Friday 18 October 2013

पारेख का सही सवाल मैं आरोपी तो पीएम क्यों नहीं?

समय-समय की बात है आज से 20-30 वर्ष पहले यह कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि किसी बिड़ला के खिलाफ केस दर्ज हो या उनमें से किसी बिड़ला को पूछताछ के लिए बुलाया जा सके पर आज बिड़ला भी कठघरे में खड़े हो रहे हैं और अम्बानी  से भी पूछताछ हो रही है। यह सब कोयला आवंटन घोटाले से संबंधित है। चुनावी मौसम के बीच कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले में सीबीआई ने मशहूर उद्योगपति आदित्य बिड़ला ग्रुप (एबीजे) के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला और उनकी कम्पनी हिंडालको इंडस्ट्रीज लिमिटेड के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। घोटाले की इस  14वीं एफआईआर में कुमार मंगलम के साथ पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख और कोयला मंत्रालय के कुछ अनाम अधिकारियों को भी आरोपी बनाया गया है। मामला दर्ज करने के साथ ही सीबीआई ने आदित्य बिड़ला समूह के कई प्रतिष्ठानों पर मंगलवार को दस्तावेज तथा अन्य सबूत जुटाने के लिए छापे मारे। एफआईआर के मुताबिक 2005 में कुछ लोगों ने प्रशासनिक अधिकारियों के साथ मिलकर आपराधिक साजिश की और तालाबीरा-2 और तालाबीरा-3 कोयला खदानों के आवंटन में पक्षपात किया। दरअसल तालाबीरा-2 खदान तमिलनाडु सरकार की पीएसयू नेवेली लिग्नाइट को दी जानी थी। लेकिन तत्कालीन कोयला सचिव पीसी पारेख ने हिंडालको को फायदा पहुंचाया। उन्होंने इस खदान को नेवेली लिग्नाइट के साथ साझा करने की अनुमति दे दी जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ। इतने महत्वपूर्ण व्यक्तियों व संवेदनशील मुद्दे पर ही चार्जशीट का फालआउट होना स्वाभाविक ही है। इधर चार्जशीट दाखिल हुई उधर चार्जशीट में आरोपी पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया। पारेख ने संवाददाताओं से कहा अगर कोई साजिश हुई है तब इसमें विभिन्न लोग शामिल हैं। इनमें एक  हैं बिड़ला जिन्होंने अर्जी लगाई थी। इसमें मैं भी हूं, जिसने मामले को देखा था और सिफारिश की थी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हैं जो उस समय कोयला मंत्री थे और उन्होंने अंतिम निर्णय किया था, वह तीसरे साजिशकर्ता हैं। इसलिए अगर कोई साजिश हुई है तो हम (प्रधानमंत्री समेत) सबको आरोपी बनाया जाना चाहिए। पारेख ने आगे प्रश्न किया कि अगर सीबीआई को लगता है कि साजिश हुई है तो बिड़ला और मुझे ही क्यों चुना गया है। पीएम को क्यों नहीं? पत्रकारों ने पूछा कि क्या पीएम को साजिशकर्ता नम्बर-1 बनाया जाना चाहिए? इस पर पारेख का कहना था ः बिल्कुल। आखिरी फैसला उन्हीं ने तो लिया था। वह चाहते मेरी सिफारिश खारिज कर सकते थे। पारेख ने हमारी राय में बिल्कुल सही सवाल उठाया है अगर कोयला खदानों के आवंटन में कोई साजिश हुई है तो कोयला मंत्री के तौर पर प्रधानमंत्री का नाम भी साजिश करने वालों में शामिल क्यों नहीं है? भले ही सीबीआई यह दावा कर रही हो कि बिड़ला और पारेख के खिलाफ उसके पास पर्याप्त एवं ठोस सबूत हैं, लेकिन उसकी कार्रवाई काफी कुछ अप्रत्याशित नजर आती है। इसका कारण है कि पहली बात तो पारेख की छवि एक ईमानदार अधिकारी की रही है और दूसरा इस पर यकीन करना कठिन हो रहा है कि एक बड़े औद्योगिक साम्राज्य को सम्भालने और आमतौर पर विवादों से दूर रहने वाले कुमार मंगलम एक अनुचित-अनैतिक तरीके से कोयला खदान हासिल करने की कोशिश में शामिल हैं। खुद सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी और यूपीए सरकार में इस केस को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। कम्पनी कार्य मंत्री सचिन पायलट ने कहा है कि इस तरह के घटनाक्रम से निवेशकों का भरोसा डगमगा सकता है, वहीं वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। पायलट ने कहा कि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि इस तरह की कार्रवाई ठोस तथ्यों पर आधारित हो क्योंकि इन घटनाओं से कारोबारी धारणा प्रभावित होती है। वहीं उद्योग जगत ने एफआईआर में  बिड़ला का नाम आने पर दीपक पारिख, निमेश कम्पनी तथा टीवी मोहनदास सहित कई उद्योग मंडलों ने कहा कि जब तक किसी के पास पुख्ता प्रमाण नहीं हों, किसी उद्योगपति पर निशाना साधने से अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा। पूरे घटनाक्रम का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि कोयला घोटाले में नए सिरे से सामना कर रहे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इस बार उनकी अपनी पार्टी ने उन्हें अकेला छोड़ दिया है। विवादित अध्यादेश पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा पीएम को पिलाई गई दुत्कार का ही नतीजा है कि इतने बड़े आरोप के बावजूद आज न तो सरकार की ओर से और न ही कांग्रेस संगठन की ओर से किसी बड़े नेता ने खुलकर उनका साथ फिलहाल दिया है। यहां यह भी बताना जरूरी है कि इसी कोल खदान आवंटन करने संबंधी कुछ महत्वपूर्ण फाइलें भी गुम हुईं और क्या कारण रहा कि इस मामले से जुड़ी सीबीआई की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट को चोरी छिपे बदलने की कोशिश की गई? हैरत की बात यह है कि यह कोशिश कोयला मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों के साथ-साथ खुद कानून मंत्री की ओर से की गई। स्पष्ट है कि दाल में कुछ काला जरूर है। साथ-साथ एक बार फिर सीबीआई के कामकाज के तरीके पर सवाल उठना स्वाभाविक है। ताजा एफआईआर कांग्रेस के लिए मुसीबत बन गई है। विपक्ष को ताजा मुद्दा मिलने से कांग्रेस के लिए मुकाबला करना कठिन हो सकता है। उत्तर प्रदेश के एक फूड पार्प के शिलान्यास के मौके पर हाल ही में राहुल गांधी और कुमार मंगलम बिड़ला साथ-साथ नजर आए थे। कांग्रेस पार्टी को बिड़ला समूह से करोड़ों रुपए चन्दा मिलता है। इस एफआईआर से केवल बिड़ला ही नहीं बल्कि सारा उद्योग जगत सरकार के खिलाफ हो सकता है। कांग्रेस के अन्दर माना जा रहा है कि यहां ताजा एफआईआर से एक ओर फिर भ्रष्टाचार का मुद्दा अहम बन जाता है वहीं प्रधानमंत्री को बचाना मुश्किल है। देखें कांग्रेस पार्टी और यह यूपीए-2 सरकार ताजा हमले से कैसे निपटती है। देखना यह भी होगा कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों खासकर दिल्ली के विधानसभा चुनाव में ताजा घटनाक्रम का क्या असर पड़ता है?

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment