Wednesday 2 October 2013

वक्त-वक्त की बात है नायक से खलनायक बने लालू प्रसाद यादव

वक्त-वक्त की बात होती है कहां तो नब्बे के दशक में मंडल रथ पर सवार लालू प्रसाद यादव ने सामाजिक बदलाव का नारा देते हुए बिहार की सत्ता पर कब्जा किया और लगभग दो दशक तक भारतीय राजनीति में छाए रहे। आज वही लालू जी चारा घोटाला केस में दोषी करार होकर सलाखों के पीछे पहुंच गए। चारा घोटाले के रूप में सरकारी धन की खुली लूट के एक मामले में 45 लोगों समेत लालू यादव को दोषी करार दिया गया है। सीबीआई के रांची कोर्ट ने सोमवार को फैसला सुनाते हुए आठ दोषियों को तीन-तीन साल की सजा सुनाई। लालू समेत शेष 37 की सजा पर फैसला 3 अक्तूबर को किया जाएगा। अदालत ने यह फैसला चाईबासा कोषागार से फर्जी ढंग से 37.7 करोड़ रुपए निकालने के मामले में सुनाया है। चारा घोटाले से जुड़े पांच मामलों में से सोमवार को सीबीआई की विशेष अदालत ने एक मामले में अपना फैसला सुनाया है। ऐसे चार मामलों में अभी अलग-अलग अदालतों का फैसला आना शेष है। 950 करोड़ रुपए की अवैध निकासी का है पूरा चारा घोटाला। चारा घोटाले में लालू यादव के साथ एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री (कांग्रेसी) जगन्नाथ मिश्र और कुछ अन्य नेताओं के सलाखों के  पीछे पहुंचने के बावजूद आम जनता यह सवाल पूछ रही है कि आखिर भ्रष्टाचार के इस मामले को 17 साल क्यों लगे हैं? जनता यह महसूस करने लगी है कि घपले-घोटालों में फंसे नेताओं के मामले का निपटारा देर से होता है। कई बार यह देर अंधेरे का रूप ले लेती है और कानून के हाथ अनावश्यक रूप से लम्बे नजर आने लगते हैं। आज भले ही विभिन्न दलों के नेता यह कह रहे हों कि न्याय की जीत हुई है, लेकिन यह एक तथ्य है कि  लालू यादव को कानून के चंगुल से बचाने के लिए समय-समय पर हर स्तर पर प्रयास किए गए। सीबीआई पर अनुचित दबाव डालने से लेकर लालू यादव को राजनीतिक रूप से ताकत देने के प्रयास किए गए। भले ही एक अप्रत्याशित घटनाक्रम के बाद कांग्रेस उस अध्यादेश के खिलाफ खड़ी नजर आ रही हो जो लालू को राहत दे सकता था, लेकिन क्या इसमें संदेह है कि उसे संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों को पूरा करने और विशेष रूप से लालू यादव को बचाने के लिए ही लाया गया? ढाई दशक तक लालू हीरो थे नायक थे जिनकी प्रसिद्धि दुनियाभर में हो गई थी। उनको हार्वर्ड यूनिवर्सिटी लैक्चर देने के लिए बुलाया जाता था आज वह खलनायक बन गए हैं। जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति की दशा-दिशा के नतीजे के रूप में आए और उन्होंने पिछड़ों-दलित की ताकत के बूते अगड़ों के वर्चस्व वाली तात्कालिक राजनीतिक व्यवस्था का चेहरा ही बदल दिया। अफसोस है कि  लालू ने चेहरा तो बदल दिया लेकिन दिल नहीं बदल पाए। बदलाव की रणनीति बांटने की राजनीति में बदल गई और जिस समय की ताकत के बूते ऐसी क्रांति आई थी उसमें उन्हें अपनी व्यक्तिगत ताकत का भ्रम होने लगा। नतीजा, लालू की पार्टी भी उन सब विसंगतियों से लैस होने लगी जिनके कारण कभी कांग्रेस की दुर्गति हुई थी। कितनी बड़ी विडम्बना है जो लालू कमजोर, पिछड़े तबके को ताकत दिलाने का सपना दिखाकर सत्ता में आए वह दरिद्र आदिवासियों के हिस्से का पशु चारा हड़पने के आरोप में आज जेल भेजे गए हैं। ऐसे हालात में लालू के जेल जाने के बाद उनकी पार्टी का अस्तित्व बचा रह पाएगा इसमें संदेह है क्योंकि पत्नी और संतानों के भरोसे नेतृत्व कितना चल पाएगा समय ही बताएगा। लालू जैसे असरदार नेता के जेल जाने से राजनीतिक शुद्धिकरण के अभियान को बल मिलेगा।

No comments:

Post a Comment