Wednesday 16 October 2013

तूफान से बचे भगदड़ में मरे

हमारे सामने दो उदाहरण हैं, एक जब प्रलयकारी और विध्वंसक तूफान फैलिन आया और दूसरा दतिया से साठ किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश के रत्नगढ़ देवी मंदिर की भगदड़ का। हालांकि किसी भी दृष्टिकोण से तूफान फैलिन कहीं ज्यादा खतरनाक था और अभूतपूर्व तबाही मचा सकता है वहीं बेहतर तैयारी और डिजास्टर मैनेजमेंट के कारण सैकड़ों जिंदगियां बचाई जा सकीं। इस सफलता का श्रेय जाता है केंद्र और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन यानि एनडीएमए के साथ-साथ राज्यों के स्थानीय प्रशासनों को। अगर स्थानीय प्रशासन की बात करें तो रत्नगढ़ देवी मंदिर में प्रशासन की लापरवाही के कारण 115 श्रद्धालुओं की तो मौत हो चुकी है और 150 से अधिक लोग घायल हुए हैं। मरने वालों में 30 बच्चे और 42 महिलाएं भी शामिल हैं। नवरात्रि की नवमी पर मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित प्रसिद्ध रत्नगढ़ देवी मंदिर में रविवार को पुल टूटने की अफवाह के बाद भगदड़ मचने से 115 लोगों की मौत हो गई। मंदिर के लिए रास्ता सिंध नदी पर बने पुल से होकर जाता है। पुल पर काफी भीड़ थी, तभी कुछ लोगों ने अफवाह फैला दी कि पुल टूटने वाला है जिससे भगदड़ मच गई। हालांकि कुछ प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि कुछ लोगों ने पुल से मंदिर तक लगी लम्बी लाइन को तोड़कर आगे जाने की कोशिश की जिस पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। इस वजह से महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग इधर-उधर भागने लगे और भगदड़ मच गई। रत्नगढ़ माता मंदिर के नजदीक बह रही सिंध नदी के पुल पर जहां भी नजर दौड़ाई जाए लाशों के ढेर और घायल लोग पड़े थे। पुल पर हजारों की संख्या में यात्रियों के झोले, बैग, जूते, चप्पल व उनका सामान बिखरा पड़ा था। मध्यप्रदेश सरकार ने हादसे की न्यायिक जांच कराने के आदेश दे दिए हैं। मरने वालों को डेढ़-डेढ़ लाख रुपए और गम्भीर रूप से घायलों को 50-50 हजार रुपए के मुआवजे की घोषणा की गई है। यह दुर्घटना अपने आप में रहस्यमय है। दुर्घटना पर कुछ ऐसे सवाल खड़े हो गए हैं जिनका जवाब मिलना चाहिए। आखिर पुल टूटने की अफवाह किसने और क्यों फैलाई? क्या पुलिसकर्मियों ने ही यह कहा था कि पुल टूट गया है और लोगों को वहां रोकने का प्रयास किया था। यदि पुलिसकर्मियों ने यह कहा था तो क्यों कहा था? क्या यह किसी की शरारत या सियासी सब्जैक्ट था? पुलिस को लाठीचार्ज करने की आवश्यकता क्यों पड़ी? भीड़ बढ़ने पर सीमित लोगों को अलग-अलग समूहों में मंदिर तक छोड़ा जा सकता था। यदि संख्या कम थी तो पुलिस को लाठीचार्ज करने का आदेश किसने दिया? पुलिस को जबकि यह मालूम था कि लाठीचार्ज में भगदड़ मच सकती है। कांग्रेस का आरोप है कि पुलिस किसी नेता के लिए रास्ता बनाने का प्रयास कर रही थी। सवाल यह है कि वीआईपी के आने की योजना पहले से नहीं बनाई गई और यह विचार नहीं किया गया कि महत्वपूर्ण लोगों को भीड़ वाले समय में न लाया जाए। घटना के बहुत देर बाद तक पीड़ितों को सहायता नहीं मिली। देर शाम तक लाशों का ढेर लगा रहा। बड़ी संख्या में जब लोग नवमी के मौके पर आने वाले थे तो वहां फायर ब्रिगेड व एम्बुलेंस व चलित अस्पतालों की कोई व्यवस्था क्यों नहीं की गई? नया पुल बनने के बाद भी लोग सिंध नदी में गिर गए। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक नदी में गिरे लोगों को ढूंढा नहीं जा सका है। बड़ी संख्या में लोग लापता हैं, नदी में बहने की आशंका है। आखिर यह लोग नदी में गिरे कैसे? एक अक्तूबर 2006 को भी सिंध नदी में 50 लोग बह गए थे। इसके बाद जांच की गई और जांच रिपोर्ट में कुछ सुझाव भी दिए गए थे। क्या राज्य सरकार ने उस न्यायिक जांच आयोग की सिफारिशें व रिपोर्ट के आधार पर कोई कार्रवाई की। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इस हादसे का शिवराज सिंह चौहान की सरकार पर क्या असर पड़ता है यह समय ही बताएगा।

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