या उतावलापन था, कितनी बार पसीने पोंछते रहे। इतना पसीना क्यों आ रहा था। उन्होंने कहा कि किस बात का उतावलापन था? देश के सर्वोच्च पद पर बैठने की तमन्ना रखने वाले आदमी को धैर्यवान होना चाहिए, उतावलापन नहीं दिखाना चाहिए। नीतीश कुमार की सरकार पर कितनी पकड़ है यह तो हमें पता नहीं पर पार्टी पर पकड़ न होने के सबूत इसी बैठक में सामने आ गए। इसी राजगीर चिंतन शिविर में मंगलवार को ही जद-यू के वरिष्ठ नेता शिवानन्द तिवारी ने उल्टा नरेन्द्र मोदी की ही तारीफ करके नीतीश के भाषण पर पानी फेर दिया। उन्होंने मुखर होकर न केवल नरेन्द्र मोदी की तारीफ की बल्कि नीतीश कुमार को आगाह भी कर दिया कि यदि नमो को हल्के में लिया गया तो खामियाजा भुगतना पड़ेगा। तिवारी ने कहा कि मैं नरेन्द्र मोदी का विरोधी हूं लेकिन संघर्ष क्षमता को देखकर उनकी पशंसा किए बिना नहीं रह सकता। मोदी कहां से शुरू हुए और आज कहां तक पहुंच गए, यह कोई साधारण बात नहीं है। जिस तरह से नरेन्द्र मोदी आगे बढ़ रहे हैं उन्हें हल्के में नहीं लिया जा सकता। नीतीश, लालू की तरह तिवारी को भी लोकनायक जयपकाश के आन्दोलन की उपज माना जाता है। तिवारी ने कहा एक चाय बेचने वाला आज जिस मुकाम पर है उसे देखकर उसकी पशंसा करनी चाहिए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर उन्मुख होकर शिवानन्द तिवारी ने बेबाक होकर चेतावनी भरे स्वर में कहा-आप चाटुकारों से घिर गए हैं। मुझे अच्छी तरह से मालूम है  कि जद-यू और बिहार सरकार कैसे चल रही है अब हम शान्त भी नहीं बैठेंगे। चाहे इसके लिए मुझे कोई भी कुछ कहे। हमारी हमेशा उपेक्षा होती रही है, मुझे कुछ भी कहने नहीं दिया जाता। उपेक्षा सहने की भी एक सीमा होती है। सत्तर साल की उम्र में वह किसी के आगे माथा नहीं टेक सकते। मंच से मोदी की तारीफ करने के चलते शिविर में उनके खिलाफ नारेबाजी शुरू हो गई लेकिन शिवानन्द रुके नहीं बोलते रहे। जद-यू चिंतन शिविर से दो बातें उभर कर आई। पहली यह कि नरेन्द्र मोदी के बढ़ते ग्राफ से पार्टी के अन्दर चिंता बढ़ रही है और दूसरी यह कि नीतीश कुमार की सरकार और पार्टी दोनों पर पकड़ कमजोर होती जा रही है। 

Wednesday, 30 October 2013

बहुचर्चित नीरा राडिया टेप में सनसनीखेज खुलासे और प्रगति

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह साबित कर दिया है कि कानून सबके लिए बराबर है और आरोपी का औहदा, रसूख, धन-दौलत इत्यादि किसी की यह परवाह नहीं करता। बहुचर्चित नीरा राडिया टेप केस को दबाने के कितने प्रयास हुए। मशहूर उद्योगपति रतन टाटा ने तो बाकायदा यह याचिका दायर की कि इस केस की सुनवाई मीडिया कवर न कर पाए पर सुप्रीम कोर्ट ने इसे अस्वीकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पिछली तारीख यानि 17 अक्तूबर को कहा कि औद्योगिक घरानों के लिए सम्पर्प सूत्र का काम करने वाली नीरा राडिया की नौकरशाहों, उद्यमियों और नेताओं के साथ रिकार्ड की गई बातचीत में पहली नजर में गहरी साजिश का पता चलता है। न्यायालय ने इसके साथ सीबीआई को छह मुद्दों की जांच के आदेश दिए जो निजी हित के लिए भ्रष्ट तरीके अपनाने से संबंधित हैं। जीएस सिंघवी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि पहली नजर में इसमें सरकारी अधिकारियों और निजी उद्यमियों की मिलीभगत से गहरी साजिश दिखती है। सीबीआई ने नीरा राडिया के टेलीफोन टेपिंग से मिली जानकारी के आधार पर आठ नए प्रारम्भिक जांच (पाई) प्रकरण दर्ज किए हैं। एक पाई झारखंड के सिंहभूमि जिले के अंकुला में लौह अयस्क खान टाटा स्टील को आवंटित करने में कथित अनियमितताओं पर गौर करने के लिए शुरू की गई है। भ्रष्टाचार के एक मामले में जमानत पर चल रहे कोडा और झारखंड के अज्ञात अधिकारियों को इसमें आरोपी के रूप में नामजद किया गया है। सूत्रों ने बताया कि दूसरी पाई आरआईएल (रिलायंस) के तत्कालीन हाइड्रोकार्बन महानिदेशक वीके सिब्बल द्वारा कथित रूप से पक्ष लेने और परस्पर अवैध लाभ पहुंचाने को लेकर सिब्बल, आरआईएल और अन्य अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज की गई है। एक पाई विमानन क्षेत्र में दलालों व बिचौलियों के काम करने एवं रिश्वतखोरी के सिलसिले में राडिया, एयर इंडिया के पूर्व अधिकारी रमेश नाम्बियार और दीपक तलवार एवं नागरिक विमानन मंत्रालय के अन्य अधिकारियों के खिलाफ भी शुरू की गई है। एक बाजार में कथित साठगांठ एवं यूनिटेक के शेयरों में गिरावट को लेकर राडिया के खिलाफ शुरू की गई है। सूत्रों ने बताया कि जांच पूर्व दूरसंचार सचिव प्रदीप बैजल और नीरा राडिया के बीच पाइप लाइन एडवाइजरी के नए सदस्य की नियुक्ति के बारे में बातचीत को लेकर है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश और सीबीआई द्वारा जांच शुरू करने से बौखलाए टाटा समूह के पूर्व अध्यक्ष रतन टाटा ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष रतन टाटा की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि प्रमुख नेताओं, नौकरशाहों और कारोबारियों व पत्रकारों के साथ नीरा राडिया की टेप की गई टेलीफोन की बातचीत औद्योगिक प्रतिद्वंद्विता के कारण ही मीडिया में लीक की गई थी। साल्वे ने यह सनसनीखेज खुलासा करते हुए आगे कहा कि टाटा टेलीकम्युनिकेशंस को भी टेलीफोन की बातचीत सुनने के लिए हर साल 10 से 15 हजार अनुरोध मिलते हैं। उन्होंने टेप की गई बातचीत लीक करने वालों का पता नहीं लगाने पर केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाया। देश उम्मीद करता है कि आने वाले दिनों में राजनेताओं, नौकरशाहों, पत्रकारों और अधिकारियों के बीच इस मिलीभगत की पूरी सच्चाई सामने आएगी, अगर सीबीआई को स्वतंत्र रूप से जांच करने दी जाएगी तो  गनीमत है कि पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में चल रहा है, इसलिए ज्यादा गड़बड़ी की गुंजाइश नहीं है।

-अनिल नरेन्द्र

कहीं गांधी मैदान की यह रैली मोदी को दिल्ली के सिंहासन तक न पहुंचा दे?

हम पटना की जनता को बधाई देना चाहते हैं कि देश को दहलाने वाली आतंकियों की अब तक की सबसे बड़ी साजिशों में से एक को न केवल उन्होंने नाकाम किया बल्कि साहस से उसका मुकाबला भी किया। बिहार की जनता ने यह साबित कर दिया कि मुट्ठीभर यह आतंकवादी कभी भी अपने नापाक इरादों में कामयाब नहीं हो सकते। पटना के गांधी मैदान में लाखों लोगों की मौजूदगी में चारों तरफ बम फटते रहे लोग घायल होकर गिरते रहे लेकिन न तो कोई भगदड़ मची और न ही कोई अपनी जगह से हिला। उल्टा बमों की परवाह न करते हुए लाखों की संख्या में लोग गांधी मैदान आते रहे। मंच पर मौजूद भाजपा नेतृत्व की भी सराहना करनी होगी, यह जानते हुए भी कि बम फट रहे हैं उन्होंने लाखों की एकत्रित भीड़ को इसके बारे में कुछ नहीं बताया। दाद तो नरेन्द्र मोदी को भी देनी होगी जो इतनी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद निडर होकर एक घंटे तक बोले। इस घटना से नीतीश कुमार बुरी तरह एक्सपोज हो गए हैं। वे कहते हैं कि हमें आईबी की ओर से कोई अलर्ट जारी नहीं किया गया था। अगर हम उनकी बात मान भी लें तो भी वह अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। आखिर उन्होंने और उनके प्रशासन ने इतनी बड़ी रैली से निपटने के लिए क्या तैयारी की थी? पहला धमाका सुबह हुआ तब भी आप नहीं तैयार हुए। बम लेकर मैदान के अन्दर आतंकवादी इतनी आसानी से कैसे घुस गए? कैसे उन्होंने मैदान के अन्दर विभिन्न स्थानों पर बम प्लांट किए? बम भले ही कम ताकत वाले रहे हों पर इनमें टाइमर लगाकर ऐसी व्यवस्था की गई थी कि एक के बाद एक विस्फोटों से दहशत की प्रचंड लहर फैले और भगदड़ मच जाए। लाखों की उमड़ती लहर के बीच दुर्भाग्य से यदि ऐसा हो गया होता तो इसका नतीजा कितना विनाशकारी होता, यह सोचने भर से घबराहट हो जाती है। नीतीश को नरेन्द्र मोदी की रैली पर इसलिए भी खास ध्यान देना चाहिए था क्योंकि इसमें किसी भी प्रकार की गड़बड़ होने पर सीधा उन पर आरोप लगता कि उन्होंने जानबूझ कर सुरक्षा व्यवस्था में ढील दी। कहीं ऐसा तो नहीं कि अल्पसंख्यक वोटों के चक्कर में नीतीश ने इस रैली पर उतना ध्यान नहीं दिया जितना देना जरूरी था? संवेदनहीनता की हद यह थी कि आपात स्थिति में लोगों को बाहर निकालने की कोई योजना भी प्रशासन के पास नहीं थी। अरुण जेटली ने अपने बयान में यासीन भटकल की गिरफ्तारी का जिक्र किया है। यासीन भटकल को जब रक्सौल में गिरफ्तार किया गया तो नीतीश कुमार ने उसकी न तो गिरफ्तारी दिखाने की हामी भरी और न ही उसके खिलाफ कोई केस दर्ज करने को तैयार हुए। यह सिर्प इसलिए कि अल्पसंख्यक वोट नाराज न हो जाएं। अंत में एनआईए की टीम ने जाकर भटकल की कस्टडी ली, उस बीच उसके कुछ साथी भाग निकले। नीतीश कुमार की इस तुष्टिकरण की नीति का एक नतीजा यह है कि बिहार अब आतंकियों का गढ़ बनता जा रहा है। सात जुलाई को बोध गया में भी इसी तरह के विस्फोट किए गए थे। अभी तक इसका कोई सुराग ढूंढने में बिहार पुलिस नाकाम है। खुफिया सूत्रों के मुताबिक बिहार और झारखंड में लम्बे समय से सक्रिय इंडियन मुजाहिद्दीन जांच एजेंसियों के राडार पर है लेकिन बिहार पुलिस प्रशासन के नाकारापन के चलते चार महीने के भीतर लगातार दूसरी बड़ी वारदात मोदी की रैली के दौरान करने में कामयाब रहे। यही नहीं, बिहार पुलिस के काम करने के तौर-तरीकों पर भी एनआईए ने सवाल उठाए हैं। खासतौर पर मैदान में पाए जिन्दा बमों को निक्रिय करने के तरीके पर उसने एतराज जताया है। क्योंकि जीवित बमों से कई सुराग मिलते पर बिहार पुलिस ने उन्हें बोरी के अन्दर रख कर ब्लास्ट करना बेहतर समझा। सच्चाई तो यह है कि 18 फीसदी अल्पसंख्यक वोट के चक्कर में नीतीश बौखला गए हैं और उनकी सरकार व प्रशासन पर ढील बढ़ती जा रही है। इसी वोट बैंक के चक्कर में नीतीश ने भाजपा से गठबंधन तोड़ा और अकेले अपने दम पर सरकार चलाने का प्रयास किया। जब से उन्होंने नरेन्द्र मोदी को लेकर गठबंधन तोड़ा है तभी से उनकी लोकप्रियता का ग्रॉफ नीचे आ रहा है। रही बात नरेन्द्र मोदी की तो मैं नीतीश जी को वह पुराना किस्सा दोहराना चाहता हूं जब लालू जी ने इसी वोट बैंक के चक्कर में आडवाणी का रथ रोका था और उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। भाजपा को दिल्ली के सिंहासन तक पहुंचने में यह टर्निंग प्वाइंट था। कहीं रविवार की गांधी मैदान की यह मोदी की रैली भी उन्हें दिल्ली  की गद्दी तक न पहुंचा दे? अगर ऐसा होता है तो निसंदेह इसमें भी नीतीश कुमार का उल्लेखनीय योगदान होगा।

Tuesday, 29 October 2013

आखिर राहुल गांधी के सलाहकार कौन हैं जो उनके भाषण लिखवा रहे हैं?

मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि कांग्रेस उपाध्यक्ष युवराज राहुल गांधी का भाषण कौन लिख रहा है, किसकी फीड बैक पर शहजादे बोल रहे हैं? एक के बाद एक ऐसा विवादास्पद बयान शहजादे दे रहे हैं जिससे उन्हें तो जवाब देना भारी पड़ ही रहा है पर कांग्रेस पार्टी को भी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। राहुल सुर्खियां बटोरने की होड़ में जगह-जगह पर सनसनीखेज बयान दे रहे हैं। गत दिनों उन्होंने इंदौर की रैली में खुलासा किया कि मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों से पाकिस्तान की बदनाम खुफिया एजेंसी आईएसआई सम्पर्प कर रही है ताकि युवकों को आतंकवाद के लिए तैयार किया जाए। शहजादे की इस टिप्पणी से राजनीतिक हलकों में तूफान जैसा आ गया है। चूंकि राहुल ने मुजफ्फरनगर दंगों के लिए सीधे तौर पर भाजपा के खिलाफ अंगुली उठाई है, ऐसे में राहुल की विवादित वाणी पर भाजपा ने जोरदार निशाने साधने शुरू कर दिए हैं। राहुल गांधी के दावे पर भाजपा ने शुक्रवार को कहा कि केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार  शिंदे को यह जवाब देना चाहिए कि गुप्तचर अधिकारी किस हैसियत से कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को गुप्त जानकारियां उपलब्ध करा रहे हैं। वे सांसद या एक पार्टी अधिकारी को जानकारी कैसे उपलब्ध करवा सकते हैं? लेकिन कांग्रेस की मुश्किल कुछ मुस्लिम नेताओं के भड़क जाने से ज्यादा हो गई है। उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री आजम खान ने मांग की कि इस  बयान पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को  मुसलमानों से माफी मांगनी चाहिए। खान ने कहा कि राहुल को सोच समझकर बोलना चाहिए। एक तरफ वह भाजपा को मुजफ्फरनगर दंगों के लिए दोषी मानते हैं वहीं दूसरी तरफ इस मामले को जोड़कर मुसलमानों की निष्ठा पर शक भी करते हैं। उन्होंने कहा कि राहुल का बयान नफरत का नया दरवाज खोलेगा। राहुल माफी मांगे और नहीं तो सोनिया गांधी इस बयान के लिए मुसलमानों से माफी मांगे। आजम खान ने तो आरोप लगा दिया है कि राहुल गांधी वोट बैंक बनाने की लालच में उलजुलूल टिप्पणियां करके मुसलमानों के लिए और खतरा बढ़ा रहे हैं। मुस्लिम लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना कल्बे सादिक ने कहा कि इस तरह की अफवाह फैलाकर राहुल ने जाने-अनजाने संघ परिवार जैसी हरकत कर दी है। अच्छा यही रहेगा कि भारत सरकार राहुल की टिप्पणी पर अपना नजरिया रखे और बताए कि उनकी बातों में कितना दम है? जमाते हिंद के वरिष्ठ नेता महमूद मदनी ने कहा कि यह आईएसआई का जुमला उछालकर राहुल सभी मुसलमानों को संदेह के घेरे में क्यों खड़ा करना चाहते हैं? वैसे भी तमाम ताकतें मुसलमानों को संदेह की नजर से देखती हैं। राहुल ने भी आईएसआई वाली बात उठाकर पूरे मुस्लिम समाज के साथ नाइंसाफी की है। कांग्रेस की अंदरुनी स्थिति भी यह है कि राहुल के बयान से सभी भौचक्के हैं। कइयों का मानना है कि सजा पाए सांसदों और विधायकों को राहत देने के लिए लाए गए आर्डिनेंस पर राहुल की हरकत की तरह इंदौर का यह बयान भी कांग्रेस की फजीहत बढ़ाएगा। आर्डिनेंस को फाड़कर फेंक देने लायक वाले बयान से कैबिनेट और पीएम तक पर सवाल थे। इंदौर वाला बयान राजनीतिक नुकसान का मुद्दा है। देश के सीकेट सिस्टम पर भी यह सवाल खड़ा करता है। यदि सरकार या पार्टी राहुल के बयान को सही ठहरा देती है यानि कह देती है कि आईएसआई द्वारा मुस्लिम युवकों के सम्पर्प में होने की बात सही है तो यह आफिशियल सीकेट एक्ट की कार्रवाई भी इन्वाइट कर सकती है। खबरें हैं कि इंटेलीजेंस ब्यूरो और होम मिनिस्ट्री के अफसरों ने ऐसी किसी गुप्त सूचना से इंकार किया है। जानकारों के मुताबिक यदि यह सूचना सही भी है तो गृह मंत्रालय या आईबी इसकी पुष्टि नहीं कर सकते हैं। पुष्टि करने पर पहली गाज उस अफसर या कर्मी पर गिरेगी जिसने राहुल गांधी (एक सांसद) को यह गुप्त जानकारी दी। दूसरे, एक बार फिर यह बात उठेगी कि परदे के पीछे से सरकार तो राहुल गांधी ही चला रहे हैं। तीसरे इस तरह की पुष्टि के बाद कोई भी इसे कोर्ट में ले जा सकता है। आफिशियल सीकेट एक्ट की बातें भी उठ सकती हैं। यह सब सोचकर नरेन्द्र मोदी ने दो दिन पहले झांसी में राहुल के बयान को निशाना बनाया था। अब कांग्रेस को इसकी चौतरफा नुकसान की काट निकालने में रातें काली करनी पड़ेंगी। यह भी मांग उठ रही है कि विवाद को खत्म करने के लिए राहुल गांधी माफी मांग ले। अगर वह ऐसा करते भी हैं तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि विवाद समाप्त हो जाएगा।

-अनिल नरेन्द्र

रविवार की हुंकार रैली ः बम विस्फोटों का निशाना था मछली नम्बर-5

नीतीश कुमार के गढ़ बिहार में बीजेपी पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की हुंकार रैली में धमाका होने की तो सम्भावना सभी व्यक्त कर रहे थे। आखिर नीतीश ने इन्हीं नरेन्द्र मोदी को लेकर बीजेपी से गठबंधन तोड़ा था। धमाका तो हुआ पर एक की जगह दो धमाके हुए। मोदी की रैली से पहले ही धमाके होने शुरू हो गए। रविवार को हुए सिलसिलेवार बम धमाकों से पटना दहल गया। सुबह नौ बजे से शाम पौने छह बजे तक कुल नौ धमाके हुए। इनमें छह की मौत हो गई और 100 घायल हो गए। रैली में शामिल होने आई भीड़ धमाकों के बावजूद सभा स्थल पर डटी रही। हालांकि बम फटने से थोड़ा अफरातफरी का माहौल बनना स्वाभाविक ही था। बम विस्फोटों की खबर आते ही इस पर राजनीति शुरू होने में देर नहीं लगी। कुछ ने कहा कि यह काम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का है जो वोटों की ध्रुवीकरण करने के लिए धमाके करवा रहा है, कुछ ने कहा कि यह बिहार की अंदरुनी खींचतान का परिणाम है पर बिहार पुलिस के बड़े नाटकीय ढंग से विस्फोटों की एक कड़ी हाथ आ गई। हुआ यह कि रविवार सुबह करीब साढ़े नौ बजे पटना जंक्शन के एक सुलभ शौचालय में विस्फोट हुआ। धमाके के साथ ही एक शख्स शौचालय से निकल कर भागा। धमाके की आवाज सुनकर आसपास खड़े पुलिसकर्मियों ने उसे दबोच लिया। तब यह किसी को पता नहीं था कि शौचालय के अंदर क्या हुआ है। अंदर जाने पर पता चला कि पुंडी लगे दरवाजे वाले शौचालय में एक शख्स खून से लथपथ पड़ा है। शक होने पर संदिग्ध को पुलिस ने अपनी गिरफ्त में लेकर पूछताछ की तो पता चला कि वह आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन से संबंध रखता है। पकड़ में आए संदिग्ध ने पूछताछ में यह खुलासा किया कि रांची से लाए गए बम में बैट्री लगाने के लिए शौचालय में दो लोग गए थे। इसी दौरान एक बम फट गया। विस्फोट के बाद वह अपना बम शौचालय में ही पटक कर वहां से भागा और पकड़ा गया। पटना में जितने बम फटे वे सुबह ही लगाए गए थे। बस से उतरने के बाद आतंकियों का गुट अलग-अलग बंट गया था और उन्होंने तय जगह पर बम प्लांट कर दिए। प्रारंभिक सूचनाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि पटना से सीरियल धमाकों के पीछे रांची से आए इंडियन मुजाहिद्दीन (आईएम) के दस्ते का हाथ है। रैली में आत्मघाती हमले की तैयारी की और निशाने पर थे मछली नम्बर-5। जी हां, मछली नम्बर-5 और कोई नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी हैं। वह आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और इंडियन मुजाहिद्दीन के निशाने पर हैं। खुफिया विभाग शुरुआती तौर पर पटना में हुए बम विस्फोटों को आतंकी हमला मान रहा है। सभी विस्फोट एआईडी से किए गए थे। यह सिमी और आईएम की जुगलबंदी भी हो सकती है। खुफिया विभाग को समस्तीपुर निवासी तहसीन अख्तर उर्प मोनू और पाकिस्तानी निवासी वकास अहमद की तलाश है। तहसीन यासिन भटकल का बांया हाथ है और अब ये इंडियन मुजाहिद्दीन का टॉप कमांडर है। जिस प्रकार के बमों का रैली में इस्तेमाल हुआ ऐसे बमों का इस्तेमाल आईएम विगत पांच सालों से कर रहा है। कुछ दिन पहले बोध गया में जो बम विस्फोट हुए थे वह भी बहुत कम तीव्रता के थे। उसमें भी आईएम का हाथ था। खुफिया सूत्रों के अनुसार आतंकियों की योजना थी कि बम धमाके के बाद भगदड़ मचेगी और कई लोग मारे जाएंगे। आतंकियों ने कुछ बम ऐसे लगाए थे जिन्हें भगदड़ होने पर विस्फोट किया जाना था पर ऐसा नहीं हुआ। इन बमों को सुरक्षाकर्मियों ने डिफ्यूज कर दिया। लश्कर ने मोदी का कोड नेम मछली नम्बर-5 रखा है। खुफिया सूत्रों के अनुसार इस बात का खुलासा इशरत जहां मुठभेड़ के दौरान लश्कर कमांडर मुजम्मिल की अमजद अली और जीशान जौहर की बातचीत से हुआ है। खुफिया सूत्रों के अनुसार यासिन भटकल की गिरफ्तारी के बाद आईएम गुर्गे परेशान हो गए। आईएम के दाएं हाथ तहसीन अख्तर उर्प मोनू और वकास की तलाश जारी है। बोध गया, मुंबई और हैदराबाद ब्लास्ट में भी ये दोनों वांछित हैं। एसएसपी मनु महाराज ने इम्तियाज के पकड़े जाने के बाद बताया कि आईएम के आठ सदस्य बम के साथ दो-दो कर गांधी मैदान पहुंचे थे। पुलिस वहां पहुंचकर एक बम को डिफ्यूज कर पाई। उसके बाद आतंकी वहीं रखकर कुछ दूर चले गए थे। सभी टाइम बम थे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि बम धमाके के दोषियों और साजिशकर्ताओं को हर हाल में बेनकाब किया जाएगा। रविवार को उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि धमाकों के लिए भाजपा की रैली के दिन को चुना जाना बिहार के माहौल को बिगाड़ने की साजिश की ओर साफ संकेत करता है। कोई है जो राज्य में शांति भंग करना चाहता है। उन्होंने कहा  कि हमारा राजनीतिक विरोध हो सकता है लेकिन सभी दलों को एकजुट होकर ऐसी शक्तियों का मुकाबला करना होगा। भाजपा नेताओं ने रैली के दौरान लोगों से ऐसी ही अपील की, हम इसका स्वागत करते हैं। इस घटना के पीछे आतंकी साजिश से भी इंकार नहीं किया जा सकता, लेकिन अभी कुछ भी पक्के तौर पर कहना कठिन है। एक बार फिर हमारा खुफिया तंत्र, सुरक्षा तंत्र फेल हुआ है और आतंकी अपने मकसद में कामयाब रहे।

Sunday, 27 October 2013

गलत इलाज की वजह से हुई मौत पर सबसे बड़ा मेडिकल मुआवजा

सुप्रीम कोर्ट ने गलत इलाज की वजह से महिला की मौत पर कोलकाता के एक केस में रिकार्ड तोड़ने वाला मेडिकल मुआवजा दिया है। जस्टिस सीके प्रसाद और वी. गोपाल गौंडा की खंडपीठ ने डॉ. कुणाल साहा की पत्नी अनुराधा की एएमआरआई अस्पताल तथा तीन डाक्टरों को वर्ष 1998 में चिकित्सकीय लापरवाही के मामले में 6.08 करोड़ रुपए बतौर मुआवजा देने का आर्डर दिया है। अब तक भारत के इतिहास में यह सबसे बड़ा मेडिकल मुआवजा है। मामला कुछ ऐसे था ः मार्च 1998 में पेशे से मनोचिकित्सक अनुराधा साहा अपने पति डाक्टर साहा के साथ भारत छुट्टियां मनाने आई थीं। डॉ. साहा अमेरिका के ओहायो में एड्स अनुसंधानकर्ता हैं। 25 अप्रैल 1998 को त्वचा पर चकत्ते पड़ने की शिकायत होने पर डाक्टर मुखर्जी से सम्पर्प किया। 7 मई 1998 को डाक्टर मुखर्जी ने डेपोमेड्राल इंजेक्शन लगाने की सलाह दी, इंजेक्शन लगाते ही अनुराधा की तबीयत खराब होने लगी और 11 मई 1998 को उन्हें एएमआरआई अस्पताल में भर्ती कराया गया, हालत बिगड़ने पर मुंबई ले जाया गया। 28 मई को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अनुराधा की मौत हो गई। मौत का कारण था गलत इलाज डॉ. कुणाल साहा को अब हर्जाने के तौर पर कुल 11.41 करोड़ रुपए मिलेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के एएमआरआई अस्पताल और तीन डाक्टरों को लापरवाही के लिए जिम्मेदार ठहराया है। सभी को 8 हफ्ते में पैसा देने को कहा गया है। इससे पहले नेशनल कंज्यूमर डिसप्यूट रिड्रेसल कमीशन (एनसीडीआरसी) ने 2011 में साहा के पक्ष में फैसला सुनाया था पर हर्जाने की रकम 1.73 करोड़ रुपए ही थी। अब कोर्ट ने इस राशि को बढ़ाते हुए अस्पताल को छह फीसदी की दर से ब्याज भी चुकाने को कहा है। किसको कितनी रकम चुकानी है ः 1. डाक्टर बलराम प्रसाद को 10 लाख रुपए,  2. डाक्टर सुकुमार मुखर्जी को 10 लाख रुपए, 3. डॉ. बैधनाथ हलधर को 5 लाख रुपए, 4. बाकी रकम एएमआरआई अस्पताल को चुकानी होगी। मुआवजे का ब्यौरा कुछ इस प्रकार है ः आय की क्षति ः 5,72,00,550 रुपए, कोलकाता और मुंबई में इलाज का खर्च 7,00,000 रुपए, मुंबई में आने-जाने और होटल का खर्च 65,00,00 रुपए, जीवन भर के साथ की क्षति ः 1,00,000 रुपए, 18 दिन की गहन पीड़ा और कष्ट 10,00,000 रुपए, मुकदमे का खर्च 11,50,000 रुपए, कुल 6,08,00,550 रुपए। सुप्रीम कोर्ट ने निजी अस्पतालों और नर्सिंग होमों में मेडिकल लापरवाही के रोजाना बढ़ते मामलों पर चिंता जाहिर करते हुए राज्य और केंद्र सरकारों से कहा है कि इनके नियमन के लिए कानून बनाए जाएं। कोर्ट ने कहा कि डाक्टरों के व्यवहार पर नियंत्रण के लिए एमसीआई (मेडिकल काउंसिल) है लेकिन अस्पतालों पर नियंत्रण के लिए कोई कानून नहीं है। फैसला लिखते हुए जस्टिस गोपाल गौंड़ा ने कहा कि हम यह पहले ही निर्णय दे चुके हैं कि स्वास्थ्य का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों का मौलिक अधिकार है। ऐसे में हर सरकारी, निजी अस्पताल, पालीक्लीनिक और निजी नर्सिंग होम की जिम्मेदारी है कि वे नागरिकों का अपनी पूरी क्षमता के साथ बेहतरीन इलाज करें। यदि अस्पताल और नर्सिंग होम तथा अन्य संबंधित संस्थान ढेरों पैसा लेने के बाद भी अच्छे स्वास्थ्य और बेहतर जीवन जीने की आस में आए मरीजों के प्रति लापरवाही बरतते हैं तो उनसे कड़ाई से निपटा जाए। माननीय अदालत ने कहा कि मरीज चाहे किसी भी आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि का हो उसे सम्मान के साथ बेहतर इलाज का अधिकार प्राप्त है। यह उसका मौलिक अधिकार ही नहीं बल्कि उसका मानवाधिकार है। हम सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की सराहना करते हैं और माननीय जजों को बधाई देते हैं कि उन्होंने इस समस्या की ओर न केवल ध्यान ही दिया बल्कि एक दूरगामी परिणाम का फैसला  भी दिया है। डाक्टरों की जवाबदेही तय होनी चाहिए। लाखों मरीज प्रति वर्ष गलत इलाज के कारण पूरे देश में मरते हैं और उनके बारे में पूछने वाला कोई नहीं। इस फैसले से इतना तो होगा कि डाक्टर अब गलत इंजेक्शन लगाने से, अस्पताल गलत डायग्नोज करने से पहले दस बार सोचेंगे तो सही।

-अनिल नरेन्द्र

मुस्लिम धर्मगुरू मौलाना कल्बे सादिक की सराहनीय पहल

लोकसभा चुनाव से पहले मुस्लिम धर्मगुरू व ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना कल्बे सादिक ने यह कहकर सबको चौंका दिया है कि नरेन्द्र मोदी का अतीत भूला जा सकता है। इस साहसी बयान के लिए हम मौलाना कल्बे सादिक की सराहना करते हैं। वहीं इस बयान से विवाद जरूर खड़ा होगा क्योंकि आज तक किसी भी मुस्लिम धर्मगुरू ने इस प्रकार के बयान देने की हिम्मत नहीं जुटाई है। मौलाना सादिक ने कहा कि तमाम नाराजगियों के बावजूद नरेन्द्र मोदी के बातचीत का दरवाजा बंद नहीं हुआ है। वे खुद को बदलें तो हम भी बदलने को तैयार हैं। आगे वह कहते हैं कि देश के सामने हिन्दू और मुसलमान का मुद्दा छोटा है, जबकि चीन और पाकिस्तान से खतरा बड़ा मुद्दा है। ऐसे में नरेन्द्र मोदी बड़े सवालों पर अपना नजरिया साफ करें तो बात आगे बढ़ सकती है। बृहस्पतिवार को यूनिटी कॉलेज के ऑफिस में अमर उजाला से खास बातचीत में उन्होंने कहा कि मोदी हिन्दू-मुस्लिम का सवाल छोड़ें और गरीबी, भ्रष्टाचार, फिरकापरस्ती और नाइंसाफी पर अपना एजेंडा और प्लान सार्वजनिक करें, उस पर हम गौर करने को तैयार हैं। वैसे यह पहला मौका नहीं है जब मौलाना सादिक ने धारा के विपरीत बोलने का साहस किया है। तीन तलाक, फैमिली प्लानिंग, पर्सनल लॉ व वंदेमातरम् जैसे मुद्दों पर जब तब ऐसा बोलते रहे हैं, जिस पर मुस्लिम समाज भन्नाता रहा है और सोचने पर मजबूर भी होता रहा है। सादिक ने कहा कि इतिहास में ऐसी तमाम मिसालें हैं जिनका अतीत तो अच्छा नहीं था लेकिन बाद में उन्होंने खुद को सुधार लिया। चंगेजी ने पहले तो इस्लाम के परखचे उड़ा दिए पर बाद में सुधर गए। क्या उनके अतीत को नजरअंदाज नहीं किया गया? उन्होंने कहा कि जहां तक मोदी की बात है सिर्प वादों और बयानों से उनका काम नहीं चलने वाला। मुस्लिम लीडरशिप पर सवाल उठाते हुए मौलाना कल्बे सादिक कहते हैं कि मुस्लिम लीडरशिप या तो जाहिल है या भ्रष्ट। इसी से मुस्लिम बिरादरी पिछड़ रही है। उन्होंने यह भी कहा कि मुस्लिम समाज में शादी व तलाक के मामलों में औरतों के साथ बहुत नाइंसाफी हो रही है। अधिकतर धर्मगुरू अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेते हैं। बातचीत में वे खुद को मुस्लिम लीडरशिप पर टिप्पणी करने से रोक नहीं पाए। वह कहते हैं कि मैं शिया हूं। शियों में हजरत पैगम्बर के बाद हजरत अली के संदेश मायने रखते हैं। हजरत अली ने कहा था कि वह हर एक से दोस्ती को तैयार हैं पर जाहिल और भ्रष्ट से नहीं। अफसोस है कि आज की अधिकतर मुस्लिम लीडरशिप या तो जाहिल है या भ्रष्ट। यह फैक्टर मुस्लिम बिरादरी के पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण है। लीडरशिप साफ-सुथरे हाथों में आ जाए तो कौम की सूरत बदल सकती है। इसके साथ उन्होंने शादी व तलाक के मामलों में कहा कि मुस्लिम समाज में औरतों के साथ बहुत नाइंसाफी हो रही है। शादी को इतना महंगा कर दिया गया है कि तमाम मुस्लिम बच्चियां अब शादी से ही वंचित हैं। तलाक को तो मर्दों के हाथों में नाइंसाफी का आसान और सस्ता औजार दे दिया गया है। मौलाना की बातों पर मुस्लिम भाइयों को गौर से सोचना चाहिए पर यह जो मुस्लिम मठाधीश जमे बैठे हैं वह मौलाना पर अब तरह-तरह के आरोप लगाकर उनकी बातों का गम्भीरता से सोचने की बजाय हवा में उड़ाने के प्रयास में लग जाएंगे। मौलाना के विचारों का स्वागत है।

Saturday, 26 October 2013

आप पार्टी पर कहां से हो रही है डॉलर वर्षा?

दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को कहा है कि वह यह पता लगाए कि आम आदमी पार्टी के खातों  में कहां से हो रही डॉलर वर्षा? आम आदमी पार्टी के खातों की ताजा जांच करे कि उसके गठन के बाद उसके धन के स्रोत क्या हैं और यदि उसने विदेशी धन प्राप्ति के कानून का उल्लंघन किया हो तो कार्रवाई के लिए सूचित करे। न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराज योग व न्यायमूर्ति वीके राव की खंडपीठ ने सरकार को 26 नवम्बर 2012 के बाद की अवधि में खातों में जमा राशि की जांच के आदेश दिए हैं। खंडपीठ ने केंद्र सरकार को 10 दिसम्बर तक विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। अदालत ने केंद्र सरकार के अधिवक्ता से कहा कि याचिका में लगाए गए आरोपों के ध्यानार्थ इस तथ्य की जांच की जाए कि क्या पार्टी को फोरेन कांस्टीट्यूशन रेगुलेशन एक्ट (एफसीआरए) का उल्लंघन कर धन मिला है? खंडपीठ अधिवक्ता एमएल शर्मा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिका में पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, शांति भूषण, उनके बेटे प्रशांत भूषण व फंड देने वाली विदेशी कम्पनी फोर्ड फाउंडेशन के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है। याचिका में इन सभी पर कानून का उल्लंघन कर विदेशी फंड लेने व पार्टी प्रचार पर खर्च करने का आरोप लगाया गया है। अदालत ने केंद्र सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता रिचा कपूर के उस तर्प को खारिज कर दिया कि जो तथ्य इस याचिका में लगाए गए हैं उन पर पहले ही जांच हो चुकी है। याचिका का निपटारा हो चुका है। रिचा कपूर ने केंद्र सरकार की ओर से पेश रिपोर्ट पर कहा कि टीम अन्ना की सिविल सोसायटी के एकाउंट की केंद्र सरकार ने जांच कराई थी और इस बारे में पहली ही हाई कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल की जा चुकी है और वह रिपोर्ट ऐसी ही एक पीआईएल में दाखिल की गई थी। खंडपीठ का यह आदेश इस रिपोर्ट दाखिल करने के बाद आया है। अदालत ने केंद्र की रिपोर्ट को रिकार्ड पर लेते हुए वकील से कहा कि आप पार्टी के गठन के बाद आप एक बार फिर खातों की जांच करें। इसमें कोई संदेह नहीं कि आप पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार में कांग्रेस-भाजपा से एक कदम आगे ही है पीछे नहीं। पैसे की तो केजरीवाल को कोई कमी नजर नहीं आ रही। डॉलरों की वर्षा हो रही है। एनआईआर खुलकर केजरीवाल की तन-मन-धन से मदद कर रहे हैं। अब तो केजरीवाल यह दावा कर रहे हैं कि वह दिल्ली के अगले मुख्यमंत्री होंगे। आम आदमी पार्टी की ओर से गत दिनों एक सर्वे कराया गया। योगेन्द्र यादव जो सर्वे मामलों के विशेषज्ञ माने जाते हैं, का दावा है कि इंटर्नल सर्वे के आधार पर आप को दिल्ली की 70 सीटों में से 45 से 48 सीटों पर जीत मिल सकती है। वह कांग्रेस, बीजेपी से 17 सीटों पर आगे है। 12 सीटों पर बराबरी का मुकाबला है। 12 सीटों पर आप कांग्रेस-बीजेपी से कुछ ही पीछे है। सर्वे ने यह भी दावा किया कि अरविन्द केजरीवाल 36 फीसद वोट के साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे बड़े दावेदार साबित हुए हैं। जबकि शीला दीक्षित 30 फीसदी मतों के साथ दूसरे नम्बर पर हैं और विजय गोयल तीसरे नम्बर पर 23 फीसदी लोगों की पसंद हैं। सर्वे में यह भी दावा किया गया है कि आप पार्टी को सबसे ज्यादा नौजवानों और मध्यमवर्ग के लोगों का समर्थन हासिल है।

-अनिल नरेन्द्र

महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी महत्वपूर्ण नहीं महत्वपूर्ण है भावुकता

हमारे राजनेता चुनाव के मौके पर सभी तरह के हथकंडे अपनाते हैं यह सभी जानते हैं। कांग्रेस पार्टी 2014 में सत्ता पुन पाने के लिए साम-दाम-दंड-भेद सभी तरीकों का इस्तेमाल करने में माहिर है। इसके साथ एक और श्रेणी जोड़ दी जानी चाहिए वह है भावुकता। भावुक बातें करके भोली जनता को अपनी ओर खींचने का प्रयास भी अकसर किया जाता है और कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी लगता है कि अब इस भावुकता का सहारा लेना चाह रहे हैं। व्यक्तिगत रूप से राहुल से देश के युवाओं को बहुत उम्मीदें हैं। वह महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, कानून-व्यवस्था, बिजली-पानी-प्याज की बढ़ती कीमतों जैसे ज्वलंत मुद्दों को नजरअंदाज करके भावुकता पर उतर आए हैं। कुछ मायनों में इस प्रकार का हमला काउंटर-प्रोडक्टिंग भी हो सकता है। खेडली (अलवर) में राहुल ने बगैर नाम लिए भाजपा पर सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने का आरोप तो लगाया ही साथ-साथ यह भी कह दिया कि इस पार्टी की घृणा की राजनीति देश के ताने-बाने को नुकसान पहुंचा रही है और आशंका जताई कि उनकी दादी और पिता की ही तरह उनकी भी हत्या हो सकती है। राहुल महात्मा गांधी और चाचा संजय गांधी का नाम जोड़ना शायद भूल गए। उन्होंने अपनी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी की हत्या का जिक्र करते हुए कहा कि वे खुद हिंसा और आतंकवाद का शिकार हैं, इसलिए वे उन बच्चों और मां के दर्द को अच्छी तरह समझ सकते हैं, जो दंगे और आतंकवादी हिंसा का शिकार होते हैं। हिंसक भावना गुस्से की वजह से बढ़ती है और इस तरह का गुस्सा भाजपा आम लोगों के दिलों में डालकर लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करती है। वे गुजरात, कश्मीर, मुजफ्फरनगर में ज्वाला भड़का देंगे। इसके पहले चुरू में भी उन्होंने अपने भाषण में इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या का जिक्र करते हुए कहा था कि पिता और दादी की हत्या के बाद उनके लिए भी खतरा बना हुआ है। उन्होंने एक वाकया का जिक्र करते हुए बताया कि पंजाब का एक विधायक हाल में उनके कार्यालय में आया और उनसे कहा कि अगर वे 20 साल पहले मिले होते तो उसने गुस्से में कांग्रेस उपाध्यक्ष की हत्या कर दी होती। राहुल जी से हम सवाल करना चाहते हैं कि वह हमें बताएं कि उनकी दादी और पिता यानि इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या में किस तरह उन लोगों की कहीं से भी कोई भूमिका थी जो कथित तौर पर नफरत फैलाने की राजनीति करते हैं? यह तो हम समझ सकते हैं कि राहुल को भाजपा सांप्रदायिक नजर आती है पर इस तरह के अनाप-शनाप बेतुके आरोप लगाने से वह खुद को हल्का साबित कर रहे हैं। इंदिरा जी को किसने मारा और क्यों मारा यह सारी दुनिया जानती है। इसी तरह राजीव गांधी की हत्या लिट्टे ने करवाई जिनके समर्थक डीएमके आपकी सरकार का आज सहयोगी है। राहुल कभी-कभी तो चौंकाने वाली बातें बोल जाते हैं। गत दिवस उन्होंने यह सनसनीखेज दावा किया कि मुजफ्फरनगर दंगों में पीड़ित परिवारों के नौजवानों से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने सम्पर्प स्थापित कर लिया है। राहुल को यह अत्यंत महत्वपूर्ण गोपनीय जानकारी किसने दी? वह यूपीए सरकार के तो हिस्सा हैं नहीं? एक समय था जब राहुल गांधी की सभाओं में भीड़ होती थी और लोग उन्हें गम्भीरता से सुनते थे पर पिछले कुछ दिनों से वह हल्की बातें करने लगे हैं जिनका शायद ही जनता पर कोई प्रभाव हो।

Friday, 25 October 2013

100 साल पुराना परखा हुआ दोस्त रूस

आजकल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह रूस और चीन की यात्रा पर हैं। प्रधानमंत्री के रूप में यह शायद उनकी अंतिम विदेश यात्रा होगी, क्योंकि कोलंबो में होने जा रही कॉमनवेल्थ देशों की शीर्ष बैठक में राजनीतिक कारणों से उनका जाना अनिश्चित माना जा रहा है। इधर आम चुनाव के महज छह महीने रह गए हैं जिसके बाद किसकी सरकार बनेगी और कौन प्रधानमंत्री बनेगा, इसका अंदाजा लगाना कठिन है पर रूस की यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण रही। रूस हमारा परखा हुआ दोस्त है जिसने हमारी जरूरत पड़ने पर साथ दिया है। वह अमेरिका सहित पश्चिमी देशों के प्रभाव में न आते हुए अपना ही दृष्टिकोण रखता है और उनकी धौंस की परवाह न करते हुए अपनी नीतियों पर तटस्थ रहा है। दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडलों के बीच सोमवार को मास्को के क्रमलिन पैलेस में व्यापक वार्ता हुई। करीब 90 मिनट से ज्यादा चली बैठक के बाद साझा बयान जारी किया गया। यह मनमोहन और रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ 5वीं और दोनों देशों के बीच 14वीं वार्षिक बैठक थी। इस बैठक में आतंकवाद से निपटने के लिए सहयोग बढ़ाने पर भी चर्चा हुई। साझा बयान में रक्षा, ऊर्जा, उच्च तकनीकी उद्योग, निवेश, अंतरिक्ष, साइंस, शिक्षा, संस्कृति और पर्यटन के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की बात कही गई जिसकी सराहना की जानी चाहिए। पुतिन ने रक्षा सहयोग में खासकर 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान और बहुद्देश्यीय परिवहन विमान को संयुक्त रूप से विकसित और उत्पादन करने का भी जिक्र किया। उल्लेखनीय है कि भारत की सैन्य तैयारी व हथियार-विमान, टैंकों इत्यादि में बहुत से उपकरण रूसी हैं। पुतिन ने इस मौके पर दोनों देशों के बीच 100 सालों से ज्यादा पुरानी दोस्ती का प्रतीक उपहार देकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अचरज में डाल दिया। यह उपहार कुछ पेन्टिंग्स और सिक्कों के रूप में थे। वर्ष 1890-91 के बीच भारत के प्रमुख 31 शहरों की यात्रा करने वाले निकोलस द्वितीय ने यह आर्ट वर्प तैयार किया, यह भारत के महाराजाओं पर आधारित पेन्टिंग्स है। पुतिन ने 16वीं शताब्दी के मुगल शासनकाल के कुछ सिक्के भी मनमोहन को भेंट किए। रूस से हमारा रक्षा सहयोग बहुत पुराना है और समय पर परखा हुआ है। इस रिश्ते में भी समय के साथ बदलाव आया है और रूस अब रक्षा सामग्रियों का महज सप्लायर नहीं बल्कि हमारा भागीदारी बनकर संयुक्त रूप से उत्पादन में जुटा हुआ है। दोनों देशों ने मिलकर लड़ाकू विमानों की 5वीं पीढ़ी का विकास कर रहे हैं और ऐसे ट्रांसपोर्ट विमानों पर काम कर रहे हैं जिनका इस्तेमाल कई तरह से किया जा सकता है। तमिलनाडु में कुडनकुलम एटामिक बिजली घर में दो और रिएक्टर जोड़ने के फैसले पर मनमोहन सिंह और पुतिन ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि कुडनकुलम परियोजना के उत्तरादायित्व से जुड़े उन मुद्दों को जल्द से जल्द सुलझाया जाए, जिसके कारण संयंत्र की तीसरी और चौथी इकाई पर काम रुका हुआ है। आज के वैश्विक परिपेक्ष्य में भारत और रूस का एक साथ होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। अमेरिका का वर्चस्व इस कदर  बढ़ गया है कि अकेले किसी देश के लिए इसका मुकाबला करना सम्भव नहीं। हां अगर रूस, चीन और भारत तीनों मिलकर काम करें तभी कुछ हद तक अमेरिकी वर्चस्व का मुकाबला हो सकता है। इस दृष्टि से प्रधानमंत्री की रूस और चीन की यात्राएं महत्वपूर्ण है।

-अनिल नरेन्द्र

हर्षवर्धन के सामने बड़ी चुनौती ः खेमे में बंटी भाजपा को एकजुट कर चुनाव लड़वाना

कई दिनों की जद्दोजहद के बाद अंतत भारतीय जनता पार्टी के दिल्ली के सीएम उम्मीदवार का निर्णय हो ही गया। बुधवार को भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद डॉ. हर्षवर्धन को भाजपा का मुख्यमंत्री  पद के उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर चल रहे हाई वोल्टेज ड्रामे का अंतत पूर्व भाजपा अध्यक्ष डॉ. हर्षवर्धन के नाम की घोषणा के साथ ही पटाक्षेप हो गया। विधानसभा के लिए होने वाले मतदान से ठीक 42 दिन पहले डॉ. हर्षवर्धन के सिर पर बंधे कांटों के इस ताज के और प्रदेशाध्यक्ष विजय गोयल के मनाने के पीछे की कहानी भी कुछ कम रोचक नहीं है। विजय गोयल अंतिम क्षण तक यह रट लगाए हुए थे कि वह इस पद के सबसे प्रबल दावेदार हैं और वह किसी भी कीमत पर हटेंगे नहीं। उन्होंने तरह-तरह की धमकियां दीं। दबाव बनाया पर अतत नरेन्द्र मोदी, अरुण जेटली और संघ के सामने उन्हें यह जिद्द छोड़नी पड़ी। इस पूरे ड्रामे में सबसे ज्यादा किरकिरी पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह की हुई। राजनाथ सिंह को न चाहते हुए भी हर्षवर्धन के नाम पर अपनी सहमति देनी पड़ी। डॉ. हर्षवर्धन एक साफ, ईमानदार छवि के नेता हैं और उनका ट्रैक रिकार्ड भी अच्छा है। चार बार लगातार विधानसभा चुनाव जीतने वाले डॉ. हर्षवर्धन 1993 में जब मदन लाल खुराना के मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री थे तो आपने ही दिल्ली में पल्स पोलियो का अभियान शुरू कर सारी दुनिया में नाम कमाया। संयुक्त राष्ट्र संघ तक ने इस अभियान की सराहना की थी। इनके मुकाबले विजय गोयल बेशक एक बहुत जुझारू और अच्छे लीडर हैं जो अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए साम-दाम-दंड-भेद सभी का इस्तेमाल कर लेते हैं पर उनकी छवि डॉ. साहब जितनी साफ नहीं। जब विधानसभा व लोकसभा चुनाव भ्रष्टाचार, घोटालों के खिलाफ लड़ा जा रहा है तो लीडर भी निर्विदिद हो तो बेहतर रहता है। इसीलिए एक स्वच्छ छवि और ईमानदार डॉ. हर्षवर्धन का चयन किया गया। डॉ. हर्षवर्धन के लिए यह पद कांटों के ताज से कम नहीं है। डॉ. हर्षवर्धन के सामने सबसे बड़ी चुनौती खेमे में बंटी भाजपा को एकजुट करने की होगी। सबसे पहली चुनौती तो टिकटों के बंटवारे की होगी। विजय गोयल ने अपनी टीम बनाई है, जिलाध्यक्ष से लेकर ब्लॉक अध्यक्ष तक उनके चुने आदमी हैं। वह चाहेंगे कि उनके आदमियों को ज्यादा से ज्यादा टिकटें मिलें। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का मानना है कि लगातार तीन बार पार्टी की हार के बाद हर्षवर्धन चार दिसम्बर को होने वाले चुनाव में इस बार पार्टी का भाग्य बदलने की क्षमता रखते हैं। सियासी जानकारों की मानें तो जिस प्रकार इस बार भाजपा ने प्रदेशाध्यक्ष विजय गोयल को पीछे कर हर्षवर्धन को आगे किया उसी प्रकार पहली बार 2008 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी ने प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा को उम्मीदवार घोषित किया। तब हर्षवर्धन प्रदेशाध्यक्ष थे। लिहाजा जो मौका उन्हें पिछली बार नहीं मिल पाया इस बार पार्टी ने उन्हें मुहैया करा दिया है। वर्ष 1993 में दिल्ली में बनी भाजपा की पहली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए हर्षवर्धन के साथ काम कर चुके उनके सहयोगी और विपक्ष के उनके साथी भी उनकी प्रशासनिक सूझबूझ के कायल हैं। हालांकि भाजपा के नेता निजी बातचीत में यह भी कह रहे हैं कि यह घोषणा कुछ और पहले ही कर दी जानी चाहिए थी। दिल्ली में भाजपा की जीत के लिए बेशक वातावरण अनुकूल हो पर दो-तीन बातें अहमियत रखेंगी। सबसे पहले तो यह जरूरी है कि भाजपा की जीत के लिए पार्टी जीतने वाले, काम करने वाले और स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारे। ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि खुद हर्षवर्धन टिकटों के बंटवारे में कितना दखल दे पाते हैं? दूसरी बात यह है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच लम्बे समय से खींचतान चलती आ रही है। भीतरघात अवश्य होगा। ऐसे में पूरे कुनबे को एक साथ लेकर मजबूती से कांग्रेस से मुकाबला करने की चुनौती भी उनके सामने होगी। मतदाताओं को मतदान केंद्रों में वोट डालने के लिए पहुंचाना एक और चुनौती होगी। शायद यह समस्या इस बार न आए, क्योंकि संघ हर्षवर्धन का पूरा समर्थन कर रही है। हर्षवर्धन के नाम की घोषणा पर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने तो फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं की पर आप पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल बोलने से नहीं कतराए। केजरीवाल ने बुधवार को हर्षवर्धन को मनमोहन सिंह बताते हुए ट्विटर पर लिखा कि क्या दिल्ली भाजपा में हर्षवर्धन मनमोहन सिंह हैं? उन्होंने कहा कि भ्रष्ट कांग्रेस ने केंद्र में सिंह को अपना चेहरा बनाया और भ्रष्ट भाजपा ने अब दिल्ली में हर्षवर्धन को अपना चेहरा बनाया है। आप प्रवक्ता मनीष सिसोदिया ने कहा कि 2010 में हर्षवर्धन ने शीला दीक्षित की प्रशंसा की थी और कहा था कि दिल्लीवासी खुशनसीब हैं ने उन्हें बतौर मुख्यमंत्री पाकर। अब वह उनके खिलाफ क्यों चुनाव लड़ रहे हैं? पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार डॉ. हर्षवर्धन के बारे में कहा था, वह आम लोगों की सेवा के लिए अपने चिकित्सकीय ज्ञान एवं अनुभव का इस्तेमाल करने में प्रशासनीय मकसद के साथ राजनीति में शामिल हुए हैं। वह निश्चित ही सफल रहेंगे।

Thursday, 24 October 2013

सोनिया बीमार, राहुल पर भार, प्रियंका को बनाओ उम्मीदवार

सोनिया बीमार, राहुल पर भार, प्रियंका को बनाओ उम्मीदवार का नारा देने वाले यूपी के दो कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को यह नारा बहुत भारी पड़ा। प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने दोनों  पदाधिकारियों को सस्पेंड कर दिया है। आरोप है कि दोनों पदाधिकारियों ने इलाहाबाद में सोनिया को बीमार बताने वाले और फूलपुर से प्रियंका गांधी वाड्रा को उम्मीदवार बनाने की मांग करने वाली होर्डिंग्स लगी थी। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष निर्मल खत्री ने पार्टी की इलाहाबाद यूनिट को निर्देश दिया कि सचिव हसीब अहमद और श्रीश चन्द दूबे को फौरन सस्पेंड करें। इन दोनों नेताओं के नाम होर्डिंग्स पर थे। उन्होंने कहा कि कुछ बाहरी लोग इस तरह की हरकतों में लगे हैं और वे पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी को बीमार बताने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी बेहतर तरीके से पार्टी का कामकाज सम्भाल रही हैं लेकिन कुछ लोग उनकी और पार्टी की छवि खराब करना चाहते हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि इस तरह की होर्डिंग्स विधानसभा चुनाव के दौरान भी लगाई गई थीं, लेकिन उस वक्त उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया था। गौरतलब है कि फूलपुर संसदीय क्षेत्र से देश के पहले पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू ने चुनाव लड़ा था। दरअसल कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी समस्या नरेन्द्र मोदी के मुकाबले क्राउड पुलर यानि भीड़ इकट्ठे करने वाले चेहरे की हो रही है। मोदी की सभा में दिन प्रतिदिन सभा दर सभा भीड़ बढ़ती जा रही है। वह जहां भी जाते हैं लाखों की संख्या में लोग उन्हें सुनने आते हैं। सोनिया गांधी अब कुछ सेहत के कारण, कुछ पार्टी की घटती लोकप्रियता के कारण भीड़ इकट्ठा नहीं कर पा रही हैं। कांग्रेसियों में विधानसभा चुनावों में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की बजाय उपाध्यक्ष राहुल गांधी की डिमांड ज्यादा है। यही वजह है कि राज्यों में राहुल गांधी की अधिक सभाएं कराने के कार्यक्रम बन रहे हैं। राहुल की डिमांड की वजह यह बताई जा रही है कि वह भाजपा के अधिक आक्रामकता से बोलते हैं जिससे प्रचार में मदद मिलती है। दरअसल राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में राहुल की ज्यादा सभाओं की चर्चा है। राहुल की डिमांड के बारे में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि भाजपा को अधिक तीखे अंदाज में कोसने की जरूरत है। हाल के दिनों में राहुल ने जहां भी सभाएं की हैं, वहां उनके तेवर आक्रामक ही रहे। उक्त नेता ने कहा कि राहुल ने अब क्षेत्रीय समस्याओं को लेकर जिस तरह का मसालेदार संवाद शुरू किया है उससे सभाओं में लोग काफी हद तक बंधे रहते हैं। राहुल की सभाओं की सम्भावित प्रत्याशियों और प्रचार अभियान में लगाए गए नेताओं की तरफ से ज्यादा मांग हो रही है। अभी राहुल की सभाओं के जो कार्यक्रम बन रहे हैं वे छोटी जगहों पर भी हैं और  बड़ी जगहों, शहरों में भी हैं। छोटी जगहों के कार्यक्रम ग्रामीणों और आदिवासियों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। अभी राहुल एक दिन में दो सभाएं कर रहे हैं पर डिमांड को देखते हुए उनकी सभाओं की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जाएगी। चुनाव वाले राज्य के एक प्रभारी महासचिव ने कहा कि चूंकि इस बार टिकट वितरण में राहुल की गाइड लाइन चली है, इसलिए उन्होंने भी आश्वस्त किया है कि वह अपनी सभाएं करने में राज्य इकाई को निराश नहीं करेंगे। सोनिया की डिमांड न के बराबर है और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को तो कोई बुलाकर राजी  ही नहीं। प्रियंका की डिमांड भी बढ़ रही है।

-अनिल नरेन्द्र

संत शोभन सरकार के आगे यूं ही नहीं झुके नरेन्द्र मोदी

भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को इस चुनावी मौसम में थोड़ा सोच-समझ कर कोई भी बयान देना चाहिए। बयान देकर किसी भी मुद्दे पर यूटर्न लेना न तो उनको शोभा देता है और न ही प्रधानमंत्री  पद की उम्मीदवारी को। ताजा उदाहरण डौंडिया खेड़ा में सोने की खुदाई के मामले का है। चेन्नई में गत शुक्रवार को एक सभा को सम्बोधित करते हुए मोदी ने कहा कि दुनिया हमारे ऊपर इस बेतुके कार्य पर हंस रही है। उन्होंने कहा था कि किसी को सपना आया और सरकार ने खुदाई का कार्य शुरू कर दिया। चोरों और लुटेरों ने भारत के धन को विदेशों में स्थित बैंकों में छिपाकर रखा है जो 1000 टन सोने से ज्यादा है। अगर आप (सरकार) यह धन वापस लाती है तब आपको सोने के लिए खुदाई करने की जरूरत नहीं होगी। मोदी की टिप्पणी से संत शोभन सरकार खासे नाराज हो गए। संत शोभन सरकार के अनुयायी ओमजी ने इस बयान के खिलाफ मोदी को एक पत्र लिखा। पत्र में कहाöप्रिय नरेन्द्र भाई आपका कानपुर की धरती पर स्वागत है। मैं आपको बताना चाहता हूं कि आपने केंद्र सरकार और श्रीमती सोनिया गांधी पर हमले करने की जल्दबाजी में संतों की मर्यादा की अवहेलना की है। हम रघुवंशी हैं और शोभन सरकार रघुवंशी शिरोमणि। हम अपने वचन पर अडिग हैं। हम इस मुद्दे सहित सभी मुद्दों पर आपसे बहस करना चाहते हैं। इसी का नतीजा है कि सोमवार को अपने रुख पर यूटर्न लेते हुए नरेन्द्र मोदी ने ट्विट कर शोभन सरकार की तारीफ के पुल बांध दिए। मोदी ने ट्विटर पर लिखा, संत शोभन सरकार के प्रति अनेक वर्षों से लाखों लोगों की श्रद्धा जुड़ी हुई है। मैं उनकी तपस्या और त्याग को प्रणाम करता हूं। इतना ही नहीं, मोदी ने कानपुर से भाजपा विधायक सतीश महाना को विशेष तौर पर संत शोभन के पास भिजवाया। सोमवार को सतीश महाना मोदी की ओर से उन्नाव के बक्सर स्थित आश्रम में शोभन सरकार से मिले। महाना ने संत को बताया कि नरेन्द्र मोदी का भाव उनकी प्रतिष्ठा पर आंच पहुंचाना नहीं था। संत के शिष्य स्वामी ओमजी के मुताबिक मुलाकात के दौरान संत ने मोदी को माफ कर दिया है। शोभन सरकार के सपने के आगे सरकार ही नहीं पूरी सियासत दंडवत है। भाजपा के पीएम इन वेटिंग नरेन्द्र मोदी के तेवर महज चार दिनों में बाबा के सियासी बाणों के आगे ढीले हो गए हैं। बाबा के ऐलान के खिलाफ कांग्रेस, सपा से लेकर बसपा तक की जुबां अब तक नहीं हिल पाई है। दरअसल यह असर बाबा के तपोबल से कहीं अधिक उस क्षेत्र में उनके प्रभाव का है जो पार्टियों के वोट पर बड़ी चोट कर सकता है। उन्नाव, फतेहपुर, रायबरेली की सीमाएं आपस में जुड़ती हैं। यह वह क्षेत्र है जहां बाबा के चमत्कार के किस्से मशहूर हैं। कानपुर में कई गाड़ियों पर शोभन सरकार के स्लोगन नजर आते हैं। ऐसे में चुनावी आहट ने सियासतदानों को न चाहते हुए भी बाबा का झंडा उठाने पर मजबूर कर दिया है। उन्नाव लोकसभा सीट पर फिलहाल कांग्रेस से अनु टंडन काबिज हैं। बाबा की डौंडिया खेड़ा में सोने के सपने की पहली चिट्ठी को उन्होंने ही सरकार तक बढ़ाया था। फतेहपुर की सीट सपा के पास है जबकि रायबरेली की सीट सोनिया के पास है, इसलिए कांग्रेस भी चुप है। सपा और बसपा के प्रतिनिधि भी संत के चक्कर लगा रहे हैं, इसलिए कोई भी सियासी दल आज की तारीख में संत शोभन सरकार से पंगा नहीं लेना चाहता। शायद यही सियासी मजबूरी के चलते नरेन्द्र मोदी को यूटर्न लेना पड़ा।

Wednesday, 23 October 2013

अंतत डॉ. हर्षवर्धन को बतौर सीएम प्रोजेक्ट करने का फैसला

पिछले कई दिनों से दिल्ली बीजेपी में सीएम कैंडिडेट को लेकर घमासान मचा हुआ है। राजधानी में तमाम समीकरण व माहौल अनुकूल होने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी का दिल्ली की सत्ता पर काबिज होना यह एक बड़ी बाधा थी सीएम की प्रोजक्शन न होना। इसकी वजह से पार्टी के अंदर जबरदस्त अंदरुनी लड़ाई थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। पार्टी एक बार फिर निर्णायक मोड़ पर आपसी गुटबाजी में इस तरह उलझती जा रही थी कि पार्टी कार्यकर्ताओं को भी डर सताने लगा कि कहीं हाथ में आई बाजी कांग्रेस फिर छीन कर न ले जाए और पार्टी के दिग्गज मुख्यमंत्री के लिए ही लड़ते न रह जाएं। सारा विवाद प्रदेशाध्यक्ष विजय गोयल ने खड़ा कर रखा था। विजय गोयल इस बात के लिए अड़ गए थे कि प्रदेशाध्यक्ष होने के नाते उन्होंने पिछले कुछ महीनों में बहुत मेहनत की है। पार्टी को खड़ा किया है और तमाम सर्वेक्षणों में भी उन्हें ही बीजेपी का सीएम कैंडिडेट प्रोजेक्ट किया जा रहा है, इसलिए वही सीएम पद के उम्मीदवार होने चाहिए। उन्होंने तमाम तरह के दबाव व धमकियां भी दे डालीं कि अगर उन्हें सीएम प्रोजेक्ट नहीं किया गया तो पार्टी को भारी नुकसान होगा इत्यादि-इत्यादि। पार्टी आलाकमान डॉ. हर्षवर्धन को सीएम उम्मीदवार प्रोजेक्ट करना चाहता था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी हर्षवर्धन के हक में है। पूरे घटनाक्रम को कांग्रेस मजे से देख रही थी और उसे उम्मीद थी कि मामला उलझा रहेगा और इससे बीजेपी को नुकसान होगा पर लगता है कि अब मामला सुलझता नजर आ रहा है। सोमवार को पार्टी के आलाकमान द्वारा मुख्यमंत्री के रूप में अपना नाम घोषित न होता देख विद्रोही तेवर अपनाए भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष विजय गोयल के तेवर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के समझाने के बाद फिलहाल ढीले पड़ गए हैं। दिल्ली में बीजेपी का सीएम कैंडिडेट कौन होगा, इसका भले ही ऐलान अभी न हुआ हो, लेकिन यह अब लगभग फाइनल हो गया है कि पार्टी डाक्टर हर्षवर्धन का नाम आगे करेगी। सवाल यह है कि विधानसभा चुनाव से महज डेढ़ महीने पहले बीजेपी को यह फैसला क्यों करना पड़ा? इसके पीछे दो कारण रहे ः  पहला आम आदमी पार्टी का असर कम करना और दूसरा क्लीन इमेज के नेता को पार्टी के चेहरे के रूप में पेश करना। बीजेपी मान रही है कि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सीधे-सीधे कांग्रेस को फायदा पहुंचाएगी। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की लड़ाई में बीजेपी पिछड़ती नजर आ रही थी। इसकी एक वजह दिल्ली बीजेपी का कोई एक चेहरा न होना माना जा रहा था। मैसेज यह जा रहा था कि केंद्र की तरह प्रदेश में भी नेताओं की आपसी लड़ाई थमने का नाम नहीं ले रही। जिस तरह नरेन्द्र मोदी के केंद्र में आने से सारे नेता लाइन पर आ गए और अब न तो कोई दूसरी पंक्ति के नेता रहे न पहली पंक्ति के, वैसे ही डॉ. हर्षवर्धन का फैसला होने से अब दिल्ली बीजेपी में घमासान खत्म होने के आसार नजर आने लगे हैं। बीजेपी नेताओं ने विजय गोयल के सामने स्पष्ट कर दिया है कि अगर उनके समर्थकों की ओर से हंगामा खड़ा करने की कोशिश होती है तो उनका दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष बना रहना भी मुश्किल हो सकता है। हालांकि पार्टी का मानना है कि गोयल और नेगेटिव कदम नहीं उठाएंगे। गोयल ने घोषणा कर दी है कि वह सीएम उम्मीदवार की रेस में नहीं हैं। डॉ. हर्षवर्धन क्लीन छवि के लोकप्रिय नेता हैं अगर उनका नाम फाइनल होता है तो यह दिल्ली बीजेपी के लिए अच्छा कदम होगा।
-अनिल नरेन्द्र



आखिर कब तक हम यूं ही कटते, मरते रहेंगे?

जम्मू के सीमाई इलाकों में पाकिस्तान ने युद्ध वाले हालात बना दिए हैं और अब यह स्थिति आ गई है कि लगातार गोलाबारी की वजह से लोग जान बचाने के लिए घर छोड़कर भाग रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का भी धैर्य टूट गया है। उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को सख्त तेवर अपनाते हुए कहा कि अगर पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आता है तो हमें उसे जवाब देना चाहिए। अगर पाक सीमा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन जारी रखता है तो केंद्र सरकार को दूसरे विकल्प तलाशने होंगे। उमर ने कहा कि आज गांव सुनसान हो रहे हैं। लोग अपने खेत और घर छोड़ रहे हैं, बच्चे स्कूल जाना बंद कर रहे हैं। कारण यह है कि पाकिस्तान संघर्ष विराम का उल्लंघन कर रहा है। उमर ने पाकिस्तानी रेंजर्स और सैनिकों की गोलाबारी के दायरे में स्थित ग्रामीणों की देखरेख की विशेष जिम्मेदारी तारा चंद (उपमुख्यमंत्री) को दी है। पाकिस्तान ने संघर्ष विराम के उल्लंघन का आठ साल का रिकार्ड तोड़ दिया है। इस साल 140 बार संघर्ष विराम उल्लंघन हुआ। गत आठ सालों में यह सर्वाधिक है। 14 अगस्त से पुंछ में नियंत्रण रेखा, जम्मू-सांबा और कठुआ में रोज गोलाबारी हो रही है। उमर अब्दुल्ला ने सीमा पर बिगड़े हालात के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को सीधा जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि गत दिनों न्यूयार्प में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और नवाज शरीफ की मुलाकात के बाद ही गोलाबारी में तेजी आई है। इसके लिए नवाज शरीफ कहीं न कहीं जिम्मेदार हैं। अगर नहीं हैं तो फिर हालात पर उनका कोई वश नहीं है। मुख्यमंत्री ने कहा कि न्यूयार्प मुलाकात में दोनों प्रधानमंत्रियों ने तय किया था कि सैन्य विवादों को डीजीएमओ स्तर पर हल किया जाए। इस विकल्प को अपनाया जाना चाहिए। अगर इसमें हल नहीं निकलता तो दूसरे विकल्प अपनाने के लिए केंद्र सरकार तैयार रहे। नागरिक इलाकों पर लगातार गोलाबारी से ऐसे हालात बन गए हैं जिसमें देश की सप्रभुता ही मानो दुश्मनों के हाथ लग गई हो। पाकिस्तान से बातचीत की रट लगाने वाले उमर अब्दुल्ला अब दूसरे विकल्प की बात कर रहे हैं इसी से स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। जब नवाज शरीफ ने सत्ता सम्भाली थी तब उन्होंने भारत के साथ भाईचारे  की बात कही थी पर हमने इसी कॉलम में चेताया था कि नवाज शरीफ पर विश्वास नहीं किया जा सकता। जब अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर गए थे तब भी इन्हीं मियां नवाज शरीफ ने दोस्ती की बातें की थीं पर उनकी कथनी और करनी में बहुत फर्प है। दरअसल पाक सेना व अन्य जेहादी शक्तियों को मालूम है कि अमेरिका को 2014 में अफगानिस्तान छोड़ना है और वह पाकिस्तान की मदद के बगैर ऐसा शायद न कर सके। तभी बार-बार पाकिस्तान अमेरिका से कश्मीर मामले में मध्यस्थता करने की बात करता है। इधर चूंकि भारत में आम चुनाव हैं और यह निकम्मी मनमोहन सरकार हाथ में चूड़ियां पहने हुए है, इसलिए वह सीमा पर निरंतर दबाव बना रहा है। खुद नवाज शरीफ की सरकार के अभी पाकिस्तान में पांव जमे नहीं। वह कश्मीर मुद्दे को हर हालत में जिन्दा रखना चाहते हैं। भारत की यूपीए सरकार ने हमारे बहादुर जवानों के हाथ बांध रखे हैं। उन्हें पाकिस्तान को माकूल जवाब देने की आज्ञा नहीं। मैं एक वरिष्ठ सैनिक अफसर से बात कर रहा था। उन्होंने मायूस होकर कहा कि यकीन करें भारतीय सेना हर लिहाज से सक्षम है और हम पाकिस्तान को माकूल जवाब दे सकते हैं पर हमें ऐसा करने की परमिशन नहीं है। हम न तो एलओसी पार कर सकते हैं और न ही उनके इलाके में घुसकर उनके सैन्य शिविरों, जेहादी कैम्पों पर हमला कर सकते हैं। हमें यह लड़ाई अपनी ही जमीन पर लड़नी पड़ रही है। इसी कमजोर, बुजदिल सरकारी नीति का पाकिस्तान फायदा उठाता है। जब भी हम कोई ठोस जवाबी कार्रवाई करने की बात करते हैं तो पाकिस्तान एटमी ब्लैकमेल पर उतर आता है पर इस धमकी के कारण हम कब तक यूं ही मरते-कटते रहेंगे। सीमा के हालात स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि हमारा पड़ोसी कोई खतरनाक फैसला ले चुका है जिसे अमली जामा पहनाने के लिए ही यह तमाम साजिशें चल रही हैं। सांबा के आतंकी हमले की सारी प्लानिंग बीस सितम्बर को लाहौर के सलवा मस्जिद में रची गई जिसमें पाक का एक ब्रिगेडियर सहित चार सीनियर फौजी शामिल थे। जम्मू में जो हो रहा है उसमें पाक सेना सीधी जिम्मेदार है। पाक सेना, नवाज शरीफ व जेहादी मिलकर काम कर रहे हैं और इसका मुकाबला भारत नहीं कर पा रहा है। वैसे इस सरकार से हमें कोई उम्मीद भी नहीं। यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा। हम दोस्ती की बातें करते रहेंगे और वह हमें मारते रहेंगे। हां केंद्र में सत्ता परिवर्तन होता है तो शायद सही विकल्प सामने आए।


Tuesday, 22 October 2013

सीबीआई खोलेगी राडिया टेप का सच मामला सिर्प 2जी स्पेक्ट्रम तक सीमित नहीं

एक टाइम था जब कारपोरेट दुनिया में लाबिस्ट नीरा राडिया की तूती बोलती थी। पंजाबी मूल के भारतीय दंपति के यहां 1959 में नैरोबी, केन्या में जन्मीं नीरा परिवार समेत 70 के दशक में लंदन जाकर बसी थी, वहीं उनकी पढ़ाई हुई, वहीं उनकी गुजराती मूल की उद्यमी जगन राडिया से विवाह हुआ। विवाह के असफल रहने और तलाक के बाद वह 90 के दशक में भारत आ गई। यहां उन्होंने पहली नौकरी सहारा एयरलाइन्स में की। कुछ समय बाद वह सिंगापुर, केएलएम और यूके एयरलाइन्स की पतिनिधि बन गईं। इसी के साथ नीरा राडिया की सत्ता के गलियारों में पैठ बनती चली गई। 2001 में नीरा ने पीआर फर्म वैष्णवी कम्युनिकेशन स्थापित किया। जल्दी ही टाटा की सभी कंपनियों का काम उन्हें मिल गया। जिससे उनकी हैसियत भी बढ़ गई और नेताओं-नौकरशाहों तक पैठ बन गई। 2008 में उनको तमाम जानी-मानी कंपनियों के साथ-साथ मुकेश अंबानी की कंपनियों का भी काम मिल गया। 2008 में नीरा राडिया की गतिविधियों के बारे में शिकायत मिलने पर आयकर विभाग ने उनके फोनों को सर्विलेंस पर डाल दिया। बातचीत में 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन और पूर्व संचार मंत्री ए राजा का जिक होने से सीबीआई और पवर्तन निदेशालय ने जांच शुरू कर दी। लेकिन 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले से सीधे जुड़े नहीं होने के कारण राडिया को क्लीन चिट मिल गई। बातचीत लीक होने पर कई नाम उजागर हुए जिनमें रतन टाटा, मुकेश अंबानी, ए राजा और टॉप के पत्रकार वीर सांघवी, बरखा दत्त इत्यादि सामने आ गए। बातचीत लीक होने पर रतन टाटा ने सुपीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इसे रोकने की मांग की थी, वहीं एक एनजीओ ने टेप में दर्ज बातचीत में आपराधिक साजिश वाले अंशों पर कार्रवाई की मांग की थी। इस पर सुनवाई के दौरान सुपीम कोर्ट ने सीबीआई को पूरी बातचीत की ट्रांसस्किप्ट तैयार करने को कहा था। सीबीआई ने रिपोर्ट में बातचीत के दौरान 14 मामलों में आपराधिक पहल की पुष्टि की थी। अदालत ने कहा कि औद्योगिक घरानों के लिए संपर्प सूत्र का काम करने वाली नीरा राडिया की नौकरशाहों, उद्यमियों और नेताओं के साथ रिकार्ड की गई बातचीत में पहली नजर में गहरी साजिश का पता चलता है। सुपीम कोर्ट ने इसके साथ 6 मुद्दों की जांच के आदेश दिए जो निजी हित के लिए भ्रष्ट तरीके अपनाने से संबंधित हैं। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि शुरुआती तौर पर बातचीत में सरकारी अधिकारियों और निजी उद्यमियों की मिली भगत से गहरी साजिश दिखती है और नीरा राडिया की बातचीत से पता चलता है कि पभावशाली व्यक्ति निजी लाभ उठाने के लिए भ्रष्ट तरीके अपनाते हैं। टेलीफोन टेपों का विश्लेषण सुपीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति ने किया है। न्यायालय ने जांच का आदेश देते वक्त हालांकि उन 6 मामलों का खुलासा नहीं किया जिनकी जांच सीबीआई करेगी लेकिन इतना अवश्य कहा जा सकता है कि जांच ब्यूरो को इनमें आपराधिकता के अंश मिले थे। शीर्ष अदालत ने समिति की रिपोर्ट का अवलोकन करने के बाद कहा था कि राडिया के नेताओं, औद्योगिक घरानों और दूसरे व्यक्तियों से हुई बातचीत के विवरण से राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों के बारे में भी संकेत मिलते हैं। सीबीआई को 2 माह के बीच जांच पूरी करने को कहा गया है। अगली सुनवाई 16 दिसंबर को होगी। नीरा राडिया के फोन की 180 दिन की रिकार्डिंग सरकार के पास है। नौ सालों में नीरा राडिया ने 300 करोड़ रुपए का साम्राज्य आखिर यूं ही नहीं खड़ा कर लिया ? उम्मीद की जाती है कि सीबीआई अब मामले की बारीकी से जांच करेगी और उन सभी लोगों की भूमिका को बेनकाब करेगी जो इस कांड से जुड़े हैं जिनमें कई पमुख मीडिया वाले भी शामिल हैं।

-अनिल नरेन्द्र

दिग्गी उवाच डूबते सूरज को कोई नहीं पूजता, उगते सूरज को सभी नमन करते हैं

डूबते सूरज को कौन पूजता है, सभी उगते सूरज को नमन करते हैं। यह सूरज उग रहा है, इसे पूजो। ग्वालियर मेला परिसर में राहुल गांधी की रैली में गत गुरुवार को मंच से जब कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने यह कहा तो एक बारगी मंच पर बैठे सभी नेता और रैली स्थल पर मौजूद पार्टी कार्यकर्ता भौंचक्के रह गए। सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री ने डूबता सूरज किसको कहा, यह समझना मुश्किल नहीं था। उगते सूरज को लेकर उन्होंने बाकायदा मंच पर राहुल गांधी के बगल में बैठे ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरफ इशारा किया। इसके पहले उन्होंने अपने नाम के ऐलान के बाद भी माइक पर बोलने से मना कर दिया। यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था कि मंच पर सभी नेताओं को जुटाकर जो एकता दिखाई जा रही है, उसमें कहीं न कहीं दरार बनी हुई है। मध्य पदेश विधानसभा चुनाव में कांगेस ने अपने मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं किया पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को पदेश चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाकर जिस तरह चुनावी सभा में पोजेक्ट किया जा रहा है उससे पदेश पार्टी के कार्यकर्ताआंs और आम जनता को यह संदेश मिल चुका है कि कांग्रेस चुनाव के बाद अगर सत्ता में आई तो सिंधिया ही मुख्यमंत्री होंगे। सिंधिया को लेकर राहुल गांधी ने तकरीबन आठ महीने पहले ही फैसला कर लिया था। हालांकि रैली के पहले कुछ स्थानीय नेताओं ने यह बताया था कि मंच पर भले ही यह एकता दिखाई जा रही हो पर अंदरखाते मनमुटाव बना हुआ है। एक पूर्व विधायक के मुताबिक सिंधिया के नाम पर कमलनाथ, सत्यव्रत चतुर्वेदी, दिग्विजय सिंह व भूरिया सहमत हो गए हैं और वह अभी एक साथ हैं पर दिग्विजय सिंह और अजय सिंह सिंधिया को अभी पचा नहीं पा रहे हैं। अजय सिंह अर्जुन सिंह के बेटे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि ज्योतिरादित्य खुद भी सूबे की राजनीति में पवेश नहीं करना चाहते, वह केन्द्र की राजनीति करना चाहते हैं। बहरहाल ग्वालियर की चुनावी सभा में दिग्विजय सिंह ने अपनी इस नाराजगी को जताने में संकोच नहीं किया। बार-बार माइक पर एनाउंस करने के बाद जब अंत में दिग्विजय सिंह बोलने आए तो बोले जब मैं मुख्यमंत्री था तब भी सोनिया जी और राहुल जी के सामने नहीं बोलता था पर बालहठ के कारण उठना पड़ा। उनका इशारा सिंधिया की तरफ था। माइक छोड़ते -छोड़ते दिग्गी राजा अपने मन की बात कहने से नहीं रुके और कहा कि डूबते सूरज को कोई नहीं पूजता, उगते सूरज को सभी नमन करते हैं। उन्होंने बाकायदा सिंधिया की तरफ हाथ उठाकर इशारा किया। कांग्रेस के भीतर भले ही दरार हो पर सिंधिया का नाम आने पर कांग्रेस को  चुनावी जंग में फायदा मिल रहा है। वैसे मध्यपदेश व छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री पद  का दावेदार घोषित न करने की रणनीति पर पुनर्विचार  के लिए कांगेस नेतृत्व पर दबाव बढ़ रहा है। इन राज्यों में भाजपा अपने मुख्यमंत्रियें को आगे कर चुनाव लड़ रही है ताकि सरकार के खिलाफ नाराजगी से होने वाले नुकसान को मुख्यमंत्रियों की लोकपियता से कम किया जा सके। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने स्वीकार किया कि मध्यपदेश और छत्तीसगढ़ में शिवराज सिंह चौहान व रमन सिंह व्यक्तिगत तौर पर लोकपिय हैं लेकिन उनकी सरकार व मंत्रियों के खिलाफ काफी नाराजगी है। तमाम अभियान के बावजूद कांगेस को दोनों मुख्यमंत्रियों के खिलाफ माहौल बनाने में सफलता नहीं मिल रही है। कांग्रेस को इसका निश्चित ही नुकसान हो रहा है। कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि पार्टी भी सीएम पद के दावेदार को आगे करे तो नुकसान की भरपाई कर सकती है। 

Sunday, 20 October 2013

यूपी-बिहार में चली नरेन्द्र मोदी की हवा

आज-कल चुनावी बहार है, सर्वेक्षणों की बाढ़-सी आ गई है पर एक सर्वेक्षण ऐसा आया है जो लोकसभा 2014 चुनाव के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। यह तो हम जानते ही हैं कि यूपी-बिहार ही तय करते हैं कि देश पर कौन-सी पार्टी राज करेगी। दिल्ली की गद्दी का रास्ता यूपी-बिहार से होकर जाता है।  इकानॉमिक टाइम्स ने इन दो राज्यों का एक सर्वे किया है। इस सर्वे में दावा किया गया है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में बीजेपी के लिए जनता का सपोर्ट बढ़ रहा है। यूपी-बिहार में 120 लोकसभा सीटें हैं। यह सपोर्ट बढ़ा तो है लेकिन इतना अभी नहीं है कि उससे पार्टी देश के इन दो बड़े सियासी अखाड़ों में क्लीन स्विप कर जाए। देश पर कौन राज करेगा यह तय करने की क्षमता वाले इन दोनों राज्यों में इकानॉमिक टाइम्स की तरफ से कराए गए एक बड़े और व्यापक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है। सर्वेक्षण में लगभग 8500 वोटर्स शामिल हुए। इसमें पता चला है कि बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी यूपी और बिहार में अपनी लोकप्रियता और जनता के बीच पार्टी की स्वीकार्यता बढ़ा रहे हैं। फिर भी 120 लोकसभा सीट वाले इन दो राज्यों में पार्टी को एक-तिहाई से थोड़ा ज्यादा सीटें ही मिलतीं नजर आ रही हैं। रिसर्च फर्म एसी नीलसन की तरफ से 4 से 26 सितम्बर के बीच कराए गए इस सर्वेक्षण के मुताबिक बीजेपी को इन दो राज्यों में यूपी में 27 और बिहार में 17 सीटें मिल सकती हैं यानि दोनों राज्यों में 44 सीटें। सर्वेक्षण के यह आंकड़े बीजेपी के लिए अच्छे संकेत तो हैं पर यह काफी शायद नहीं हों। हालांकि सर्वे में  बीजेपी के लिए राहत की बात यह रही है कि नरेन्द्र मोदी एक बड़ा फैक्टर साबित हो रहे हैं। सर्वे का एक फेज मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए बीजेपी का उम्मीदवार बनाए जाने से पहले ही पूरा हो गया था। जो बड़ी तस्वीर सामने आ रही है उसके हिसाब से मोदी को यूपी में चुनौती देने वाले मुलायम सिंह, अखिलेश यादव और बिहार में नीतीश कुमार के दबदबे में कमी आ सकती है। यूपी में  बीजेपी 27 सीटें हासिल करके सबसे बड़ी पार्टी बन सकती है। यह आंकड़ा पिछले दो बार के लोकसभा चुनाव में मिली सीटों का लगभग तिगुना है। यूपी में  बीजेपी सभी विरोधी दलों के सपोर्ट बेस में सेंध लगाती नजर आ रही है। यहां उसे 28 फीसदी वोट मिलते नजर आ रहे हैं जबकि 2009 में 13 फीसदी वोट मिले थे। सर्वेक्षण के मुताबिक यूपी में समाजवादी पार्टी का वोट शेयर 5 परसेंट प्वाइंट की गिरावट के साथ 18 फीसदी तक आ सकता है। ऐसे में उसकी लोकसभा सीटों का आंकड़ा 16 तक सिमट सकता है। यहां बसपा और कांग्रेस को भी नुकसान होता नजर आ रहा है। मोदी के पक्ष में अपर कास्ट का कंसोलिड्रेशन होने पर बसपा का सपोर्ट बेस घट सकता है। हालांकि  दलित वोट पक्का होने से इसकी सीटें पिछली बार की तरह 20 या इसके आसपास रह सकती हैं। मोदी ज्यादातर मतदाताओं में लोकप्रियता बढ़ा रहे हैं जिससे अन्य दलों की सम्भावनाएं बिगड़ रही हैं पर यह एक सर्वेक्षण है और अभी लोकसभा चुनाव होने में समय है। इन सर्वेक्षणों से इतना तो तय है कि इन दोनों राज्यों में बीजेपी की स्थिति पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले कहीं बेहतर नजर आ रही है। अभी तो मोदी की कई रैलियां होंगी और क्लाइमैक्स में टाइम है।

-अनिल नरेन्द्र

स्वामी शोभन सरकार का 1000 टन का सुनहरी सपना

एक साधु शोभन सरकार को सपने में 19वीं सदी के राजा राव रामबख्श सिंह दिखे। राजा ने शोभन सरकार को सपने में बताया कि उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के डोंडिया खेड़ा स्थित किले के खंडहर में एक हजार टन सोना दबा है। साधु ने यह सपना केंद्रीय मंत्री चरणदास महंत को सुनाया। महंत के कहने पर भारतीय पुरातत्व विभाग (सर्वेक्षण) और जियोलॉजिकल सर्वेक्षण ने इस खजाने को हासिल करने के लिए खुदाई करनी शुरू कर दी है। स्वामी शोभन सरकार ने फिर एक और सपना देखा है, उन्होंने इस बार कानपुर से 80 किलोमीटर दक्षिण में फतेहपुर मंदिरों के अवशेषों के नीचे बड़ा खजाना होने का दावा किया है। सरकार ने अपने एक दूतöस्वामी ओम को फतेहपुर डीएम अभय कुमार से मिलने के लिए भेजा ताकि आदमपुर नामक इस गांव में भी खुदाई हो सके। स्वामी ओम का दावा हैöइस जगह 2500 टन सोना मिलेगा। जब से यह खबर आई है सारे देश की निगाहें उन्नाव के डोंडिया खेड़ा गांव पर लग गई हैं। उन्नाव मुख्यालय से डोंडिया खेड़ा गांव करीब 60 किलोमीटर दूर है। इस गांव में 19वीं सदी में राजा राव रामबख्श सिंह की रियासत थी। वह अपने वंश के 25वें राजा थे। एक स्थानीय संत शोभन सरकार ने दावा किया है कि उनके सपने में राव रामबख्श सिंह बार-बार आते हैं। वह यही कहते हैं कि किले के 20 मीटर नीचे एक हजार टन सोने का भंडार पड़ा है। इसे निकाला जाए तो यह देश के काम आ जाएगा। इस बीच इतने सोने की चर्चा से आसपास के गांवों में भारी उत्सुकता जग गई है। लोग यह हिसाब लगाने लगे हैं कि यदि इस खजाने का 20 फीसदी हिस्सा भी स्थानीय विकास में लगा दिया गया तो क्षेत्र की तस्वीर बदल जाएगी। बेरोजगारों की किस्मत बदलने के सपने जगने लगे हैं। इस मामले की चर्चा से संत शोभन सरकार की ख्याति बढ़ गई है। इस क्षेत्र में संत शोभन सरकार की खास प्रतिष्ठा है क्योंकि कहा जाता है कि उन्हें किसी भी तरह के धन का लालच नहीं रहता। लोगों को पक्का विश्वास है कि शोभन सरकार की कहीं न कहीं भविष्यवाणी सही निकलेगी। पीएमओ के निर्देश पर केंद्रीय राज्यमंत्री चरणदास महंत ने डोंडिया खेड़ा का दौरा किया था। जन भावनाओं को देखते हुए उन्होंने ही खनन कराने की सिफारिश की थी। इस गोल्डन सपने की चर्चा जब ज्यादा बढ़ी तो इसमें राजनेताओं ने भी अपनी भागीदारी शुरू कर दी है। क्षेत्र के लोगों ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से अनुरोध किया है कि वह खुदाई के मौके पर यहां आएं तो अच्छा रहेगा। वैसे अभी खुदाई शुरू ही हुई है दावेदारों की लम्बी सूची बन गई है। खजाने के दावेदार खुद को राजा का वंशज बता रहे हैं। इसी तरह के एक दावेदार ने एक सर्टिफिकेट दिखाया जिसमें उसके अनुसार डीएम ने उन्हें राजा का उत्तराधिकारी घोषित किया था। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार राजा के महल के नक्शे में नारंगी के वृक्ष के नीचे खजाना होने की बात दर्शाई गई थी। अंग्रेजी जनरल होम ग्रांट ने 10 मई 1857 को राजा का डोंडिया खेड़ा दुर्ग ध्वस्त कर दिया था। इसके बाद राजा साहब अपनी ससुराल काला काकड़ और फिर बनारस चले गए। यहां के नगवा गांव में किराये पर रह रहे राजा को जब गिरफ्तार किया गया तो उनके पास बनारस के खजाने की चार हजार स्वर्ण मुद्राएं थीं। शुक्रवार 18 अक्तूबर को जिलाधिकारी विजय किरन आनन्द ने राजा राव रामबख्श सिंह के खंडहर हो चुके किले में पहला फावड़ा मारते हुए खुदाई की औपचारिक शुरुआत की और इसके साथ शुरू हुआ खुदाई का काम। देखें खुदाई में क्या निकलता है?

Saturday, 19 October 2013

वॉलमार्ट का भारत के रिटेल बाजार में भविष्य?

दुनिया की सबसे बड़ी रिटेल कम्पनी वॉलमार्ट स्टोर्स ने फैसला किया है कि वह रिटेल बिजनेस भारतीय साझेदारी में नहीं करेगी। वॉलमार्ट ने भारतीय एंटरप्राइजेज से भारत में साझेदारी खत्म करने की घोषणा की है। कैश एण्ड कैरी ऑपरेशन के लिए चलाए जा रहे बेस्ट प्राइस मॉडर्न स्टोर में भारती (एयरटेल) की 50 फीसदी हिस्सेदारी को वॉलमार्ट खरीद लेगी और भारतीय एंटरप्राइजेज लिमिटेड ईजीडे के नाम से चलाए जा रहे मल्टी ब्रांड स्टोर के कारोबार को जारी रखेगी। इस घटनाक्रम को भारत में निवेश को लेकर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के भरोसे में कमी से जोड़कर भी देखा जा रहा है।  छह साल पहले शुरू हुई वॉलमार्ट और भारती के बीच साझेदारी टूटने पर हालांकि भारत सरकार ने कोई सीधी टिप्पणी नहीं की है लेकिन इस घटनाक्रम के बाद निकट भविष्य में वॉलमार्ट के सीधे भारतीय रिटेल बाजार में उतरने की सम्भावनाएं काफी कमजोर हो गई हैं क्योंकि उसे इसके लिए 49 फीसदी हिस्सेदारी वाले नए भारतीय साझेदार को तलाशना होगा। सालाना करीब 440 अरब डॉलर का कारोबार करने वाली वॉलमार्ट स्टोर्स पर भारत में रिटेल कारोबार में एफडीआई के लिए लॉबिंग के आरोप लगते रहे हैं। इन आरोपों के चलते वॉलमार्ट ने अपने कुछ अधिकारियों को हटा दिया था। साथ ही पिछले दिनों भारतीय वॉलमार्ट संयुक्त उद्यम के प्रमुख राज जैन ने भी कम्पनी छोड़ दी थी। अमेरिकी सीनेट को दी गई लॉबिंग की जानकारी ने भारत में वॉलमार्ट की कार्यप्रणाली पर विवाद खड़ा कर दिया था। वॉलमार्ट ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि उसने भारत सहित दुनिया के दूसरे देशों में लॉबिंग के लिए करीब 25 मिलियन डॉलर की राशि चार वर्षों में खर्च की थी। मामला तूल पकड़ने के बाद भारत सरकार ने जनवरी में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मुकुल मुद्गिल की अध्यक्षता में एक सदस्य वाली समिति का गठन किया था। जांच में कारपोरेट अफेयर मंत्रालय, प्रवर्तन निदेशालय और डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रीयल पॉलिसी और प्रमोशन (डीआईपीपी) भी अपने स्तर पर समिति को सहयोग दे रहे थे। साझेदारी पर विवादों के चलते वॉलमार्ट को अपने कारोबारी विस्तार के लिए लॉबिंग और घूस के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है। कम्पनी पर भारतीय बाजार में प्रवेश के लिए लॉबिंग के आरोप लगे, जिसके बाद भारती वॉलमार्ट के सीईओ राज जैन को हटना पड़ा। दुनियाभर में इस तरह के आरोपों का असर वॉलमार्ट योजनाओं पर पड़ा। अक्तूबर 2012 के बाद भारती वॉलमार्ट ने भारत में कोई नया स्टोर नहीं खोला। इसके अलावा भारती समूह में वॉलमार्ट के निवेश भी सवालों के घेरे में रहा है। गत सितम्बर में मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई की राह खोलने के बावजूद अभी तक किसी विदेशी रिटेलर ने मल्टी ब्रांड क्षेत्र में एंट्री नहीं की है। 30 फीसदी स्थानीय खरीद और बुनियादी ढांचे जैसी पाबंदियों के चलते रिटेलर निवेश करने से हिचक रहे हैं। हालांकि होलसेल में भारती के साथ इसकी साझेदारी छह साल से चल रही थी। इन चुनौतियों ने विदेशी ही नहीं बल्कि देसी रिटेलरों को भी अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया। वॉलमार्ट अधिकारियों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात की है। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने बातचीत का ब्यौरा देने से इंकार कर दिया है। आरटीआई से इस ब्यौरे की सूचना को देने से मना करते हुए कहा कि जो सूचना मांगी गई है उसे नहीं देने के लिए इस कानून की धारा 8 में छूट प्राप्त हुई है। जबकि पीएमओ के अधिकारियों के सन्दर्भ में कहा गया है कि मांगी गई सूचना कार्यालय के रिकार्ड का हिस्सा नहीं है। वॉलमार्ट ने 2012 में 33 करोड़ रुपए विभिन्न मुद्दों पर लॉबिंग के लिए खर्च किए, इसमें भारत के खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का भी मुद्दा था।

-अनिल नरेन्द्र


मदनी की खरी-खरी ः मोदी के नाम पर मुसलमानों को न डराएं

जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिन्द के सैयद महमूद मदनी के ताजा बयान से सियासी बहस छिड़ गई है। बयान ही कुछ ऐसा था। भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी का डर दिखाकर वोट मांगने पर धर्मनिरपेक्ष दलों को आड़े हाथ लेते हुए मौलाना महमूद मदनी ने सीधा आरोप लगाया कि वोट के लिए समाज को मजहब के नाम पर बांटने से बाज आएं। इन दलों को किसी दूसरे दल के सत्ता में आने का डर दिखाकर मतदाताओं को लुभाने की बजाय अपनी उपलब्धियों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करना चाहिए। महमूद मदनी ने कहा कि इन कथित धर्मनिरपेक्ष दलों को अपने  एजेंडे और घोषणा पत्रों में यह साफ करना चाहिए कि वह जनता के लिए क्या करना चाहते हैं। इन कथित धर्मनिरपेक्ष दलों को यह बताना चाहिए कि विभिन्न राज्यों में उनकी सरकारों ने क्या किया है। इन्होंने किन-किन वादों को पूरा किया और कौन-से वादे अधूरे रह गए। इन्हें इस आधार पर वोट मांगना चाहिए न कि किसी के सत्ता में आने का हौव्वा खड़ा करके। सभी दलों को नकारात्मक राजनीति नहीं करनी चाहिए बल्कि लोगों को सूचित करना चाहिए कि क्या उन्होंने समान अवसर पैदा किए हैं। मौलाना ने कहा कि देश में धर्मनिरपेक्षता की जड़ें बहुत गहरी हैं और मुस्लिमों को मोदी के डर से किसी को वोट देने की जरूरत नहीं है। हालांकि मौलाना ने कांग्रेस का सीधा नाम तो नहीं लिया पर जाहिर है कि उनके निशाने पर कांग्रेस थी। मौलाना की बातों से हम सहमत हैं। उनके कारण कुछ भी रहे हों पर जो उन्होंने कहा वह सही कहा। मजहब के नाम पर देश की सियासत चलाना सरासर गलत है और मौलाना मदनी इस बात को कहने का साहस दिखाने वाले पहले मुस्लिम नेता, धर्मगुरु हैं। इस लिहाज से वह बधाई के पात्र हैं। रही बात नरेन्द्र मोदी की तो मौलाना ने इतनी चतुराई जरूर बरती कि उन्होंने मोदी के समर्थन में सीधा कुछ नहीं कहा लेकिन यह कहना कि मुसलमानों को मोदी कबूल होते हैं या नहीं यह तो समय ही बताएगा अपने आप में विशेष बन जाता है। यह भी सही कहा कि देश में धर्मनिरपेक्षता गहरी जड़े जमा चुकी है और इसके खिलाफ जाने वाला कोई नेता या पार्टी जनता को स्वीकार्य नहीं होगी। लेकिन मुसलमानों को उनकी यह सलाह कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने की सम्भावना से वह चिंतित न हों, इतना तो बता ही रही है सियासी हवा किस ओर चल रही है। चुनावी मौसम में मदनी के आरोपों ने कांग्रेस को सकते में डाल दिया है। दरअसल मोदी के भाजपा की ओर से पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर सामने आने के बाद सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता की सियासत हावी हो रही है। कांग्रेस तो सांप्रदायिक भाजपा को सत्ता से दूर रखने के नाम पर धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एकजुट होने का आह्वान कर रही है। यही काम तीसरे मोर्चे की हवा माने जाने वाले सपा और वामदल भी कर रहे हैं। मगर मदनी के निशाने पर कांग्रेस के आने से उसके लिए सांप्रदायिकता के लिए भाजपा को कोसना बेहद मुश्किल हो सकता है। यही नहीं अभी तक कांग्रेस गुजरात दंगों की बार-बार याद दिलाकर मोदी को घेर रही है। मदनी के आरोपों के  बाद पार्टी के लिए ऐसा करना भी कठिन हो सकता है। हालांकि इस समय पार्टी मदनी पर पलटवार करने की बजाय मोदी पर ही निशाना साधकर इस विवाद से बचने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी कहते हैं कि मोदी का प्रधानमंत्री बनने का सवाल ही नहीं उठता और जब यह सवाल ही नहीं उठता तो डरने-डराने का सवाल कहां से उठता है।


Friday, 18 October 2013

पारेख का सही सवाल मैं आरोपी तो पीएम क्यों नहीं?

समय-समय की बात है आज से 20-30 वर्ष पहले यह कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि किसी बिड़ला के खिलाफ केस दर्ज हो या उनमें से किसी बिड़ला को पूछताछ के लिए बुलाया जा सके पर आज बिड़ला भी कठघरे में खड़े हो रहे हैं और अम्बानी  से भी पूछताछ हो रही है। यह सब कोयला आवंटन घोटाले से संबंधित है। चुनावी मौसम के बीच कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले में सीबीआई ने मशहूर उद्योगपति आदित्य बिड़ला ग्रुप (एबीजे) के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला और उनकी कम्पनी हिंडालको इंडस्ट्रीज लिमिटेड के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। घोटाले की इस  14वीं एफआईआर में कुमार मंगलम के साथ पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख और कोयला मंत्रालय के कुछ अनाम अधिकारियों को भी आरोपी बनाया गया है। मामला दर्ज करने के साथ ही सीबीआई ने आदित्य बिड़ला समूह के कई प्रतिष्ठानों पर मंगलवार को दस्तावेज तथा अन्य सबूत जुटाने के लिए छापे मारे। एफआईआर के मुताबिक 2005 में कुछ लोगों ने प्रशासनिक अधिकारियों के साथ मिलकर आपराधिक साजिश की और तालाबीरा-2 और तालाबीरा-3 कोयला खदानों के आवंटन में पक्षपात किया। दरअसल तालाबीरा-2 खदान तमिलनाडु सरकार की पीएसयू नेवेली लिग्नाइट को दी जानी थी। लेकिन तत्कालीन कोयला सचिव पीसी पारेख ने हिंडालको को फायदा पहुंचाया। उन्होंने इस खदान को नेवेली लिग्नाइट के साथ साझा करने की अनुमति दे दी जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ। इतने महत्वपूर्ण व्यक्तियों व संवेदनशील मुद्दे पर ही चार्जशीट का फालआउट होना स्वाभाविक ही है। इधर चार्जशीट दाखिल हुई उधर चार्जशीट में आरोपी पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया। पारेख ने संवाददाताओं से कहा अगर कोई साजिश हुई है तब इसमें विभिन्न लोग शामिल हैं। इनमें एक  हैं बिड़ला जिन्होंने अर्जी लगाई थी। इसमें मैं भी हूं, जिसने मामले को देखा था और सिफारिश की थी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हैं जो उस समय कोयला मंत्री थे और उन्होंने अंतिम निर्णय किया था, वह तीसरे साजिशकर्ता हैं। इसलिए अगर कोई साजिश हुई है तो हम (प्रधानमंत्री समेत) सबको आरोपी बनाया जाना चाहिए। पारेख ने आगे प्रश्न किया कि अगर सीबीआई को लगता है कि साजिश हुई है तो बिड़ला और मुझे ही क्यों चुना गया है। पीएम को क्यों नहीं? पत्रकारों ने पूछा कि क्या पीएम को साजिशकर्ता नम्बर-1 बनाया जाना चाहिए? इस पर पारेख का कहना था ः बिल्कुल। आखिरी फैसला उन्हीं ने तो लिया था। वह चाहते मेरी सिफारिश खारिज कर सकते थे। पारेख ने हमारी राय में बिल्कुल सही सवाल उठाया है अगर कोयला खदानों के आवंटन में कोई साजिश हुई है तो कोयला मंत्री के तौर पर प्रधानमंत्री का नाम भी साजिश करने वालों में शामिल क्यों नहीं है? भले ही सीबीआई यह दावा कर रही हो कि बिड़ला और पारेख के खिलाफ उसके पास पर्याप्त एवं ठोस सबूत हैं, लेकिन उसकी कार्रवाई काफी कुछ अप्रत्याशित नजर आती है। इसका कारण है कि पहली बात तो पारेख की छवि एक ईमानदार अधिकारी की रही है और दूसरा इस पर यकीन करना कठिन हो रहा है कि एक बड़े औद्योगिक साम्राज्य को सम्भालने और आमतौर पर विवादों से दूर रहने वाले कुमार मंगलम एक अनुचित-अनैतिक तरीके से कोयला खदान हासिल करने की कोशिश में शामिल हैं। खुद सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी और यूपीए सरकार में इस केस को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। कम्पनी कार्य मंत्री सचिन पायलट ने कहा है कि इस तरह के घटनाक्रम से निवेशकों का भरोसा डगमगा सकता है, वहीं वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। पायलट ने कहा कि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि इस तरह की कार्रवाई ठोस तथ्यों पर आधारित हो क्योंकि इन घटनाओं से कारोबारी धारणा प्रभावित होती है। वहीं उद्योग जगत ने एफआईआर में  बिड़ला का नाम आने पर दीपक पारिख, निमेश कम्पनी तथा टीवी मोहनदास सहित कई उद्योग मंडलों ने कहा कि जब तक किसी के पास पुख्ता प्रमाण नहीं हों, किसी उद्योगपति पर निशाना साधने से अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा। पूरे घटनाक्रम का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि कोयला घोटाले में नए सिरे से सामना कर रहे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इस बार उनकी अपनी पार्टी ने उन्हें अकेला छोड़ दिया है। विवादित अध्यादेश पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा पीएम को पिलाई गई दुत्कार का ही नतीजा है कि इतने बड़े आरोप के बावजूद आज न तो सरकार की ओर से और न ही कांग्रेस संगठन की ओर से किसी बड़े नेता ने खुलकर उनका साथ फिलहाल दिया है। यहां यह भी बताना जरूरी है कि इसी कोल खदान आवंटन करने संबंधी कुछ महत्वपूर्ण फाइलें भी गुम हुईं और क्या कारण रहा कि इस मामले से जुड़ी सीबीआई की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट को चोरी छिपे बदलने की कोशिश की गई? हैरत की बात यह है कि यह कोशिश कोयला मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों के साथ-साथ खुद कानून मंत्री की ओर से की गई। स्पष्ट है कि दाल में कुछ काला जरूर है। साथ-साथ एक बार फिर सीबीआई के कामकाज के तरीके पर सवाल उठना स्वाभाविक है। ताजा एफआईआर कांग्रेस के लिए मुसीबत बन गई है। विपक्ष को ताजा मुद्दा मिलने से कांग्रेस के लिए मुकाबला करना कठिन हो सकता है। उत्तर प्रदेश के एक फूड पार्प के शिलान्यास के मौके पर हाल ही में राहुल गांधी और कुमार मंगलम बिड़ला साथ-साथ नजर आए थे। कांग्रेस पार्टी को बिड़ला समूह से करोड़ों रुपए चन्दा मिलता है। इस एफआईआर से केवल बिड़ला ही नहीं बल्कि सारा उद्योग जगत सरकार के खिलाफ हो सकता है। कांग्रेस के अन्दर माना जा रहा है कि यहां ताजा एफआईआर से एक ओर फिर भ्रष्टाचार का मुद्दा अहम बन जाता है वहीं प्रधानमंत्री को बचाना मुश्किल है। देखें कांग्रेस पार्टी और यह यूपीए-2 सरकार ताजा हमले से कैसे निपटती है। देखना यह भी होगा कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों खासकर दिल्ली के विधानसभा चुनाव में ताजा घटनाक्रम का क्या असर पड़ता है?

-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 17 October 2013

देखने को दिल्ली अत्यन्त सुंदर पर रहने वालों के लिए चुनौतीपूर्ण

गत दिनों मेरा एक स्कूल का दोस्त शिकागो अमेरिका से दिल्ली आया। मैं उसे एयरपोर्ट लेने गया। बाहर निकलते ही उसने इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे की तारीफ की और कहा कि यह एयरपोर्ट तो अंतर्राष्ट्रीय स्टैंडर्ड का बन गया है। रास्ते में फ्लाई ओवरों, टोल की सड़कें, इमारतों की तारीफ करते हुए उसने कहा कि दिल्ली का तो नक्शा व शक्ल ही बदल गई है। चौतरफा विकास साफ नजर आ रहा है। विदेशों से आने वालों की तो बात छोड़िए देश के दूसरे शहरों से आने वाले भी यही कहते हैं। इसमें कोई संदेह नहां कि शीला दीक्षित के नेतृत्व में उनकी सरकार ने दिल्ली की तस्वीर ही बदल दी है पर इस विकास की वजह से आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत होगी यह दावे से नहीं कहा जा सकता। क्योंकि उसका कारण है कि बेशक बाहर से आने वालों को दिल्ली का चौतरफा विकास नजर आता हो पर दिल्ली वासियों का शहर में रहना अत्यंत मुश्किल होता जा रहा है। चाहें हम कानून व्यवस्था की बात करें, ट्रैफिक की, अस्पतालों की, बच्चों के स्कूलों की फीस की, बिजली-पानी की दरों की या महंगाई की बात करें इन सबने तो दिल्ली वासियों की कमर ही तोड़ कर रख दी है। घोटाले दर घोटाले का आए दिन पर्दाफाश हो रहा है। ताजा उदाहरण दिल्ली में सार्वजनिक वितरण पणाली (पीडीएस) के अनाज में करोड़ों की कालाबाजारी का ले लें। एक निजी टीवी चैनल आजतक ने एक स्टिंग आपरेशन करके fिदखाया कि खाद्य सुरक्षा योजना के तहत सस्ता गेंहू लेकर अनाज के गोदाम से निकला ट्रक निर्धारित स्थान के बजाय निजी आटा मिल पर पहुंच गया। इसमें खाद्य आपूर्ति विभाग के कई कर्मचारी, अधिकारी शामिल होने की बात कही गई है। इससे गरीबों को सस्ता मिलने वाला राशन नहीं मिल सका और केंद्र व राज्य सरकार ने जरूरतमंदों को जो सुविधा देने थी चौपट हो गई। ये घोटाला भी करोड़ो रुपये का है। आसमान छूती महंगाई दिल्लीवासियों को इतना सता रही है कि कहीं इसका गुस्सा सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार को झेलना न पड़े? प्याज व रोजमर्रा खाने वाली अन्य सब्जियों की कीमतों में भारी उछाल के कारण सितम्बर में थोक व खुदरा महंगाई दर में तेज वृद्धि दर्ज की गई। सरकार द्वारा सोमवार को जारी आंकड़ो के मुताबिक थोक महंगाई दर सात महीने के उच्चतम स्तर 6.46 फीसदी पर पहुंच गई। जबकि सितंबर में खुदरा मुद्रास्फीति दर 9.84 पतिशत दर्ज की गई। एलपीजी और पेट्रोल की थोक महंगाई में सालाना आधार पर कमश 9 और 9.64 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। पिछले महीने सितंबर में खाने-पीने की चीजों की महंगाई तीन साल में सबसे ज्यादा बढ़कर 18.40 फीसदी हो गई। पिछले सात महीने से थोक महंगाई बढ़ने का सिलसिला जारी है। प्याज 322 फीसदी से ज्यादा महंगा है जबकि सब्जियों पर 84 फीसदी महंगाई है। इस दौरान आलू और दाल 13 फीसदी सस्ते हुए लेकिन फलों पर इतनी ही महंगाई बढ़ गई। विकास दर गिरकर 5 फीसदी से नीचे आ गई है। एक साल के अंदर दिल्ली में तीसरी बार दूध की कीमतों में वृद्धि हुई है। देश की दूध की सबसे बड़ी कंपनी अमूल ने 15 अक्टूबर से दूध 2 रुपए पति लीटर मंहगा करने का निर्णय लिया है। अमूल ने महंगाई और ज्यादा खरीद लागत का हवाला देते हुए दूध की कीमत बढ़ाने का फैसला किया है। अब दिल्ली में दूध 44 रुपए पति लीटर मिलेगा जबकि टोंड दूध की कीमत 32 रुपए से बढ़कर 34 रुपए पति लीटर हो जाएगी। इसी पकार डबल टोंड दूध की कीमत 28 रुपए से बढ़कर 30 रुपए पति लीटर होगी। राजधानी में प्याज ने फिर से दिल्ली वासियों के आंसू निकालना शुरू कर दिया है। प्याज की कीमत खुदरा और थोक बाजार दोनों जगह फिर से बढ़ गई है। खुदरा बाजार में इसके भाव 70 रुपए किलो तक पहुंच गए हैं जबकि थोक बाजार में प्याज के दाम 50 रुपए पति किलो तक हैं। फैलिन तूफान में फसल बर्बाद होने से भी खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि होने की संभावनाएं हैं। त्यौहारी सीजन पर इस बढ़ती महंगाई का असर पड़ना लाजमी हैं। अगर हम दिल्ली के ट्रैफिक की बात करें तो ओवर स्पीड के चलते औसतन हर चौथी सड़क दुर्घटना में लोग दम तोड़ देते हैं। इसमें दिल्ली का स्थान देश में सबसे उढपर है। सरकारी आंकड़ो के मुताबिक दिल्ली में 2012 में 1822 घातक हादसों में 866 लोगों की मौत हो गई। पिछले 9 सालों में जबसे कांग्रेस सरकार आई है स्कूली बच्चों की फीस में 432 फीसदी तक का इजाफा हुआ है। अगर हम कानून व्यवस्था की बात करें तो दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है। पिछले साल वस्ंात विहार सामूहिक दुष्कर्म की वारदात के बाद से यह मुद्दा अहम है। लेकिन राष्ट्रीय राजधानी होने के कारण दिल्ली पुलिस राज्य सरकार के अधीन न होने के कारण कोई भी दल इस मुद्दे का ठोस समाधान लोगों के समक्ष नहीं रख सका। बलात्कार की घटनाओं में इतनी वृद्धि हुई है कि अब दिल्ली को रेप कैपिटल ऑफ इंडिया कहा जाने लगा है। कोई भी दिल्ली की महिला अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं करती। बिजली की दरों का मुद्दा भी कम अहम नहीं है। इसी तरह पानी का भी मुद्दा है। आपूर्ति की कमी, रेटों में वृद्धि ने, अनाप-शनाप बिलों के आने से दिल्ली वासी परेशान हैं। दिल्ली के ट्रैफिक जामों के कारण घंटें सड़कों पर बर्बाद हो जाते हैं। जामों के कारण टाइम अलग वेस्ट होता है, 40 से 50 फीसदी अतिरिक्त पेट्रोल व डीजल भी लगता है। जो वाहन सामान्य रोड पर एक लीटर में 15 किलोमीटर की औसत निकालता है, जाम में फंसे होने के कारण 8 से 10 किलोमीटर पतिलीटर रह जाती है। दिल्ली में औसतन साढ़े तीन सौ बसें रोजाना खराब होती हैं। 2012 में राजधानी में 4086 बच्चे गायब हो गए जिनका आज तक कुछ पता नहीं चल सका। ऐसे दर्जनों और मुद्दे हैं। कुल मिलाकर देखने को दिल्ली बहुत सुंदर है पर रहने वालों के लिए अत्यन्त चुनौतीपूर्ण।

öअनिल नरेन्द्र

Wednesday, 16 October 2013

पिछले नौ साल में बच्चों की स्कूल फीस में 432 फीसदी का इजाफा

जनता सिर्प आलू, प्याज, आटा, यातायात जैसी जरूरी चीजों की महंगाई से ही परेशान नहीं है बल्कि कई ऐसे खर्च हैं जिन्होंने जनता का जीना हराम कर रखा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार बीते नौ साल में बच्चों की स्कूल की फीस सबसे ज्यादा 432 फीसदी तक बढ़ी है। इस अवधि में सब्जी, आटा, दूध, दाल और चीनी सहित लगभग डेढ़ सौ वस्तुओं के दाम दोगुने से अधिक हो गए हैं। इतना ही नहीं, मटन सहित दर्जन भर चीजों का भाव बढ़कर तीन गुना से ज्यादा हो गया है। सांख्यिकीय और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि मार्च 2004 में ग्रामीण क्षेत्रों में एक स्कूली छात्र की औसतन फीस 48.71 रुपए थी जो अब बढ़कर 259.60 रुपए हो गई है। इस तरह स्कूल फीस में 432 फीसदी का इजाफा हुआ है। इस दौरान मूंग, उड़द और अरहर की दालों में भी क्रमश 190, 176 और 129 फीसदी की वृद्धि हुई है। आलू की कीमत 158, प्याज की 144 और टमाटर की कीमत में 129 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। इस अवधि में डाक्टर की फीस में भी 155 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। मंत्रालय ने 260 वस्तुओं और सेवाओं की कीमत संबंधी आंकड़े जारी किए हैं। यह आंकड़े देशभर के 603 गांवों से नेशनल सेम्पल सर्वे ऑफिस ने संकलित किए हैं। हालांकि बीते नौ साल में सालाना प्रति व्यक्ति आय चालू कीमतों पर 24,143 रुपए से बढ़कर 68,757 रुपए हुई है। गौरतलब है कि प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय स्तर पर एक औसत होती है, इसलिए यह जरूरी नहीं कि ग्रामीण क्षेत्र में लोगों की आय में इतनी तेजी से इजाफा हुआ हो। हालांकि मनरेगा जैसे कार्यक्रमों के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में हाल के वर्षों में अपेक्षाकृत अधिक धन गया है। तीन चीजें ऐसी भी हैं जिनके दाम नहीं बढ़े हैं। यह हैं पोस्ट कार्ड, अंतर्देशीय और रेल का किराया। यह आंकड़े मार्च 2013 तक के हैं। सरकार ने इस साल मार्च के बाद रेल किराए (यात्री) बढ़ाए है जिसकी झलक इनमें नहीं मिलती। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सेवाएं हाल के वर्षों में काफी महंगी हुई हैं। अस्पतालों का तो पूछिए मत। किसी भी अच्छे निजी अस्पताल में इलाज कराना पड़ जाए तो बिल लाखों में बन जाता है। यही हाल दवाओं का भी है। आम आदमी पर महंगाई की चौतरफा मार पड़ रही है। ताजा सरकारी आंकड़ों के अनुसार अगस्त के दौरान थोक महंगाई दर छह माह के उच्चतम स्तर 6.1 फीसदी थी। पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले अगस्त में सब्जियां करीब 78 फीसदी और प्याज 244 फीसदी तक महंगी हो गई। त्यौहारी सीजन में यह महंगाई अपना रंग जरूर दिखाएगी। बढ़ती महंगाई, गिरता रुपया और धीमी आर्थिक विकास दर ने केंद्र सरकार की भी चिंताएं बढ़ा दी हैं। विभिन्न विधानसभाओं के चुनाव सिर पर हैं,  लोकसभा के चुनाव भी ज्यादा दूर नहीं हैं। एक शोध में कहा गया है कि तेल कम्पनियों को सब्सिडी का बोझ कम करने के लिए पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में वृद्धि करनी होगी। अगर ऐसा होता है तो थोक महंगाई दर 0.5 फीसदी तक और बढ़ने की आशंका है। अगस्त में दूध की थोक महंगाई दर 5.6 फीसदी बढ़ गई है। इसी साल जुलाई में दूध की थोक महंगाई दर 2.3 फीसदी बढ़ी थी। एक साल के भीतर दूध 10 फीसदी से ज्यादा महंगा हो गया है। स्कूल फीस के अलावा किताबें, कॉपियां, पेन, पेन्सिल, बस्ता सभी वस्तुओं की कीमतों में भी वृद्धि हुई है। पता नहीं कि यह बढ़ती महंगाई कभी रुकेगी भी या नहीं?

-अनिल नरेन्द्र

तूफान से बचे भगदड़ में मरे

हमारे सामने दो उदाहरण हैं, एक जब प्रलयकारी और विध्वंसक तूफान फैलिन आया और दूसरा दतिया से साठ किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश के रत्नगढ़ देवी मंदिर की भगदड़ का। हालांकि किसी भी दृष्टिकोण से तूफान फैलिन कहीं ज्यादा खतरनाक था और अभूतपूर्व तबाही मचा सकता है वहीं बेहतर तैयारी और डिजास्टर मैनेजमेंट के कारण सैकड़ों जिंदगियां बचाई जा सकीं। इस सफलता का श्रेय जाता है केंद्र और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन यानि एनडीएमए के साथ-साथ राज्यों के स्थानीय प्रशासनों को। अगर स्थानीय प्रशासन की बात करें तो रत्नगढ़ देवी मंदिर में प्रशासन की लापरवाही के कारण 115 श्रद्धालुओं की तो मौत हो चुकी है और 150 से अधिक लोग घायल हुए हैं। मरने वालों में 30 बच्चे और 42 महिलाएं भी शामिल हैं। नवरात्रि की नवमी पर मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित प्रसिद्ध रत्नगढ़ देवी मंदिर में रविवार को पुल टूटने की अफवाह के बाद भगदड़ मचने से 115 लोगों की मौत हो गई। मंदिर के लिए रास्ता सिंध नदी पर बने पुल से होकर जाता है। पुल पर काफी भीड़ थी, तभी कुछ लोगों ने अफवाह फैला दी कि पुल टूटने वाला है जिससे भगदड़ मच गई। हालांकि कुछ प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि कुछ लोगों ने पुल से मंदिर तक लगी लम्बी लाइन को तोड़कर आगे जाने की कोशिश की जिस पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। इस वजह से महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग इधर-उधर भागने लगे और भगदड़ मच गई। रत्नगढ़ माता मंदिर के नजदीक बह रही सिंध नदी के पुल पर जहां भी नजर दौड़ाई जाए लाशों के ढेर और घायल लोग पड़े थे। पुल पर हजारों की संख्या में यात्रियों के झोले, बैग, जूते, चप्पल व उनका सामान बिखरा पड़ा था। मध्यप्रदेश सरकार ने हादसे की न्यायिक जांच कराने के आदेश दे दिए हैं। मरने वालों को डेढ़-डेढ़ लाख रुपए और गम्भीर रूप से घायलों को 50-50 हजार रुपए के मुआवजे की घोषणा की गई है। यह दुर्घटना अपने आप में रहस्यमय है। दुर्घटना पर कुछ ऐसे सवाल खड़े हो गए हैं जिनका जवाब मिलना चाहिए। आखिर पुल टूटने की अफवाह किसने और क्यों फैलाई? क्या पुलिसकर्मियों ने ही यह कहा था कि पुल टूट गया है और लोगों को वहां रोकने का प्रयास किया था। यदि पुलिसकर्मियों ने यह कहा था तो क्यों कहा था? क्या यह किसी की शरारत या सियासी सब्जैक्ट था? पुलिस को लाठीचार्ज करने की आवश्यकता क्यों पड़ी? भीड़ बढ़ने पर सीमित लोगों को अलग-अलग समूहों में मंदिर तक छोड़ा जा सकता था। यदि संख्या कम थी तो पुलिस को लाठीचार्ज करने का आदेश किसने दिया? पुलिस को जबकि यह मालूम था कि लाठीचार्ज में भगदड़ मच सकती है। कांग्रेस का आरोप है कि पुलिस किसी नेता के लिए रास्ता बनाने का प्रयास कर रही थी। सवाल यह है कि वीआईपी के आने की योजना पहले से नहीं बनाई गई और यह विचार नहीं किया गया कि महत्वपूर्ण लोगों को भीड़ वाले समय में न लाया जाए। घटना के बहुत देर बाद तक पीड़ितों को सहायता नहीं मिली। देर शाम तक लाशों का ढेर लगा रहा। बड़ी संख्या में जब लोग नवमी के मौके पर आने वाले थे तो वहां फायर ब्रिगेड व एम्बुलेंस व चलित अस्पतालों की कोई व्यवस्था क्यों नहीं की गई? नया पुल बनने के बाद भी लोग सिंध नदी में गिर गए। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक नदी में गिरे लोगों को ढूंढा नहीं जा सका है। बड़ी संख्या में लोग लापता हैं, नदी में बहने की आशंका है। आखिर यह लोग नदी में गिरे कैसे? एक अक्तूबर 2006 को भी सिंध नदी में 50 लोग बह गए थे। इसके बाद जांच की गई और जांच रिपोर्ट में कुछ सुझाव भी दिए गए थे। क्या राज्य सरकार ने उस न्यायिक जांच आयोग की सिफारिशें व रिपोर्ट के आधार पर कोई कार्रवाई की। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इस हादसे का शिवराज सिंह चौहान की सरकार पर क्या असर पड़ता है यह समय ही बताएगा।

Tuesday, 15 October 2013

बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभान अल्लाह

आसाराम बापू के तो सेक्स किस्से सुन ही रहे हैं पर अब तो बेटे के भी किस्से सुनने को मिल रहे हैं। बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभान अल्लाह। नाबालिग लड़की से बलात्कार के मामले में 75 वर्षीय आसाराम को अगस्त में गिरफ्तार किया गया था और तब से जेल में बंद हैं। सूरत की दो बहनों के यौन उत्पीड़न में आरोपी आसाराम से पूछताछ करने का अब रास्ता भी साफ हो गया है। गुजरात पुलिस को शुक्रवार को जोधपुर की एक अदालत ने आसाराम को गुजरात पुलिस के साथ भेजने की इजाजत दे दी। सूरत के पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना ने गत दिनों बताया कि हम लोगों ने यौन उत्पीड़न, अवैध तरीके से बंधक बनाने और अन्य आरोपों को लेकर आसाराम और दूसरी एफआईआर उनके बेटे नारायण साईं के खिलाफ दर्ज की है। उन्होंने बताया कि पीड़िता दो बहनें हैं। अस्थाना ने बताया कि नारायण साईं के खिलाफ शिकायत सूरत में झागीपुर थाने में दर्ज की गई है। बड़ी बहन ने आसाराम के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है जबकि छोटी बहन ने उनके बेटे के खिलाफ शिकायत दर्ज की है। घटना 2001 से लेकर 2006 के बीच की है। नारायण साईं के खिलाफ कई धाराएं लगाई गई हैं और वह तब से फरार हैं। वह अग्रिम जमानत लेने के चक्कर में भाग रहे हैं। सोमवार को नारायण साईं के खिलाफ एक लुकआउट नोटिस जारी किया गया। अस्थाना ने बताया कि हमने नारायण स्वामी के खिलाफ यह लुकआउट नोटिस जारी किया है। लुकआउट नोटिस एक अहतियाती कदम होता है ताकि आरोपी देश न छोड़ सके। नारायण साईं पर दुष्कर्म के आरोप लगाने वाली सूरत की  लड़की पीड़िता ने पुलिस को छह और लड़कियों के नाम बताए हैं। उसके मुताबिक इनसे भी नारायण साईं ने दुष्कर्म किया। इनमें तीन लड़कियां इंदौर व तीन वड़ोदरा की हैं। दुष्कर्म के मामले की पड़ताल में यह नई जानकारी सामने आई है। पुलिस के मुताबिक पीड़िता साबरकांठा स्थित एक आश्रम की संचालक रही हैं। पीड़िता का कहना है कि नारायण साईं का इतना आतंक था कि साधिकाएं उसके खिलाफ कुछ नहीं बोल सकती थीं। उनका आरोप है कि आश्रम संचालन के दौरान उसके सामने देश के कई हिस्सों से लड़कियां लाई गई थीं। बाद में इन्हें काठमांडू के नागार्जुन हिल स्थित ओशो आश्रम में लाया गया। ओशो आश्रम के मेडिटेशन में ले जाकर निर्वस्त्र अवस्था में नृत्य करने वाली दम्पत्ति दिखाए। वह इसी तर्ज पर अपनी साधिकाओं से नृत्य करवाना चाहता था। उन्हें दिखाते हुए कहा गया कि इन लोगों को देखो और सीखो। पुरुष व महिला के बीच कोई फर्प नहीं होती। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गांधीनगर में कार्यकारी पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) प्रमोद कुमार से मामले की पूरी जानकारी ली है। सूत्रों के अनुसार मोदी ने मामले में तटस्थ जांच के निर्देश दिए हैं। सूरत पुलिस ने पीड़िता से मिले तथ्यों के आधार पर वड़ोदरा और इंदौर की तीन-तीन लड़कियों की तलाश शुरू कर दी है। इन लड़कियों को मेघनगर (मप्र) और बिहार भी ले जाया गया था। यह लड़कियां सूरत के जहांगीरपुरा आश्रम में दिसम्बर 2001 में नारायण साईं के सत्संग में शामिल होने आई थीं। नारायण साईं ने इस दौरान गुजरात के स्थानीय समाचार पत्रों में विज्ञापन जारी कर कहा है कि वह निर्दोष हैं पर भगोड़े नहीं। इस विज्ञापन में यह भी कहा गया है कि साईं इस मामले में कानूनी रास्ता अपनाएंगे। साईं के वकील गौतम देसाई के जरिये जारी इस विज्ञापन में कहा गया है कि हमारे मुवक्किल कहीं गए नहीं हैं और वह भागेंगे नहीं। जैसा हमने ऊपर कहा बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभान अल्लाह।

-अनिल नरेन्द्र

सांप्रदायिक दंगे सियासी फायदे के लिए राजनीतिक दल करवाते है

हालांकि यह सभी जानते हैं कि सांप्रदायिक दंगे होते नहीं  कराए जाते हैं पर तब भी किसी भी राजनेता की यह स्वीकृति अच्छी लगती है। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मुजफ्फरनगर दंगों को लेकर गत बुधवार अलीगढ़ और रामपुर की रैलियों में समाजवादी पार्टी और भाजपा पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि दंगे होते नहीं करवाए जाते हैं। मुजफ्फरनगर में भी ऐसा ही हुआ है। यहां सियासी ताकतों ने महज इसलिए खूनखराबा कराया क्योंकि उन्हें लगता है कि सांप्रदायिक टकराव के बगैर वह चुनाव जीत नहीं सकते। आम आदमी तो यह मानता ही रहा है कि दंगे सियासी फायदे के लिए कराए जाते हैं। राजनीतिक दल ही वोट के लिए लोगों के बीच जाति और मजहब का भेद पैदा करते हैं। आमतौर पर लोग तो इस भेद को भुलाकर मिलजुल कर रहना चाहते हैं। अगर हम मुजफ्फरनगर की बात करें तो यहां कभी भी दंगा नहीं हुआ, 1947 में भी नहीं हुआ। वर्षों से हिन्दू-मुसलमान सद्भाव के साथ रहते आए हैं। लेकिन सियासी दखल के बाद ही वहां दंगे शुरू हुए। दंगे न रोक पाने के आरोप में सजा के तौर पर निलंबित किए गए चार दारोगाओं के तर्कों को सुनने के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निलंबन पर रोक लगा दी। दारोगाओं की ओर से यह कहा जाना कि कवाल गांव में लड़की छेड़ने का विरोध कर रहे सचिन और गौरव की हत्या के आरोप में पकड़े गए आरोपियों को मंत्री के दबाव में छोड़े जाने के बाद सांप्रदायिक दंगा भड़क उठा  जो सीधा अखिलेश सरकार को कठघरे में खड़ा करता है। मुजफ्फरनगर दंगों के बाद सपा सरकार एकतरफा कार्रवाई के आरोपों में घिरती ही जा रही है। सरकार पर दंगें के बाद एक समुदाय विशेष के पुलिसकर्मियों के स्थानांतरण के इस आरोप के अलावा यह भी आरोप  लग रहा है कि बड़े पैमाने पर एक समुदाय विशेष से संबंधित लोगों के शस्त्र लाइसेंस निलंबित किए गए। हाई कोर्ट पहुंचे शस्त्र लाइसेंस के मामले पर संज्ञान लेते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी किया है। मामले की अगली सुनवाई 23 अक्तूबर को होगी। न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता ने मुजफ्फरनगर के राजेन्द्र सिंह की याचिका पर सुनवाई के बाद अखिलेश सरकार से जवाबी हलफनामा दो सप्ताह में दाखिल करने को कहा है। राजेन्द्र सिंह के वकील अनिल शर्मा ने कोर्ट को कवाल की घटना के बाद उपजे हालात की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि दंगे के बाद भौराकलां थाने ने 9 सितम्बर को याची को नोटिस जारी कर शस्त्र लाइसेंस निलंबित करने की सूचना दी और उससे 23 अक्तूबर तक अपना असलहा थाने में जमा करने को कहा गया। इतना ही नहीं, इसी प्रकार का नोटिस नौवाबाद गांव के एक ही समुदाय के 70 लोगों को जारी किया गया। अधिवक्ता अनिल शर्मा ने दलील दी कि संविधान के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत सरकार धर्म के आधार पर शस्त्र लाइसेंस जारी या निरस्त करने में भेदभाव नहीं कर सकती। इधर सुप्रीम कोर्ट ने मुजफ्फरनगर समेत उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में हुए दंगों के विषय में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और नगर विकास मंत्री आजम खान को नोटिस जारी किया है। अदालत ने यह नोटिस वी द पीपल और दो अन्य लोगों द्वारा हाई कोर्ट की इलाहाबाद और लखनऊ बैंच में दाखिल याचिका को अपने यहां स्थानांतरित करने के बाद दिया है। सुप्रीम कोर्ट पहले से दाखिल याचिकाओं सहित हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ की तीन याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नूतन ठाकुर ने लखनऊ पीठ में जनहित याचिका प्रस्तुत कर सीबीआई जांच की मांग की है। इसके साथ अन्य याचिकाओं में भी दिखाए गए स्टिंग ऑपरेशन सहित कई विवादित बिन्दुओं पर निष्पक्ष जांच की मांग की गई है। याचिका में मांग की गई है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जांच के लिए गठित सहाय कमीशन के साथ हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति को भी शामिल कर निष्पक्ष जांच कराई जाए। रिपोर्ट आ रही है कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को अब उत्तर प्रदेश सरकार के प्रति जनता की नाराजगी का डर सताने लगा है। शनिवार को डॉ. राम मनोहर लोहिया के निर्वाण दिवस और आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि उनके विधायकों और मंत्रियों की खामियों की सजा जनता उन्हें न दे। जाहिर है उन्होंने यह बात लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कही है, जो पार्टी के लिए काफी अहम है। सपा प्रमुख ने कहा कि सत्ता में  बैठे लोगों पर जनता की पैनी नजर होती। आपके कहने से सरकार अच्छी नहीं होगी, जब जनता अच्छा कहे तब सरकार अच्छी मानी जाएगी।

Sunday, 13 October 2013

आमिर खान की फिल्म में भगवान शिवरूपी कलाकार से रिक्शा चलाने का मामला

देश में जगह-जगह जहां सांप्रदायिक दंगे भड़काने की साजिशें चल रही हैं, ऐसे में देश की राजधानी दिल्ली की गंगा-जमुना तहजीब के खास चांदनी चौक में एक ऐसी घटना घटित हुई जिससे मशहूर फिल्म अभिनेता, निर्देशक आमिर खान की यूनिट ने बिना इजाजत चांदनी चौक की सड़क पर भगवान शिव के स्वरूप में बने एक कलाकार से एक रिक्शा खिंचवा दी। पीछे बैठी थी बुर्काधारी कलाकार। पीके नामक फिल्म की शूटिंग के दौरान भगवान शिव के वेश में एक शख्स को रिक्शा चलाते हुए दिखाने पर फिल्म के सहायक निर्देशक अयूब हसन को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। घटना के समय आमिर खान और फिल्म के निर्देशक राजकुमार हिरानी दिल्ली में नहीं थे। धार्मिक उन्माद भड़के इससे पहले भाजपा के एक नेता ने इसकी सूचना पुलिस को दी। पुलिस ने भी मौके की नजाकत को समझते हुए व रामलीला के दिनों में इस प्रकार की घटना के अंदेशों के चलते त्वरित कार्रवाई की और आमिर खान की यूनिट के अस्सिटेंट डायरेक्टर व तीनों कलाकारों को हिरासत में ले लिया। बाद में तीनों कलाकारों को तो छोड़ दिया लेकिन अस्सिटेंट डायरेक्टर को बिना इजाजत के इस प्रकार के कृत्य करने के आरोप में हिरासत में ले लिया। मिली जानकारी के अनुसार अभिनेता आमिर खान की होम प्रोडक्शन फिल्म `पीके' की शूटिंग चांदनी चौक इलाके में होनी थी, लेकिन इजाजत नहीं होने के कारण अभिनेता आमिर खान दिल्ली में नहीं थे, उनकी अनुपस्थिति में अस्सिटेंट डायरेक्टर अयूब हसन ने इस फिल्म के इस सीन को शूट करने की कोशिश की, इसी दौरान भाजपा नेता अजय अग्रवाल ने इसकी सूचना पुलिस को दी। पहले तो ऐसा लगा कि शायद रामलीला के कलाकार हों, लेकिन भगवान शिव के स्वरूप में सार्वजनिक रूप से रिक्शा चलाना धार्मिक भावनाओं के खिलाफ लगा, तभी 100 नम्बर पर फोन किया गया और थाना कोतवाली में धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ करने व बिना इजाजत फिल्म की शूटिंग करने का मामला दर्ज किया गया। `पीके' फिल्म में अनुष्का शर्मा, सुशांत सिंह राजपूत, अरशद वारसी व शाहिद कपूर भी भूमिका निभा रहे हैं। मुझे इस बात का दुख है कि आमिर खान, राजकुमार हिरानी जैसे दिग्गज समझदार धार्मिक लोग इस किस्से से जुड़े हैं। आखिर सीन लिखने, शूट करने से पहले किसी ने नहीं सोचा कि इस प्रकार की शूट से धार्मिक उन्माद पैदा हो सकता है? क्या सोच कर इन्होंने चांदनी चौक जैसे संवेदनशील इलाके में यह शूटिंग की? वैसे भी पूरा देश इस समय सांप्रदायिक दंगों व तनाव से गुजर रहा है। एक छोटी-सी चिंगारी भयानक आग को सुलगा सकती है। पुलिस ने समय रहते ठोस कार्रवाई करके बड़ी घटना होने से दिल्ली को बचा लिया पर इससे उन लोगों का कसूर कम नहीं होता जो सस्ती लोकप्रियता की खातिर धर्म का भी इस्तेमाल करने से परहेज नहीं करते। मुझे आखिर खान से इसलिए भी ज्यादा निराशा हुई क्योंकि वह एक अच्छे, सच्चे देशभक्त कलाकार हैं, समझ नहीं आया कि उन्होंने ऐसी गलती कैसे की?
-अनिल नरेन्द्र