Tuesday, 15 October 2013

सांप्रदायिक दंगे सियासी फायदे के लिए राजनीतिक दल करवाते है

हालांकि यह सभी जानते हैं कि सांप्रदायिक दंगे होते नहीं  कराए जाते हैं पर तब भी किसी भी राजनेता की यह स्वीकृति अच्छी लगती है। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मुजफ्फरनगर दंगों को लेकर गत बुधवार अलीगढ़ और रामपुर की रैलियों में समाजवादी पार्टी और भाजपा पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि दंगे होते नहीं करवाए जाते हैं। मुजफ्फरनगर में भी ऐसा ही हुआ है। यहां सियासी ताकतों ने महज इसलिए खूनखराबा कराया क्योंकि उन्हें लगता है कि सांप्रदायिक टकराव के बगैर वह चुनाव जीत नहीं सकते। आम आदमी तो यह मानता ही रहा है कि दंगे सियासी फायदे के लिए कराए जाते हैं। राजनीतिक दल ही वोट के लिए लोगों के बीच जाति और मजहब का भेद पैदा करते हैं। आमतौर पर लोग तो इस भेद को भुलाकर मिलजुल कर रहना चाहते हैं। अगर हम मुजफ्फरनगर की बात करें तो यहां कभी भी दंगा नहीं हुआ, 1947 में भी नहीं हुआ। वर्षों से हिन्दू-मुसलमान सद्भाव के साथ रहते आए हैं। लेकिन सियासी दखल के बाद ही वहां दंगे शुरू हुए। दंगे न रोक पाने के आरोप में सजा के तौर पर निलंबित किए गए चार दारोगाओं के तर्कों को सुनने के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निलंबन पर रोक लगा दी। दारोगाओं की ओर से यह कहा जाना कि कवाल गांव में लड़की छेड़ने का विरोध कर रहे सचिन और गौरव की हत्या के आरोप में पकड़े गए आरोपियों को मंत्री के दबाव में छोड़े जाने के बाद सांप्रदायिक दंगा भड़क उठा  जो सीधा अखिलेश सरकार को कठघरे में खड़ा करता है। मुजफ्फरनगर दंगों के बाद सपा सरकार एकतरफा कार्रवाई के आरोपों में घिरती ही जा रही है। सरकार पर दंगें के बाद एक समुदाय विशेष के पुलिसकर्मियों के स्थानांतरण के इस आरोप के अलावा यह भी आरोप  लग रहा है कि बड़े पैमाने पर एक समुदाय विशेष से संबंधित लोगों के शस्त्र लाइसेंस निलंबित किए गए। हाई कोर्ट पहुंचे शस्त्र लाइसेंस के मामले पर संज्ञान लेते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी किया है। मामले की अगली सुनवाई 23 अक्तूबर को होगी। न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता ने मुजफ्फरनगर के राजेन्द्र सिंह की याचिका पर सुनवाई के बाद अखिलेश सरकार से जवाबी हलफनामा दो सप्ताह में दाखिल करने को कहा है। राजेन्द्र सिंह के वकील अनिल शर्मा ने कोर्ट को कवाल की घटना के बाद उपजे हालात की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि दंगे के बाद भौराकलां थाने ने 9 सितम्बर को याची को नोटिस जारी कर शस्त्र लाइसेंस निलंबित करने की सूचना दी और उससे 23 अक्तूबर तक अपना असलहा थाने में जमा करने को कहा गया। इतना ही नहीं, इसी प्रकार का नोटिस नौवाबाद गांव के एक ही समुदाय के 70 लोगों को जारी किया गया। अधिवक्ता अनिल शर्मा ने दलील दी कि संविधान के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत सरकार धर्म के आधार पर शस्त्र लाइसेंस जारी या निरस्त करने में भेदभाव नहीं कर सकती। इधर सुप्रीम कोर्ट ने मुजफ्फरनगर समेत उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में हुए दंगों के विषय में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और नगर विकास मंत्री आजम खान को नोटिस जारी किया है। अदालत ने यह नोटिस वी द पीपल और दो अन्य लोगों द्वारा हाई कोर्ट की इलाहाबाद और लखनऊ बैंच में दाखिल याचिका को अपने यहां स्थानांतरित करने के बाद दिया है। सुप्रीम कोर्ट पहले से दाखिल याचिकाओं सहित हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ की तीन याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नूतन ठाकुर ने लखनऊ पीठ में जनहित याचिका प्रस्तुत कर सीबीआई जांच की मांग की है। इसके साथ अन्य याचिकाओं में भी दिखाए गए स्टिंग ऑपरेशन सहित कई विवादित बिन्दुओं पर निष्पक्ष जांच की मांग की गई है। याचिका में मांग की गई है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जांच के लिए गठित सहाय कमीशन के साथ हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति को भी शामिल कर निष्पक्ष जांच कराई जाए। रिपोर्ट आ रही है कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को अब उत्तर प्रदेश सरकार के प्रति जनता की नाराजगी का डर सताने लगा है। शनिवार को डॉ. राम मनोहर लोहिया के निर्वाण दिवस और आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि उनके विधायकों और मंत्रियों की खामियों की सजा जनता उन्हें न दे। जाहिर है उन्होंने यह बात लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कही है, जो पार्टी के लिए काफी अहम है। सपा प्रमुख ने कहा कि सत्ता में  बैठे लोगों पर जनता की पैनी नजर होती। आपके कहने से सरकार अच्छी नहीं होगी, जब जनता अच्छा कहे तब सरकार अच्छी मानी जाएगी।

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