Friday, 25 October 2013

हर्षवर्धन के सामने बड़ी चुनौती ः खेमे में बंटी भाजपा को एकजुट कर चुनाव लड़वाना

कई दिनों की जद्दोजहद के बाद अंतत भारतीय जनता पार्टी के दिल्ली के सीएम उम्मीदवार का निर्णय हो ही गया। बुधवार को भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद डॉ. हर्षवर्धन को भाजपा का मुख्यमंत्री  पद के उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर चल रहे हाई वोल्टेज ड्रामे का अंतत पूर्व भाजपा अध्यक्ष डॉ. हर्षवर्धन के नाम की घोषणा के साथ ही पटाक्षेप हो गया। विधानसभा के लिए होने वाले मतदान से ठीक 42 दिन पहले डॉ. हर्षवर्धन के सिर पर बंधे कांटों के इस ताज के और प्रदेशाध्यक्ष विजय गोयल के मनाने के पीछे की कहानी भी कुछ कम रोचक नहीं है। विजय गोयल अंतिम क्षण तक यह रट लगाए हुए थे कि वह इस पद के सबसे प्रबल दावेदार हैं और वह किसी भी कीमत पर हटेंगे नहीं। उन्होंने तरह-तरह की धमकियां दीं। दबाव बनाया पर अतत नरेन्द्र मोदी, अरुण जेटली और संघ के सामने उन्हें यह जिद्द छोड़नी पड़ी। इस पूरे ड्रामे में सबसे ज्यादा किरकिरी पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह की हुई। राजनाथ सिंह को न चाहते हुए भी हर्षवर्धन के नाम पर अपनी सहमति देनी पड़ी। डॉ. हर्षवर्धन एक साफ, ईमानदार छवि के नेता हैं और उनका ट्रैक रिकार्ड भी अच्छा है। चार बार लगातार विधानसभा चुनाव जीतने वाले डॉ. हर्षवर्धन 1993 में जब मदन लाल खुराना के मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री थे तो आपने ही दिल्ली में पल्स पोलियो का अभियान शुरू कर सारी दुनिया में नाम कमाया। संयुक्त राष्ट्र संघ तक ने इस अभियान की सराहना की थी। इनके मुकाबले विजय गोयल बेशक एक बहुत जुझारू और अच्छे लीडर हैं जो अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए साम-दाम-दंड-भेद सभी का इस्तेमाल कर लेते हैं पर उनकी छवि डॉ. साहब जितनी साफ नहीं। जब विधानसभा व लोकसभा चुनाव भ्रष्टाचार, घोटालों के खिलाफ लड़ा जा रहा है तो लीडर भी निर्विदिद हो तो बेहतर रहता है। इसीलिए एक स्वच्छ छवि और ईमानदार डॉ. हर्षवर्धन का चयन किया गया। डॉ. हर्षवर्धन के लिए यह पद कांटों के ताज से कम नहीं है। डॉ. हर्षवर्धन के सामने सबसे बड़ी चुनौती खेमे में बंटी भाजपा को एकजुट करने की होगी। सबसे पहली चुनौती तो टिकटों के बंटवारे की होगी। विजय गोयल ने अपनी टीम बनाई है, जिलाध्यक्ष से लेकर ब्लॉक अध्यक्ष तक उनके चुने आदमी हैं। वह चाहेंगे कि उनके आदमियों को ज्यादा से ज्यादा टिकटें मिलें। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का मानना है कि लगातार तीन बार पार्टी की हार के बाद हर्षवर्धन चार दिसम्बर को होने वाले चुनाव में इस बार पार्टी का भाग्य बदलने की क्षमता रखते हैं। सियासी जानकारों की मानें तो जिस प्रकार इस बार भाजपा ने प्रदेशाध्यक्ष विजय गोयल को पीछे कर हर्षवर्धन को आगे किया उसी प्रकार पहली बार 2008 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी ने प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा को उम्मीदवार घोषित किया। तब हर्षवर्धन प्रदेशाध्यक्ष थे। लिहाजा जो मौका उन्हें पिछली बार नहीं मिल पाया इस बार पार्टी ने उन्हें मुहैया करा दिया है। वर्ष 1993 में दिल्ली में बनी भाजपा की पहली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए हर्षवर्धन के साथ काम कर चुके उनके सहयोगी और विपक्ष के उनके साथी भी उनकी प्रशासनिक सूझबूझ के कायल हैं। हालांकि भाजपा के नेता निजी बातचीत में यह भी कह रहे हैं कि यह घोषणा कुछ और पहले ही कर दी जानी चाहिए थी। दिल्ली में भाजपा की जीत के लिए बेशक वातावरण अनुकूल हो पर दो-तीन बातें अहमियत रखेंगी। सबसे पहले तो यह जरूरी है कि भाजपा की जीत के लिए पार्टी जीतने वाले, काम करने वाले और स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारे। ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि खुद हर्षवर्धन टिकटों के बंटवारे में कितना दखल दे पाते हैं? दूसरी बात यह है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच लम्बे समय से खींचतान चलती आ रही है। भीतरघात अवश्य होगा। ऐसे में पूरे कुनबे को एक साथ लेकर मजबूती से कांग्रेस से मुकाबला करने की चुनौती भी उनके सामने होगी। मतदाताओं को मतदान केंद्रों में वोट डालने के लिए पहुंचाना एक और चुनौती होगी। शायद यह समस्या इस बार न आए, क्योंकि संघ हर्षवर्धन का पूरा समर्थन कर रही है। हर्षवर्धन के नाम की घोषणा पर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने तो फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं की पर आप पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल बोलने से नहीं कतराए। केजरीवाल ने बुधवार को हर्षवर्धन को मनमोहन सिंह बताते हुए ट्विटर पर लिखा कि क्या दिल्ली भाजपा में हर्षवर्धन मनमोहन सिंह हैं? उन्होंने कहा कि भ्रष्ट कांग्रेस ने केंद्र में सिंह को अपना चेहरा बनाया और भ्रष्ट भाजपा ने अब दिल्ली में हर्षवर्धन को अपना चेहरा बनाया है। आप प्रवक्ता मनीष सिसोदिया ने कहा कि 2010 में हर्षवर्धन ने शीला दीक्षित की प्रशंसा की थी और कहा था कि दिल्लीवासी खुशनसीब हैं ने उन्हें बतौर मुख्यमंत्री पाकर। अब वह उनके खिलाफ क्यों चुनाव लड़ रहे हैं? पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार डॉ. हर्षवर्धन के बारे में कहा था, वह आम लोगों की सेवा के लिए अपने चिकित्सकीय ज्ञान एवं अनुभव का इस्तेमाल करने में प्रशासनीय मकसद के साथ राजनीति में शामिल हुए हैं। वह निश्चित ही सफल रहेंगे।

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