Saturday, 12 October 2013

पाकिस्तान में जम्हूरियत के मजबूत होने के संकेत

हम सबको मिलकर यह दुआ करनी चाहिए कि पाकिस्तान में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ मजबूत हों और पाकिस्तान में जम्हूरियत और महफूज हो। क्या आप कभी दुश्मन को उसकी सफलता के लिए दुआ करते देखेंगे? पर भारत के दूरगामी हित में यही है कि पाकिस्तान में अमन-शांति हो, जम्हूरियत के पांव जमें और मियां नवाज शरीफ जो भारत के साथ अमन-शांति का दौर चाहते हैं वह अपने इरादों में सफल हों। यह तभी हो सकता है जब एक और पाकिस्तानी सेना की सरकारी कामकाज व नीतियों पर पकड़ कमजोर हो और दूसरी ओर इन जेहादी संगठनों, दहशतगर्दों पर लगाम लगे। भारत के दृष्टिकोण से पाकिस्तान से सबसे बड़ी शिकायत या मतभेद इस बात को लेकर है कि वह अपनी सरजमीं से इन जेहादी संगठनों की न केवल मदद करते हैं बल्कि कुछ हद तक यह `स्टेट पॉलिसी' भी है। ताजा घटनाओं में एक किस्म की रवानगी है जो जम्हूरी प्रक्रिया को बुलंद बनाती जा रही है। बीते रविवार को इसकी एक और तस्दीक तब हुई जब पाकिस्तानी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जनरल अशफाक कयानी ने एक बयान जारी कर यह बताया कि वह 29 नवम्बर को अपने ओहदे से हट जाएंगे। एक्सटेंशन लेने का उनका कोई इरादा नहीं है। पाक फौज के मुखिया का अपनी नौकरी निपटाकर चुपचाप विदा हो जाना पाकिस्तान के लिए कम बड़ी घटना नहीं है। ऐसा कुछ ही जनरलों के साथ पहले हुआ है। ज्यादातर जनरल हंगामाखेज तरीके से काम करते रहे हैं और पद छोड़ने के बाद भी सिस्टम को झकझोरते रहे। कुछ मारे गए, कुछ बेआबरू होकर निकले। लेकिन पूरे तंत्र को चंगुल में रखने की उनकी मंशा हमेशा नजर आती रही। पाकिस्तान में फौज के मुखिया के लिए भारत विरोध भी एक बड़ा एजेंडा रहा है। इसको आगे बढ़ाने से पहले किसी जनरल ने नागरिक शासन की अनुमति लेनी जरूरी नहीं समझी। इसे उन्होंने स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ाया और अपने ही शासन तंत्र की दुनिया में किरकिरी करवाई। लेकिन जनरल कयानी ने संयम दिखाकर पूरी गरिमा के साथ अपना कार्यकाल पूरा किया। तब तक वह अपना इरादा 29 नवम्बर तक बदल न लें या कोई ऐसी स्थिति पैदा न हो जाए कि उन्हें एक्सटेंशन देना पड़े? वैसे यह मानना पड़ेगा कि जनरल कयानी लो-प्रोफाइल में रहे, वह अपने दायरे में रहे और कभी भी उन्होंने सरकार व प्रशासन को डिक्टेट करते हुए नहीं देखा गया। न ही उन्होंने बड़बोलापन ही दिखाया, न ही ऐसा कोई कदम उठाया जिससे लगे कि फौज लोकतांत्रिक शासन पर हावी होना चाहती है पर पर्दे के पीछे वह भारत विरोधी तत्वों को हवा व समर्थन करते रहे। केरन सैक्टर में ताजी घुसपैठ इसी का एक सबूत है। पाक मीडिया में ऐसी चर्चाएं आम हैं कि कयानी अपने पक्ष में माहौल बनाकर पाकिस्तानी फौज का मुखिया बने रहना चाहते हैं या वह किसी अन्य जिम्मेदारी के इच्छुक हैं। कयास तो यह भी लगाया जा रहा है कि उन्हें बतौर बड़ी जिम्मेदारी ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी का मुखिया बनाया जाएगा। फिलहाल यह ओहदा रस्मीभर है। उम्मीद यही की जाती है कि पाकिस्तान उस दौर से काफी आगे निकल आया है, जिसमें अपने फायदे के लिए विभिन्न ताकतें जम्हूरियत को नुकसान पहुंचाती रही है। कुल मिलाकर पाकिस्तान सही दिशा में बढ़ रहा है जिसका हमें स्वागत करना चाहिए।

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