Saturday 5 October 2013

और अब राहुल कांग्रेस ः चुनौती तो अब शुरू होगा

पहले से तय क्रिप्ट के मुताबिक दागी नेताओं को बचाने के विवादास्पद अध्यादेश को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कैबिनेट ने बुधवार को वापस ले लिया है। यूपीए सरकार और कांग्रेस कोर ग्रुप ने पलटी मारते हुए राहुल गांधी के सामने समर्पण कर दिया। वही हुआ जिसकी पटकथा राहुल गांधी ने 27 सितम्बर को लिखी थी। आज बेशक कांग्रेसी सारा श्रेय राहुल बाबा को दे रहे हों पर पूरे घटनाक्रम से कई प्रश्न उठ गए हैं। सबसे पहला प्रश्न तो कांग्रेस की अंदरुनी राजनीति से जुड़ा है। क्या अब हम राहुल कांग्रेस का युग देखने वाले हैं? राहुल को पार्टी इसी वर्ष जनवरी में उपाध्यक्ष बनाकर अपना भावी नेता मान चुकी है, लेकिन लगता है कि वह अपने अधिकारों को लेकर कहीं अधिक सचेत हो गए हैं, इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री के स्वदेश लौटने तक का इंतजार नहीं किया। बेचारे मनमोहन सिंह को अब तो अपमानित होने की आदत-सी पड़ गई होगी। दागी नेताओं को बचाने के अध्यादेश पर पीएम के पीछे हटने के साथ ही एक बार फिर सोनिया और राहुल गांधी का सरकार के उलटे पड़े फैसले को भी बेदाग बनाकर निकलने का सियासी फॉर्मूला सामने आ गया है। दरअसल यूपीए के कार्यकाल में ऐसे कई मौके आए हैं जब जनविरोधी कामों का ठीकरा मनमोहन पर फोड़ा गया तो अच्छे कामों का श्रेय सोनिया और राहुल के हिस्से आया है। सही हो तो सोनिया-राहुल, गलत हो तो मनमोहन सिंह। कांग्रेस के अन्दर कई दिग्गजों में राहुल के स्टाइल का विरोध हो रहा है। भले ही यह शीर्ष नेता फिलहाल राहुल के अपशब्दों का घूंट पी गए हों लेकिन सबकी नजरें 2014 के लोकसभा चुनाव में राहुल कैसा परफार्म करते हैं इस पर टिकी हुई हैं। अगर राहुल उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते तो सम्भव है कि कई नेता कांग्रेस से हट जाएं या तो वे अपनी पार्टी बना लेंगे या फिर किसी दूसरे राजनीतिक दल में शामिल हो सकते हैं। क्योंकि अपने से कहीं जूनियर राहुल का इस तरह का बर्ताव वे सहन नहीं कर सकते। स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सोनिया से इस बात की शिकायत की थी कि अगर राहुल को सरकार द्वारा  लाया गया अध्यादेश पसंद नहीं था तो वे स्वयं इस संबंध में बात कर सकते थे या फिर वो संयमित शब्दों का इस्तेमाल करते हुए भी मीडिया से अपनी बात कह सकते थे। इसके बाद ही सोनिया ने राहुल को समझाया कि इस तरह के शब्दों से प्रधानमंत्री का अपमान हुआ है और उन्हें इस शैली को बदलना होगा। इसके बाद ही राहुल ने प्रधानमंत्री को वह पत्र लिखा जिसमें अपनी मंशा पाक-साफ होने की बात तो कही, शब्दों पर खेद व्यक्त किया पर माफी नहीं मांगी। चन्द दिनों पहले बाबा रामदेव ने यह भविष्यवाणी की थी कि राहुल गांधी कांग्रेस को बर्बाद कर देंगे और कांग्रेस के वरिष्ठ व काबिल नेता या तो अलग पार्टी बना लेंगे या फिर वे दूसरे दलों का रुख कर सकते हैं। कटु सत्य तो यह है कि राहुल गांधी की असल परीक्षा तो अब होगी। चाहते या न चाहते हुए भी अब मुद्दा है राहुल बनाम नरेन्द्र मोदी। सजायाफ्ता सांसदों और विधायकों की सदस्यता खत्म होने से तात्कालिक राजनीतिक समीकरण भले ही उलट-पुलट जाएं लेकिन राजनीति को अपराधीकरण से पूरी तरह मुक्त करना आसान नहीं है। राहुल ने अब आग में हाथ डाल दिया है देखें जलते हैं या बचते हैं? दांव पर होंगे पांच विधानसभा चुनाव। क्या राहुल अपनी कार्यशैली बदलेंगे या वही दरबारी संस्कृति पर चलेंगे। अब तक कई मौकों पर राहुल गांधी ने अपने विचार तो रखे हैं पर शायद ही किसी मामले का फॉलोअप किया हो? वह दिग्विजय सिंह, मधुसूदन मिस्त्राr, सीपी जोशी जैसे संगठन के नेताओं से विचार-विमर्श तो करते हैं, लेकिन सरकार में शामिल पी. चिदम्बरम, एके एंटनी, कपिल सिब्बल और नीति-निर्धारित करने वाले प्रमुख मंत्रियों के साथ ऐसा करने में उन्होंने अभी तक तो कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई यानि संगठन में तो उनकी सक्रियता रही है, लेकिन सरकार के कामकाज में दखल से अब तक उन्होंने खुद को दूर रखा है। पार्टी और सरकार में तालमेल की कमी साफ नजर आ रही है और अब तक तो राहुल ने इसमें कमी नहीं बल्कि इजाफा ही किया है। दागियों से संबंधित अध्यादेश के बाद अब स्पष्ट हो चुका है कि सोनिया की कांग्रेस राहुल की कांग्रेस में तब्दील हो चुकी है। राहुल को यह पता चल चुका है कि नरेन्द्र मोदी बहुत बड़ी ताकत बनकर उभर रहे हैं। उनकी सभाओं में उमड़ रही भीड़ को देखकर उनकी बढ़ती लोकप्रियता विशेषकर युवाओं में आंकी जा सकती है। राहुल के सामने सबसे बड़ी चुनौती न केवल नरेन्द्र मोदी ही हैं बल्कि कुछ हद तक आम आदमी पार्टी भी है। यह अकेली शहरी पार्टी है और कांग्रेस को आभास हो गया है कि इससे कांग्रेस का खेल बिगाड़ हो सकता है। राहुल की परीक्षा तो अब शुरू होगी। देखें वह अपनी कांग्रेस को आगे कैसे बढ़ाते हैं?



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